चीन, अमेरिका व पाक से अधिक खतरनाक है देश का नपुंसक पदलोलुपु नेतृत्व
चीन युद्ध के अमर शहीद व जांबाजो को 50 वीं बरसी पर शतः शतः नमन
1962 में आक्रांता चीन से भारत की रक्षा करने में अपने प्राणों की शहादत देने वाले व युद्ध भूमि में चीन के मंसूबों का मुंहतोड़ जवाब देने वाले जांबाज वीर सैनिकों को कृतज्ञ राष्ट्रवासियों का शतः शतः नमन्। शांति शांति के नाम पर देश को नपुंसकता की गर्त में धकेलने वाले देश के नेतृत्व व कई शताब्दियों से गुलामी के दंश से अपने गौरवशाली अतीत को भूल कर कायर बने देशवासियों को शक्ति सम्पन्न राष्ट्र होने का महत्व समझाने वाले चीन से युद्ध की 50 वीं वर्षगांठ पर आओ भारत को एक मजबूत व सशक्त राष्ट्र बनाने का संकल्प लें। भले ही 50 साल पहले हमारे पास हथियार न हों परन्तु हमारे देश में उस समय नेतृत्व, सैनिक व जनता के दिलों में राष्ट्र के लिए कुर्वान होने की भावना आज के दिन से कई गुना अधिक थी। आज देश जहां भ्रष्टाचार के गर्त में आकंण्ठ डूब कर दम तोड़ रहा है। वहीं देश का नेतृत्व न केवल दिशाहीन, नपुंसक व अमेरिकीपरस्त है। अगर आज के दिन 1962 की तरह चीन भारत पर हमला करता है तो हमारे सैनिक भले ही चीन का युद्ध में मुंहतोड़ जवाब दे दें परन्तु देश का नेतृत्व आज 1962 के युद्ध में चीन द्वारा कब्जाये गये भारतीय भू भाग को ही वापस लेने की पहल करना तो रहा दूर इतनी नपंुसकता है कि भारतीय नेतृत्व चीन से अपने भू भाग को वापस करने की मांग भी मजबूती से नहीं कर पा रहा है। नेतृत्व चाहे कांग्रेस नेतृत्व वाला मनमोहनी सरकार हो या भाजपा नेतृत्व वाली अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार रही हो दोनों में भारतीय हक हकूकों के प्रति इतना शर्मनाक रवैया रहा और दोनों सरकारों में अमेरिकी परस्त रही। भारत के नपुंसक नेतृत्व को देख कर ही अमेरिका के संरक्षण में पाकिस्तान ने न केवल भारतीय संसद, कारगिल व मुम्बई सहित कई स्थानों पर आतंकी हमला कराया अपितु पाक द्वारा बलात कब्जाई भारतीय जम्मू कश्मीर के एक बडे हिस्से को चीन को भी खैरात में दे दिया है। इसका भी भारतीय नेतृत्व ने न तो प्रचण्ड प्रतिवाद किया अपितु नपुंसकों की तरह मूक रह कर भारतीय हितों को रौंदने का काम किया। वहीं दूसरी तरफ आज भारतीय नेतृत्व एक तरफ सामरिक दृष्टि से भारतीय हितों की उपेक्षा कर रहा है वहीं आर्थिक ढांचे को भी अमेरिका व चीन द्वारा तहस नहस करने की इजाजत दी है। एक तरफ भारतीय हुक्मरान चीनी वस्तुओं से तबाह हो रहे भारतीय ओद्योगिक इकाईयों की कब्र बनते देख कर भी मूक हैं वहीं दूसरी तरफ देश की तबाह हो रही औद्योगिक जगत को मजबूत करने के बजाय अमेरिकी की डगमगाडती व्यवस्था को मजबूती देने के लिए देश में अमेरिकी व पश्चिमी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को खुदरा, बीमा व अन्य व्यापार में भी उतरने के लिए लाल कालीन बिछाने की धृष्ठता कर देश को पतन के गर्त में धकेल रहे है। ऐसे में भारत को चारों तरफ से घेर रहे प्रत्यक्ष दूश्मन चीन व दशकों से पाकिस्तान के कंधे पर बंदूक रख कर भारत में आतंकवाद फेला कर कमजोर कर रहे अमेरिका से भारत की रक्षा केसे होगी, यह आज का सबसे बडा यज्ञ प्रश्न है। इसी प्रश्न पर जहां अमेरिका के प्यादा बने देश के हुक्मरान बगलें झांक रहे है वहीं जाति, धर्म, क्षेत्र व भ्रष्टाचार के दंश में मर्माहित देशवासियों को ही नहीं इस देश के बुद्धिजीवियों को भी इस दिशा में सोचने की फुर्सत तक नहीं है।
आज संसार में भारत का इतना शर्मनाक पतन हो गया कि देश की शताब्दियों से गुलामी के जंजीरों में जकडे हुए राष्ट्र को आजादी के 65 साल बाद भी गुलामी के प्रतीक अंग्रेजी तंत्र से मुक्ति नहीं मिल पायी। देश में न्याय पालिका से लेकर शिक्षा, चिकित्सा ,रोजगार, सम्मान व राजकाज पर भारतीय भाषाओं का नहीं अपितु उसी अंग्रेजी भाषा का है जिससे मुक्ति के लिए देश के लाखों लोगों ने दशकों लम्बा संघर्ष करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया था। आज आजादी के बाद जिस तरह से देश अपने नाम, भाषा, संस्कृति व स्वाभिमान के लिए तरस रहा है, देश के नौनिहालों को राष्ट्रीय संस्कृति देने के बजाय भविष्य को गुलामी की जंजीरों में जकड़ने का नापाक कृत्य किया जा रहा है।
आज इस दिशा में एक मजबूत रचनात्मक पहल बाबा रामदेव ने की थी, गत वर्ष रामलीला मैदान आंदोलन में की थी, सरकार ने काफी हद तक भारत में अंग्रेजी गुलामी की जंजीरों में बांधने का काम कर रहे संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में हिन्दी सहित भारतीय भाषाओं में करने की हामी भर दी थी, सरकार के इस सकारात्मक पहल का रामलीला मैदान में बाबा रामदेव के मंच से भी किया गया । यकायक सरकार अपने बयानों से मुकर ही नहीं गई अपितु कपिल सिब्बल के द्वारा बाबा रामदेव को बदनाम करके इस समझोते को तार तार करने का कृत्य किया गया। उसके बाद बाबा रामदेव व उनके सोते हुए आंदोलनकारियों पर मध्य रात्रि में जिस बरबरता से लाठी चार्ज किया गया उसे साफ हो गया कि देश में अंग्रेजी की गुलामी को बनाये रखने वाले देशद्रोहियों को यह जरा भी मंजूर नहीं है कि भारत आजाद हो और अपनी भाषा व अपनी संस्कृति को आत्मसात कर उनके वर्चस्व को तहस नहस करे। इस लिए पूरी पश्चिमी सम्राज्यवादी व संकीर्ण ताकतों ने भारतीय नपुंसक नेतृत्व को बाबा रामदेव के शांतिपूर्ण आंदोलन को
कुचलने का आदेश दिया। उसका पालन विदेशों में देश को लुट कर अरबों खरबों की सम्पति रखने वाले काले धनिकों के इशारे पर चलने वाली सरकार ने किया। इस दमन पर भले ही न्यायपालिका भी हैरान थी परन्तु वह भी इसके असली अपराधियों को बेनकाब करने में असफल रही। अमेरिकी हितों के प्रसार का यत्र बने विश्व बैंक से जुडे रहे प्यादों के दम पर भारत को अपने इशारे पर नचाने वालों के मंसूबों पर अब निरंतर खतरा उत्पन्न हो रहा है उसको सिरे से कुचलने के लिए यह दमन हुआ। आज जिस प्रकार देश में विदेशी धन के बल पर देश के बुद्धिजीवियों को विदेशी धन के दम पर चल रहे एनजीओ के माध्यम से जरजर करने का षडयंत्र चल रहा है उसको समझने में अभी देश का नेतृत्व ही असफल रहा तो जनता कहां से समझेगी।
आज जरूरत है देश में राष्ट्रवादी, सही दिशा वाले मजबूत नेतृत्व की जो भारत को न केवल फिरंगी भाषा की गुलामी से मुक्ति दिला सके अपितु देश में व्याप्त चीन, अमेरिका व पाक के खतरनाक लाॅबी को जमीदोज कर सके। तभी देश की रक्षा होगी। आज नहीं तो मनमोहन सिंह जेसे अमेरिका परस्त आत्मघाती हुक्मरान के कारण आम आदमी का मंहगाई, भ्रष्टाचार व आतंकवाद रूपि कुशासन से जीना ही हराम हो गया है। आज आम आदमी से शिक्षा, चिकित्सा, न्याय व सम्मान ही नहीं शासन प्रशासन भी कौसों दूर हो गया है। आज का पूरा तंत्र केवल धनपशुओं के खिदमत के लिए रह गया है। आज जरूरत है देश को इस गुलाम प्रवृति के आत्मघाती तत्वों से देश को मुक्त करने की तभी चीन, अमेरिका व पाक जेसे बाहरी दुश्मनों का देश मुकाबला कर पायेगा। शेष श्री कृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्री कृष्णाय् नमो।
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