खंडूडी जेसे पदलोलुपु कुशासक की नहीं अपितु परमार जैसे कुशल नेता की जरूरत है उत्तराखण्ड को
खंडूडी जेसे पदलोलुपु कुशासक की नहीं अपितु परमार जैसे कुशल नेता की जरूरत है उत्तराखण्ड को
भाजपा के आला नेतृत्व का शर्मनाक पतन का परिचायक है ‘खंडूडी है जरूरी का विज्ञापन। इनकी अलोकशाही प्रवृति का और दूसरा सहज उदाहरण और क्या हो सकता कि वे उत्तराखण्ड की 30 जनवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सभी समाचार पत्रों में हर दिन प्रमुखता से विज्ञापन दे रहे हैं कि खंडूडी है जरूरी। यह विज्ञापन भाजपा नेतृत्व की उत्तराखण्ड की जनभावनाओं को रौदेने वाला ही नहीं अपितु लोकशाही का गला घोंटने वाला है। यह अधिनायकवाद का परिचायक व भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व की लोकशाही खंडूडी नहीं उत्तराखण्ड की जनांकांक्षाओं को साकार करना जरूरी है। उत्तराखण्ड में लोकशाही की स्थापना जरूरी हैं। जिस लोकशाही को उत्तराखण्ड की जनता के दशकों पुराने संघर्ष व बलिदान दे कर उत्तराखण्ड राज्य के नाम से हासिल किया था, उस लोकशाही का सूर्योदय देवभूमि उत्तराखण्ड की धरती पर होने से पहले भाजपा व कांग्रेस के दिल्ली स्थित आकाओं ने अपने तिवारी, खडूडी व निशंक जेसे सत्तांध व उत्तराखण्ड की जनांकांक्षाओं को रौंदने वाले प्यादों को थोप कर पूरी तरह से ग्रहण लगा दिया है। परन्तु भाजपा के दिल्ली आकाओं को उत्तराखण्ड की उन जनांकांक्षाओं को जरूरी नहीं लगती । उनको मुजफरनगर काण्ड के अभियुक्तों को सजा देनी जरूरी नहीं लगती। भाजपा के दिल्ली में आसीन बेशर्म नेताओं को प्रदेश की जनांकांक्षाओं को साकार करने वाले स्थाई राजधानी गैरसैंण जरूरी नहीं लगती, उनको खंडूडी जरूरी लगता है। भाजपा के आला नेताओं को इतना भी ज्ञान नहीं है कि प्रदेश की जनता ने यह राज्य किसी खंडूडी, तिवारी या निशंक जेसे घोर पदलोलुप नेताओं के लिए नहीं बनाया। जिन्होंने उत्तराखण्ड के सम्मान, हक हकूकों व चरित्र को अपनी पदलोलुपता, जातिवादी-क्षेत्रवादी व भ्रष्टाचार का संरक्षण देने वाले कुशासन से रौंद दिया है। इसलिए आज उत्तराखण्ड में खंडूडी जेसे पदलोलुपु व कुशासन के प्रतीक नेता की नहीं अपितु लोकशाही को स्थापित करने की कुब्बत रखने वाले परमार जेसे नेतृत्व की जरूरत है। जो अपनी कुर्सी के लिए नहीं अपितु प्रदेश के हितों व विकास के लिए समर्पित हो।
भाजपा के आला नेतृत्व का शर्मनाक पतन का परिचायक है ‘खंडूडी है जरूरी का विज्ञापन। इनकी अलोकशाही प्रवृति का और दूसरा सहज उदाहरण और क्या हो सकता कि वे उत्तराखण्ड की 30 जनवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सभी समाचार पत्रों में हर दिन प्रमुखता से विज्ञापन दे रहे हैं कि खंडूडी है जरूरी। यह विज्ञापन भाजपा नेतृत्व की उत्तराखण्ड की जनभावनाओं को रौदेने वाला ही नहीं अपितु लोकशाही का गला घोंटने वाला है। यह अधिनायकवाद का परिचायक व भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व की लोकशाही खंडूडी नहीं उत्तराखण्ड की जनांकांक्षाओं को साकार करना जरूरी है। उत्तराखण्ड में लोकशाही की स्थापना जरूरी हैं। जिस लोकशाही को उत्तराखण्ड की जनता के दशकों पुराने संघर्ष व बलिदान दे कर उत्तराखण्ड राज्य के नाम से हासिल किया था, उस लोकशाही का सूर्योदय देवभूमि उत्तराखण्ड की धरती पर होने से पहले भाजपा व कांग्रेस के दिल्ली स्थित आकाओं ने अपने तिवारी, खडूडी व निशंक जेसे सत्तांध व उत्तराखण्ड की जनांकांक्षाओं को रौंदने वाले प्यादों को थोप कर पूरी तरह से ग्रहण लगा दिया है। परन्तु भाजपा के दिल्ली आकाओं को उत्तराखण्ड की उन जनांकांक्षाओं को जरूरी नहीं लगती । उनको मुजफरनगर काण्ड के अभियुक्तों को सजा देनी जरूरी नहीं लगती। भाजपा के दिल्ली में आसीन बेशर्म नेताओं को प्रदेश की जनांकांक्षाओं को साकार करने वाले स्थाई राजधानी गैरसैंण जरूरी नहीं लगती, उनको खंडूडी जरूरी लगता है। भाजपा के आला नेताओं को इतना भी ज्ञान नहीं है कि प्रदेश की जनता ने यह राज्य किसी खंडूडी, तिवारी या निशंक जेसे घोर पदलोलुप नेताओं के लिए नहीं बनाया। जिन्होंने उत्तराखण्ड के सम्मान, हक हकूकों व चरित्र को अपनी पदलोलुपता, जातिवादी-क्षेत्रवादी व भ्रष्टाचार का संरक्षण देने वाले कुशासन से रौंद दिया है। इसलिए आज उत्तराखण्ड में खंडूडी जेसे पदलोलुपु व कुशासन के प्रतीक नेता की नहीं अपितु लोकशाही को स्थापित करने की कुब्बत रखने वाले परमार जेसे नेतृत्व की जरूरत है। जो अपनी कुर्सी के लिए नहीं अपितु प्रदेश के हितों व विकास के लिए समर्पित हो।
Itna hi jarooro tha to 2009 me hataya kyon ?
ReplyDelete