-आखिर कब होगा भारत में आजादी का सूर्योदय



हम भारतीय पिफरंगियों से मिली स्वतंत्राता की 64 वीं वर्षगांठ पूरे देश में बहुत ही ध्ूमधम से मनाने जा रहे है। परन्तु मै छह ं दशकों से आज भी भारत अपनी आजादी के सूर्योदय को देखने के लिए भी तरस रहा है। क्या इसी चंगेजी व भारतीय अस्मिता को मिटाने वाले राज को आजादी कहते है? क्या आम जनता को लुटने वालों को गणतंत्रा के सेवक कहते है? क्या देश को गुलामी से बदतर गुलाम बनाने वाले तंत्रा को गणतंत्रा कहते है? मेरा भारत आजादी के छह दशक बाद भी आज अपनी आजादी को तरस रहा है। आजादी के नाम पर पिफरंगी नाम इंडिया व पिफरंगियों की जुबान अंग्रेजी तथा देश को जी भर कर लुटने की पिफरंगी प्रवृति के अलावा इस देश को क्या मिला? आज भारत को न तो विश्व में कोई उसके नाम से पहचानता है व नहीं उसकी जुबान से। आज भी भारतीय पहचान व सम्मान को उसी बदनुमा पिफरंगी गुलामी के कलंक के नाम से जाना जा रहा है। आजादी के छह दशक बाद हमारी स्वतंत्राता के समय ही अपना सपफर नये ढ़ग से शुरू करने वाले इस्राइल, चीन व जापान आज विश्व की महाशक्तियां बन गयी है। परन्तु हम कहां खड़े हैं गुलामी के कलंक को ढोने को ही अपनी प्रगति समझ कर इतरा रहे हैं? आजादी के नाम पर यह कैसा विश्वासघात मेरे देश के साथ? अगर आज देश की शर्मनाक स्थिति को अमर शहीद सुभाषचन्द्र बोस, चन्द्र शेखर आजाद, भगतसिंह, वीर सवारकर, महात्मा गांध्ी देख रहे होते तो उनकी आत्मा भी खून के आंसू बहाने के लिए विवश होती? देश को दिया क्या यहां के हुक्मरानों ने? देश को अमेरिका, चीन, पाकिस्तान के षडयंत्रकारियों के लिए आखेड़ का मैदान बना दिया है। आज चीन व अमेरिका अपने प्यादे पाकिस्तान, बंगलादेश व नेपाल के द्वारा हमारी गैरत को रौंद रहे है? परन्तु देश के हुक्मरान कहां सोये है? उसी समय कुछ खबरों ने मुझे और बैचेन कर दिया। पूरे देश में मंहगाई से त्राही-त्राही मची हुई है परन्तु देश के हुक्मरान नीरो बन कर भारतीय स्वाभिमान को कलंकित करने वाले राष्ट्रमण्डलीय खेल की तैयारियों में ही जुटे थे । उनको मंहगाई से त्रस्त जनता की वेदना कहीं दूर तक भी नहीं सुनाई दे रहा है। देश में सरकार व विपक्ष नाम की कोई चीज ही नहीं रह गयी है। जनता मंहगाई, भ्रष्टाचार से त्रास्त है।
भ्रष्टाचार के आरोपों से बदरंग हुए देश की एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाध्ीश को बचाने के लिए जातिवाद की दुहाई दी जा रही है। देश के वरिष्ठ राजनेता के कृत्यों ने न केवल राज्यपाल की गरीमा को ध्ूल में मिटा कर बहुत ही निर्लज्जता से अपने आप को बेकसुर बता रहा है। हमारी संसद में सत्तारूढ़ दल का एक वरिष्ठ सांसद की नागरिकता पर देश की सर्वोच्च जांच ऐजेन्सी सीबीआई ही प्रश्न उठा रही है? देश के सबसे बड़े राज्य उप्र की विधानसभा के एक सम्मानित विधयक का घर चोरी की गाडियों को छुपाने का अड्डा निकला? विधयक पर पुलिस वाहन चोरी का सतराज होने का आरोप लगा रही है? हमारे नौकरशाहों के पास ही नहीं हमारे सेना के कई वरिष्ठ अध्किारी, इंजीनियर व चिकित्सकों के पास भी भ्रष्टाचार से सन्ना अकूत सम्पदा का भण्डार बना हुआ है। देश के अध्किांश मंत्राी ही नहीं संतरी अपने निहित स्वार्थो में लिप्त रह कर भारतीय हितों को दाव पर लगाने का आत्मघाति कृत्य भी कर रहे है। यही नहीं देश के करोड़ों बच्चों को न तो समुचित शिक्षा, चिकित्सा, सम्मान तथा न तो न्याय ही मिल रहा है? देशद्रोहियों को न्यायालय द्वारा मौत की सजा सुना देने के बाबजूद देश के हुक्मरानों का हाथ इतना कमजोर है कि वे निशाचरों को सजा नहीं दे पा रहे है। यह सब देख सुनने के बाद एक ही सवाल उठता है कि हमारा देश वास्तव में स्वतंत्रा हैं या देश में हकीकत में गणतंत्रा है?
े परन्तु उपरोक्त कविता की पंक्तियों मेरे जेहन में दशकों से रह रह कर सर उठा कर मुझे बेचैन करती है। कहां है भारतीय गणतंत्र? यह सवाल मुझें काफी कचोटता है। मैं अपने आप से सवाल पूछता हॅू कि यह गणतंत्र किसके लिए है? मैने अपनी जिन्दगी के 45 सालों में जो देखा व समझा तथा जाना उससे एक ही बात मुझे समझ में आयी कि यह भारतीय गणतंत्रा नहीं हे? इसके लिए कौन जिम्मेदार...... और कोई नहीं हम सब है। इसी आक्रोश को प्रकट करने के लिए मेने 21 अप्रेल 1989 को संसद की दर्शक दीर्घा से देश के हुक्मरानों को ध्क्किारा था। परन्तु इसके बीस साल बाद हालत बद से बदतर हो गयी है। संघ के राष्ट्रवाद का नकाब ओढ़े स्वयं सेवक ;रूपि कालनेमी वाजपेयी व आडवाणी जैसेद्ध जब राजग के कार्यकाल में इंडिया राइजिंग व साइनिंग का तोता रटन लगाने लगे तो देश भोंचंक्का व ठगा सा रह गया। कांग्रेस ने तो लगता है भारतीय स्वाभिमान को गांधी जी के सपनों के भारत के साथ राजघाट में दपफना दिया था। लोग कांग्रेस से निराश थे परन्तु जब जनता से संघ के स्वयं सेवको ने राष्ट्रवाद के नाम पर पदलोलुपता व जातिवाद का कलुषित तांडव एनडीए के शासक के रूप में मचाया तो देश की आम जनता की आशाओं पर बज्रपात हुआ। आज दुर्भाग्य यह है कि देश की आम जनता को देश की जुबान में सर्वोच्च न्यायालय में न तो न्याय ही मिल सकता है व नहीं सम्मान। इस देश में आज आम जनता की पंहुच से न्याय, रोजी रोटी, चिकित्सा व शिक्षा सब बाहर हो गयी है। सबकी सब महत्वपूर्ण संस्थानों पर थैलीशाहों चंगेजों का बर्चस्व हो गया है। कौन दिलायेगा भारतीय जन को उसका अपना गणतंत्रा? हम सब उस दीमक के समान हो गये हैं जो जिस पेड़ पर निवास करता है उसी को खोखला करने में लगा रहता है? युगान्तकारी तत्वदर्शी व आजादी के परम सिद्वहस्त संत काला बाबा सच ही कहते थे कि देवी इस देश में अब विद्या व्यापार, सत्ता व्यापार व धर्म व्यापार में तब्दील हो गया है।
आज अटल व मनमोहन सिंह की सरकारों की घोर पदलोलुपता के कारण देश अमेरिका का अघोषित उपनिवेश पाकिस्तान की तरह बन गया है। मनमोहन जैसे प्रधनमंत्राी के कुशासन में देश की आम जनता का मंहगाई, आतंकबाद व भ्रष्टाचार के कारण जीना दूश्वार हो रखा है। देश में लोकशाही की हालत इतनी शर्मनाक है कि संसद की चैखट राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर देश भक्तों को देश हित में 12 घंटे लगातार भी आंदोलन करने की इजाजत यहां की लोकशाही की दंभ भरने वाली सरकार नहीं दे रही है। देश हित की बात करने वाले बाबा राम देव व अण्णा हजारे को प्रताडित व दमन करने में यहां की सरकार जरा सी भी शर्म महसूस नह ीं कर रही है।
यहां आजादी तो गुलामी से बदतर हो गयी है? कैसे मिलेगी देश की आजादी को इन चंगेजो के शिकंजे से मुक्ति? क्या आज भारत में साठ प्रतिशत लोग जो गरीबी की रेखा से नीचे जीवन बसर करने के लिए विवश है उनके लिए इस देश की आजादी का क्या अर्थ रह गया है? देश की सुरक्षा पूरी तरह से जहां विदेश शत्रु से खतरे में पड़ी हुई हैं वहीं इन हुक्मरानों से पूरी तरह लुटी जा रही है। एक नया सवेरा होगा.....विश्वास है भगवान श्री कृष्ण के बचनों पर यदा यदा ही धर्मस्य........। इसी आश में मैं निरंतर इन चंगैजी हुक्मरानों के खिलापफ जन जागरूकता का प्यारा उत्तराखण्ड रूपि शंखनाद कर रहा हॅॅू। शेष श्री कृष्ण कृपा, हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।

Comments

  1. सराहनीय प्रयाश रावत जी .. प्यारा उत्तराखंड से हमेशा एक आम भारतीय की हूक निकलती है इससे सभी पाठकों में एक जनजागृति का वास होता है इससे बढ़िया और देश सेवा क्या हो सकती है ...

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