तिवारी के शिकंजे से कब मुक्त होगा उत्तराखण्ड

 तिवारी के शिकंजे से कब मुक्त होगा उत्तराखण्ड
रामनगर (प्याउ)। तिवारी द्वारा खुद को दो साल के लिए मुख्यमंत्री बनने की इच्छा प्रकट करने के बाद प्रदेष की राजनीति में एक प्रकार से भूचाल सा आ गया। इससे प्रदेष के आम मतदाताओं में एक संदेष साफ गया कि प्रदेष में कांग्रेस की सरकार बन रही है। जिस प्रकार से तिवारी ने गदरपुर, रामनगर, हल्द्वानी, देहरादून आदि स्थानों में कांग्रेसी प्रत्याषियों के पक्ष में 87 साल की उम्र में भी खुली जीप में बैठ कर प्रचार अभियान चलाया और देहरादून में मतदान किया, उससे प्रदेष की राजनीति में एक प्रकार से जलजला ही उठ गया हे। इसका अहसास प्रदेष के क्षत्रपों को अभी से होने लगा है। भले ही आला नेतृत्व प्रदेष में चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आने के बाद तिवारी को मुख्यमंत्री न भी बनाये परन्तु उनकी उपस्थिति को नकारने का साहस करे यह संभव नहीं है। जिस प्रकार से टिकट बंटवारे में प्रदेष की राजनीति में यकायक कांग्रेस को अपनी भृकुटी दिखा कर तीन टिकटें झटप ली, उससे नहीं लगता कि भावी मुख्यमंत्री के चुनाव के समय कांग्रेस नेतृत्व उनकी पसंद का ख्याल न रखे। खासकर रामनगर में जिस प्रकार से तिवारी ने दो दिन लगा कर अपने विरोधियों को करारा सबक सिखाया, उसकी भी चर्चा कांग्रेसी क्षेत्रों में इन दिनों है। मैने खुद तिवारी की रामनगर यात्रा के 26 जनवरी वाला रोड़ षो को करीबी से देख कर इस बात का अहसास किया कि तिवारी इस उम्र में भी राजनीति से दूर होने के लिए जहां तैयार नहीं हैं वहीं अपने विरोधियों को किसी हाल में सर उठाने का कोई अवसर नहीं देना चाहते है। इससे पहले वे अपने प्रत्याषित दाव के तहत  कांग्रेस के पक्ष में हल्द्वानी में चंद दिनों पहले तक अपनी उपेक्षा से असंतुष्ट समझे जाने वाले प्रदेश के दिग्गज वयोवृद्य नेता व प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी के हल्द्वानी में कभी उनकी सबसे करीबी रही सहयोगी इंदिरा हृदेश के पक्ष में उनको साथ में लेकर खुली जीप में समर्थन यात्रा कर जहां भाजपा को ही नहीं कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को हैरान कर दिया है। तिवारी की इस सक्रियता ने जहां भाजपा की प्रदेश में पुन्न सत्तासीन होने की आशाओं में तिवारी का कांग्रेस विरोध रूपि सहयोग की आश पर बज्रपात हुआ, वहीं कांग्रेस में कई महिनों से बने हरीश रावत व इंदिरा हृदेश के बीच चल रही जुगलबंदी की भी एक प्रकार से चूलें ही हिला कर रख दी। अब इंदिरा हृदेश भी प्रदेश के मुख्यमंत्री की जंग की एक मजबूत दावेदार के रूप में चुनाव परिणाम के बाद ताल ठोक दे तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। तिवारी ने शायद इंदिरा की इसी महत्वकांक्षा को हवा दे कर अपने सबसे प्रबल विराधी हरीश रावत की हसरत पर भी ग्रहण लगाने का काम कर दिया है।
प्रदेश के हितैषियों के बीच पूरी तरह से अलोकप्रिय हो चूके तिवारी के समर्थकों की कांग्रेस के दिल्ली मठाधीशों व प्रदेश में कमी नहीं है। वे तिवारी की सक्रियता से आगामी विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में कांग्रेस की सत्तासीन होने के बाद मुख्यमंत्री के पद पर कोन आसीन होगा इसको प्रभावित करने वाला कारक बनाना चाहते है। जिस प्रकार से तिवारी के नाम पर कांग्रेस आलाकमान को गुमराह करके तीन टिकटो को तिवारी के प्यादों को परोसा गया, उससे प्रदेश की जनता में ही नहीं कांग्रेसी भी गुस्साये हुए है। इन तीनों सीटों पर कांग्रेस की हार का इंतजाम तिवारी के नाम पर कांग्रेस आलाकमान को गुमराह करने वाले कांग्रेसी मठाधीशों ने ही दिया।
इसी कड़ी में तिवारी की हल्द्वानी में कभी अपनी सबसे करीबी सहयोगी रही इंदिरा हृदेश के पक्ष में रोड़ शौ में उतर कर जहां एक तीर से अपने विरोधियों को परास्त करने का काम किया वहीं अपनी सक्रियता को प्रदर्शित करके खुद को भी प्रदेश की सत्ता का एक दावेदार साबित कर दिया। जिस प्रकार से तिवारी ने हल्द्वानी में नैनीताल रोड, एसडीएम दफ्तर, रेलवे बाजार व ताज चैराहे होते हुए लाइन नम्बर 17, आजादनगर, वनभूलपूरा, मंडी बाईपास, शनि बाजार, बरेली रोड, मंगल पड़ाव, कालाढूंगी रोड, जेल रोड, नवाबी रोड होते हुए सौरभ होटल व उसके बाद कुल्यालपुरा तक पंहुचा। पूरे मार्ग पर लोगों ने तिवारी को बहुत ही उत्सुकता से देखा, यह उत्सुकता इंदिरा हृदेश के पक्ष में कहां तक परिवर्तीत होगी यह तो आगामी 6 मार्च को चुनाव परिणाम ही उजागर करेंगे। इस पूरी यात्रा में तिवारी के साथ खुली जीप में उनकी करीबी सहयोगी हल्द्वानी से कांग्रेसी प्रत्याशी इंदिरा हृदयेश, व तिवारी द्वारा कुछ महिनों से चलाये जा रहे निरंतर विकास समिति के झण्डेबरदार भी साथ थे। इस मोके पर तिवारी ने दो टूक शब्दों में कहा कि विकास की सोच केवल कांग्रेस के पास है तथा कांग्रेस ही राज्य का चहुंमुखी विकास करेगी। तिवारी के इन दो टूक ऐलान ने तिवारी की आश से फिर से प्रदेश की सत्तासीन होने की आश लगाये भाजपा के पांवों के तले जमीन खिसक गयी। इसी आश में भाजपा सरकार ने तिवारी सरकार के कार्यकाल में हुए चार दर्जन से अधिक घोटालों की जांच की आंच तक तिवारी की तरफ तक नहीं आने दी। यही नहीं तिवारी को मंचो से जिस प्रकार से भाजपा के मुख्यमंत्री खंडूडी, निशंक ही नहीं केन्द्रीय नेतृत्व भी महिमामण्डित करते हुए, इस रोड़ शो ने भाजपा को तिवारी ने ऐसा करारा सबक सिखाया कि उनके पैरों तले जमीन भी खिसक गयी। सबसे हेरानी की बात यह रही कि भाजपा ने प्रदेश में 2007 में हुआ पूरा विधानसभा चुनाव तिवारी सरकार के कुशासन के खिलाफ ही चुनाव लड़ कर जनांदेश हासिल किया था, परन्तु सत्तासीन होते हुए भाजपा की प्रदेश सरकार कदम कदम पर तिवारी के आर्शीवाद के लिए बेशर्मी से लालायित रही। भाजपा का यह व्यवहार, प्रदेश के हितों पर किये गये कुठाराघातों से आहत उत्तराखण्डियों के जख्मों पर किसी नमक छिडकने से कम नहीं था। प्रदेश की जनता किसी भी तरह से उत्तराखण्ड के हितों को रौंदने वाले तिवारी या उसके प्यादों को प्रदेश में प्रमुख पदों पर आसीन या महिमामण्डित देखना नहीं चाहती ।
सत्ता के लिए भाजपा की यह तिवारी की आरती उतारने वाले व्यवहार लोगों के गले में आज तक भी नहीं उतर रहा है। परन्तु अब तिवारी द्वारा एक ही झटके में चुनावी जंग में विकास की सोच केवल कांग्रेस के पास है तथा कांग्रेस ही राज्य का चहुंमुखी विकास करेगी का ऐलान करके भाजपा के हाथों के तोते ही उडा दिये। तिवारी ने बहुत ही चालाकी से भाजपा सरकार को भी अपने उपर उनके कार्यकाल में हुए तथाकथित घोटालों के निशाने पर ही न आने दिया व समय आते ही भाजपा सहित अपने कांग्रेस में मजबूत हो रहे विरोधियों का चक्रव्यूह ध्वस्थ करने का एक ऐसा पाशा फेंका जिसके दंश से भाजपा व कांग्रेस दोनों ही मर्माहित हैं। तिवारी ने अपने इस दाव से साबित कर दिया कि भले ही
वे बेहद बुजुर्ग हो गये हो परन्तु राजनीति के तिकडम से
वे आज भी अपने विरोधियों को पानी पिलाने का दम
रखते है।

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