>षिक्षक दिवस पर षिक्षकों की गरिमा की बहाली का संकल्प लें षिक्षक
षिक्षक दिवस पर षिक्षकों की गरिमा की बहाली का संकल्प लें षिक्षक
आज षिक्षक दिवस पर आप सभी षिक्षकों को बधाई। आषा हैं आप आज के दिन टीचर, सर या मास्टर से गुरूजी बनने का पावन संकल्प लेंगे। राश्ट्र के निर्माण के महान गुरूतर दायित्व के बाबजूद आज समाज में षिक्षकों के प्रति जो नजरिया है उसके लिए काफी हद तक षिक्षक समाज ही जिम्मेदार है। कुछ ही दषकों पहले तक बहुत कम वेतन में भी षिक्षक अपने दायित्वों के समुचित निर्वहन से व अपने चरित्र से न केवल विद्यार्थियों में अपितु अपने समाज में भी उनकी सम्मानजनक स्थान था। परन्तु आज मोटी वेतन मिलने के बाबजूद अधिकांष विधालयों में व विधालय के बाहर जिस प्रकार से षिक्षकों का व्यवहार है उससे न केवल अप ने विद्यार्थियों में अपितु समाज में भी उनका स्थान गुरू जी से गिर कर केवल सर या टीचर या मास्टर तक यानी एक आम बेतन भोगी कर्मचारी की तरह ही रह गयी है। ऐसा नहीं की सभी एक जैसे हो गये है आज भी कई ऐसे अध्यापक हैं जो अपने चरित्र, षिक्षण में समर्पित रहने के कारण विधालयों में ही नहीं आम समाज में भी सीमान्त जनपद चमोली के दूरस्थ विधालयों में दषकों तक सेवारत रहे मास्टरजी ‘ श्री बलवंतसिंह नेगी’ की तरह सम्मानित हैं। भले ही सरकारी अधिकारियों ने 5 सितम्बर षिक्षक दिवस के दिन उनकों कभी सम्मानित करने की सुध न ली हो परन्तु आज भी सेवा निवृत के बाद भी समाज को दिषा देने के लिए हर पल समर्पित रहने के कारण जनता व अध्यापक समाज में आज भी उनका नाम बहुत ही सम्मान से लिया जाता है। वहीं आज कई ऐसे अध्यापक भी हैं जो न तो कक्षाओं में विद्यार्थियों को पढ़ाने के अपने मूल दायित्व का निर्वहन करते वहीं समाज में अपने जन विरोधी कृत्यों, षराब आदि निदनींय व्यसनों ने पूरे षिक्षक समाज के सम्मान को कलंकित करते है। आज इतनी मोटे बेतन मिलने के बाबजूद जिस प्रकार कई अध्यापक कक्षा में ईमानदारी से पढ़ाने के बजाय बच्चों को टयूषन पढ़ने के लिए विवष करते हैं, ऐसे अध्यापकों के कारण ही षिक्षक जैसे महान प्रतिश्ठित वर्ग आज आम वेतन भोगी कर्मचारी की तरह केवल टीचर के रूप में उपेक्षित महसूस कर रहा है।
आज षिक्षक दिवस पर आप सभी षिक्षकों को बधाई। आषा हैं आप आज के दिन टीचर, सर या मास्टर से गुरूजी बनने का पावन संकल्प लेंगे। राश्ट्र के निर्माण के महान गुरूतर दायित्व के बाबजूद आज समाज में षिक्षकों के प्रति जो नजरिया है उसके लिए काफी हद तक षिक्षक समाज ही जिम्मेदार है। कुछ ही दषकों पहले तक बहुत कम वेतन में भी षिक्षक अपने दायित्वों के समुचित निर्वहन से व अपने चरित्र से न केवल विद्यार्थियों में अपितु अपने समाज में भी उनकी सम्मानजनक स्थान था। परन्तु आज मोटी वेतन मिलने के बाबजूद अधिकांष विधालयों में व विधालय के बाहर जिस प्रकार से षिक्षकों का व्यवहार है उससे न केवल अप ने विद्यार्थियों में अपितु समाज में भी उनका स्थान गुरू जी से गिर कर केवल सर या टीचर या मास्टर तक यानी एक आम बेतन भोगी कर्मचारी की तरह ही रह गयी है। ऐसा नहीं की सभी एक जैसे हो गये है आज भी कई ऐसे अध्यापक हैं जो अपने चरित्र, षिक्षण में समर्पित रहने के कारण विधालयों में ही नहीं आम समाज में भी सीमान्त जनपद चमोली के दूरस्थ विधालयों में दषकों तक सेवारत रहे मास्टरजी ‘ श्री बलवंतसिंह नेगी’ की तरह सम्मानित हैं। भले ही सरकारी अधिकारियों ने 5 सितम्बर षिक्षक दिवस के दिन उनकों कभी सम्मानित करने की सुध न ली हो परन्तु आज भी सेवा निवृत के बाद भी समाज को दिषा देने के लिए हर पल समर्पित रहने के कारण जनता व अध्यापक समाज में आज भी उनका नाम बहुत ही सम्मान से लिया जाता है। वहीं आज कई ऐसे अध्यापक भी हैं जो न तो कक्षाओं में विद्यार्थियों को पढ़ाने के अपने मूल दायित्व का निर्वहन करते वहीं समाज में अपने जन विरोधी कृत्यों, षराब आदि निदनींय व्यसनों ने पूरे षिक्षक समाज के सम्मान को कलंकित करते है। आज इतनी मोटे बेतन मिलने के बाबजूद जिस प्रकार कई अध्यापक कक्षा में ईमानदारी से पढ़ाने के बजाय बच्चों को टयूषन पढ़ने के लिए विवष करते हैं, ऐसे अध्यापकों के कारण ही षिक्षक जैसे महान प्रतिश्ठित वर्ग आज आम वेतन भोगी कर्मचारी की तरह केवल टीचर के रूप में उपेक्षित महसूस कर रहा है।
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