सरकारी आतंक से लोकशाही के ध्वजवाहक अण्णा हजारे के आंदोलन व लोकशाही को रौंद रही है मनमोहनी सरकार

मनमोहन सरकार का दमनकारी चेहरा देख पूरा विश्व स्तब्ध/
सरकारी आतंक से लोकशाही के ध्वजवाहक अण्णा हजारे के आंदोलन व लोकशाही को रौंद रही है मनमोहनी सरकार/
लोकशाही के सर्वोच्च हृदय स्थल राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर भी लगा मनमोहनी अंकुश/



देश के 65 वें स्वतंत्रता दिवस के एक दिन बाद 16 अगस्त 2011 को भारतीय हुक्मरानों का लोकशाही का दमन करने वाला ऐसा विकृत मनमोहनी चेहरा सामने आया उससे अमेरिका सहित पूरा विश्व स्तब्ध हो गया। अमेरिका ने पहले ही अण्णा हजारे के शांतिपूर्ण आंदोलन को करने की इजाजत देने की आशा प्रकट कर मनमोहन सरकार को दुविधा में डाल दिया था। अण्णा हजारे के आंदोलन के समर्थन में व मनमोहन सरकार के दमनकारी नीतियों के खिलाफ भारत में ही नहीं सुयंक्त राष्ट्र मुख्यालय की चैखट पर आंदंोलनकारी अपना विरोध प्रकट कर रहे है।
देश की व्यवस्था को भ्रष्टाचार से बचाने के लिए जनलोकपाल कानून बना कर प्रधानमंत्री से लेकर न्यायपालिका को इसके तहत लाने की मांग करके देश व्यापी जनांदोलन करने जा रहे देश के अग्रणी गांधीवादी नेता अण्णा हजारे को 16 अगस्त से दिल्ली में आमरण अनशन न करने देने पर दमन पर उतारू केन्द्र की मनमोहन सरकार ने देश की लोकशाही का एक प्रकार से गला ही घांेट दिया है। देश में शांतिपूर्ण ढंग से देश की रक्षा के लिए आंदोलन करेन वालों पर 4 ंजून को बाबा रामदेव के आंदोलन की तरह ही पुलिसिया दमन के बल पर कुचलने को उतारू मनमोहनी सरकार ने विश्व में भारतीय लोकशाही को कलंकित कर दिया है। पुलिस ने 16 अगस्त की सुबह ही न केवल अण्णा हजारे को दिल्ली मयूर विहार स्थित सुप्रीम इन्कलेव से बाहर कदम रखते ही गिरफतार करके अपनी दमनकारी मुखोटा खुद ही बेनकाब कर दिया। इसके साथ ही पुलिस ने अन्ना हजारे व उनके साथी अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी व हजारों आंदोलकारियों को गिरफतार कर दिया है। आंदोलनकारियों को छत्रसाल स्टेडियम में अस्थाई जेल में बंद कर रखा गया है। इसके विरोध में अन्ना ने पूरे देश में जनांदोलन छेड़ने की खुली अपील की। सरकार के इस लोकशाही को रौंदने वाले कदम से पूरे देश में लोग प्रचण्ड विरोध कर रहे हैं। वहीं तमाम विरोधी दलों ने इसे अघोषित आपातकाल बता कर इसके पुरजोर विरोध का ऐलान किया।
अण्णा व साथियों की गिरफतारी से अधिक सबसे शर्मनाक बात तो यह है कि संसद की चैखट, राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर दिल्ली में अब कोई 12घण्टे भी आंदोलन नहीं कर सकता। पुलिस उसे खदेड़ देती है। यह लोकशाही की निर्मम हत्या है। तानाशाही है जिसको लगाने वाले व सहने वाले देश की लोकशाही के दुश्मन है। देश के कोने कोने से लोग यहां पर न्याय की आश लेकर आंदोलन करने आते हैं यहां पर उन फरियादियों की समस्या का निराकरण करना तो रहा दूर देश के हुक्मरान उस फरियादियों को अपनी बात कहने या 12 घण्टे तक का भी आंदोलन करने की इजाजत तक नहीं दे रही है। इन दिनों 18 जुलाई से यहां पर पृथक राज्य कूच बिहार की मांग को लेकर 81 ंआंदोलनकारी आमरण अनशन पर बैठे हैं परन्तु क्या मजाल है कि सरकार उनकी मांग जरा भी सुने। सुनना तो रहा दूर सरकार सैकड़ों किमी दूरस्थ क्षेत्रा ें से आने वाले आंदोलनकारियों को सांय 5 बजे बाद वहां से खदेड़ देती है। यह एक प्रकार की तानाशाही ही नहीं सरकारी आतंकवाद है, जिस मनमोहनी सरकार अपनी पुलिस प्रशासन की लाठी व गोली के बल पर लोकशाही के समर्थकों को कुचल रही है। इसी सरकारी आतंकबाद के दम पर जनविरोधी मनमोहन सरकार ने विदेशों में छुपाये काले धन को वापस भारत लाने की हजारों देशभक्तों के साथ शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे विश्व विख्यात योग गुरू स्वामीराम देव को मध्य रात्रि में पुलिसिया दमन से खदेड़ कर उनके आंदोलन को रौंद दिया । वहीं शांतिपूर्ण तरीके से देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को व्यवस्था के सभी महत्वपूर्ण संस्थानों से दूर करने के लिए जनलोकपाल विधेयक बनाने की मांग कर रहे गांधीवादी नेता वयोवृद्व अण्णा हजारे के 16 अगस्त 2011 से जंतर मंतर पर आहुत आमरण अनशन के ऐलान पर उनकी मांग पर गंभीरता से ध्यान देने के बजाय सरकार उनको ही आंदोलन की इजाजत ही न देकर प्रताडित करने का निकृष्ठत्तम कार्य कर रही है। लगता है इस देश में सरकार जनतंत्र को सरकारी आतंक के दम पर गला घोंटने का कृत्य कर रही है। लगता है कांग्रेस अतीत में इंदिरा गांधी द्वारा लगाये गयी तानाशाही के बाद जनता के आक्रोश के परिणाम से सबक लेने के लिए तैयार नहीं है। इंदिरा गांधी ने तो जनहितों का सैदव ध्यान रखा वहीं मनमोहन को सपने में भी अमेरिका के अलावा किसी के हितों की भान तक नही ंरहती होगा। अगर उनमें जरा भी लेशमात्र भी देश भक्ति होगी तो वे देश के अपने हाल में छोड़ कर तत्काल राजनीति से स्तीफा देने का काम करना चाहिए। आने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया होना निश्चित है। लोकशाही का गला घोंटने वाला कृत्य का विरोध करने वाली आम जनता, विपक्ष, मीडिया व जागरूक समाजसेवी को शतः शतः नमन्।।

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