उत्तराखण्ड में कांग्रेस सत्तासीन हुई तो महिला हो सकती है मुख्यमंत्री
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उत्तराखण्ड में कांग्रेस सत्तासीन हुई तो महिला हो सकती है मुख्यमंत्री
देहरादून। (प्याउ)। प्रदेश में अगर 6 मार्च को चुनावी परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आता है तो प्रदेश में महिला को प्रदेश की कमान सौंपे जाने के कायश लगाये जा रहे है। हालांकि अभी यह सब कहना जल्दी होगी, परन्तु इसी आशंका से कांग्रेस में मुख्यमंत्री के आधा दर्जन दावेदार चुनावी दंगल से एक दूसरे को मात देने के पाशे कदम कदम पर चल रहे थे। यह खेल चुनाव के बाद फिर तेजी से बढ़ गया है। कांग्रेस में मुख्यमंत्री के दावेदारों में जहां हरीश रावत व सतपाल महाराज का नाम सबसे उपर है। हालांकि दावेदारों में प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य, हरकसिंह रावत, सांसद विजय बहुगुणा व इंदिरा हृदेश भी मानी जा रही है। हरीश रावत , सतपाल महाराज व विजय बहुगुणा को विधायक न होने के कारण या गुटीय खिंचतान होने की संभावनाओं के कारण दूर रखने की चालें अभी से मठाधीश कर रहे हे। परन्तु जिस प्रकार से हरक सिंह रावत चुनावी भंवर में फंस चूके हैं उससे उनका चुनावी जंग से उभरना ही दुश्वार लग रहा है। वहीं यशपाल आर्य को प्रबल दावेदार माना जा रहा है। हालांकि उनका तिवारी की निकटता के कारण उन पर मुहर लगाने में प्रदेश में फिर वही खिंचतान चलने की आशंका जाहिर की जा रही है। इसी दौरान तिवारी द्वारा प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की इच्छा प्रकट करने के बाद कोन बनेगा कांग्रेस का मुख्यमंत्री यह प्रश्न एक प्रकार से यज्ञ प्रश्न बन गया हैं। कांग्रेसी आला नेतृत्व की रणनीति प्राय चैकान्ने वाली होती है। इसलिए माना जा रहा है कि इस बार स्पष्ट बहुमत मिलने पर कहीं प्रदेश में महिला के हाथों में प्रदेश की बागडोर कांग्रेस आला नेतृत्व सोंपने का दाव खेल सकता है।
गौरतलब है कि उत्तराखण्ड राज्य गठन करने से लेकर प्रदेश की पूरी व्यवस्था संभालने में महिलाओं ने बाजीमारी हो वहीं चुनावी जंग में भी प्रदेश की लोकशाही का परचम थामने में भी महिलायें आगे रही है। भले ही राजनैतिक दलों ने उनको अपेक्षित प्रतिनिधित्व नहीं दिया है। प्रदेश के वर्तमान चुनाव के मतदान में भी महिलाओं ने भारी मतदान किया। खासकर उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र में महिलायें की पूरी अर्थव्यवस्था की मेरू है। यही नहीं इस बार के चुनाव में महिलायें केवल चुनावी दंग में प्रत्याशी के रूप में मैदान में नहीं है अपितु प्रदेश में मुख्यमंत्री की दावेदार के रूप में कांग्रेस की अमृता रावत भी प्रखर दावेदार के रूप में मैदान में हैं । हालांकि कांग्रेसी नेत्री इंदिरा हृदेश भी चुनावी दंगल में उतरी है परन्तु साफ छवि का नेतृत्व देने के लिए कांग्रेसी नेतृत्व की प्रतिबद्वता को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि कांग्रेस इंदिरा हृदेश पर दाव लगायेगा। जिस प्रकार से कांग्रेस ने पहली महिला प्रधानमंत्री से लेकर पहली महिला राष्ट्रपति को आसीन करने का काम किया, उससे लगता है कि प्रदेश का नेतृत्व कांग्रेस आला कमान साफ छवि की अमृता रावत को अगर कांग्रेस बहुमत में आती है तो बनाने के कायश लगाये जा रहे है। हालांकि अभी चुनाव के परिणाम मतदान मशीनों में बंद है। 35 दिन बाद इसका फेसला निकलेगा परन्तु कोन बनेगा मुख्यमंत्री इसी आशंका से कांग्रेसी दिग्गज चुनावी दंगल में एक दूसरे के पर कतरने में लगे हुए थे।
2002 में प्रदेश में 52.64 फीसद महिलाओं ने मतदान कर सरकार बनाने में अपनी रुचि दिखाई । 2007 आते-आते यह आंकड़ा 6.81 फीसद बढ़ा और प्रदेश में 59.45 फीसद महिला मतदाताओं ने मताधिकार का इस्तेमाल किया। हालांकि विधानसभा सदस्य बनने की इच्छा रखने वाली महिला उम्मीदवारों की बात की जाए तो 2002 के पहले चुनावों में 72 महिलाओं में से जीत केवल चार को हासिल हुई। 2007 में यह संख्या घट गई और केवल 56 में भी केवल चार विधानसभा की देहरी पर पंहुच पायी। इस बार चुनाव में 63 महिला उम्मीदवार किस्मत आजमा रही हैं। अब प्रदेश का मतदाता इन उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला ईवीएम मशीनों में कैद कर चुका है। अब देखना यह है कि प्रदेश की विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या चार की लक्ष्मण रेखा लांघ पाती या नहीं। हालांकि कांग्रेस के सत्तासीन होने पर महिला मुख्यमंत्री बनने की कायश लगायी जा रही है। वहीं भाजपा में महिला मुख्यमंत्री बनाये जाने की संभावनायें कहीं दूर दूर तक नहीं है। क्योंकि भाजपा में खंडूडी जरूरी के पाश में पहले ही बंध चूकी है।
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