मनमोहन ही नहीं गड़करी भी इस्तीफा दें

-भ्रष्टाचारियों को शर्मनाक संरक्षण देने के मामले में
-मनमोहन ही नहीं गड़करी भी इस्तीफा दें/
-न्यायपालिका भी तय करे अपनी सुनवायी की समय सीमा
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सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा स्वामी की याचिका पर भ्रष्टाचार में घिरे मंत्रियों पर लम्बे समय तक मुकदमा चलाने की इजाजत न देने के मामले में प्रश्न उठाते हुए तत्काल इसकी एक निश्चित समय सीमा तय करने का जो संसद को कानून बनाने जरूरत बतायी, उससे भारतीय हुक्मरानों का शर्मनाक चेहरा बेनकाब हो गया। इसको आधार बना कर प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांगने की भाजपा ने जो सराहनीय मांग की परन्तु भाजपा को चाहिए था कि जिस नैतिकता का आधार बना कर वह प्रधानमंत्री से इस्तीफा मांग रहे हैं, उसको देखते हुए सबसे पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष गड़करी को खुद अपनी भ्रष्टाचारी सरकारों को संरक्षण देने के लिए तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए। जिस प्रकार से भाजपा के अध्यक्ष गडकरी सहित शीर्ष नेताओं ने भाजपा की उत्तराखण्ड सरकार के मुख्यमंत्री की संलिप्तता वाले स्टर्जिया भूमि घोटाले सहित अनैक घोटालों के उजागर होने के बाबजूद उनको शर्मनाक संरक्षण सार्वजनिक रूप से दिया। यही नहीं जब उच्च न्यायालय ने भी इस मामले में भ्रष्टाचार होने की बात पर अपनी मुहर लगायी तो उसके बाबजूद भी न तो गड़करी व नहीं भाजपा के उन तमाम नेताओं ने माफी मांगी जो ऐसी भ्रष्टाचारी कुशासक को समर्थन कर रहे थे। सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान टिप्पणी को अपनी जीत बताने वाले अण्णा हजारे टीम भी भले ही जनता के बीच खुद को पाक साफ बताये परन्तु इस टीम के प्रमुख सिपाहेसलार शांति भूषण भी इस स्टर्जिया प्रकरण पर भ्रष्ट सरकार के बचाव में खुद नैनीताल हाईकोर्ट में तमाम तर्क दे रहे थे। अण्णा हजारे व उनकी टीम भी उस समय बेनकाब हो गयी जब उन्होंने न जाने किस मोह से जनप्रतिनिधियों व एनजीओ के भ्रष्टाचार से त्रस्त व्यवस्था में भी इन दोनों को शर्मनाक संरक्षण देने वाले उत्तराखण्ड के जनभावनाओं को रौंदने वाले मुख्यमंत्री खंडूडी द्वारा बनाये गये लोकायुक्त का अंध समर्थन किया। यह काम देश में भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए उनके साथ जुडने वाले लाखों लोगों के विश्वास के साथ एक प्रकार का खिलवाड़ ही है। 
रही बाबा रामदेव की जो भ्रष्टाचार के प्रतीक कालाधन को जो विदेशों में जमा है, पर देश व्यापी सराहनीय आंदोलन तो छेड़े हुए हैं परन्तु खुद अपने प्रदेश व उनके मुख्यालय के 50 किमी दूरी पर हुए इस देवभूमि को शर्मसार करने वाले स्टर्जिया भूमि घोटाले पर मूक रहे। जिस काले धन के खिलाफ बाबा रामदेव राष्ट्रव्यापी आंदोलन कर रहे हैं उस काले धन का पहाड़ विदेशों से कई हजार गुना देश में ही विधमान है, उनके खिलाफ बाबा रामदेव की आवाज तक नहीं निकल पा रही है।
कांग्रेस व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से किसी प्रकार की नैतिकता की आशा करना ही अपने आप को सरासर धोखा देने जैसी बात है। मनमोहन सिंह भी अटल बिहारी वाजपेयी की तर्ज पर घोर सत्तालोलुपु व अमेरिकी परस्त प्रधानमंत्री साबित हो चूके है। वास्तव में हालत तो यह है देश की अधिकांश व्यवस्था अब जर्जर हो चूकी है। इसके लिए कांग्रेस सहित तमाम राजनेता, नौकरशाह, मीडिया, समाजसेवी, धर्माध्यक्ष, ही नहीं अपितु न्यायपालिका भी जिम्मेदार है। न्यायपालिका ने प्रधानमंत्री को उनकी नैतिकता व दायित्व का बोध करा कर देश के हित में व अपने दायित्व का सराहनीय निर्वहन किया। परन्तु सच्चाई यह है कि खुद न्यायपालिका आज देश की जनभावनाओं व लोकशाही के अनरूप काम करने में पूरी तरह विफल रही है। यहां पर भी समय सीमा तय नहीं है। एक छोटे से विवाद में वर्षो ही नहीं पीड़ियां ही गुजर जाती है। न्याय की गुहार करने वाले प्रायः दम तोड़ देते है। हजारों हजार बेगुनाह लोग जेलों में समय पर न्याय न मिलने के कारण सड़ रहे होते है। न्यायालय जैसे महत्वपूर्ण संस्थान भी धनपशुओं के शिकंजे में जकड़ गया है। एक आम आदमी न्यायालय के दर पर न्याय की गुहार लगाने का साहस तक नहीं जुटा पाता है। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय से गुहार है कि वह न्यायपालिका की गरिमा की रक्षा करते हुए विवादों को एक समय सीमा के अन्दर निचली आदालतों से लेकर उच्च व सर्वोच्च न्यायालय में समय सीमा तय करे। समय पर न्याय न मिलना भी एक प्रकार का अन्याय है। जिस प्रकार से न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रतिभा के बजाय नेताओं व निहित स्वार्थ के रूप में की जाती रही, देश की भाषा के बजाय फिरंगी भाषा में की जाती रही, उससे न्याय पालिका भी आम आदमी से कोसों दूर हो गयी है। इस पूरे प्रकरण में अपनी महत्वपूर्ण सेवा देने के लिए सुब्रब्रणम स्वामी को पूरे देश की हार्दिक बधाई । जो वे अपनी जान को जोखिम में डाल कर एक एक कर भ्रष्टाचारियों व मृतप्राय व्यवस्था को न्यायालय के द्वारा बेनकाब कर रहे है।

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