निशंक सरकार के भ्रष्टाचार पर पर्दा डाल रही है खंडूडी सरकार क्यों मेहरवान है अण्णा के सिपाहेसलार

ऐसे लोकायुक्तों से कैसे लगेगा भ्रष्टाचार पर अंकुश/
-एनजीओ व मीडिया को जनलोकपाल से बाहर रखने से बढ़ेगा भ्रष्टाचार/
-निशंक सरकार के भ्रष्टाचार पर पर्दा डाल रही है खंडूडी सरकार क्यों मेहरवान है अण्णा के सिपाहेसलार/


देहरादून(प्याउ)। जन लोकपाल से देष मेें भ्रश्टाचार पर अंकुष लगाने का दावा करने वाले अण्णा हजारे के सहयोगी ंअरविन्द केजरीवाल व प्रषांत भूशण भले ही उत्तराखण्ड में भ्रश्टाचार में आकण्ठ फंसी भाजपा की सरकार की पीठ थपथपा रहे हो परन्तु ंजमीनी हकीकत यह है कि देश में भ्रश्टाचार पर अंकुष लगाने के लिए बनाये गये लोकायुक्त जब खुद ही कर्नाटक के लोकायुक्त की तरह खुद ही भ्रश्टाचारियों को संरक्षण देने व बढ़ाने के काम में लग जायें तो कानून क्या करेगा। जिस समय अण्णा हजारे के प्रमुख्ंा सिपंाहे सलार देहरादून में प्रदेष ंभाजपा सरकार के नये निजाम खंडूडी व उनकी सरकार द्वारा ंबनाये जाने वाले ंलोकपाल ंबिल ंपर संतोश जता रहे थे उसी समय कर्नाटक में ंमहज ंदो माह पहले बने लोकायुक्त षिवराज पाटिल ंद्वारंा अपने पद से ंदो आवासीय ंभूखण्डों के ंआवंटन के ंविवाद में फंसकर इस्तीफा देने के लिएं मजबूर हो गये। उत्तराखण्ड में जो लोकायुक्त बनाया उनके बारंे में ंकहने की ंजरूरत ही नहीं। ंऐसे में एक बात ंउभर कर सामने का आरही है ंकि ंकानून बनाने मात्र या लंोकायुक्त ंनियुक्त करने मात्र से भ्रश्टाचार पर अंकुष नहीं लग ं सकता है, जब तक भ्रश्टाचार पर अंकुष लगाने के लिए ंबनायंां गयंा लंोकायुक्त व्यक्तिगत रूप से ईमानदार नहीं है। ं खंडूडी जी व उनकी सरकार से प्रदेष की जनता को भ्रश्टाचार रोकने की भले ही काफीं आषायें हों परन्तु हकीकत यह है कि वे ंइस मामले में कितने ईमानदार हैं इसका प्रमाण उनके ंपूर्व मुख्ंयंमंत्री कार्यकाल में सांरगी व निषंक ंप्रेम से ंपूरी तरह से बेनकाब हो जाता है। हाॅं यह दूसरी बात हे कि दूर दराज के ंआम लोगों को आज भीं ऐसा भ्रम है कि खंण्डूडी जी भ्रश्टाचार को मिटा कर ंप्रदेष को भ्रश्टाचार मुक्त बना दें। पंरन्तु मुझे ं इसमें कहीं दूर-दूर ं तक ंआषा कि किरण तक नजर नहीं आती। अगर वास्तव में ंखण्डूडी जी ंको उत्तराखण्ड से जरा सी भी लगाव होता या भ्रश्टाचार मिटाने के लिए जरा सी भी ललक होती तो वे अभी तक ंअपने ंपूर्ववर्ती मुख्यमंत्री निषंक के कार्यकाल में प्रदेष को व खुद ंउनको व्यथित करने वाले प्रकरणों की सी बीआई जांच ंकराने की षिफारिस कर देते। परन्तु उंनकी प्राथमिकतायें षायद न तो कहीं दूर दूर तक उत्तराखण्ड हैं व नहीं ंप्रदेष को भ्रश्टाचार पर अंकुष लगाने की। उनकी प्राथमिकता तो केवल ंमुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन ंहोना व ंआगामी विधानसभा चुनाव में हर हाल में भाजपा को विजय बना कर अपनी कुर्सी मजबूत करना है। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री निषंक ने उन पर अपनी सरकार व खुद को बदनाम करने के लिए ंहाई कोर्ट में विवादं खडा करने का आरोप न केवल केन्द्रीय नेतृत्व के समक्ष लगाया अपितु उन्होंने ईटीवी पर भी इसका ंखुले आम प्रसारण भीं कराया। परन्तु सत्तासीन होने के बाद खंडूडी इस मामले को दफन कर अब भ्रश्टाचार पर अंकुष ंलंगाने के लिए कानून बनाने की बात कर रहे है। कानून भी बनाये परन्तु जनविष्वास को फिर से बहाल करने के लिए अपने भरत के कारनामों को ंजब तक वे ंअविलम्ब सीबीआई से जांच करने के लिए सिफारिष नही ं करेंगे तो लोग उनकी तमाम कार्यवाहियों को हवाई ही मानेंगे।
संविधानिक पदों पर आसीन लोकायुक्त भी किस प्रकार भ्रष्टाचार को पर अंकुश लगाने के बजाय भ्रष्टाचार मिटाने की ही आशाओं पर ग्रहण लगा सकते हैं इसका एक जीता जागता उदाहरण है कर्नाटक के लोकायुक्त उन्होंने पदभार ग्रहण करने के महज डेढ़ महीने बाद ही इस्तीफा देना पडा, कर्नाटक के लोकायुक्त शिवराज पाटिल नियमों का उल्लंघन कर दो आवासीय सहकारी सोसायटी से दो रिहाइशी भूखंडों का आवंटन हासिल करने से जुड़े एक विवाद में फंस गए हैं। बहरहाल, उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश पाटिल ने खुद का बचाव करते हुए कहा है कि इनमें से एक भूखंड उनकी पत्नी ने खरीदा था। न्यायमूर्ति पाटिल को वर्ष 1994 में कर्नाटक राज्य न्यायिक विभाग कर्मचारी आवास भवन सहकारी सोसायटी ने अल्लालासंद्रा में 9,600 वर्ग फुट का भूखंड आवंटित किया था। व्यालीकावल आवासीय निर्माण सहकारी सोसायटी ने वर्ष 2006 में नगावारा में करीब 4,012 वर्ग फुट का एक अन्य भूखंड उनकी पत्नी अन्नपूर्णा को आवंटित किया। इसी विवाद का स्तह पर आने पर उनको अपने पद से इस्तीफा देना पडा। वहीं उत्तराखण्ड में अण्णा या रामदेव की टीम से लोगों को कोई आशा नहीं है। जिस प्रकार ने रामदेव प्रदेश को भ्रष्टाचार की गर्त में धकेलने के लिए कुख्यात रहे भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री निशंक से निकट अच्छे सम्बंध रहे थे यही नहीं बार बार उन से निशंक सरकार के भ्रष्टाचार पर मूक रहने के लिए प्रश्न उठने के बाबजूद वे इस मामले में मुंह खोलने से सदा कतराते रहे। वहीं दूसरी तरफ अण्णा की टीम के प्रमुख सिपाहे सलार शांति भूषण तो स्टर्जिया मामले में सरकारी पक्ष को जायज ठहराते हुए हाईकोर्ट में भ्रष्टाचार को उजागर कर रही जनहित याचिका कत्र्ता के वकील उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के अग्रणी नेता अवतार सिंह रावत को ही डपट रहे थे । अण्णा टीम द्वारा देहरादून में जा कर स्टर्जिया, जल विधुत परियोजनाओं, कुुभ घोटालों सहित अन्य घोटालों में लिप्त रही भाजपा सरकार द्वारा इन काण्डों के मुख्य दोषी को कटघरे में खडा करने के बजाय लोगों की आंखों में धूल झोंकने के उद्देश्य से बनाये जा रहे जन लोकपाल विधेयक पर ही चर्चा करने में उलझे रहे। प्रदेश की जनता को आशा थी कि ये अण्णा टीम तो मुंह खोलेगी। परन्तु वे भी देहरादून में एनजीओ वालों व सरकारी आवभगत में ही घिरे रहे। वे भी बाबा राम देव की तरह भ्रष्टाचार से व्यथित उत्तराखण्डियों के स्वर में अपना स्वर मिलाने के बजाय प्रदेश को भ्रष्टाचार की रसातल में धकेल रहे भाजपा सरकार के कुशासन के जाल में फंसे रहे। भले ही भाजपा ने मात्र चुनाव जीतने के उदेश्य से अपना निजाम बदला, परन्तु भाजपा ने प्रदेश की नीति व नियत नहीं बदली। इसके बाबजूद आज तक न तो रामदेव उनसे घूस की मांग कर रहे मंत्री का नाम ही उजागर कर पाये व नहीं अण्णा की टीम प्रदेश को स्टर्जिया, जल विद्युत,कुम्भ आदि घोटालों से दागदार करने वालों को सिकंजे में जकड़ने की सीधी दो टूक मांग तक बदले हुए निजाम से कर पाये। जनता को उनसे आशा थी कि वे भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने के लिए भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए कानून बनाने की बात कर रहे भाजपा के नये निजाम से भाजपा शासनकाल में हुए शर्मनाक घोटालों के दोषियों को कटघरे में खडा करने की दो टूक फटकार लगाते। परन्तु लगता है दूर के ढोल सुहाने लगते है। क्या अगर जनलोकपाल भी प्रदेश में गठित 56 घोटालों की जांच कर रहे आयोग की तरह होगी तो उससे किसको न्याय की आश रहेगी। यह तो जनलोकपाल विधेयक की बात करते हुए भ्रष्टाचार के प्रतीक बन चूके एनजीओ व मीडिया को जनलोकपाल के दायरे से बाहर रखने वाले अण्णा व भारतीय सरकार ही बता सकती है। भाजपा शासनकाल में जिस कुम्भ के आयोजन में तत्कालीन मुख्यमंत्री नोबेल पुरस्कार की मांग तक करने की धृष्ठता कर रहे थे उस भाजपा सरकार ने कुुभं में सनातनी धर्मावलम्बियों को पतित पावनी गंगा के पानी के बजाय कैसे पावन जल से स्नान कराया। अगर यही काम कोई कांग्रेसी या अन्य सरकार करती तो अभी भाजपा समर्थित संगठन उस सरकार को जनाजा तक निकाल देते। परन्तु अपनों के पापों को ढकने का जो कृत्य भाजपा व संघ संगठन करते हैं उसी के कारण आज भाजपा की स्थिति दयनीय हो गयी है।

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