राजनीति में फिल्मी हीरो को नहीं अपितु सच्चे जनसेवक को स्वीकारती है जनता
टिहरी लोकसभा उपचुनाव में मिले जनादेश का सम्मान करते हुए सच्चे मन से जनांकांक्षाओं को साकार करने का संकल्प लेने के बजाय फिर फिल्मी स्टार की तरह डायलोग बोल कर कि एक फिल्म के फलाप्त हो जाने से हिरो का केरियर खत्म नहीं होता हो या एक मैच में शून्य पर आउट होने वाले खिलाडी का केरियर समाप्त नहीं होने वाले जुमले बोल कर जनादेश का उपहास उड़ाने वाले विजय बहुगुणा भले ही प्रदेश के मुख्यमंत्री दिल्ली के तिकड़मियों की कृपा से बन गये हों परन्तु अभी उनको न तो लोकशाही का प्रथम पाठ का ज्ञान है कि राजनीति होलीवुड या बोलीवुड नहीं यहां हीरो व्यक्ति नहीं अपितु जनता असली हीरो होती है। जनता ही यहां कुशासकों को जमीन सुंघाती है और जनता ही यहां जनसेवकों को सत्तासीन भी करती है। मुख्यमंत्री भूल गये कि उत्तराखण्ड देवभूमि है और यहां प्रदेश की जनता ने सदियों से अन्यायी कुशासकों को धूल चटायी है। यहां की जनता सहृदयी जनसेवक को तो सर आंखों पर बिठाती है परन्तु सत्तांध व धनमद व धूर्तता से जनता को छल प्रपंच से जनभावनाओं को रौंदने वालों को जमीन भी सुंघाती है। शायद बहुगुणा जी को अभी उत्तराखण्ड की जनता का भान नहीं। उनको जनसेवा व यहां की जनता से अधिक लगता है फिल्मी हीरो हिरोइनों पर ज्यादा भरोसा है। नहीं तो वे चुनाव जीतने के लिए टिहरी उपचुनावों की तरह संजय दत्त, राजबब्बर व नफीसा अली जैसे फिल्मी हीरो हिरोइनों को तारन हार समझ कर नहीं उतारते। लगता है मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा जी को अब जल्द ही भूलने की आदत हो गयी नहीं तो उन्हें यह जरूर याद रहता कि सितारगंज विधानसभा उप चुनाव में फिल्मी हीरो हिरोइनों को उतारने के कारण अपने विरोधी भाजपा का मजाक उडा रहे थे। शायद विजय बहुगुणा यह भूल गये कि यह जनता है सब कुछ जानती है। अपना अच्छा व बुरा भी पहचानती है।
शायद विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनने के बाद इस बात का भी भान नहीं रहा होगा कि जिन फिल्मी दुनिया का जुमला वे बोल रहे हैं उसी के महानायक अमिताभ बच्चन को आगे करके कांग्रेस ने इलाहाबाद में मुख्यमंत्री के पिता जी व देश के प्रखर नेता हेमवती नन्दन बहुगुणा को पटकनी दे कर उनके राजनैतिक जीवन पर ग्रहण लगाने का कृत्य किया। वहीं इससे पहले जब कांग्रेस आला नेतृत्व इंदिरा गांधी से राजनैतिक टकराव के तहत हेमवती नन्दन बहुगुणा ने इलाहाबाद से सांसद पद से इस्तीफा दे कर गढ़वाल लोकसभा उपचुनाव में उतरे । इंदिरा गांधी से सीधे टक्कर लेते देख कर उत्तराखण्ड के गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र की स्वाभिमानी जनता ने ऐतिहासिक गढवाल उपचुनाव में हेमवती नन्दन बहुगुणा को अपना मान कर सत्तामद में चूर इंदिरा गांधी को तमाम तिकड़मों व संसाधनों को झोंकने के बाबजूद अपने प्रत्याशी चन्द्र मोहन सिंह नेगी को जीता नहीं पाये। उत्तराखण्ड की स्वाभिमानी व बहादूर जनता ने इंदिरा गांधी के मंसूबों को जमीन संुघा कर उत्तराखण्ड नन्दन श्री बहुगुणा को राष्ट्रीय राजनीति के धू्रवतारा बना कर स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस चुनाव में इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ मेरे जैसे उस समय के छात्र व आम आदमी भी बहुगुणा को विजय दिलाने के लिए मर मिटने के लिए चुनावी समर में कूदे हुए थे। आज उन्हीं बहुगुणा जी के बेटे को उस स्वाभिमानी जनता के हक हकूकों से खुद को दूर करते हुए देखता हॅू तो सच में मुझे ही नहीं उस पीड़ी के अधिकांश लोगों को बहुत दुख होता है। वे भूल गये कि यह उत्तराखण्ड की पावन धरती है यहां पर सदियों से अपने मान सम्मान व हक हकूकों को रौंदने वाले सत्तांधों को करारा सबक सिखाने का गौरवशाली इतिहास रहा है। जनता का दिल विनम्रता व जनसेवा से जीता जा सकता है न की उसको दौलत व सत्ता की धमक दिखा कर।
उन्हीं हेमवती नन्दन बहुगुणा के बेटे विजय बहुगुणा को जब कांग्रेस नेतृत्व ने विधानसभा चुनाव में मिले जनादेश का सम्मान करने के बजाय बलात उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री बनाया तो विजय बहुगुणा ने उस स्वाभिमानी जनता को शतः शतः नमन् करने के बजाय जब उत्तराखण्ड के स्वाभिमान को रौंदने वाले खलनायक मुलायम सिंह व उनके प्यादों के साथ गलबहियां करने का दुशाहस किया तो जनता ठगी सी रह गयी। यही नहीं एक सितारगंज विधानसभा उपचुनाव जितने के लिए जिस प्रकार से मुख्यमंत्री बहुगुणा ने अपने आप को उत्तराखण्डी मूल का नहीं बंगाली मूल का बताया कर जनता के जख्मों को कुरेद ही दिया। इससे जनता बेहद अपमानित व ठगी सी महसूस कर रही थी। जनता को आशा थी कि विजय बहुगुणा अपने पिता के पदचिन्हों पर चल कर प्रदेश का सम्मान बढ़ाते हुए जनांकांक्षाओं को साकार करेंगे। परन्तु जिस प्रकार से मुख्यमंत्री के रूप में विजय बहुगुणा का घोर सत्तालोलुपु चेहरा समाने आया तो जनता को लगा कि ये भी तिवारी, खण्डूडी, निशंक जैसे मुख्यमंत्रियों की तरह मात्र अपनी कुर्सी के लिए राजनीति कर रहे हैं इनका उत्तराखण्ड के सम्मान, हितों व हक हकूकों से कहीं दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। अब टिहरी संसदीय उपचुनाव में जिस प्रकार उन्होंने अपने राजनीति में नौशिखिया बेटे साकेत, जिसका एक दिन का उत्तराखण्ड के हक हकूकों के लिए संघर्ष करने का इतिहास नहीं रहा, को सांसद का प्रत्याशी बनाने से जनता का भ्रम पूरी तरह से टूट गया। जनता को समझ में आ गया कि विजय बहुगुणा को भी अन्य नेताओं की तरह मै, मेरे बेटे, मेरी पत्नी व मेरे रिश्तेदार तथा मेरे समर्थक से आगे न तो जनता ही दिखाई देती है व नहीं अपनी पार्टी के जमीनी वरिष्ट कार्यकत्र्ता । उन्हें न तो मुजफरनगर काण्ड के अभियुक्तों को दण्डित करने के लिए ठोस कदम उठाने का भान रहा, उनको न हीं गैरसेंण राजधानी बनाने का, नहीं प्रदेश में व्याप्त जातिवाद-क्षेत्रवाद की संकीर्णता व भ्रष्टाचार को दूर करने का दायित्व ही याद रहा। जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई परिसीमन का दंश का तो उनको भान ही नहीं। मूल निवास पर न्यायालय के निर्णय के बाद उनकी सरकार की संवेदनहीनता से एक तथ्य उजागर हो गया है कि उनको न तो उत्तराखण्ड के वर्तमान की चिंता है व नहीं भविष्य की। केवल तिकड़मों व फिल्मी हीरो हिरोइनों के लटके झटके से चुनाव जीत कर सत्ता का जम कर दोहन करना ही एक मात्र लक्ष्य रह गया। विजय बहुगुणा सहित तमाम राजनेताओं को एक बात गांठ बांध लेनी चाहिए कि तिकड़मों व तमाशों से जनता का कुछ पल का मनोरंजन तो किया जा सकता है परन्तु दिल नहीं जीता जा सकता है। जनसेवा के लिए नेताओं को यशवंत सिंह परमार जैसे दूरदृष्टि वाला व लाल बहादूर शास्त्री जैसे चरित्रवान जमीनी नेता होना चाहिए। आज फिल्मी दुनिया के लटके झटके के दम पर राजनीति में उतरे महानायक अमिताभ बच्चन से लेकर राजेश खन्ना, संजय दत्त से लेकर गोविन्दा, धर्मेन्द्र से लेकर विनोद खन्ना आदि बुरी तरह से असफल हुए। केवल जनसेवा को आत्मसात करने वाले रामचन्द्रन, जया ललिता, रामाराव व सुनील दत्त जेसे फिल्मी दुनिया के लोग ही राजनीति मे सफल हुए।
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