जब मुख्यमंत्री निशंक को अपना बड़बोला पन भारी पडा दिल्ली में मुख्यमंत्री को आंदोलनकारियों ने सभा से खदेड़ा बाहर


 जब मुख्यमंत्री निशंक  को अपना बड़बोला पन भारी पडा
 दिल्ली में मुख्यमंत्री को आंदोलनकारियों ने सभा से खदेड़ा बाहर
 एक तरपफ उत्तराखण्ड में प्रदेश की निशंक सरकार की जमीन घोटाला प्रकरण में किरकिरी हो रही है वहीं दिल्ली में प्रदेश के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को आंदोलनकारियों के भारी विरोध के कारण दिल्ली में संसद के समीप प्रतिष्ठित काउंस्टीटयूशन क्लब में आयोजित एक समारोह में अपना भाषण अध्ूरा छोड़ कर लोटने के लिए मजबूर होना पड़ा।  शनिवार 4 दिसम्बर 2010 को उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन के अग्रणी आंदोलनकारियों की गैरत को ललकारना  व उत्तराखण्ड के राजधनी गेरसैंण व मुजफ्रपफरनगर काण्ड जैसे मूल मुद्दो को नजरांदाज करते हुए विकास के आंकड़ों की बाजीगरी करना भारी पड़ गया। केन्द्रीय मंत्री हरीश रावत, भाकपा नेता समर भण्डारी व भोले जी महाराज एवं माता मंगला की उपस्थिति में ही सत्तामद में जनमुद्दों को निरंकुशता से उपेक्षा कर प्रदेश के मूल मुद्दों को उठाने वालों का उपहास करने की  प्रदेश के मुख्यमंत्राी की हटध्र्मिता को देख कर आंदोलनकारियों का ध्ैार्य उस समय जबाब दे गया  जब मुख्यमंत्री ने जनमुद्दों को सुलझाने पर अब तक की सरकारों की आलोचना करने वालों को नकारात्मक सोच वाला ही नहीं अपितु  उत्तराखण्ड की छवि को ध्ूमिल करने वाला भी बताया। प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों व चुनौतियों का सकारात्मक जवाब देने के बजाय प्रदेश के मुख्यमंत्री ने राज्य आंदोलनकारियों;सरकार की आलोचना करने वालाद्ध को ही प्रत्यक्ष रूप से चुनौती देते हुए बोल गये कि आलोचना करने वाले बतायें कि उनकी व्यक्तिगत जीवन में क्या उपलब्ध्ी है?  राज्य आंदोलनकारियों के संघर्षों व बलिदानों की बदोलत गठित राज्य के मुख्यमंत्री को यह बोलता सुन कर राज्य आंदोलनकारियों ने उनसे प्रतिप्रश्न किया की अब तक उनकी सरकार ने राजधानी गैरसैंण बनाने व मुजफ्रपफरनगर काण्ड के अभियुक्तों को सजा देने के लिए क्या कदम उठाये? इस पर मुख्यमंत्री से इसका सही मुख्यमंत्राी से देने की मांग करने के बजाय उत्तराखण्ड पत्रकार परिषद के  चंद पदाधिकारी आंदोलनकारियों पर मुख्यमंत्राी के हमदर्द व सुरक्षाकर्मी सा बन कर निशंक की तरह ही आंदोलनकारियों को गुर्राते हुए अपमानित करने लगे। उत्तराखण्ड के चैथे स्तम्भ की इस दशा को देख कर आंदोलनकारियों ने उनके विरोध को नजरांदाज कर  संगोष्ठी में अपने भाषण को अध्ूारे में छोड़ कर जा रहे मुख्यमंत्री को नारा लगाते हुए बाहर तक घेरा।
यह प्रकरण का मूलकारण लोकतंत्र का चैथा स्तम्भ समझा जाने वाला पत्रकारों के नाम पर बनी उत्तराखण्ड पत्रकार परिषद द्वारा ’ उत्तराखण्ड राज्य का एक दशकः विकास व चुनौतियां’ नाम से आयोजित विचार गोष्ठी में प्रदेश के सबसे ज्वलंत मुद्दों पर विचार गोष्ठी को संचालित करने  में असफल रहने के कारण हुई।  होना तो यह चाहिए था कि संगोष्ठी में आयोजकों ने प्रदेश की स्थाई राजधनी गैरसैंण बनाने, मुजफ्रपफरनगर काण्ड के अभियुक्तों को सजा देने, परिसीमन व भ्रष्टाचार जेसे ज्वलंत मूल मुद्दों पर स्पष्टता संगोष्ठी को दिशा प्रारम्भ में ही देनी चाहिए थी। इतना ही नहीं जब इस भूल को सुधरने की सलाह व आवाज आंदोलनकारियों द्वारा उठायी गयी तो आयोजकों ने इन सलाहों की उपेक्षा ही नहीं अपितु आवाज उठाने वालों को ही पत्राकार परिषद के चंद पदाध्किारी डपटने लगे। मुख्यमंत्राी द्वारा आंदोलनकारियों की गैरत को ललकारना व मूल मुद्दों की उपेक्षा करना तथा पत्राकार परिषद के संगोष्ठी आयोजकों का गेरजिम्मेदारना रूख देखकर मुलायम सिंह यादव व नरसिंह राव सरकारों के दमन के आगे सर न झुकाकर राज्य आंदोलन के सपने को साकार करने वाले आंदोलनकारारियों ने निशंक का पुरजोर शांतिपूर्ण विरोध किया।
 विरोध करने वालों में उत्तराखण्ड राज्य गठन के लिए संसद की चैखट पर निरंतर छह साल तक ध्रना प्रदर्शन करने वाले राज्य आंदोलन के प्रमुख संगठन उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष  व प्यारा उत्तराखण्ड के सम्पादक देवसिंह रावत, उत्तराखण्ड मानवाध्किार संगठन के संयोजक एस के शर्मा जिन्होंने मुजफ्रपफरनगर काण्ड-94 के अभियुक्तों को दण्डित कराने के लिए मुलायमसिंह यादव के राज में ही इलाहाबाद में जाकर न्यायालय में मजबूत गुहार लगाने का सपफल साहस किया था, उत्तराखण्ड राज्य गठन के लिए एक माह तक तिहाड़ जेल में रहने वाले अग्रणी आंदोलनकारी व प्रदेश भाजपा सरकार में सम्मलित उक्रांद के केन्द्रीय उपाध्यक्ष प्रताप शाही, जनसंघर्ष वाहिनी के अग्रणी आंदोलनकारी डीडी पाण्डे, संसद की दर्शक दीर्घा से राज्य गठन के समर्थन में पर्चा पफेक कर आवाज बुलंद करने वाले व उत्तराखण्ड राज्य गठन आंदोलन के प्रमुख संगठन उत्तराखण्ड राज्य लोक मंच के वरिष्ठ पदाधिकारी बृजमोहन उप्रेती, पत्राकार गिरीश बलूनी, जनता संघर्ष मोर्चा के महासचिव जगदीश भट्ट व पत्राकार सतेन्द्रसिंह रावत व उत्तराखण्ड जनमोर्चा के हुकम सिंह कण्डारी आदि प्रमुख थें । इन प्रमुख आंदोलनकारियों ने मुख्यमंत्री का पुरजोर विरोध करते हुए राजधनी गैरसैंण बनाओं व मुजफ्रपफरनगर काण्ड के अंभियुक्तों को सजा न देने वाली सरकार शर्म करो, शर्म करो तथा जनांकांक्षाओं को रोदने वाली सरकार शर्म करो तथा मुख्यमंत्राी निशंक मुर्दाबाद ! भ्रष्टाचारी सरकार शर्म करो के गगनभेदी नारों से जेसे ही संसद के समीप देश का सबसे प्रतिष्ठित काॅस्टीटयूशन क्लब का स्पीकर हाल गूंजायमान किया। इनके तेवरों को देखकर मुख्यमंत्राी निंशक अपना भाषण बीच में छोड़ कर वहां से वापस जाने के लिए के लिए मजबूर हो गये। आंदोलनकारियों के तेवर देख हडबडाये मुख्यमंत्राी कुछ खबरिया चैनलों को अपने विचार देने की कोशिश भी आंदोलनकारियों ने भारी नारेबाजी करके विपफल कर दी। स्थिति की नजाकत को भौंपते हुए सुरक्षाकर्मियों ने किसी तरह मुख्यमंत्राी को वहां से बाहर निकालते हुए गाड़ी में बेठा कर उत्तराखण्ड निवास के लिए कूच किया।  इसके बाद आयोजक पत्राकार परिषद के चंद पदाध्किारी अध्यक्ष देवेन्द्र उपाध्याय, महामंत्राी अवतार नेगी, पत्राकार हरीश लखेड़ा व रोशन अपनी भूमिका पर माफी मांगने के बजाय राज्य आंदोलन के अग्रणी आंदोलनकारियों को अपमानित करने की कोशिश करने लगे, इनका भी आंदोलनकारियों ने यह कह कर उनका मुंह बंद किया कि उत्तराखण्ड राज्य का गठन ही आत्मसम्मान की रक्षा, पहचान व विकास के लिए हुआ। अगर पत्राकार परिषद मुजफ्रपफरनगर काण्ड व राजधनी जेसे महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने वालों को अराजक कहती है तो पत्राकार परिषद की स्थिति खुद ही बेनकाब हो जाती है। राज्य आंदोलन के अग्रणी संगठन उत्तराखण्ड महासभा के अध्यक्ष हरपाल रावत सहित आंदोलनकारियों में यह रोष था कि पत्राकार परिषद ने इस गोष्ठी में उत्तराखण्ड के मुख्य मुद्दों राजधनी गैरसैंण, मुजफ्रपफरनगर काण्ड के अभियुक्तों को सजा देने, प्रदेश में थोपे गये परिसीमन व भ्रष्टाचार पर गोष्ठी को केन्द्रीत क्यों नहीं की। पत्रकार परिषद के वर्तमान पदाध्किारियों के ढुलमुल रवैये की पत्राकार परिषद के ही अनैक सदस्यों ने कड़ी निंदा की। पत्राकार परिषद द्वारा जिस प्रकार से विषयों को नजरांदाज किया गया उससे राज्य आंदोलन में पत्राकार के रूप में अग्रणी भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ पत्राकार व्योमेश जुगरान,  पत्राकार परिषद के सचिव भूपेन सिंह, पत्रकार परिषद के पूर्व महासचिव दाताराम चमोली, सदस्य उर्मिलेश भट्ट, इन्द्रचंद रजवार, अनिल पंत भी नाखुश थे । अन्य पत्राकारों ने भी आंदोलनकारियों के मुद्दों व आक्रोश को जायज ठहराते हुए पत्राकार परिषद के रूख से नाखुशी जाहिर की। इस संगोष्ठी में सम्मलित होने पंहुचे पत्रकार परिषद के प्रथम अध्यक्ष राजेन्द्र धस्माना भी आहत नजर आये। यही नहीं आयोजकों की मंशा भांपते हुए व अपनी उपेक्षा से आहत हो कर पत्रकार परिषद के तीन पूर्व महासचिवों सुरेश नोटियाल, दाताराम चमोली व राकेश तिवारी भी इस संगोष्ठी से दूर ही रहे। यही नहीं पूर्व अध्यक्ष सुभाष धूलिया व ज्ञानेन्द्र पाण्डे तथा पूर्व महासचिव डा गोविन्द सिंह भी इस आयोजन से दूर रहे। इस घटना के बाद इस उत्तराखण्ड के प्रबु( आंदोलनकारी हैरान थे कि  ये केसीे पत्रकार परिषद है जो प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों पर संगोष्ठी कराने के बजाय मात्रा अपने निहित स्वार्थ के लिए सरकार से याचना कर रही है ? कई पत्राकार आंदोलनकारियों को इस घटना के लिए बधई दे रहे थे व उनके आक्रोश जायज बताते हुए समर्थन कर रहे थे कि  ऐसे ज्वलंत मुद्दे भी जब पत्राकार परिषद को गैर जरूरी लगे या ऐसे मुद्दों को उठाने वालों को पत्राकार परिषद के पदाध्किारी अराजक कहें तो ऐसी संस्थाओं की प्रदेश के लिए कोई जरूरत नहीं हैं। आंदोलनकारी इस कृत्य के लिए निशंक से अध्कि दोषी  पत्राकार परिषद को मानते हुए दो टूक शब्दों में कह रहे थे।
इस घटना की खबर खबरिया चैनल टीबी 100, सहारा समय व ई-टीबी द्वारा तत्काल दिखाये जाने से उत्तराखण्ड में भी हलचल मच गयी। हालांकि उसके बाद  उस दिन अध्किांश चैनलों ने इस खबर को प्रमुखता से दिखाने का साहस न रहा। इस घटना के दूसरे दिन आजतक ने संक्षिप्त में इस खबर को दिखा कर अपना उपस्थिति दर्ज करायी। जबकि दिल्ली के अध्किांश चैनल आजकल जब प्रदेश सरकार बुरी तरह से ट्टषिकेश भूमि घोटाले प्रकरण में बेनकाब हो गयी है, मुख्यमंत्राी ही नहीं पूरी सरकार की प्रतिष्ठा इसमें दाव पर लगी है परन्तु देश के अध्किांश चेनल व प्रतिष्ठत समाचार पत्र इस को अपने समाचार पत्रों में खबर के रूप में प्रकाशित करने का साहस तक नहीं जुटा पा रहे है। इसी से आंदोलनकारियों में जहां गहरा आक्रोश है अपितु जनता में भी इनकी विश्वसनियता पूरी तरह कटघरे में खड़ी है। विश्वसनीय सुत्रों के अनुसार दिल्ली में मुख्यमंत्री का हुआ भारी विरोध वाली घटना की खबर को रोकने के लिए प्रदेश सरकार की तरफ से तत्काल की गयी प्रबंधन से दिल्ली के तथाकथित बडे खबरिया चैनल, जो किसी छोटी खबर पर बे्रक्रिंग न्यूज व दिन भर चलाते रहते हैं उनको जनहित की इस खबर का प्रसारण करने में शर्म आने लगी। सबसे हेरानी व शर्मनाक बात यह हुई कि आयोजकों व प्रदेश सरकार की तरपफ से यह कह कर पत्राकारों को गुमराह किया गया कि इस गोष्ठी में मुख्यमंत्री से सवाल करने वाले अराजक तत्व है और भाडे के शराबी लोग हैं।  राष्ट्रीय सहारा में इस प्रकरण पर आंदोलनकारियों को अराजक बताया गया। इस घटना की सबसे निष्पक्ष खबर देश के अग्रणी समाचार  समुह हिन्दुस्तान ने प्रकाशित किया। सरकार को ही नहीं अब सबसे बड़ा सवाल उठता है कि पत्राकार परिषद के उन लोगों को जिन्होंने प्रदेश के महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने वालों को अराजक बताया व ऐसी खबरें प्रेषित की, उनको इस बात का भान हो कि ऐसे ही अराजक लोगों ने राज्य गठन आंदोलन को मुकाम तक पंहुचाते हुए अपनी शहादत दी और अपना सर्वस्व न्यौछावर करके राज्य गठन के सपनों को साकार किया। ऐसे आंदोलनकारियों का सम्मान करने के बजाय अपमान करने वाले मुख्यमंत्राी निशंक व आयोजकों का उत्तराखण्ड से क्या लगाव होगा यह इस प्रकरण से जग जाहिर हो गया है। इन आंदोलनकारियों का अपमान करना राज्य आंदोलन के शहीदों का अपमान है, मुजफ्रपफरनगर काण्ड के शहीदों की शहादत का अपमान है, बाबा मोहन उत्तराखण्डी का अपमान है। जो काम मुलायमसिंह यादव या राव ने किया यह कार्य उससे अलग नहीं है। राज्य के आंदोलनकारी अपना अपमान सह सकते हैं परन्तु राज्य के हितों से खिलवाड़ करने वालों को मापफ नहीं करते।

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