भारत में 20 परमाणु विजली संयंत्र व बांघों से मच सकती है जापान जैसी भारी तबाही
परमाणु बिजली संयत्रों व बड़े बांघों से भारत को करो मुक्त
भारत में 20 परमाणु विजली संयंत्र व बांघों से मच सकती है जापान जैसी भारी तबाही
जापान के पफुकुशिमा परमाणु बिजली संयंत्र में हुए विस्पफोट से रेडिएशन उपजे सवाल
इस सप्ताह जापान में हुए विनाशकारी तबाही से जहां जापान अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा हैं वही पूरा विश्व भौचंक्का हैं कि प्रकृति के इस प्रकोष कहीं इस पृथ्वी से मानवता का समूल विनाश का संकेत तो नहीं है। जापान में हुए भूकम्प व सुमानी से क्षतिग्रस्त हुए वहां के परमाणु संयत्रों से जिस प्रकार से जापान के लिए भयंकर खतरा उत्पन्न हो गया है। उससे भारत में स्थापित हुए व होने वाले इस प्रकार के तमाम परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को तत्काल बंद करने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। देश में इस समय 20 परमाणु ऊर्जा संयंत्रा कार्यरत है। इनमें रावतभाटा में सबसे अध्कि 6 परमाणु संयंत्रा तथा कैंगा व तारापुर में 4-4 परमाणु संयंत्र कार्य कर रहे है। वहीं नरोरा, काकरापार व कलपक्कम में 2-2 परमाणु ऊर्जा संयंत्रा लगे हुए हैं। इसके साथ अमेरिका व अन्य देशों से हुए अभी परमाणु ऊर्जा समझोते के तहत सरकार कई अन्य संयंत्रा लगाने का मन बना चूकी है। इसके अलावा इस देश में सरकार ने तमाम सुरक्षा व पर्यावरण की संवेदनशीलता को दर किनारे रखते हुए तत्काल हितों व निहित स्वार्थों की अंध्ी पूर्ति के लिए देश में अंधध्ुंध् बांधें का निर्माण किया। इसमें टिहरी, भाखडा, सरदार सरोवर, जैसे दर्जनों भीमकाय बांघ हैं जो जापान जैसी त्रासदी को झेलने को कहीं दूर-दूर तक तैयार नहीं है। खासकर सरकार ने जिस प्रकार से जनता व भूगर्भीय वेताओं की तमाम विरोध् के बाबजूद टिहरी जैसे भूकम्प की दृष्टि से हिमालयी क्षेत्रा में विशाल बांध् बनाये वह आने वाले समय में जहां हिमालयी क्षेत्रा में ही नहीं देश के समुचे उत्तर भारत के लिए विनाश का कारण बन सकता है। जहां तक ऊर्जा का सवाल है तो उसे हम छोटे छोट हाइथ्रो बांध् बना कर अर्जित कर सकते थे। इससे जहां पर्यावरण भी बच जाता तथा देश में लाखों लोगों को विस्थापित नहीं होना पड़ता। परन्तु लगता है देश के हुक्मरानों को न तो इस प्रकार की भीषण प्राकृतिक आपदा का ही भान होगा व नहीं उनको इन प्रकृति की संरचना से कृर्तिम छेड़छाड से होने वाली विभिषिका का ही भान होगा। जहां तक अब देश के हुक्मरानों व नीतिनिर्धरकों का केवल एक ही स्वार्थ रहता है कि किस योजना से उनको ज्यादा से ज्यादा कमीशन हासिल होगा। उनको देश के वर्तमान ही नहीं भविष्य के हितों से अब कोई लेना देना नहीं रह गया है। अगर होता तो देश के भूकम्पीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में इस प्रकार से बड़े बांध् नहीं बनाये जाते। नहीं सरकार इस प्रकार के तमाम सुरक्षा मापदण्डों को कड़ाई से लागू किये बिना देश में एक भी परमाणु संयंत्रा स्थापित करती।
यही नहीं श्रीकृष्ण विश्व कल्याण भारती के प्रमुख के तौर पर मैं इस मांग को इस समय देश की जनता व सरकार के संज्ञान में रखना भी अपना परम दायित्व समझता हॅू कि इस देश से तमाम प्रकार के बड़े परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को ही नहीं अपितु तमाम बड़े बांधें को तत्काल बंद किया जाय तथा भविष्य में इस प्रकार के किसी भी परमाणु ही नहीं बड़े बांघों के निर्माण पर तत्काल अंकुश लगाया जाय। इसके साथ मैं अपनी उस मांग को भी यहां पर पिफर से आम जनता के समक्ष रखना चाहता हॅू जो मैने देश के साथ सप्रंग सरकार के मुखिया प्रधनमंत्राी मनमोहन सिंह ने अमेरिका के मोह में पफंस कर देश के हितों को दाव पर लगाते हुए अमेरिका व अन्य देशों से परमाणु असैनिक सहयोग संध् िपर हस्ताक्षर किये। इसका एक ही मकसद अमेरिका का था कि उसके देश में दशकों से कूड़े के ढेर की तरह कबाड़ हो रहे परमाणु संयंत्रों को ऊंची कीमत पर भारत में थोपा जाय। न जाने प्रधनमंत्राी मनमोहन सिंह की क्या विवशता थी कि वह अमेरिका के दवाब में आकर भारतीयों की इन संयंत्रों से संभावित दुर्घटना के समय क्षतिपूर्ति की शर्तों को भी क्यों उदार करने में जुटे रहे। देश में ऊर्जा के नाम पर जिस प्रकार से देश की सरकारों ने ऊंची कीमतों पर परमाणु ऊर्जा संयंत्रा को देश में स्थापित करने का मन बनाया हैं, जापान के इसी माह हुए हादसे को देखने के बाद आम भारतीय इस आशंका से भयभीत हैं कि अगर भविष्य में कभी भारत में इस प्रकार की दुर्घटना घट गयी तो इस देश का क्या होगा। क्योंकि जापान में तो सुरक्षा के मापदण्डों व इस आशय की आम जनमानस को जागरूक करने की जिम्मेदारी सरकार ने बखुबी से निभाई हैं परन्तु भारत में यहां के हुक्मरानों की नजरों में आम जनता व देश की सुरखा का कहीं महत्व ही नहीं होता है। इस कारण जिस प्रकार से देश में आनन पफानन में अमेरिका व अन्य देशों से परमाणु संयंत्रों के नाम पर सुरक्षा मानकों व आम जनता के हितों की रक्षा की जा रही है उससे देश के परमाणु सुरक्षा विशेषक्ष भी सहमें हुए है। जहां तक अंतरराष्ट्रीय परमाणु सुरक्षा ऐजेन्सी के मानकों का सवाल है तो वह अमेरिका के ही इशारे पर उसके हितों की पूर्ति के लिए उसके हाथों की कठपुतली सी है।
जापान में 11 मार्च को शुक्रवार को आये विनाशकारी भूकम्प के कारण समुद्र से उमड़े प्रलयंकारी सुमानी की थप्पेड़ों से जहां जापान का बड़ा भूभाग तहस नहस हो गया वहीं उसके परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को भी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया। अंतराष्ट्रीय परमाणु निगरानी संस्था ने कहा है कि जापान में भूकंप और सुनामी के बाद क्षतिग्रस्त हुए न्यूक्लियर एनर्जी प्लांट के आसपास के इलाके से एक लाख सत्तर हजार लोगों को हटाया जा रहा है। वियना स्थित अंतरराष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी ;आईएईएद्ध ने सुमानी के कारण जापान के पफुकुशिमा डाई-ची संयंत्रा के 20 किलोमीटर दायरे में रह रहे लोगों को इलाके को खाली करने का निर्देश दिया गया है।उल्लेखनीय है कि शनिवार को संयंत्रा में विस्पफोट होने के बाद रियक्टर की इमारत क्षतिग्रस्त हो गयी थी लेकिन रियक्टर सुरक्षित है। आईएईए का कहना है कि एक दूसरे परमाणु संयंत्र के करीबी इलाके में रहने वाले 30,000 लोगों ने इस इलाके को खाली कर दिया है।जापान के प्रधनमंत्राी नाओतो कान ने इसे द्वितीय विश्वयु( से बड़ा संकट करार दिया है। पफुकुशिमा परमाणु संयंत्रा में विस्पफोटों के कारण जिससे पिफर से विकिरण का खतरा उत्पन्न हो गया। इसके बाद जापानी सरकार ने चेतावनी जारी की।
जापान में हुए इस हादशे ने पूरे विश्व की आंखे खोल दी है। परन्तु मुझे नहीं लगता है कि भारत के हुक्मरान इस दिशा में जरा भी ईमानदारी से कार्य करेंगे। देश के रक्षा विशेषज्ञ सी उदय भाष्कर के विचारों से मैं शत प्रतिशत सहमत हूूॅ कि देश के परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा की व्यवस्था के साथ-साथ यहां के लोगों को इस प्रकार के हादसों से निपटने के लिए कोई जानकारी अभी तक उस सरकार ने नहीं दी जिसने देश में अभी तक 20 परमाणु संयंत्रा स्थापित कर दिये और दर्जनों और लगाने का मन बना रही है। इसे देख कर देश की जनता को चाहिए कि वह देश में परमाणु संयंत्रों के साथ-साथ बड़े बांधें को आगे किसी भी सूरत में न बनने दें। क्योंकि यदि प्रकृति का जो प्रकोष जापान में गत सप्ताह आया अगर वह भारत में आया तो देश एक प्रकार से कब्रिस्तान में ही तब्दील हो जायेगा। क्योंकि भारत में इससे बचाव के न तो आम जनता को कोई उपाय ही सरकार ने बताये हैं व नहीं इन संयंत्रों की सुरक्षा के प्रति उतनी संवेदनशीलता देखी जा रही है जो उच्च मानक जापान में देखने को मिल रहा है। इस तरह देश में हर हाल में वैज्ञानिक रक्षा अनुसंधनों व चिकित्सा क्षेत्रा के अलावा किसी अन्य प्रकार की ऊर्जा के लिए परमाणु ऊर्जा पर अंकुश लगाया जाना चाहिए। प्रकृति से छेडछाड व सुरक्षा मापदण्डों से खिलवाड़ की देश को बड़ी सजा भुगतना पड़ सकता है। इस लिए देश की अवाम की यह आवाज हर हाल में सुनी जानी चाहिए कि देश में परमाणु संयंत्रा व बड़े बांधें पर तत्काल अंकुश लगाया जाय। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ¬ तत्सत्। श्री कृष्णाय् नमो।
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