ऐसे कैसे होगी न्यायपालिका की गरिमा की रक्षा
ऐसे कैसे होगी न्यायपालिका की गरिमा की रक्षा
हाई कोर्ट व सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों को दूरियां रखनी होगी भ्रष्टाचार के आरोप से घिरे लोगों से
नई दिल्ली(प्याउ)। जिस उत्तराखण्ड प्रदेश के मुख्यमंत्री निशंक व उनकी सरकार के भ्रष्टाचार के मामले सर्वोच्च न्यायालय व उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय में चल रहे हो उस सरकार के मुखिया की हिन्दी व अंग्रेजी में प्रकाशित हो चुकी पुस्तक ‘सफलता के अचूक मंत्र’ का बांग्ला भाषा में अनुवाद का विमोचन देश की सबसे बड़ी अदालत के वरिष्ठ न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर के हाथों से कराया जाने से प्रदेश सरकार के भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहने वालों की आशाओं पर बज्रपात सा कम नहीं था। यह कार्यक्रम देहरादून में ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय में 25 मार्च 2011 को आयोजित हुआ। पुस्तक के बंगला भाषा में हुए अनुवाद का विमोचन देश के सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर के हाथों से किया गया। इस कार्यक्रम में उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति वारिन घोष भी उपस्थित थे। भले ही इस सरसरी तौर पर यह मामला सामान्य सा दिखता है परन्तु ‘जिस प्रकार से निशंक सरकार स्टर्जिया भूमि घोटाले प्रकरण में वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में कटघरे में खड़ी है। भले ही इस प्रकरण में निशंक सरकार को नैनीताल उच्च न्यायालय ने दोषी मानते हुए इस पूरे भूमि प्रकरण को घोटाले मानते हुए सरकार से अविलम्ब इस भूमि को सरकारी कब्जे में लेने का आदेश दिया। परन्तु इस प्रकरण में मुख्यरूप से कटघरे में खडे मुख्यमंत्री निशंक के बजाय इस प्रकरण मेें नौकरशाहों को दोषी माना। जबकि इस प्रकरण में एक ही दिन में मुख्यमंत्री से लेकर पटवारी तक के हस्ताक्षर व इस भूमि के उपयोग को बदलाव तक की तमाम प्रक्रिया एक ही दिन में पूरी की गयी। लोकशाही का जरा सा भी समझ रखने वाले आम आदमी की नजर में इस मामले में नोकरशाही पर गाज गिरानी एक प्रकार से मुख्यमंत्री को अभयदान देना जेसा ही है। उच्च न्यायालय के इसी फेसले पर नाखुशी प्रकट करते हुए इस प्रकरण को उठाने वाले सर्वोच्च न्यायालय के प्रखर अधिवक्ता अवतार सिंह रावत ने सर्वोच्च न्यायालय में असली दोषियों को सजा देने के लिए इस पूरे प्रकरण की सीबीआई से जांच कराने की गुहार लगायी। इसी से परेशान प्रदेश सरकार के मुखिया रमेश पोखरियाल ने अपनी सफलता के मंत्रों का शायद प्रयोग किया हो। यही नहीं प्रदेश सरकार के एक और घोटाले पर उच्च न्यायालय में सरकार को नोटिस किया गया है। परन्तु इसके बाबजूद नैनीताल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति वारिन घोष का इस कार्यक्रम में उपस्थित रहना किसी भी समझदार लोगों के गले नहीं उतरा। हो सकता हो कि सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर को इन मामलों के बारे में अनविज्ञता हो परन्तु नैनीताल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की अदालत ने खुद इन मामलों की सुनवायी की है। जिस प्रकार से स्टर्जिया प्रकरण में मुख्य न्यायमूर्ति ने अपने फेसले को सुरक्षित रखने की अवधि के बीच में मुख्यमंत्री द्वारा प्रयोग किया जाने वाले सरकारी होलीकप्टर का प्रयोग किया था उस समय भी यह प्रकरण न केवल आम आदमियों अपितु प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूडी जेसे वरिष्ठ राजनेताओं तथा अनैक वरिष्ठ कानूनविदों ने भी आदर्श मर्यादाओं के अनरूप नहीं माना था। यही नहीं इस प्रकरण में प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ने जिन दिनों उनकी सरकार स्टर्जिया प्रकरण में आकंठ फंसी हुई थी उन दिनों उच्च न्यायालय में ऐसे ही आनन फानन में कार्यक्रम कराये। इसमें मुख्य न्यायाधीश को ही प्रमुखता दी गयी थी। निष्पक्ष न्याय के पक्षधरों का मानना है कि न्याय पालिका को अपनी गरीमा बनाये रखने के लिए न्यायमूर्तियों को ऐसे प्रकरणों में लिप्त लोगों से पर्याप्त दूरियां बनानी चाहिए। क्योंकि घोटालों में लिप्त लोग किसी न किसी बहाने से न्यायमूर्तियों को अपने प्रभाव में ले कर इन प्रकरणों को प्रभावित करने के लिए किसी भी प्रकार के हथकण्डे अपना सकते है।
देश का आम जनमानस देश के पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति के रिश्तेदारों को ज्ञात स्रोतों से अधिक आय प्रकरण में लिप्त पाये जाने की खबर सुन कर स्तब्ध था। इसके साथ उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय से सेवानिवृत हुई न्यायमूर्ति निर्मल यादव, पीएफ भ्रष्टाचार मामले में लिप्त जजों व कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति रहे व असाम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के खिलाफ मामला दर्ज होने की खबरों को सुन कर देश के नेताओं व नौकरशाही के भ्रष्टाचारों से स्तब्ध देश की जनता की निगाहें न्यायपालिका पर थी। परन्तु जब देश के उच्च न्यायालय के न्यायामूर्तियों के इन प्रकरणों की खबरें समाचारों के जरिये आम आदमियों को सुनने को मिली तो उसका विश्वास न्याय पालिका पर डगमगाने लगा। देश की न्यायपालिका की हकीकत के बारे में सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान वरिष्ठ न्यायमूर्ति द्वारा कुछ माह पहले किये इलाहाबाद उच्च न्यायालय की वस्तु स्थिति के बारे में की गयी सटीक टिप्पणियों से लोग सन्न रह गये। देश की जनता के विश्वास से कितना शर्मनाक खिलवाड़ किया जा रहा है। न्याय के मंदिरों को सत्ता के दलालों ने अपने प्यादों से धूमिल कर दिया है। राजनेताओं व नौकरशाही से तो देश की आम जनता का विश्वास पहले से ही उठ चूका था। एकमात्र विश्वास देश की आम जनता को देश की न्यायपालिका पर है। परन्तु जब इस विश्वास का देवता ही भ्रष्टाचार मामलों में न्यायालय के कटघरे में खडे लोगों के साथ किसी तरह खडे नजर आयेंगे तो देश की जनता का विश्वास पर बज्रपात ही होगा। भले ही न्यायमूर्तियों की मंशा किसी भी प्रकार से इन मामले में पाक साफ हों परन्तु देश की आम जनता के न्यायालय के प्रति विश्वास की डोर को कमजोर करने के लिए किसी प्रकार का शक कहीं दूर-दूर तक उचित नहीं है। न्याय केवल होना ही नहीं होता दिखाई भी देना चाहिए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय प्रकरण पर सटीक टिप्पणी करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायमूर्ति ने सही कहा कि भले की आम लोग न्याय पालिका की अवमानना के भय से मूक रहें परन्तु लोग सब कुछ जानते हैं। जनता के विश्वास को बनाये रखने का सबसे बड़ा दायित्व भी न्याय के मंदिर में देवता की तरह आम जनता की नजरों में पूजित न्यायमूर्तियों के कंधों पर ही है। यह विश्वास उनके आचरण व उनके फैसलों से जनता के समक्ष दिखायी देता है।
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