उत्तराखण्ड की आशाओं को रौंदने के गुनाहगार हैं भाजपा व कांग्रेस के मुख्यमंत्री
उत्तराखण्ड की आशाओं को रौंदने के गुनाहगार हैं भाजपा व कांग्रेस के मुख्यमंत्री
इन दस सालों में प्रदेश ने जहां कांग्रेस का एक मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी पांच साल तक प्रथम निर्वाचित सरकार के आलाकमान द्वारा थोपे गये मुख्यमंत्री रहे। वहीं भाजपा के स्वामी, भगतसिंह कोश्यारी, भुवनचंद खंडूडी व रमेश पोखरियाल रहे। खंडूडी दो साल बाद फिर चंद महिनों के लिए मुख्यमंत्री बनाये गये। भाजपा के भी सभी मुख्यमंत्री आलाकमान द्वारा अभी तक थोपे गये। कांग्रेसी जहां इतरा रहे हैं कि भाजपा ने पांच सालों में 5 मुख्यमंत्री बनाये व कांग्रेस ने एक ही । परन्तु ये सब भूल गये कि उत्तराखण्ड के पडोसी प्रदेश हिमाचल में गत 40 सालों में केवल 5 ही मुख्यमंत्री हुए। अधिकांशों ने हिमाचल को विकास की दोड़ में जहां मजबूत किया वहीं हिमाचल को देश का सबसे ईमानदार व शांत विकासोनुमुख राज्य बना दिया।
कांग्रेस केे इसी एक ने तो पूरे प्रदेश के वर्तमान पर ही नहीं भविष्य पर अपनी मानसिक कुंठाओं व संकीर्णताओं तथा पदलोलुपता का ऐसा खतरनाक ग्रहण लगा दिया है भाजपा के पांचों महारथी उस ग्रहण में ही फंस कर प्रदेश की जनता की आशाओं पर बज्रपात कर गये। स्वामी से आशा करनी भी बेईमानी है वहीं कोश्यारी को तो समय ही नही ं मिला कुछ करने का। वहीं भाजपा के खंडूडी व निशंक जैसे महारथी के कुशासन ने उत्तराखण्डी आशाओं पर ग्रहण लगाया। इसके साथ भाजपा व कांग्रेस के इन सुरमाओं ने उत्तराखण्ड के हितों के लिए नहीं अपितु अपने कुसी्र्र बचाने के लिए ही अपना सारा समय व साधन लगाये।
उत्तराखण्ड राज्य की आशाओं पर भाजपा व कांग्रेसी इन सूरमाओं ने अपने दलगत संकीर्ण स्वार्थों के खातिर विधानसभाई क्षेत्रों का जनसंख्या पर आधारित परिसीमन थोपा। उत्तराखण्ड के आत्म सम्मान को मुजफरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को दण्डित कराने के बजाय इनको शर्मनाक संरक्षण दिया गया। प्रदेश की जनांकांक्षाओं को साकार करने व लोकशाही के प्रतीक राजधानी गैरसैण बना ने के बजाय इन राजनेताओं ने इन दस सालों में बलात राजधानी देहरादून में थोप दी है। स्थाई राजधानी के ऐलान से पहले गुप चुप देहरादून में राजधानी के तमाम महत्वपूर्ण भवनों का निर्माण करके प्रदेश की लोकशाही के साथ शर्मनाक विश्वासघात किया गया। प्रदेश में सदियों से चली आ रही सामाजिक सौहार्द के विश्वास को इन दलीय मोहरों ने जातिवाद व क्षेत्रवाद की अंधी खाई में धकेल कर प्रदेश को भ्रष्टाचार की गर्त में न केवल धकेला गया अपितु अपने आकाओं व प्यादों के लिए यहां के संसाधनों को लुटाया भी गया ।
इन दस सालों में प्रदेश ने जहां कांग्रेस का एक मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी पांच साल तक प्रथम निर्वाचित सरकार के आलाकमान द्वारा थोपे गये मुख्यमंत्री रहे। वहीं भाजपा के स्वामी, भगतसिंह कोश्यारी, भुवनचंद खंडूडी व रमेश पोखरियाल रहे। खंडूडी दो साल बाद फिर चंद महिनों के लिए मुख्यमंत्री बनाये गये। भाजपा के भी सभी मुख्यमंत्री आलाकमान द्वारा अभी तक थोपे गये। कांग्रेसी जहां इतरा रहे हैं कि भाजपा ने पांच सालों में 5 मुख्यमंत्री बनाये व कांग्रेस ने एक ही । परन्तु ये सब भूल गये कि उत्तराखण्ड के पडोसी प्रदेश हिमाचल में गत 40 सालों में केवल 5 ही मुख्यमंत्री हुए। अधिकांशों ने हिमाचल को विकास की दोड़ में जहां मजबूत किया वहीं हिमाचल को देश का सबसे ईमानदार व शांत विकासोनुमुख राज्य बना दिया।
कांग्रेस केे इसी एक ने तो पूरे प्रदेश के वर्तमान पर ही नहीं भविष्य पर अपनी मानसिक कुंठाओं व संकीर्णताओं तथा पदलोलुपता का ऐसा खतरनाक ग्रहण लगा दिया है भाजपा के पांचों महारथी उस ग्रहण में ही फंस कर प्रदेश की जनता की आशाओं पर बज्रपात कर गये। स्वामी से आशा करनी भी बेईमानी है वहीं कोश्यारी को तो समय ही नही ं मिला कुछ करने का। वहीं भाजपा के खंडूडी व निशंक जैसे महारथी के कुशासन ने उत्तराखण्डी आशाओं पर ग्रहण लगाया। इसके साथ भाजपा व कांग्रेस के इन सुरमाओं ने उत्तराखण्ड के हितों के लिए नहीं अपितु अपने कुसी्र्र बचाने के लिए ही अपना सारा समय व साधन लगाये।
उत्तराखण्ड राज्य की आशाओं पर भाजपा व कांग्रेसी इन सूरमाओं ने अपने दलगत संकीर्ण स्वार्थों के खातिर विधानसभाई क्षेत्रों का जनसंख्या पर आधारित परिसीमन थोपा। उत्तराखण्ड के आत्म सम्मान को मुजफरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को दण्डित कराने के बजाय इनको शर्मनाक संरक्षण दिया गया। प्रदेश की जनांकांक्षाओं को साकार करने व लोकशाही के प्रतीक राजधानी गैरसैण बना ने के बजाय इन राजनेताओं ने इन दस सालों में बलात राजधानी देहरादून में थोप दी है। स्थाई राजधानी के ऐलान से पहले गुप चुप देहरादून में राजधानी के तमाम महत्वपूर्ण भवनों का निर्माण करके प्रदेश की लोकशाही के साथ शर्मनाक विश्वासघात किया गया। प्रदेश में सदियों से चली आ रही सामाजिक सौहार्द के विश्वास को इन दलीय मोहरों ने जातिवाद व क्षेत्रवाद की अंधी खाई में धकेल कर प्रदेश को भ्रष्टाचार की गर्त में न केवल धकेला गया अपितु अपने आकाओं व प्यादों के लिए यहां के संसाधनों को लुटाया भी गया ।
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