चुनाव आयोग का उत्तराखण्ड की जनता से सौतेला व्यवहार क्यों
चुनाव आयोग ने 4 फरवरी को मुसलिम त्योहार के कारण  न केवल 4 फरवरी को होने वाला प्रथम चरण का उप्र का मतदान  , बदल कर 3 मार्च को कर दिया है अपितु चुनाव आयोग ने 4 मार्चा को 5 राज्यों की विधानसभा की मतगणना भी इस कारण 4 मार्च से बदल कर 6 मार्च को कर दी हे।  इससे एक सवाल यह उत्पन होता है कि चुनाव आयोग को हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड के लोगों के हितों का गला घोंटते समय कोई रहम क्यों नहीं आया। उसे क्यों अपनी संवेधानिक दायित्व का बोध रहा। हिमालयी राज्य में 30 जनवरी को मतदान के समय कडाके की सर्दी रहती हैं उसको बदल कर फरवरी केअंतिम सप्ताह किया जा सकता था। परन्तु न तो चुनाव आयोग को इसका भान रहा व नहीं प्रदेश के कांग्रेसी नेतृत्व को इसका भान रहा। हालांकि खंडूडी ने इसका विरोध भी दर्ज कराया, परन्तु सामुहिक रूप से पहल करने में उत्तराखण्डी नेता असफल रहे। चुनाव आयोग अपने संवेधानिक दायित्व का सही ढ़ंग से पालन करने में इस दृष्टि से असफल रहा।  उत्तराखण्ड के नेता न तो प्रदेश में जनसंख्या पर आधारित परिसीमन को ही रूका पाये व नहीं चुनाव आयोग द्वारा 30 जनवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव को ही रूकवा पाये। जबकि चुनाव आयोग ने मुसलमानों के एक त्योहार के लिए 4 फरवरी को होने वाले उप्र के पहले चरण के मतदान को न करा कर उसे 3 मार्च को कराने का ऐलान किया। 

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