ठेकेदारों के हवाले वतन साथियो


ठेकेदारों के हवाले वतन साथियो/
-देश ही नहीं अब रैली, धरना प्रदर्शन भी ठेकेदारों के हवाले /
-कांग्रेस में तो केन्द्रीय मठाधीश के कारण राहुल को झेलना पड़ा जूते का स्वागत /
-भ्रष्टाचार की जड है ठेकेदारशाही
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देहरादून (प्याउ)। भले ही आप व हम इस मुगालते में हो की हम लोकशाही में जी रहे हैं परन्तु यह सोलह आना सच है कि आज देश ठेकेदारशाही में जी रहा है। हर काम में ठेकेदारी। ठेकेदारी यानी दुसरे के काम व दाम पर भी सेंध लगाना। यानी मजदूर, गरीब व आम आदमी का शोषण। लोकशाही में जहां आम आदमी के कल्याण की बात होती है परन्तु ठेकेदारशाही में प्रायः ठेकेदार, नोकरशाह व नेताओं के बीच ही सब दुघ मक्खन बंट जाता है। सब मलायी ये तीनों ही चटक जाते है। आम जनता के लिए केवल छांस रहती है वह भी आजकल सिन्थेटिक छांस । असली छांस भी आम जनता को सुघने में नहीं मिलती। इस देश में भ्रष्टाचार की जड़ ही ठेकेदार शाही है। कहीं एनजीओ की ठेकेदारशाही तो कहीं आम दलालों की ठेकेदार शाही। इसी ठेकेदारशाही के राज में देश प्रदेश का शासन प्रशासन चलाने के लिए नियुक्त मंत्री अफसर सब एक प्रकार से ठेकेदार से बदतर काम कर रहे है। आज हर पद की नियुक्ति की एक अहम कीमत होती है। जितना मालदार पद उतनी उसकी कीमत। चाहे पद मंत्री का हो या मुख्यमंत्री का, बीट अफसर का हो या शहर के कोतवाल का। आज लगता है इस देश में सब कुछ बिक रहा है।  ईमानदार आदमी को विधायक, सांसद, प्रधान आदि का टिकट तो रहा दूर समय पर  आज रेल का टिकट भी नसीब नहीं हो पाता है। दागदार लोगों का हर पार्टी में स्वागत, बेईमान लोगों को हर पार्टी में महत्वपूर्ण पद। भाजपा हो या कांग्रेस या अन्य सब लोग मालदार आदमी या माल देने वाले आदमी को ही निहारते है। चाहे रेड़ी बंधु हो या उत्तराखण्ड के कलंक, सब जगह कोई न कोई सुषमा जेसे अभयदान देने वाले लोग उपस्थित है। कांग्रेस पार्टी में ही देखो वर्षो से पार्टी व राज्य के लिए सड़कों के लिए संघर्ष करने वाले आम कार्यकत्र्ता की कहीं पूछ नहीं परन्तु तिजोरी भरे लोग चाहे आर्येद शर्मा हो या काव आदि को पार्टी का प्रत्याशी बनाने में प्रभारी ही नहीं सांसद भी बेशर्मी से पूरी पार्टी की छवि को दाव पर लगा सकता है। प्रदेश अध्यक्ष हो या जनाधार वाले सदचरित्र नेता वे इन प्रभारियों के आगे मैमने बने रहते। इसी के कारण राहुल को देहरादून की सभा में जूते से स्वागत झेलना पड़ा। कांग्रेस आलाकमान अगर ईमानदारी से जांच कराये तो देहरादून की टिकटें कराने में प्रभारी ने क्यों पार्टी का भविष्य व छवि दाव पर लगा दी थी। पार्टी द्वारा गोचर से लेकर आला नेताओं की सभाओं में केन्द्रीय कार्यालय से मिलने वाला धन क्या प्रदेश पार्टी ने खर्च किया या केन्द्रीय नेताओं ने ही । आज प्रदेश अध्यक्ष इतना व्यथित है कि वह अपनी इस पीड़ा को इजहार करे तो किसे। चुनावी ठेकेदारों ने पार्टी का भविष्य व छवि दोनों अपने निहित स्वार्थ के लिए दाव पर लगा दी है।
चुनाव में ही नहीं रेली में भीड़ जुटाने के लिए ठेकेदारों का अपना अलग महत्व है। आज आम आदमी राजनेतिक दलों व नेताओं से इतना धृणा करता है कि उसको उनके भाषण सुनने व उनकी रेली में सम्मलित होने से भी धृणा आती है। ऐसे में अपने दलीय समर्थकों के अलावा इनकी रेली व प्रचार में आदमी कैसे जुटें इसके लिए किराये के आदमी लाने वाले ठेकेदारों की शरण में ये दल जाते है। इसका भी अपना एक महत्व होता है। इन ठेकेदारों से हर आदमी के हिसाब से ठेका दिया जाता है। इसमें सम्मलित लोगों को प्रतिदिन के हिसाब से दिहाड़ी व खाना इत्यादि का भुगतान किया जाता है। वेसे भी जब पूरा देश ही ठेकेदारी पर चल रहा हो तो चुनावी माहोल में या सभा धरना प्रदर्शन इत्यादि के लिए आदमियों के ठेकेदारों को अवसर न मिले यह कहां हो सकता है। रेली चाहे प्रधानमंत्री की हो या अदने से आम आदमी की, धरना-प्रदर्शन, सम्मेलन, आदि  राष्ट्रीय पार्टियों का हो या सामाजिक संगठनों या आम आदमी का अधिकांश को अगर भीड़ जुटानी है तो इसमें भीड़ जुटाने के लिए ठेकेदारों का ही सहारा लिया जाता है। अब ये ठेकेदार कभी वास्तव में ठेकेदार होते है परन्तु अब इन ठेकेदारों के नाम पर कई बार ऐसे आदमी भी खुद ही ठेकेदार बन जाता है जिसको बड़ा नेता भी समझा जाता है। यह सब मोटी रकम के नाम पर डकारने के लालच में। बड़ी पार्टियों के बड़े नेताओं की रेली में सब ठेकेदारी पर होता है। इसका भुगतान भी मोटा होता है। इसी कारण कई बार आला नेतृत्व का प्रभारी ही प्रदेश के दल के प्रमुख को मिलने वाली ही रकम खुद ही डकार जाता है। कांग्रेस में तो यह देखा जा रहा है कि राहुल, सोनिया या प्रधानमंत्री की रेलियों को दी जाने वाली रकम प्रदेश के नेताओं या पार्टी तक पंहुच ही नहीं रहा है। इसी पखवाडे देहरादून के पटेलनगर थाने में एक ऐसे छोटे ठेकेदार को जो दलों चुनावी लाभ पहुंचाने के लिए प्रत्याशी के समर्थन में धनबल का इस्तेमाल कर भीड़ जुटाने वाले को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। इस ठेकेदार की गलती यह थी कि चुनावी जुलूस में भाग लेने वालों को जब पैसे का भुगतान नहीं हुआ तो भीड़ में शामिल लोगों ने आरोपित को घेर लिया। बवाल होने के बाद पहुंची पुलिस ने आरोपित को गिरफ्तार कर लिया। इस मामले में पटेलनगर थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है। आरोपित की पहचान जावेद के रूप में हुई है। पुलिस ने बताया कि उन्हें कुछ लोगों से इस बारे में शिकायत मिली थी। एक पीड़ित ने तहरीर देकर पुलिस को बताया कि उन्हें एक प्रत्याशी के चुनावी जुलूस शामिल होने के लिए पैसा देने का वादा किया गया था। पैसा पाने के चलते वह जुलूस में शामिल हुए, मगर बाद में उन्हें भुगतान नहीं हुआ। सभी लोगों को 200 रुपये के हिसाब से पैसे मिलने थे। पैसा देने का वादा करने वाले से जब लोगों ने भुगतान के बारे में पूछा तो उसने इनकार कर दिया। इसके बाद लोगों ने आरोपित को पकड़ लिया। परन्तु बडे ठेकेदार पर कोई हाथ नहीं डाल सकता। पुलिस प्रशासन की हिम्मत ही कहां। दिल्ली में भी आये दिन रेली व सम्मेलन के नाम पर आम गरीब आदमियों का शोषण की बात उजागर होती है। ऐसी ही एक घटना देश के एक सबसे ईमानदार नेता के रूप में ख्यातिप्राप्त रहे नेता के बेटे के सम्मेलन में देखने में आयी। इन माहशय ने भी इन ठेकेदारी पर बुलाये गये लोगों को उनकी तय की गयी जब दिहाड़ी नहीं दी तो मजदूरों ने उनका आवास के बाहर ही प्रदर्शन किया। बाद में इनका भुगतान शर्माशर्मी से किया गया। आज पूरी व्यवस्था ठेकेदारों की रहमोकरम पर जी रही है। भले ही हम देश में लोकशाही को होने के भ्रम में रहे परन्तु हकीकत में देश में आज ठेकेदारी ही चल रही है वह भी बेरहम ठेकेदारी। अगर देश में आम लोगों व देश में लोकशाही बचानी है तो यहां से ठेकेदारशाही को जल्द से जल्द विदाई देनी होगी।

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