लीबिया प्रकरण से बेनकाब हुआ अलकायदा व अमेरिका का गठजोड


ं -लीबिया को अफगानिस्तान व इराक बनाने से बाज आये अमेरिका 
-लीबिया से दूर रहे अमेरिका व संयुक्त राष्ट्र
-गद्दाफी को कमजोर कर अलकायदा की राह आसान न करे अमेरिका 
-लीबिया प्रकरण से बेनकाब हुआ अलकायदा व अमेरिका का गठजोड

चार दशक से अधिक समय से लीबिया में शासन कर रहे कर्नल गद्दाफी के खिलाफ लीबिया में हुए विद्रोह से जहां कर्नल गद्दाफी ही नहीं पूरा विश्व स्तब्ध है। लीबिया प्रकरण में अमेरिका व अलकायदा की एकजुटता उजागर हुई। दोनों मिल कर यहां अपने विरोधी कर्नल गद्दाफी को अपदस्थ करने में जुटे हे। जहां कर्नल गद्दाफी इस विद्रोह के पीछे अमेरिकी व अलकायदा को जिम्मेदार बता कर इसको उनके देश लीबिया को कमजोर करने की साजिश बता कर विद्रोह को शक्ति से कुचल रहे है। वहीं अमेरिका दशकों से अपनी आंख की किरकिरी बने हुए कर्नल गद्दाफी को हर हाल में निपटने की अमेरिका की रणनीति से लीबिया का भी हाल अफगानिस्तान व इराक बनने की प्रबल हो रही है। अमेरिका के प्रभाव में शेष विश्व भले ही इसे लीबिया के लोगों की लोकतंत्र को स्थापित करने का ज्वार बता रहे हैं। परन्तु इस स्थिति के पीछे दो कारक जो जिम्मेदार हैं उनका कहीं दूर-दूर तक लोकशाही व आम जनता के विकास से कहीं कोई लेना देना नहीं है। पहली जमात अमेरिका की है। जिसका इतिहास ही लोकशाही व मानवता को दमन का रहा व दूसरी जमात अलकायदा की है जो लीबिया में कर्नल गद्दाफी के मजबूत जनहितकारी शासन के कारण वहां पर अपना संकिर्ण इस्लामी शासन स्थापित करने का ऐजेन्डा लागू करने में असफल रहा है। अमेरिका के पीछे उसका पिछलग्गू संगठन नाटो व अमेरिका के हाथ का प्यादा संयुक्त राष्ट्र संघ है। दुनिया के 70 से अधिक देशों में अपने सैन्य शिकंजा कसे हुए अमेरिका लीबिया को भी इराक व अफगानिस्तान की तरह अपने शिकंजे में जकड़ कर उसका दोहन करने के लिए अपनी कठपुतली शासकों को स्थापित करना चाहता है। रही बात अलकायदा की उसका एकमात्र ऐजेन्डा सारे विश्व में इस्लामिक शासन स्थापित करना। इसके प्रथम चरण में अलकायदा संसार के उन सभी मुसलिम बहुल्य देशों में कट्टरपंथी इस्लामी शासन स्थापित करना चाहता हैं। मिश्र व अन्य अरब देशों में वर्तमान में चल रहा जनविद्रोह भले ही बाहर से लोकशाही की बयार सी लगे पर उसके पीछे इस्लामी कट्टरपंथी ही हैं। जो मिश्र से लेकर संसार के हर मुसलिम बाहुल्य देशों में अपने समर्थक कटरपंथी शासन स्थापित करना चाह रहे है।
अलकायदा व अमेरिका के विस्तारवादी राह में संसार में इस समय इस्लामी बाहुल्य देशों में कर्नल गद्दाफी शासित लीबिया ही है। जिसे कर्नल गद्दाफी ने अपने चार दशक से अधिक लम्बे शासन में लीबिया को न केवल मजबूत बनाया अपितु वहां पर लोगों के जीवन स्तर में काफी सुधार भी लाये। यह बात अमेरिका व उनके विरोधियों को कहीं नहीं दिखाई देती। हो सकता है लम्बे समय के शासन में कर्नल गद्दाफी से भी कई भूलें हो गयी होगी। ग्लोबलाइजेसन की चकाचैध में नयी पीढ़ी को देश में कर्नल गद्दाफी का शासन तानाशाही लगे परन्तु इस विद्रोह ने कर्नल गद्दाफी के लीबिया के लिए अकूत राष्ट्रप्रेम को जरजर कर दिया। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि लीबिया में उनको ऐसे दिन देखने पड़ेगें खासकर जिस लीबिया के मान सम्मान व बेहतरी के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित किया। वर्तमान में कर्नल गद्दाफी को सबसे पहले लीबिया में अपने बर्चस्व की जंग को निर्मता से लड़नी पड़ रही है। अपने ही लोगों के खिलाफ अपनी सैन्य ताकत को झोंकना पड़ रहा है।
लीबिया के नौजवानों को ग्लोबलाइजेसन की इस आंधी में लीबिया की खुशहाली पर ग्रहण लगाने के लिए उतावले हुए अमेरिका व अलकायदा के मंसूबों को भांपना चाहिए तथा अपने विद्रोह को कर्नल गद्दाफी की अपील पर समाप्त कर देना चाहिए। कर्नल गद्दाफी को चाहिए कि वे सभी विद्रोहियों को आम माफी दे कर लीबिया को मजबूत बनाने व वहां पर लोकशाही को स्थापित करने का शुभारंभ करे। शासन प्रशासन में चल रही खामियों को दूर कर अमेरिका व अलकायदा का षडयंत्र को विफल करे। क्योंकि अगर शासन इस समय कर्नल गद्दाफी के हाथों से छटक जाता है तो उस पर अमेरिकी पिठ्ठुओं को शिकंजा जकड़ जायेगा तथा वहां पर अलकायदा अपनी जमीन मजबूत कर इसे भी इराक व अफगानिस्तान तथा पाक की तरह तबाही की गर्त में धकेल देगा।
जहां तक संयुक्त राष्ट्र संघ सहित पूरी विश्व विरादरी को इस संकट में किसी भी तरह से अमेरिका के झांसे में इराक व अफगानिस्तान प्रकरण की तरह नहीं फंसना चाहिए। विश्व जनमत को जिस तरह से गुमराह किया जा रहा है उससे विश्व में अमन शांति को ही ग्रहण लगेगा। कर्नल गद्दाफी तानाशाह हो सकते हैं परन्तु उन्होने लीबिया को मजबूत बनाया, अमेरिका के शिकंजे से इसे मुक्त रखा तथा इसे अलकायदा की ऐशगाह अन्य इस्लामिक देशों की तरह न बनने दी। आज जरूरत है लीबिया की स्थिति को बहुत ही गंभीरता से विचार करने की। अगर इस समय भी विश्व जनमत ने इराक प्रकरण की तरह अमेरिका के झांसे में आने की भूल की तो उसे इसकी बड़ी कीमत लीबिया में अलकायदा की जमात का बर्चस्व स्थापित हो कर चुकाना पड़ेगा। जिस प्रकार से तमाम इस्लामिक देश कर्नल गद्दाफी के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं उससे साफ हो गया है कि कर्नल गदाफी अपने शासन में धार्मिक संकिर्णता को कोई स्थान नहीं देते। जिस कारण वे धार्मिक कटरपंथियों के निशाने पर है। चीन, रूस व भारत को इस समय वह भयंकर भूल करने की इजाजत अमेरिका व उसके प्यादे संयुक्त राष्ट्र को नहीं देनी चाहिए। अगर अमेरिका द्वारा प्रायोजित लोकतंत्र की छदम आन्दोलन को चीन कुचलता नहीं तो आज अमेरिका सोवियत संघ की तर्ज पर चीन को भी कबके कई टूकड़ों में विखेर देता। कभी कभी शासकों को व्यापक देशहित के लिए कड़े कदम उठाने पड़ते है। भले ही वह कितने ही अप्रिय क्यों न हो। संयुक्त राष्ट्र संघ को कोई नेतिक अधिकार नहीं है कि वह लीबिया पर हमला कर उसको इराक व अफगानिस्तान की तरह कब्जाने पर उतारू अमेरिका व उसके नाटो संगठन के हाथों का मोहरा बने। चीन, रूस व भारत को लीबिया को बचाने के लिए आगे आना चाहिए।

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