विश्व में फिर लहराएगा भारतीय परचम

विश्व में फिर लहराएगा भारतीय परचम/
-अपना नाम, भाषा, संस्कृति के बाद दिन,-मास, सम्वत् भी मिटाया आत्मघाती  हुक्मरान
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आज पूरे विश्व में ईसा सन 2012 का डंका बज रहा है। परन्तु विश्व की प्राचीन संस्कृति के ध्वजवाहक भारत व सनातन धर्म मानने वाले आज विश्व की सबसे प्रकृतिनिष्ट व वैज्ञानिक सम्वतसर व दिन माह खुद ही भूल गये है या अपनी मानसिक गुलामी से हेय समझ रहे है। परन्तु संसार में सबसे पहले दिन महिने व वर्ष का  परिचय ही भारतीयों ने किया। भारत में अभी भी ग्रामीण इलाकों में विक्रमी सम्वत व अन्य भारतीय सम्वत् प्रचलित हे। देश की आम नजता को यह भी भान नहीं कि ईसवी सम्वत भारत में 1752 के बाद ही लागू हुआ। आज शर्मनाक ढ़ग से हम इसको ढो रहे हैं। आज हालत यह है कि अपना नाम, भाशा व संस्कृति के बाद दिन-मास सम्वत् भी मिटाया आत्मघाती हुक्मरानों ने । इसी कारण जनता भी आज पष्चिमी संस्कृति की एक प्रकार से पिछल्लगू ही नहीं अपितु गुलाम से भी बदतर हो चूकी है।
भले ही हिन्दूवादी लोग भारत में ईसायत व मुसलिम धर्मान्तरण को लेकर काफी चिंतित हैं। परन्तु आने वाली शता ब्दी यानी 22 वीं शताब्दी पूरे विश्व में हिन्दू धर्म की होगी। भले ही भारत में हिन्दू धर्म के ठेकेदार बने मठाधीश जातिवादी धृर्णित मानसिकता व भगवान को अपने स्वार्थपूति का मोहरा बना कर रखने के कारण आज भी भारत में आम जनमानस हिन्दू धर्म की तरफ मुंह फेरता नजर आता हो या देश की सरकारे विश्व के इस सबसे प्राचीन भारतीय संस्कृति को दफन करने का आत्मघाति शिक्षा का षडयंत्र करके भारत की संतति को भारतीय मूल्यों से हटा कर पश्चिमी मूल्यों का गुलाम बना रही हो। परन्तु इसके बाबजूद आने वाले शताब्दी भारतीय सनातन संस्कृति की है जो जड़ चेतन में परमात्मा के सबसे बडे समाजवादी कालजयी उदघोष से युगों से पूरे विश्व का पथ प्रदर्शन कर रही है। विश्व में संचार क्रांति और वैज्ञानिक क्रांति के कारण पश्चिमी देशों के प्रबुद्व लोगों को अपने जीवन व जिज्ञाशा के तमाम प्रश्नों का समाधान न तो ईसायत में मिल रहा है व नहीं इसका समाधान मुसलिम धर्म सहित अन्य किसी प्रमुख धर्मो में कहीं दूर-दूर तक मिल रहा है। इसी कारण पश्चिमी देशों के प्रखर स्वतंत्र विचारक व प्रबुद्वजन वैज्ञानिक व जीवन पद्वति के तमाम जिज्ञाशा को शांत करने में सबसे अनकुल पाते हे। इसी कारण विश्व के तमाम प्रबुद्व लोग बढी संख्या में भारतीय जीवन पद्वति को अपना रहे है । मामला चाहे योग का हो या आध्यात्म का विश्व में वर्तमान में भी भारतीय जीवन दर्शन के संतों ने पूरे विश्व को अपने प्रभाव में ले रखा है। इससे ईसायत व मुसलिम धर्मालम्बी मठाधीशों के माथे पर शिकन साफ दिखाई दे रही है। हालत यह हो गयी है कि चर्चो में प्रबुद्व जनों की विमुखता बढ़ती जा रही है।
वहीं दूसरी तरफ भारत मंें देश के हुक्मरानों की पश्चिमी जीवन दर्शन की अंधे मोह के कारण भारतीय जीवन पद्वति को बुजुर्गा संस्कृति का प्रतीक मानते हुए भारतीय शिक्षा व जीवन पद्वति को जमीदोज कर पश्चिमी शिक्षा, चिकित्सा व कानून व्यवस्था को ही नहीं जीवन दर्शन को भी आत्मसात कर दिया। इसकारण आज देश के बच्चों को भारतीय संस्कार देने के बजाय पश्चिमी संस्कार दिये जा रहे है। देश की भावी संतति को देश के इतिहास, संस्कार व संस्कृति से ही नही भाषा व जीवन मूल्यों से षडयंत्र के तहत दूर किया जा रहा है। इस कारण देश में अधिकाश नौजवान या तो पश्चिमी संस्कृति के चकाचैध में न घर के रहते है व न घाट के तथा कुछ इस विकृति संस्कृति की चपेट में आ कर वाममार्गी बन कर भारतीय संस्कृति के सबसे बडे निंदक व तोड़क बन गये है। शर्मनाक बात यह है कि उनको इस चीज का अहसास जीवन पर्यन्त नहीं होता। क्योंकि भारतीय जीवन दर्शन व संस्कृति से उनको मकाले शिक्षा पद्वति ने उनको मन को इतना मलिन कर दिया होता है कि वे भारतीय दर्शन को सबसे निकृष्ठ समझ कर उसका तिरस्कार करने में वैज्ञानिक दृष्टिकोण व प्रबुद्व समझते हैं।
इन सबके बाबजूद भारतीय संस्कृति के जीवंत मूल्यों के कारण जिस तेजी से पश्चिमी जगत के प्रबुद्व जन भारतीय संस्कृति की तरफ बढ़ रहे हैं उसे देख कर भारत में भी तेजी से भारतीयता के प्रति लोंगों के विचारों मे ं आमूल परिवर्तन आ रहा है। भारतीय संस्कृति के परिवर्तन का अहसास पहले भले ही हरे राम हरे कृष्णा, बालयोगेश्वर महाराज के डिवाइन आंदोलन से हो गया था परन्तु अब जिस तेजी से बाबा रामदेव ने प्राचीन भारतीय योग विज्ञान तथा रविशंकर आदि संतों के चमत्कारी जीवन दर्शन को सुन कर ही पश्चिमी जगत में एक प्रकार का भूकम्प ही आ गया है। वहां एक प्रकार से भारतीय जीवन दर्शन की सुनामी का प्रकोप इतना प्रबल है कि इससे अपने ढह रहे दुर्गो को बचाने के लिए पश्चिम में ईसायत व अरब में मुसलिम जगत के धर्मोचार्य खुल कर योग को धर्म विरोधी बताने की असफल कोशिश कर रहे हैं। इसके बाबजूद लोग जिस तेजी से भारतीयता को आत्मसात कर रहे हैं उससे लगता है कि आगामी शताब्दी भारतीयता की होगी, हिन्दू धर्म, जैन, बोद्व व सिख धर्म के सांझे स्वरूप भारतीय संस्कृति का परचम विश्व में फेहरायेगा। इससे ही भारतीय चिकित्सा पद्वति आयुर्वेद आदि की तरफ तेजी से विश्व समुदाय का ध्यान आकृष्ठ हो रहा है वह आने वाले समय में भारतीय संस्कृति की दिग्विजयी पताका फेहराने का साफ संकेत दे रहा है। इस विश्व में परचम फहराने की ऐतिहासिक सफलता में एकांश भी देश के हुक्मरानों व धार्मिक मठाधीशों का नही अपितु भारतीय संस्कृति के जीवन मूल्यों का आकर्षण का ही एकमात्र योगदान है। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्री कृष्णाय् नमो।

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