-शीला को अभयदान दे कर जनता की नजरों में गुनाहगार हुई कांग्रे


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-शीला के कुशासन में खून के आंसू बहा रही है आम जनता/
राष्ट्रमण्डल खेलों के नाम पर देश के संसाधनों की जो खुली लुट हुई उसके खलनायकों को बेनकाब करते हुए भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी कैग की रिपोर्ट को देख कर पूरा देश स्तब्ध है। देश की जनता ने देखा कि किस प्रकार गुलामी के प्रतीक राष्ट्रमण्डल खेल कराने के नाम पर देश के विकास के संसाधनों की चंद नेताओं व नौकरशाहों ने मिल कर बंदरबांट की।
सबसे हैरानी की बात यह है कि जिस प्रकरण में इन खेलों के प्रमुख रहे कलमाड़ी को ऐसी ही अनिमियताओं के कारण जेल में बंद किया गया है ठीक उसी प्रकार की अनिमियताओं के लिए दोषी दिल्ली प्रदेश की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को बचाने के लिए पूरी कांग्रेस तमाम प्रकार के कुतर्कों का सहारा क्यों ले रही है।
देश की जनता चाहती है कि जो कोई भी इन भ्रष्टाचारों के खिलाफ है उनकी सम्पति को जब्त किया जाना चाहिए। शीला दीक्षित अगर बेगुनाह है तो इसका पफैसला न्यायालय करे न की कांग्रेस। कांग्रेस को चाहिए कि जिस प्रकार से आदर्श घोटाले से लेकर अन्य प्रकरणों में उससने अविलम्ब हुक्मरानों को न्यायालय के दर पर न्याय के लिए सपुर्द किया ठीक उसी तरह शीला दीक्षित को भी न्यायालय के दर पर छोडना चाहिए। अगर शीला को इस प्रकार शर्मनाक संरक्षण कांग्रेस देगी तो यह साफसंदेश जायेगा कि कांग्रेस भ्रष्टाचार को संरक्षण दे रही है। कर्नाटक व उत्तराखण्ड में हो रहे भ्रष्टाचार से जहां भाजपा पूरी तरह जनता के समक्ष बेनकाब हो चूकी है वहीं कांग्रेस ने शीला व उनके मंत्री राजकुमार के मामले में जो रस्ता अखित्यार कर रखा है वह आत्मघाति है। शीला दीक्षित के कुशासन से दिल्ली की आम जनता जो दशकों से कांग्रेस का जनाधार रही थी वह आज कांग्रेस से दूर हो गयी है। कांग्रेस के इस कुशासन के प्रतीक बनी शीला के राज में लोग खून के आंसू बहाने के लिए विवश है। शीला राज में दिल्ली की परिवहन इस तरह से लोगों को खुली लूट रही है । दोपहर के समय वातानुकुलित बसों को ही प्रायः सडकों पर उतारा जाता है जिससे आम गरीब आदमी को या तो घंटों इंतजार करना पडता या उसको अपना पेट काट कर शीला की नादिरशाही परिवहन व्यवस्था का शिकार होना पडता है। दिल्ल्ली परिवहन निगम की हरी रंग की ये सामान्य बसें बारह बजे के बाद साढे तीन तक ऐसे गायब होती है जैसे सियार के सर से सींग।
न तो इसका भान विपक्षी दल भाजपा को है व नहीं देश की जनसमस्याओं व लोकशाही का चैथा स्तम्भ समझे जाने वाले मीडिया को। दोनों अब आम जनता के दुख दर्द को समझने की परिधी से कोसों दूर हो गये है। आम जनता इस कुव्यवस्था से किस प्रकार लूट रही है। दूसरी तरफ सरकार को इस बात तक का भान तक नहीं है कि सडकों पर ये बसे सही ढंग व सुचारू रूप में सही समय अंतराल से चल भी रही है यह नहीं। शीला सरकार ने किस प्रकार राष्ट्रमण्डल खेलों के नाम पर जनता के धन का जो खुला दुरप्रयोग किया वह अगर कांग्रेसी हवाई मठाधीश बने जनार्जन दिवेदी को सामान्य लगे तो लोग उनकी मानसिकता पर आंसू बहाने व कांग्रेसी नेतृत्व की बुद्वि पर तरस खाने के अलावा क्या कर सकते है।

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