भाजपा व कांग्रेस या 1857 तक ही सीमित न समझें विष्व की सबसे श्रेश्ट संस्कृति के ध्वज वाहक भारत को
भाजपा व कांग्रेस या 1857 तक ही सीमित न समझें विष्व की सबसे श्रेश्ट संस्कृति के ध्वज वाहक भारत को /
सबसे बड़ी देष भक्ति या धर्म/
किसी को इस बात का भ्रम न रहे कि भारतीय संस्कृति या देष किसी कांग्रेस, भाजपा, संघ या किसी अन्य दल विषेश की बदोलत जीवंत है। ना हीं भारत 1857 या गांधी जी आदि के नेतृत्व में अंग्रेजो के खिलाफ लड़े गये संघर्श ही सबकुछ है। भारतीय संस्कृति विष्व की सबसे प्राचीन जीवंत संस्कृतियों प्रमुख है जिसने विष्व को अब तक के सर्वश्रेश्ठ जीवंत मूल्य प्रदान किये। भारतीय संस्कृति तब भी विलक्षण थी जब यूरोप, अरब, अमेरिका जैसे देषो में रहने वाले लोग यायावारी व अज्ञानता के अंधेरों में भटके हुए थे। ईसायत् या मुसलिम आदि धर्माे के उदय से कई सदियों पहले भारत उस मुकाम पर पंहुच चूका था जिस मुकाम पर ये लोग आज भी नहीं पंहुच पाये। ज्ञान का विलक्षण अथाह सागर रही भारतीय संस्कृति। इसलिए भारतीय श्रेश्ठ जन, सत्तालोलुपु सत्तांधों व दलीय जंजाल में जकड़ने के बजाय भारतीय संस्कृति के सनातन मूल्यों यानी केवल सत् के लिए जीवन समर्पित करने की सीख देती है,। भारतीय संस्कृति जो कभी अन्याय को न सहने, सर्वभूतहितेरता, जड़चेतन में परमात्मा, दया, संस्कारवान मूल्यों की सीख देती है। कांग्रेस, भाजपा या मुगलों या फिरंगियों का उदय तो भारतीय संस्कृति के विराट जीवन का एक छोटा का काल खण्ड है। इसलिए आम भारतीयों को लोकषाही के नाम पर देष को अपनी संकीर्ण सत्तालोलुपता की गर्त में धकेलने वाले व भारतीय सस्कृति को कलंकित करने वाले इन दलों का अंध भक्त बनने के बजाय इनको सही दिषा में चलने के लिए जनअंकुष लगा पर यानी मताकुंष से इनको देषहित में कार्य करे। लोकषाही भारतीय संस्कृति की अनुपम धरोहर है जो जड़ चेतन को समान महत्व ही नहीं स्व स्वरूप समझती है। इसमें जनप्रतिनिधियों को अपना आका या मालिक न समझें इनको जनता का सेवक ही समझें, अगर ये दिषाहिन होते हैं तो इनको अविलम्ब मताकंुष से सत्ताच्युत करके देष की रक्षा करें। क्योंकि भारतीय संस्कृति ही आज पूरे विष्व को इस दिषाविहिन भौतिक जगत को परम षांति, ज्ञान व समृद्व व्यवस्था दे सकती है। इसलिए पूरे विष्व को सही दिषा देने के अपने गुरूत्तम दायित्व का निर्वाह की सभी प्रबुद्व भारतीयों से आषा करता हॅू। यही हमारा सबसे बड़ा धर्म व सबसे बड़ी देषभक्ति है।
सबसे बड़ी देष भक्ति या धर्म/
किसी को इस बात का भ्रम न रहे कि भारतीय संस्कृति या देष किसी कांग्रेस, भाजपा, संघ या किसी अन्य दल विषेश की बदोलत जीवंत है। ना हीं भारत 1857 या गांधी जी आदि के नेतृत्व में अंग्रेजो के खिलाफ लड़े गये संघर्श ही सबकुछ है। भारतीय संस्कृति विष्व की सबसे प्राचीन जीवंत संस्कृतियों प्रमुख है जिसने विष्व को अब तक के सर्वश्रेश्ठ जीवंत मूल्य प्रदान किये। भारतीय संस्कृति तब भी विलक्षण थी जब यूरोप, अरब, अमेरिका जैसे देषो में रहने वाले लोग यायावारी व अज्ञानता के अंधेरों में भटके हुए थे। ईसायत् या मुसलिम आदि धर्माे के उदय से कई सदियों पहले भारत उस मुकाम पर पंहुच चूका था जिस मुकाम पर ये लोग आज भी नहीं पंहुच पाये। ज्ञान का विलक्षण अथाह सागर रही भारतीय संस्कृति। इसलिए भारतीय श्रेश्ठ जन, सत्तालोलुपु सत्तांधों व दलीय जंजाल में जकड़ने के बजाय भारतीय संस्कृति के सनातन मूल्यों यानी केवल सत् के लिए जीवन समर्पित करने की सीख देती है,। भारतीय संस्कृति जो कभी अन्याय को न सहने, सर्वभूतहितेरता, जड़चेतन में परमात्मा, दया, संस्कारवान मूल्यों की सीख देती है। कांग्रेस, भाजपा या मुगलों या फिरंगियों का उदय तो भारतीय संस्कृति के विराट जीवन का एक छोटा का काल खण्ड है। इसलिए आम भारतीयों को लोकषाही के नाम पर देष को अपनी संकीर्ण सत्तालोलुपता की गर्त में धकेलने वाले व भारतीय सस्कृति को कलंकित करने वाले इन दलों का अंध भक्त बनने के बजाय इनको सही दिषा में चलने के लिए जनअंकुष लगा पर यानी मताकुंष से इनको देषहित में कार्य करे। लोकषाही भारतीय संस्कृति की अनुपम धरोहर है जो जड़ चेतन को समान महत्व ही नहीं स्व स्वरूप समझती है। इसमें जनप्रतिनिधियों को अपना आका या मालिक न समझें इनको जनता का सेवक ही समझें, अगर ये दिषाहिन होते हैं तो इनको अविलम्ब मताकंुष से सत्ताच्युत करके देष की रक्षा करें। क्योंकि भारतीय संस्कृति ही आज पूरे विष्व को इस दिषाविहिन भौतिक जगत को परम षांति, ज्ञान व समृद्व व्यवस्था दे सकती है। इसलिए पूरे विष्व को सही दिषा देने के अपने गुरूत्तम दायित्व का निर्वाह की सभी प्रबुद्व भारतीयों से आषा करता हॅू। यही हमारा सबसे बड़ा धर्म व सबसे बड़ी देषभक्ति है।
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