ताउम्र वनवास भोग रहे हैं उत्तराखण्डी


ताउम्र वनवास भोग रहे हैं उत्तराखण्डी

by Pyara Uttrakhand on Sunday, 13 February 2011 at 22:35
ताउम्र वनवास भोग रहे हैं उत्तराखण्डी
15 से 21 जुलाई 2010 वाले प्यारा उत्तराखण्ड समाचार पत्र में प्रकाशित
भगवान राम को तो केवल 14 साल का वनवास भोगना पड़ा था। परन्तु उत्तराखण्ड के 60 लाख सपूतों को यहां के सत्तासीन कैकईयों के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी का वनवास झेलना पड़ रहा है। अंग्रेजी शासनकाल के दौरान से यहां के लोग अपने घर परिजनों के खुशहाली के लिए दूर प्रदेश में रोजगार की तलाश में निकले। देश आजाद हुआ परन्तु शासकों ने यहां के विकास पर ध्यान न देने के कारण यहां से लोगों का पलायन रोजी रोटी व अच्छे जीवन की तलाश के कारण होता रहा। इसी विकास के लिए लोगों ने ऐतिहासिक संघर्ष करके व अनैकों शहादतें दे कर पृथक राज्य भी बनवाया। परन्तु यहां के शासकों की मानसिकता पर रत्ती भर का अंतर नहीं आया। उत्तराखण्ड का जी भर कर दौहन करना यहां के नौकरशाही व राजनेताओं ने अपना प्रथम अध्किार समझा। मेरा मानना रहा है कि पलायन प्रतिभा का हो कोई बात नहीं, परन्तु पेट का पलायन बहुत शर्मनाक है। पेट के पलायन को रोकने के लिए ही पृथक राज्य का गठन किया गया था। प्रदेश का समग्र विकास हो व प्रदेश का स्वाभिमान जीवंत रहे। परन्तु स्थिति आज राज्य गठन के दस साल बाद भी ऐसी शर्मनाक है जिसको देख कर गहरा दुख होता है। मेरे इन जख्मों को गत सप्ताह धेनी की शादी प्रकण ने पिफर हवा दी।  
गत पखवाड़े भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेन्द्रसिंह धेनी की शादी देहरादून में सम्पन्न हुई। इस शादी पर देश विदेश के समाचार जगत में बहुत कुछ लिखा जा चूका है। मुझे इस शादी में देश 
विदेश में रहने वाले 60 लाख से अध्कि ताउम्र का वनवास का अभिशाप झेल रहे उत्तराखण्डियों की एक ऐसी टीस दिखाई दी जो अपनी जड़ों को खोजनें व उससे जुड़ने के लिए तड़पफ रही है। 
  विश्वविख्यात क्रिकेटर महेन्द्रसिंह धेनी की ससुराल भले ही देश विदेश के आम लोग देहरादून या कोलकत्ता के रूप में जान रहे हैं परन्तु बहुत कम लोग जानते हैं कि महेन्द्रसिंह धेनी का पैतृक गांव जिस प्रकार से अल्मोड़ा के जैंती तहसील के ल्वाली गांव हैं, उसी प्रकार उनकी नवविवाहिता पत्नी साक्षी रावत का मूल गांव देहरादून या कोलकोता न हो कर पौड़ी जनपद का बछेलीगांव पौखाल हैं। जिस प्रकार धेनी के पिता जी रोजगार की तलाश में झारखण्ड प्रदेश के रांची में बस गये। वैसे ही साक्षी के दादा जी मनोहर सिंह रावत भी देहरादून में कई दशक पहले बस गये। वर्तमान में जहां धेनी के माता पिता रांची में ही निवास करते हैं। वैसे ही साक्षी के माता पिता वर्तमान में कोलकोता में निवास करते हैं। परन्तु उनके भाई सहित परिजन देहरादून के निम्मी रोड़ स्थित अपने आवास में ही निवास करते हे। इससे पहले साक्षी के पिताजी भी धेनी के पिताजी की तरह रांची में ही सेवारत थे। वे वहां से स्वैच्छिक सेवानिवृत लेकर जहां देहरादून चले गये थे। कुछ समय देहरादून में रहने के बाद उन्होंने  कोलकोता की एक चाय बगान में डायरेक्टर पर आसीन हो कर कोलकोता में ही बस गये। परन्तु धेनी व साक्षी की बचपन की दोस्ती जब प्रेम में बदल गयी तो धेनी के मांगलिक होने के बाबजूद दोनों ने शादी करने का निश्चय किया तो दोनों के परिवार ने अपने मूल प्रदेश उत्तराखण्ड में ही शादी करने का निश्चय करके देश विदेश में बसने वाले सवा करोड़ उत्तराखण्डियों का दिल ही जीत लिया। धेनी की शादी की सराहना न केवल आम उत्तराखण्डी ही कर रहे हैं वरन देश विदेश में उनके चाहने वाले लाखों लोग भी मुक्त कंठो से उनकी सराहना कर रहे है। अब धेनी व साक्षी के विवाह से प्रेरणा लेकर देश विदेश में बसे लाख से अध्कि उत्तराखण्डी ध्न कुवैर क्या अपने बच्चों की शादी भी उत्तराखण्ड में करेंगे। यह प्रश्न आज सभी ध्न कुवैरों के जेहन पर रह रह कर उठ कर उनको अपनी जड़ों से जुड़ने के लिए धेनी की तरह उद्देलित कर रहा है। भले ही धेनी ने अपने आप को एक क्रिकेटर के तौर पर उत्तराखण्डी नहीं अपितु झारखण्डी बताते रहे परन्तु निर्णायक समय में जब उनके जीवन का सबसे अहम मोड़ शादी का आया तो उन्होंने बिना कुछ कहे सबकुछ बयान कर दिया कि धेनी भले ही एक क्रिकेटर के तोर पर झारखण्डी हो पर, एक व्यक्ति के तोर वह उत्तराखण्डी ही है।  
गौरतलब है कि रोजगार या अन्य कारणों से उत्तराखण्ड के हर गांव से दर्जनों परिवार जनपद के ही कस्बों, देहरादून, नैनीताल, तराई व देश विदेश में बस गये है। दिल्ली जिसे लोग दूसरे उत्तराखण्ड के नाम से जानते हैं,  में ही 30 लाख उत्तराखण्डी निवास करते हैं। लखनऊ, मुम्बई ही नहीं देश का कोई ऐसा बड़ा शहर नहीं जहां लाखों की संख्या में उत्तराखण्डी निवास न करते हों। दिल्ली व उसके आसपास के शहर, गाजियाबाद, पफरीदाबाद व गुडगांव में ही नहीं जयपुर, गुजरात, महाराष्ट्र, कोलकोता, बंगलोर, चिन्नेई ही नहीं पूर्वोत्तर में भी बड़ी संख्या में उत्तराखण्डी बसे हैं।  अपने गांव को छोड़ कर देश विदेश में बसे इन उत्तराखण्डियों में से चंद ही ऐसे हैं जो भले ही अमेरिका या देश विदेश  में रहते हैं परन्तु अपने गांव से निरंतर उनका सम्पर्क बना रहता है। परन्तु अध्किांश ऐसे हैं जो अपनी जड़ों को भूल गये। ऐसे लोगों को ही धेनी व साक्षी ने उत्तराखण्ड में शादी कर एक सही रास्ता दिखाया। 
जहां दुनिया में एक तरपफ ग्लोबलाइजेशन की बयार बह रही है वहीं देश विदेश में अपनी जड़ों को भूल चुके उत्तराखण्डियों में बड़ी आश्चर्यजनक ढ़ग से अपनी जड़ों से जुडने की भावना उछाल मार रही है। यही कारण है कि अमेरिका हो या ब्रिट्रेन या खाड़ी देशों में  रहने वाले उत्तराखण्डी इसी दिशा में संगठित हो कर राजशाही की संकीर्णता की कैंचुली ‘गढ़वाल व कुमाऊं ’ के भेद को त्याग कर अपनी एक नई उत्तराखण्डी पहचान को आत्मसात कर अपनी सांस्कृतिक विरासत को अपने दिलों में संजोए रखने के लिए अपने अपने वनवासी शहरों में उत्तराखण्डी गीत-संगीत का आयोजन कर रहे है। 
यही नहीं बड़ी संख्या में उत्तराखण्डी गीत संगीत के कलाकार उत्तराखण्ड व दिल्ली सहित देश के महानगरों में ही नहीं अपितु देश विदेश के विख्यात शहरों में अपने रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे है। राज्य गठन जनांदोलन यानी 1994 के बाद देश विदेश में रहने वाले 60 साल उत्तराखण्डियों में जो सांस्कृतिक जनजागरण व अपनी माठी के स्वाभिमान की ज्वार जागृत हुआ उसने न केवल दशकों से जमीदोज हुए पृथक राज्य उत्तराखण्ड को गठन के स्वप्न को साकार कर दिया अपितु पूरे देश का इतिहास ही बदल दिया। उत्तराखण्ड के साथ जहां झारखण्ड व छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्यों का भी गठन किया गया।  यह ज्वार जो अपनी जड़ो से जुड़ने के साथ साथ वहां की बदहाली व अविकास को दूर करने के लिए आम प्रवासी उत्तराखण्डियों में उभरा था, उसकी महता को न तो इस नवगठित प्रदेश उत्तराखण्ड के सत्तासीन राजनेता समझ पाये व नहीं यहां के तथाकथित बु(िजीवी। यहां के राजनेताओं ने जहां दस ही साल में लोगों के सपनों के उत्तराखण्ड को जमीदोज करके इसे अपनी सत्तालोलुपता का प्यादा व अपने दिल्ली दरवार के आकाओं की चंगैजी संकीर्ण प्रवृतियों के दोहन का अड्डा बना दिया है। इससे भले उत्तराखण्ड में रहने वाला आम बदहाल व अपने स्वार्थों में लिप्त आदमी न समझ पा रहा हो परन्तु प्रदेश के विकास व स्वाभिमान के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाले देश विदेश में पीढ़ी दर पीढ़ी वनवास का दंश झेल रहे  वनवासी उत्तराखण्डी भ्रष्ट राजनेताओं व नौकरशाहों के इस आत्मघाति तांडव से न केवल हैरान हैं अपितु आक्रोशित हैं। उनकी इस वेदना को सुनने के बाद जहां राजनेता प्रदेश को बदनाम करने का आरोप जड़ते हैं वहीं इस लूट में सांझे लूटेरे बने दलाल उन पर प्रवास के घडियाली आंसू बता कर अपमानित करते है। परन्तु आज वनवासी उत्तराखण्डी जाग गया है। अब वह स्वाभिमान के साथ इन सत्ता के आस्तीन के सांपों व भ्रष्ट नौकरशाहों को उत्तराखण्ड को और ज्यादा नहीं लूटने देगा। धेनी ने अपनी शादी में भले ही किस सोच के कारण प्रदेश की थोपी हुई राजधनी में शादी करने के बाद भी उस शादी में प्रदेश के मुख्यमंत्राी को नहीं बुलाया परन्तु मेरा मानना है कि यह धेनी ही नहीं आम उत्तराखण्डियों की नजरों में प्रदेश के राजनेताओं के लिए रह गये सम्मान का सूचक है। क्योंकि जनता के लिए इन्होंने एक रत्ती भर का काम नहीं किया। उल्टा प्रदेश के आन-मान व शान के साथ ही खिलवाड़ ही किया। इनकी चंगैजी मुखौटा उसी समय उजागर हो जायेगा जब इनकी सीबीआई या किसी स्वतंत्रा ऐजेन्सियों से जांच की जाय। हालांकि उत्तराखण्ड की जनता के नजरों में ये बेनकाब है। जनता इनका कल भी जानती है व आज भी। राज्य गठन के बाद प्रदेश में जहां भ्रष्टाचार बढ़ा व विकास की दोड़ में क्षेत्रा की निरंतर उपेक्षा होने के साथ-साथ शासन प्रशासन में जनहितों की घोर उपेक्षा हो रही है। इसे देखते हुए बदहाल जनता यह देख कर हैरान है कि बिना किसी उद्यम के यहां के हुक्मरान चंद सालों में अरबों सम्पति के मालिक कहां से बन गये। 
प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्राी निशंक को भी यह बात समझ लेनी चाहिए कि पीढ़ी दर पीढ़ी का वनवास भोग रहे प्रवासी उत्तराखण्डी अपनी पैतृक भूमि उत्तराखण्ड की खुशहाली व विकास चाहते हैं। क्योंकि उनको प्रवास का दंश जो उनको वनवासी;शहरों में रहने के बाबजूद अपनी जड़ों से कटने का दंश रह रह कर सलाता रहता है।द्ध जीवन जीने के लिए मजबूर है। वे न तो अपने वनवासी जीवन को ही सही ढ़ग से जी पाते हैं व नहीं वे अपनी जन्मभूमि से विछोह के दंश से उबर पाते है। कहने का तात्पर्य वनवासी दोहरा जीवन जीने के लिए अभिशापित हैं। इसके बाबजूद वे अपनी संस्कृति व जन्मभूमि के विकास के लिए अपने आप को दिलो व जान से समर्पित रखते हैं। प्रदेश सरकार को चाहिए कि इन वनवासी लोगों  का सुझाव-अनुभव व सहयोग को प्रदेश के नवनिर्माण में बेझिझक लेना चाहिए।  पीढ़ी दर पीढ़ी वनवास की त्रासदी का दंश झेलने के लिए मजबूर 60 लाख उत्तराखण्डियों को  अपनी जड़ो से पिफर से जुड़ने का संदेश देने वाले विश्वविख्यात भारतीय क्रिकेट के कप्तान महेन्द्रसिंह धेनी व उनकी ध्र्मपत्नी बनी साक्षी रावत को प्यारा उत्तराखण्ड समाचार पत्रा की परिवार की तरपफ से हार्दिक बधई व लख-लख ध्न्यवाद। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ¬ तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो। 

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