गैरसैंण राजधानी बनने से होगी लोकशाही की जीत
इससे खुलेगे उत्तराखण्ड विकास के द्वार
उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन में हमारी प्रमुखतः जो दो माग थी वह था उत्तराखण्ड राज्य का गठन करने व प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाने की प्रमुखता से थी। प
इससे खुलेगे उत्तराखण्ड विकास के द्वार
उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन में हमारी प्रमुखतः जो दो माग थी वह था उत्तराखण्ड राज्य का गठन करने व प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाने की प्रमुखता से थी। प
रन्तु राज्य गठन के बाद जनतंत्र का गला घो।टने वाली सरकारों ने भले ही जन आक्रोश व जनदवाब को देखते हुए भले राज्य का गठन तो कर दिया परन्तु अपना अलोकतांत्रिक चेहरा खुद बेनकाब करते हुए प्रदेश का नाम उत्तराखण्ड रख दिया और राजधानी गैरसेंण बनाने के बजाय उसे षडयंत्र के तहत देहरादून में थोप दिया। यही नहीं राजधानी गैरसेंण न बने इसके लिए जहां एक तरफ राजधानी चयन आयोग जैसे टोटका प्रदेश के लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए बना कर प्रदेश के करोड़ो रूपये के संसाधन एक दशक तक इस पर बर्बाद किये गये। वहीं दूसरी तरफ गुपचुप करके उत्तराखण्ड से द्रोह करके राजधानी बलात देहरादून में ही थोपते हुए यहां पर इससे सम्बंधित कई भवन तक बना दिये गये।
जब खुद मैने प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री तिवारी से उत्तराखण्ड निवास में गैरसेंण राजधानी बनाने के लिए आग्रह किया तो उन्होंने गुस्से में तमतमाते हुए कहा कि कैसे बनेगी गैरसेंण राजधानी मैने देहरादून में सभी कार्यालय बना दिये। यह मेरी पहचान साफ होने पर अपने गुस्से को काबू न रख सकने वाले भारत के दिग्गज तिवारी के मूंह से सच्चाई सच में छलक ही गयी।
उसके बाद मैने मुख्यमंत्री बने भाजपा नेता खण्डूडी से इस राजधानी चयन आयोग को भंग न किये जाने पर सवाल किये तो उन्होंने बहुत ही मासूमियत से जवाब दिया कि उन्होने अभी अपनी रिपोर्ट ही सरकार को नहीं सौंपी। मैने खण्डूडी जी से सवाल किया कि आप लोगों ने क्या इस आयोग के अध्यक्ष की पेंशन लगा दी है। क्या जरूरत है उनकी रिपोर्ट की। जिस सवाल को लोगों ने सबसे पहले सुलझा दिया उसमें प्रदेश के संसाधन व समय क्यों नष्ट किये जा रहे है।
उसके कई महिनों बाद इस आयोग की रिपोर्ट सरकार को सोंपी। न तो खण्डूडी जी ने व नहीं उसके बाद मुख्यमंत्री बने निशंक ने इस दिशा में कुछ काम किया। मैने निशंक जी से मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तराखण्ड निवास में आधा घण्टा की खुली चर्चा की थी जिसमें एक दर्जन से अधिक देश की प्रबुद्ध मीडिया, चार दर्जाधारी व प्रदेश सरकार के कई अधिकारी भी उपस्थित थे। मैने तत्कालीन मुख्यमंत्री से कहा था कि निशंक जी आप गैरसेंण राजधानी बना दो प्रदेश की जनता आपको यशवंत सिंह परमार की तरह याद करेगी। इसके साथ मेने उनको आगाह किया था कि उत्तराखण्ड देवभूमि है इस धरती से अन्याय करने वाले मुलायम-राव ही नहीं तिवारी, खण्डूडी भी अपनी छवि को तार तार कर चूके हैं। आपको परमात्मा ने अवसर दिया है इस दुर्लभ अवसर का सदप्रयोग नहीं करोगे तो आपको भी महाकाल माफ नहीं करेगा। निशंक ने मुझे आश्वासन दिया था परन्तु सत्तामद में शायद वे भूल गये। आज कहां है सत्तांधों को समय ऐसी मार मारता है कि उनको प्रायश्चित करने का भी समय नहीं मिलता।
अब भाजपा को उत्तराखण्ड की जनभावनाओं से खिलवाड करने का दण्ड दे कर महाकाल ने कांग्रेस को अवसर दिया। परन्तु कांग्रेस आलाकमान ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बना कर जनादेश का अपमान किया। इसी का दण्ड अब कांग्रेस 2014 में देश से सत्ता से दूर होगी और भाजपा भी सत्तासीन नहीं हो पायेगी। मुलायम सिंह का तो मतलब ही नहीं ।
अब उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री बहुगुणा गैरसेंण में अपने मंत्रीमण्डल की बैठक 3 नवम्बर को कर रहे है। इसका स्वागत है। चाहे आधे मन से या लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए यह नाटक कर रहे है फिर भी इससे गैरसेंण राजधानी बनाने की मांग को ही बल मिलेगा।
मने हरीश रावत, सतपाल महाराज व प्रदीप टम्टा से दो टूक शब्दों में अपनी मूल बात बता दी है कि गैरसेंण राजधानी से कम किसी कीमत पर स्वीकार नहीं। प्रदेश के सत्तासीनों को हर हाल में राजधानी गैरसेंण बनानी होगी। आंदोलनकारी संगठनों व बुद्धिजीवियों को समय का सदप्रयोग करना चाहिए। इस मांग को निरंतर बल देना चाहिए। जब तक प्रदेश की राजधानी गैरसेंण नहीं बनेगी तब तक प्रदेश के हुक्मरानों का ध्यान पर्वतीय क्षेत्र जिसके समग्र विकास के लिए उत्तराखण्ड राज्य के गठन का ऐतिहासिक आंदोलन हुआ।
आज राज्य गठन के 12 साल बाद भी प्रदेश से न तो पलायन रूका। गांव के गांव विरान हो रहे है। गांवों की स्कूल,चिकित्सालय सहित तमाम सरकारी कार्यालय मरणासन्न है। प्रदेश में विकास के बजाय भ्रष्टाचार का शिकंजा जकडा हुआ है। प्रदेश में एनजीओ का शिकंजा दिन रात भ्रष्टाचार से प्रदेश के संसाधनों को बर्बाद करने में लगे हे। अगर प्रदेश को जीवंत रखना है तो जन भावनाओं का सम्मान करते हुए राजधानी गैरसेंण बनानी नितांत आवश्यक है। यह देखना बाकी है कि लोकतंत्र की जीत होती है या थोपशाही की। चंद अवसरवादी व सुविधाभोगी लोग कैसे प्रदेश की जनांकांक्षाओं को अपने इशारे पर नचा कर लोकतंत्र का गला घोंटते है। राजधानी गैरसेंण बनानी ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी राज्य आंदोलनकारी शहीदों व बाबा मोहन उत्तराखण्डी को। अब सरकार को जो बजट राजधानी बनाने के लिए केन्द्र से मिला है उसको तत्काल यहां गैरसेंण में राजधानी बनाने में खर्च करना चाहिए। यही लोकतंत्र में जायज है व यही जनादेश का सम्मान है।
जब खुद मैने प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री तिवारी से उत्तराखण्ड निवास में गैरसेंण राजधानी बनाने के लिए आग्रह किया तो उन्होंने गुस्से में तमतमाते हुए कहा कि कैसे बनेगी गैरसेंण राजधानी मैने देहरादून में सभी कार्यालय बना दिये। यह मेरी पहचान साफ होने पर अपने गुस्से को काबू न रख सकने वाले भारत के दिग्गज तिवारी के मूंह से सच्चाई सच में छलक ही गयी।
उसके बाद मैने मुख्यमंत्री बने भाजपा नेता खण्डूडी से इस राजधानी चयन आयोग को भंग न किये जाने पर सवाल किये तो उन्होंने बहुत ही मासूमियत से जवाब दिया कि उन्होने अभी अपनी रिपोर्ट ही सरकार को नहीं सौंपी। मैने खण्डूडी जी से सवाल किया कि आप लोगों ने क्या इस आयोग के अध्यक्ष की पेंशन लगा दी है। क्या जरूरत है उनकी रिपोर्ट की। जिस सवाल को लोगों ने सबसे पहले सुलझा दिया उसमें प्रदेश के संसाधन व समय क्यों नष्ट किये जा रहे है।
उसके कई महिनों बाद इस आयोग की रिपोर्ट सरकार को सोंपी। न तो खण्डूडी जी ने व नहीं उसके बाद मुख्यमंत्री बने निशंक ने इस दिशा में कुछ काम किया। मैने निशंक जी से मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तराखण्ड निवास में आधा घण्टा की खुली चर्चा की थी जिसमें एक दर्जन से अधिक देश की प्रबुद्ध मीडिया, चार दर्जाधारी व प्रदेश सरकार के कई अधिकारी भी उपस्थित थे। मैने तत्कालीन मुख्यमंत्री से कहा था कि निशंक जी आप गैरसेंण राजधानी बना दो प्रदेश की जनता आपको यशवंत सिंह परमार की तरह याद करेगी। इसके साथ मेने उनको आगाह किया था कि उत्तराखण्ड देवभूमि है इस धरती से अन्याय करने वाले मुलायम-राव ही नहीं तिवारी, खण्डूडी भी अपनी छवि को तार तार कर चूके हैं। आपको परमात्मा ने अवसर दिया है इस दुर्लभ अवसर का सदप्रयोग नहीं करोगे तो आपको भी महाकाल माफ नहीं करेगा। निशंक ने मुझे आश्वासन दिया था परन्तु सत्तामद में शायद वे भूल गये। आज कहां है सत्तांधों को समय ऐसी मार मारता है कि उनको प्रायश्चित करने का भी समय नहीं मिलता।
अब भाजपा को उत्तराखण्ड की जनभावनाओं से खिलवाड करने का दण्ड दे कर महाकाल ने कांग्रेस को अवसर दिया। परन्तु कांग्रेस आलाकमान ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बना कर जनादेश का अपमान किया। इसी का दण्ड अब कांग्रेस 2014 में देश से सत्ता से दूर होगी और भाजपा भी सत्तासीन नहीं हो पायेगी। मुलायम सिंह का तो मतलब ही नहीं ।
अब उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री बहुगुणा गैरसेंण में अपने मंत्रीमण्डल की बैठक 3 नवम्बर को कर रहे है। इसका स्वागत है। चाहे आधे मन से या लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए यह नाटक कर रहे है फिर भी इससे गैरसेंण राजधानी बनाने की मांग को ही बल मिलेगा।
मने हरीश रावत, सतपाल महाराज व प्रदीप टम्टा से दो टूक शब्दों में अपनी मूल बात बता दी है कि गैरसेंण राजधानी से कम किसी कीमत पर स्वीकार नहीं। प्रदेश के सत्तासीनों को हर हाल में राजधानी गैरसेंण बनानी होगी। आंदोलनकारी संगठनों व बुद्धिजीवियों को समय का सदप्रयोग करना चाहिए। इस मांग को निरंतर बल देना चाहिए। जब तक प्रदेश की राजधानी गैरसेंण नहीं बनेगी तब तक प्रदेश के हुक्मरानों का ध्यान पर्वतीय क्षेत्र जिसके समग्र विकास के लिए उत्तराखण्ड राज्य के गठन का ऐतिहासिक आंदोलन हुआ।
आज राज्य गठन के 12 साल बाद भी प्रदेश से न तो पलायन रूका। गांव के गांव विरान हो रहे है। गांवों की स्कूल,चिकित्सालय सहित तमाम सरकारी कार्यालय मरणासन्न है। प्रदेश में विकास के बजाय भ्रष्टाचार का शिकंजा जकडा हुआ है। प्रदेश में एनजीओ का शिकंजा दिन रात भ्रष्टाचार से प्रदेश के संसाधनों को बर्बाद करने में लगे हे। अगर प्रदेश को जीवंत रखना है तो जन भावनाओं का सम्मान करते हुए राजधानी गैरसेंण बनानी नितांत आवश्यक है। यह देखना बाकी है कि लोकतंत्र की जीत होती है या थोपशाही की। चंद अवसरवादी व सुविधाभोगी लोग कैसे प्रदेश की जनांकांक्षाओं को अपने इशारे पर नचा कर लोकतंत्र का गला घोंटते है। राजधानी गैरसेंण बनानी ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी राज्य आंदोलनकारी शहीदों व बाबा मोहन उत्तराखण्डी को। अब सरकार को जो बजट राजधानी बनाने के लिए केन्द्र से मिला है उसको तत्काल यहां गैरसेंण में राजधानी बनाने में खर्च करना चाहिए। यही लोकतंत्र में जायज है व यही जनादेश का सम्मान है।
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