भारत का दुर्भाग्य रहा अटल व मनमोहन जैसे अमेरिकीपरस्त नेतृत्व




यह भारत का दुर्भाग्य रहा कि इस देश में अटल व मनमोहन जैसे अमेरिकीपरस्त नेतृत्व मिला। जिन्होंने भारत के मान सम्मान व स्वाभिमान को अमेरिकी के लिए शर्मनाक ढंग से दाव पर लगाया। मामला चाहे कारगिल का हो या संसद पर हमले का या मुम्बई हमले का इन सब मामलों में देश के तत्कालीन हुक्मरानों ने राष्ट्रीय आत्मसम्मान की रक्षा करते हुए आतंकी पाक को मुहतोड़ जवाब देने के बजाय अमेरिका के इशारे पर नपुंसकों की तरह मूक रह कर देश के स्वाभिमान को आतंकियों के हाथों रौंदवाया। आज महात्मा गांधी और देश के वर्तमान नेतृत्व में अंतर स्पष्ट देखने को मिलता। आज का नेतृत्व व  देश का तथाकथित अमीर लोग अमेरिका जाने के लिए इस कदर लालयित हैं कि अमेरिका इनके कपड़े सहित उतारवा देता हैं, इनको कदम कदम  पर बेइज्जत करता हैं। फिर भी इस देश के नेता व अमीर लोग अमेरिका जाने के लिए व उसके इशारों पर कुत्तों की तरह दुम हिलाते रहते हैं। वहीं महात्मा गांधी जी ने कई बार अमेरिकी लोगों द्वारा अमेरिका आने के निमंत्रण को यह कह कर ठुकरा दिया था कि अमेरिका की सोच ही हिंसक है। आज भारतीय इतिहास पर नजर डालता हूूॅं तो इस देश में नेहरू, शास्त्री, इंदिरा  व राजीव के बाद कोई ऐसा नेतृत्व नहीं रहा जो देश के स्वाभिमान को अमेरिका के आगे स्वाभिमान  राष्ट्राध्यक्ष की तरह डटे रहे हों। अटल बिहारी व मनमोहन सिंह की सरकारों में तो अमेरिकी परस्त होने की शर्मनाक ऐसी होड़ लगी हुई हैं कि इसके कारण आज भारत भी पाकिस्तान की तरह अमेरिका के शिकंजे में जकड़ गया है। आज जरूरत हैं गांधी जैसे राष्ट्रवादी नेतृत्व की न की मनमोहन व अटल जैसे अमेरिकी परस्त नेताओं की। 

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