96वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सैनानी व लोकगायक गुमान सिंह रावत के निधन पर दिल्ली में श्रद्धांजलि सभा
नई दिल्ली(प्याउ)। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उत्तराखण्ड के वीर सपूतों का महान योगदान रहा है। इन्ही वीर सपूतों में से एक थे कत्यूर घाटी
नई दिल्ली(प्याउ)। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उत्तराखण्ड के वीर सपूतों का महान योगदान रहा है। इन्ही वीर सपूतों में से एक थे कत्यूर घाटी
के गुमान सिंह रावत। स्वतंत्रता संग्राम सैनानी होने के साथ वे उत्तराखण्ड के अग्रणी लोक गायक भी थे। 16 मार्च 1917 में गरुड़ विकासखंड के अयांरतोली के लक्ष्मण सिंह व श्रीमती बचुली देवी के पुत्र के रूप में जन्मे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व लोकगायक गुमान सिंह रावत का 96 साल की उम्र में 20 सितम्बर की रात लगभग 9 बजे निधन हो गया। उनके निधन पर दिल्ली के कई सामाजिक संस्थाओं ने गढ़वाल भवन में 6 अक्टूबर को श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कर दिवंगत महान सपूत को अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित किया। श्रद्धांजलि सभा के संयोजक व उत्तराखण्ड परिषद के अध्यक्ष मोहन बिष्ट ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए बताया कि महान स्वतंत्रता सैनानी व गायक गुमान सिंह रावत बचपन से ही देश भक्ति में लीन रहते थे। विद्यार्थी जीवन में वे विद्यालय जाने के बजाय नजदीकी स्थानों में होने वाली स्वतंत्रता की रणनीति बैठकों में भाग लेते थे। 1929 में जब महात्मा गांधी कौसानी आए तो वे उनके सम्पर्क में आए व पूरी तरह से पढ़ाई छोड़ स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए। 1932 में सेना में भर्ती हो गए। चोरी छिपे स्वतंत्रता आंदोलन में काम करने पर उन्हें छह माह की सेवा के बाद ही सेना से निकाल दिया गया। इसके बाद से उन्होंने देश की आजादी में अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने पर उन्हें 30 रुपये का अर्थदंड व पांच माह के कठोर कारावास की सजा हुई। वर्तमान में वे अपनी पत्नी खिमुली देवी व छोटे पुत्र के साथ ही गांव में रहते थे। कई पुरष्कारों से सम्मानित श्री रावत जी को गत स्वतंत्रता दिवस में उन्हें भारत सरकार से दिल्ली में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा सम्मानित करने का पत्र प्राप्त हुआ था, मगर अस्वस्थ होने के कारण वे दिल्ली जा नहीं पाए। श्री गुमान सिंह रावत जी को लोककलाकारी में भी प्रसिद्धी हासिल थी। उन्होंने कई सांस्कृतिक व सामाजिक संगठनों की स्थापना की। पहाड़ी हुड़ुका लेकर गांव-गांव जाकर लोगों को हुड़के आदि की जानकारी देते थे। उनकी कला थी कि वे अपने मुंह से ही हुड़के की थाप निकालते हैं।जब महात्मा गांधी कौसानी आए तो उन्होंने अपनी कला से ‘किलै भभरी रैछ, गांधी जी ऐरिना.....गीत गाया। जो कि उस समय काफी प्रसिद्ध हुआ सभा में पर्वतीय कलामंच के हेम पंत, मनोज चंदोला, केएन पाण्डे, उत्तराखण्ड जनांदोलन के प्रमुख संगठन उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष देवसिंह रावत, दिनेश बेंजवाल, भाजपा नेता महेश बिष्ट, पत्रकार चारू तिवारी व दाता राम चमोली, कोयला मंत्री के निजी सहायक एस एस नेगी, प्रेम अरोड़ा, मीना भण्डारी, हंसा अमोला, म्यर उत्तराखण्ड के अध्यक्ष सुदर्शन रावत, महासचिव भूपाल सिंह बिष्ट, देवेन्द्रसिंह बिष्ट, सार्थक प्रयास के उमेश पंत, शिवचरण मुण्डेपी, उत्तराखण्ड परिषद के भुवन काण्डपाल, क्रिऐटिव उत्तराखण्ड के अध्यक्ष दयाल पाण्डे, भारत रावत, उत्तराखण्ड क्रांतिदल के महेश पपनै व सभा में दिवंगत गुमान सिंह रावत के पौते हरीश रावत भी उपस्थित थे। श्रद्धांजलि सभा का शुभारंभ जहां दिवंगत गुमानसिंह की तस्वीर को पुष्पांजलि अर्पित करके की गयी वहीं समापन पर उनकी स्मृति में एक मिनट को मौन रख कर दिवंगत आत्मा की परम शान्ति की प्रार्थना की गयी।
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