-कूच बिहार पृथक राज्य के गठन पर सरकार व मीडिया का शर्मनाक मौन

-कूच बिहार पृथक राज्य के गठन पर सरकार व मीडिया का शर्मनाक मौन/
-18 जुलाई से संसद की चैखट पर आमरण अनशन /
प्यारा उत्तराखण्ड समाचार सेवा-

देश की सरकार लोकशाही का किस शर्मनाक ढ़ंग से गला घोंट रहा है इसका एक उदाहरण है कूच बिहार पृथक राज्य की मांग को लेकर 18 जुलाई से 81 सदस्यीय ग्रेटर कूच बिहार के 81 आंदोलनकारी संसद की चैखट ंजंतर मंतर पर आमरण अनशन कर रहे हैं। पर क्या मजाल है सरकार इस मामले की तरफ जरा सा भी ध्यान दे। सरकार तो रही दूर यहां की मीडिया भी इस शांतिपूर्ण आंदोलनकारियों की जिस ढ़ंग से उपेक्षा कर रहा है उससे देश की मीडिया का वास्तविक चेहरा पूरी तरह से बेनकाब हो जाता है। इससे साफ हो गया कि देश की सरकार व मीडिया दोनों की नजरों में शांतिपूर्ण आंदोलनों व जनहितों की कोई कीमत नहीं है। इस देश का हुक्मरान, मीडिया व जनमानस यहां केवल हिंसक आंदोलनों की भाषा ही समझता है । इससे शर्मनाक बात क्या हो सकती है कि प्रशासन इन आमरण अनशनकारियों को सांय यहां से चले जाने के लिए विवश करके
लोकशाही का गला ही घोंट रही है । लोकशाही की दुहाई देने वाली कांग्रेस व मुख्य विपक्षी दल भाजपा आदि के कानों में भी कूच बिहार के उपेक्षित लोगों की समस्या सुनने व जानने के लिए एक पल की भी फुर्सत तक नहीं है ।
तेलांगना राज्य गठन की मांग व दूसरा है पृथक कूच बिहार राज्य की मांग । तेलांगना का मामला जग जाहिर है। परन्तु जिस कूच बिहार को अगल राज्य बनाने का लिखित समझोता 28 अगस्त 1949 को भारत की तत्कालीन सरकार व कूच बिहार के महाराजा के बीच में हुआ था, उस वायदे को पूरा करने में 62 साल बाद भी देश की सरकारें पूरी तरह से असफल रही है।
इसी मांग को लेकर कूच बिहार के लोग दशकों से शांतिपूर्ण ढ़ंग से आंदोलन कर रहे है परन्तु क्या मजाल है देश की सरकार क्या मीड़िया तक के कान में जूूॅं तक रेंगी हो। गत कई वर्षो से लगा तार संसद की चैखट पर वायदा निभाओं कूच बिहार राज्य बनाओं की मांग को लेकर कूच बिहार के सैकड़ों लोग बंगाल से सैकड़ों किमी का सफर करके दिल्ली में महिनों तक आंदोलन करने आतें है। अब तक जंतर मंतर के इतिहास में सबसे शांतिप्रिय आंदोलन करने का कीर्तिमान स्थापित करने वालों की इतनी शर्मनाक उपेक्षा देख कर देश की लोकशाही पर ही प्रश्न खड़े होते है साथ में देश की मीडिया का भी असली चरित्र उजागर होता है । देश में आजादी के बाद जनहितों व आंदोलनों की यह शर्मनाक उपेक्षा देश के लिए किसी कलंक से कम नहीं है।

Comments

Popular posts from this blog

-देवभूमि की पावनता की रक्षा की फिर भगवान बदरीनाथ ने- निशंक के बाद मनंमोहन को भी जाना होगा