टीम अण्णा से भी जनता का मोह भंग


टीम अण्णा से भी जनता का मोह भंग/
-टीम अण्णा ने लगाया अण्णा पर ग्रहण /

नई दिल्ली (प्याउ)। लगता है कि देष से भ्रश्टाचार मिटाने की हुंकार भरने वाली अण्णा हजारे व उनकी टीम से विवादों का जंजाल कम होने का नाम ही नहीं ले रहे है। जिस प्रकार से टीम अण्णा के गठन के साथ ही विवादों ने इसका पीछा नहीं छोडा था। इसका गठन होते ही जिस प्रकार से टीम अण्णा में पिता पुत्र के रूप में षांति भूशण व प्रषांत भूशण दोनों को लिये जाने को जनता ने दिल से स्वीकार नहीं किया था।  अण्णा को चाहिए था कि वह पिता व पुत्र में से केवल एक को ही इस टीम में लेते। देष में वकीलों का अकाल नहीं पड़ा हुआ था। खासकर उत्तराखण्ड के लोग स्टर्जिया भूमि प्रकरण में जिस प्रकार से षांति भूशण ने निषंक सरकार के तारनहार बन कर सामने आये वह भ्रश्टाचार से व्यथित प्रदेष की जनता टीम अण्णा में भ्रश्टाचार मिटाने वाली टीम के अहम सदस्य के रूप में षांति भूशण को मन से स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। परन्तु उसके बाद जेसे जेसे अण्णा हजारे का आंदोलन चला और सरकार ने दमनकारी हथकण्डे अपना कर देष की जनता को सड़कों पर आने के लिए विवष कर दिया था। परन्तु इसके बाद टीम अण्णा के दिगभ्रमित आंदोलन से जनता की वह सब सहानुभूति खो दी जो उसने अण्णा के रामलीला मैदान में आयोजित अनषन प्रकरण से हासिल किया था। खासकर हिसार लोकसभा के उप चुनाव में जिस पकार से केवल कांग्रेस पर अण्णा की टीम ने निषाना साधा और अन्य भ्रश्टाचारियों के विरूद्व एक षब्द तक नहीं कहा, उससे टीम अण्णा के प्रति लोगों का विष्वास धीरे धीरे कम होता गया। इसके बाद किरण वेदी का हवाई जहाज किराया भाड़ा प्रकरण ने लोगों के विष्वास पर गहरी चोट की। भले ही टीम अण्णा के सबसे प्रभावषाली सदस्य अरविन्द केजरीवाल पर आयकर विभाग का सेवानिवृति आदि प्रकरण भी हल्का रहा हो परन्तु लोगों का वह विष्वास जो षुरू में इस टीम पर बना हुआ था वह उसकी जड़ों को कमजोर करने वाला ही साबित हुआ। इस प्रकरण की आंच अभी बुझ भी नहीं पायी थी कि तभी प्रषांत भूशण के कष्मीर वाले बयान ने लोगों के विष्वास पर मानो बज्रपात ही कर दिया। देष की राश्ट्रवादी जनता की भावना पर यह कुठाराघात असहनीय रहा। इन सब प्रकरणों पर अण्णा हजारे की प्रतिक्रिया , देष की उस जनता को जो अण्णा हजारे को देष का महानायक व वर्तमान गांधी मान कर महानायक मान रहे थे, ने पूरी तरह से देष की जनता को निराष ही किया। लोगों को आषा थी कि अण्णा हजारे महात्मा गांधी के पद चिन्हों पर चलकर व राश्ट्रवाद का सम्मान करते हुए किरण वेदी व केजरीवाल के छोटी सी भूल की निंदा करते हुए दोनों को एक एक दिन के उपवास करके प्रायष्चित करने का आदेषारूपि दण्ड देते। वहीं प्रषांत भूशण को टीम अण्णा से तब तक दूर रखते जब तक वह कष्मीर की आजादी देने वाले अपने तथाकथित बयान पर कायम रहते।  परन्तु टीम अण्णा के प्रमुख अण्णा हजारे में इतना भी नैतिक साहस नहीं रहा। वे अपने टीम के सदस्यों का उसी प्रकार बचाव करते रहे जेसे आम आदमी अपने नालायक बेटों की गलती पर गली मोहल्लों में करता रहता है। अण्णा हजारे के इस प्रवृति को देख कर लोगों के मनो में बना महापुरूश की उनकी छवि तार-तार होने लगी। देष की जनता को उनकी भली मनसा व सद चरित्र पर कहीं दूर तक संदेह नहीं था परन्तु जिस प्रकार से टीम अण्णा द्वारा एनजीओ यानी स्वयं सेवक संगठनों को जनलोकपाल के अन्तगर्त नहीं लाने की हटधर्मिता रही उससे जनता को साफ लगा कि दाल में जरूर काला है। टीम अण्णा व स्वयं अण्णा के पास इस बात को कोई सटीक जवाब नहीं था कि जब एक चपरासी से लेकर देष के प्रधानमंत्री तक को वे इसके अंदर लाना चाहते हैं तो क्यों अदने से एनजीओ को इसके अन्तर्गत लाने में किसको परेषानी हो रही है। टीम अण्णा का एनजीओ को इसके अन्तर्गत नहीं लाने की बात किसी के गले नहीं उतर रही थी। लोगों को समझमें नहीं आ रहा था कि जब एनजीओ पाक साफ हों तो उनको इसके अन्तर्गत लाने से टीम अण्णा क्यों डर रही हैं। वहीं इसके बाद रही सही कसर टीम अण्णा व अण्णा हजारे ने उत्तराखण्ड के कमजोर लोकायुक्त की सराहना करने ने कर दी। देष के प्रबुद्व जनों ने जब देखा कि उत्तराखण्ड का लोकायुक्त में तब तक विधायक, मंत्री व मुख्यमंत्री पर तब तक भ्रश्टाचार का मामला ही दर्ज नहीं किया जा सकता है जब तक सभी लोकायुक्त के सदस्य एकमत न हों। इस लोकायुक्त को देषभर में नजीर मानते हुए अण्णा व टीम अण्णा इसका खुल कर समर्थन करते हुए तनिक सी भी नहीं लज्जाये। यह देख कर टीम अण्णा के एक सदस्य की टिप्पणी मुझे हेरान कर गयी जो उन्होंने 11  को दिल्ली के जंतर मंतर पर पर मेरे द्वारा इस प्रकरण पर उनके विचार जानना चाहे। उन्होंने दो टूक षब्दों में मेरे द्वारा दिये गये, लोकायुक्त विधेयक के प्रावधानों को पढ़ते हुए का पेष किया। उन्होने सच्चाई जग जाहिर कर दी कि यह विधेयक का यह प्रावधान अण्णा हजारे ने पढ़ा ही नहीं होगा। उनको केवल मोहरा सा बनाया गया है । जो अरविन्द केजररीवाल तय करते है वहीं टीम व अण्णा कार्य करते है। भले ही यह लोकपाल विधेयक लोकसभा में पारित हो कर राज्यसभा में पारित नहीं हो पाया, इसको कमजोर बता कर उसका उपहास उडाया जा सकता है परन्तु सरकार की इसको पारित करने की प्रतिबधता को ना नुकुर करके टीम अण्णा को स्वीकार करनी चाहिए। परन्तु टीम अण्णा की गलत सलाह पर अण्णा हजारे ने जो अनषन मुम्बई में प्रारम्भ किया उसमें न तो जनता ही प्रभावित हो पायी व नहीं सरकार। इसके बाद जिस प्रकार से अण्णा ने अपना अनषन व अपने पांच राज्यों में हो रहे विधानसभाई चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करने का भी ऐलान लोगों के गले नहीं उतरा। 
    देष से भ्रश्टाचार मिटाने की
हुंकार भरने वाली अण्णा हजारे व उनकी टीम को उस समय एक और करारा झटका लगा जब टीम के सबसे वयोवृद्व सदस्य व देष के पूर्व कानून मंत्री शांतिभूषण पर संपत्ति खरीदने के दौरान 1.35 करोड़ रुपए की स्टांप ड्यूटी नहीं चुकाने पर इलाहाबाद के सहायक स्टांप आयुक्त केपी पांडेय ने 27 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया है। हालांकि षांति भूशण ने इस फेसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करने का ऐलान किया। सहायक स्टांप आयुक्त के अनुसार पूर्व केंद्रीय मंत्री भूषण ने सिविल लाइंस इलाके में एक प्रॉपर्टी खरीदी और 7818 वर्ग मीटर क्षेत्रफल की इस संपत्ति के लिए अब तक 46,700 रुपए का भुगतान किया है। उन्हें एक महीने के अंदर बकाया राशि और जुर्माना जमा करना होगा। इसके साथ ही षांति भूशण को 29 नवम्बर 2010 से डेढ़ प्रतिशत की दर से ब्याज भी जमा करना होगा। पांडेय ने कहा कि उन्हें पूरी राशि एक महीने में जमा करनी है। ऐसा नहीं किए जाने पर विभाग आगे की कार्रवाई शुरू करेगा। विवाद की जड़ इस बंगले में 1970 में शांतिभूषण रहते थे। बाद में वह नई दिल्ली में रहने लगे। इसी पर कब्जे को लेकर उनका इसके मालिक से लम्बा विवाद हुआ। इसे लेकर लंबी कानूनी लड़ाई हुई और नवम्बर 2010 में एक समझौते के बाद उन्होंने वह संपत्ति खरीद ली। विभाग का आरोप है षांतिभूशण ने इस सम्पति का मूल्य काफी कम करके इसकी  स्टांप डयूटी चुकायी, जो अब उनके लिए जंजाल बन गया है।
कुल मिला कर टीम अण्णा के साथ साथ अण्णा हजारे के प्रति लोगों के विष्वास में जो यकायक ज्वार भाटे की तरह कमजोरी आयी उसके बाद अण्णा ने न केवल अपने तीन दिवसीय अनषन को दूसरे दिन ही समापन कर दिया अपितु चार राज्यों में चुनाव प्रचार का कार्यक्रम स्थगित करने की बात से भी टीम अण्णा काफी कमजोर हो गयी। खासकर महाराश्ट्र के मुम्बई नगरपालिका के लिए हुए चुनावों में षरद पवार को मिली विजय से साफ संदेष मिल गया था कि लोगों को प्रभावित करने के लिए टीम अण्णा कहीं तक सफल नहीं हो रहे है। इसी कारण पांच राज्यों में हो रहे चुनाव प्रचार भी बंद करना पड़ा। वेसे भी उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड व पंजाब में कहीं भी अण्णा हजारे का प्रभाव वेसे भी न के बराबर दिखाई दे रहा है। खासकर उत्तराखण्ड के लोकायुक्त बिल का खुला समर्थन करके टीम अण्णा की ख्याति पर ग्रहण सा लग गया है।इसके बाद संसद के षीतकालीन सत्र में जब संसद में लोकपाल मामला षुरू होने पर भी टीम अण्णा का मुम्बई में अनषन करने की हटधर्मिता लोगों के गले नहीं उतरी। इन सब कारणों को देख कर एक ही बात स्पश्ट होती है कि देष की जनता के विष्वास के ज्वार को संभालने में सफल नही हुए अण्णा । अगर टीम अण्णा को हकीकत में देष में लोकषाही का सम्मान करने व भ्रश्टाचार से लड़ने की इच्छा है तो उनको लोकपाल बिल में एनजीओं को सम्मलित करने व सीबीआई को इसके तहत लाने की जिद्द छोड़ देनी चाहिए। जब केग बिना सीबीआई युक्त हुए देष में हर साल बडे बडे घोटाले बेनकाब करता है तो लोकपाल के अंदर सीबीआई लाने की जिद्द करना कहीं तर्क संगत नहीं दिखाई दे रही है। 

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