-मोदी के उपवास ने बेनकाब किया भारतीय राजनेताओं का धृर्णित चेहरा
-उपवास से उपहास तक
-मोदी के उपवास ने बेनकाब किया भारतीय राजनेताओं का धृर्णित चेहरा
इस सप्ताह गुजरात में मोदी के उपवास ने भारतीय राजनीति के मुखोटे को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया। भले ही कांग्रेसी व भाजपाई इस उपवास को अपने अपने राजनैतिक नजरिये से समर्थन व विरोध करने में तुले हों परन्तु हकीकत यह है मोदी के उपवास ने भारतीय राजनेताओं के चेहरे पर लगे लोकशाही के नकाब को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया।
उपवास भारतीय संस्कृति का आत्म चिंतन व मंथन के साथ साथ सांस्कृतिक व धार्मिक परंपरा का अभिन्न अंग रहा है। परन्तु जब से देश में छद्म लोकशाही का पदार्पण हुआ तब से देश में उपवास का अर्थ ही बदल गया। गुजरात में जन्मे विश्व मानवता के अटल धु्रव बन कर दमकने वाले महात्मा गांधी ने उपवास को अपना महत्वपूर्ण अस्त्र बना कर देश की शताब्दियों से मृतप्रायः आत्मा को जागृत करने का ऐतिहासिक कार्य किया था। वे चिंतन व प्रायश्चित के लिए भी इस प्रकार का उपवास करते थें परन्तु आज आजादी
के 64वें साल में ही देश की राजनीति इतनी दुषित हो गयी कि उपवास का अर्थ ही आत्म चिंतन व पावनता से बदल कर उपहास व रागद्वेष बदलने वाला बन गया। उपवास वास्तव में एक आध्यात्मिक परंपरा है। इसका सदप्रयोग प्रायः व्यक्ति अपने मन को राग, द्वेष इत्यादि से दूर होने व मन को निर्मल करने के लिए किया जाता है। इससे विश्व कल्याण के साथ परमात्मा से आत्मा के मिलन व चिंतन के लिए किया जाता है। परन्तु आज गांधी से मोदी तक उपवास के 64 साल के इस सफर में उपहास तक बदल जाना एक छोटी घटना ना हो कर वास्तव में भारतीय राजनीति व आम जनमानस का असली चेहरे को बेनकाब करने की शर्मसार करने वाली घटना है। मोदी के उपवास ने साबित कर दिया कि आज भारत में राजनेताओं में इतनी सी भी नैतिकता नहीं रह गयी कि वे अपनी अहं से उपर उठ कर आम जनमानस के लिए समर्पित होने के लिए आत्म चिंतन भी कर पाये।
सवाल गांधी या मोदी का नहीं अपितु यहां सवाल है कि भारतीय संस्कृति का। भारतीय संस्कृति के विराट दामन में अनादि काल से कितने गांधी व मोदी पैदा हो कर काल कल्वित हो गये। शायद इसका सहज ज्ञान भी भारतीयों को नहीं है। मोदी को भी देश के आम आदमियों की तरह लोकतंात्रिक अधिकार है कि वे उपवास करे परन्तु उपवास करने वाले व्यक्ति से आम भारतीय जनमानस इतनी तो उम्मीद करता रहा कि वे अपने कृत्यों का बहुत ही निष्पक्ष व राग द्वेष से मुक्त हो कर चिंतन करके अपने भावी जीवन में उपवास के बाद नये ढंग से निष्पक्ष व देश हित में समर्पित करे।
हालांकि अहमदाबाद में अपनी छवि में बदलाव का प्रयास करते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए तीन दिन से रखे गए उपवास का 19 सितम्बर सोमवार को समापन किया। उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार ने अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदाय के बीच कोई भेद नहीं किया। हालांकि, भाजपा की ओर से खुद के प्रधानमंत्री पद की दौड़ में होने के मुद्दे को वह टाल गए। मोदी ने वोट बैंक की राजनीति खत्म करने का संकल्प जताते हुए कहा कि इस सद्भावना मिशन के पीछे प्रेरणा राष्ट्रनीति है, न कि राजनीति। इससे पहले, मोदी ने शाम करीब सवा छह बजे अपना उपवास तोड़ दिया। वहीं इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां अपने तीन दिनी सद्भावना उपवास के दौरान पिराना गांव में एक छोटी दरगाह के मौलाना सैयद इमाम शाही सैयद ने कल यहां मोदी के उपवास स्थल पर मंच पर जाकर उनसे मुलाकात की थी। मौलाना ने मोदी को टोपी पहनने की पेशकश की पर मुख्यमंत्री ने विनम्रता से उसे पहनने से मना कर दिया और उसके बजाय शॉल ओढ़ाने को कहा। इमाम ने मोदी को शॉल ओढ़ाया जिसे उन्होंने मंजूर कर लिया। सैयद ने आज कहा, ‘ मोदी का टोपी पहनने से इनकार करना मेरा नहीं बल्कि इस्लाम का अपमान है।’ उन्होंने कहा,‘ मैं सद्भावना मिशन के बारे में सुनकर आया था और जब मैंने उन्हें टोपी की पेशकश की तो उन्होंने कहा कि वह इसे नहीं पहनेंगे। मोदी को टोपी पहनी चाहिए या नहीं। परन्तु जब वे शाॅल ओढ़ सकते हैं तो उनको टोपी भी एक पल के लिए पहन लेनी चाहिए थी। इससे आहत व्यक्ति व विरोधियों को यह प्रचारित करने का मोका नहीं मिलता की मोदी मुसलमानों से नफरत करते है। वेसे राजनीति में टोपी पहनने से कोई आदमी पाक नहीं होता। परन्तु जब समाज में व्यक्ति के खिलाफ दुराग्रह हो तो उन दुराग्रहों को दूर करने का फर्ज हर समाज के उस व्यक्ति का होता है जो समाज, प्रदेश या देश की रहुनुमाई करता है। मोदी को दंगों में निर्दोष मारे गये लोगों को भी श्रद्वाजलि देनी चाहिए थी। आहत समाज से माफी भी मांगनी चाहिए थी। वहीं उन्होंने साफ शब्दों में ऐलान भी करना भी चाहिए था कि देश में किसी भी व्यक्ति को देश की अस्मिता से खिलवाड करने की छूट नहीं दी जा सकती है चाहे वह अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक । देश की अखण्डता से खिलवाड करने वालो के साथ केवल देशद्रोहियों का सा सलूक किया जाना चाहिए। कुल मिला कर मोदी ने उपवास के पावन अवसर पर आहत समाज के जख्मों पर मरहम लगाने का अवसर अपनी अहं के कारण गंवा दिया। मोदी को साफ समझ लेना चाहिए कि हिन्दू धर्म कभी द्वेष, नफरत की इजाजत नहीं देता। उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति व ईमानदारी तथा सही दिशा में राज चला कर उन्होंने आम भारतीयों के दिलों में जगह बना ली है। परन्तु उनको साफ समझ लेना चाहिए कि उनको प्रधानमंत्री बनने की राह में मुसलमान या विरोधी दल नहीं अपितु भाजपाई व उनके राजग गठबंधन ही सबसे बड़े अवरोधक है। उनके प्रधानमंत्री बनने के मार्ग में आज भाजपा के बंद कमरों में बेठ कर गोटियां फिट करने वाले नेत्री व नेता अभी से ऐसा ताना बाना बना चूकी है कि मोदी की राह में ऐसे अवरोध खडे हो जाय। जबकि मोदी को चाहिए था कि उपवास को सादगी, निष्पक्ष व रागद्वेष से मुक्त हो कर करते। गांधी के उपवास ने आम भारतीयों को उनसे अपने आप को इसी लिए जोड़ा की उनके उपवास में पावनता, सादगी व नैतिकता होती थी। जो न तो मोदी के उपवास में दिखाई दी, न रामदेव व नहीं शंकरसिंह बघेला के उपवासों में दिखाई दी। आज के नेता पंचतारा संस्कृति व रागद्वेष मानसिकता के हो गये है। रागद्वेष से युक्त हो कर उपवास करना एक प्रकार उपवास का उपहास उडाना ही है।
इस सप्ताह गुजरात में मोदी के उपवास ने भारतीय राजनीति के मुखोटे को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया। भले ही कांग्रेसी व भाजपाई इस उपवास को अपने अपने राजनैतिक नजरिये से समर्थन व विरोध करने में तुले हों परन्तु हकीकत यह है मोदी के उपवास ने भारतीय राजनेताओं के चेहरे पर लगे लोकशाही के नकाब को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया।
उपवास भारतीय संस्कृति का आत्म चिंतन व मंथन के साथ साथ सांस्कृतिक व धार्मिक परंपरा का अभिन्न अंग रहा है। परन्तु जब से देश में छद्म लोकशाही का पदार्पण हुआ तब से देश में उपवास का अर्थ ही बदल गया। गुजरात में जन्मे विश्व मानवता के अटल धु्रव बन कर दमकने वाले महात्मा गांधी ने उपवास को अपना महत्वपूर्ण अस्त्र बना कर देश की शताब्दियों से मृतप्रायः आत्मा को जागृत करने का ऐतिहासिक कार्य किया था। वे चिंतन व प्रायश्चित के लिए भी इस प्रकार का उपवास करते थें परन्तु आज आजादी
के 64वें साल में ही देश की राजनीति इतनी दुषित हो गयी कि उपवास का अर्थ ही आत्म चिंतन व पावनता से बदल कर उपहास व रागद्वेष बदलने वाला बन गया। उपवास वास्तव में एक आध्यात्मिक परंपरा है। इसका सदप्रयोग प्रायः व्यक्ति अपने मन को राग, द्वेष इत्यादि से दूर होने व मन को निर्मल करने के लिए किया जाता है। इससे विश्व कल्याण के साथ परमात्मा से आत्मा के मिलन व चिंतन के लिए किया जाता है। परन्तु आज गांधी से मोदी तक उपवास के 64 साल के इस सफर में उपहास तक बदल जाना एक छोटी घटना ना हो कर वास्तव में भारतीय राजनीति व आम जनमानस का असली चेहरे को बेनकाब करने की शर्मसार करने वाली घटना है। मोदी के उपवास ने साबित कर दिया कि आज भारत में राजनेताओं में इतनी सी भी नैतिकता नहीं रह गयी कि वे अपनी अहं से उपर उठ कर आम जनमानस के लिए समर्पित होने के लिए आत्म चिंतन भी कर पाये।
सवाल गांधी या मोदी का नहीं अपितु यहां सवाल है कि भारतीय संस्कृति का। भारतीय संस्कृति के विराट दामन में अनादि काल से कितने गांधी व मोदी पैदा हो कर काल कल्वित हो गये। शायद इसका सहज ज्ञान भी भारतीयों को नहीं है। मोदी को भी देश के आम आदमियों की तरह लोकतंात्रिक अधिकार है कि वे उपवास करे परन्तु उपवास करने वाले व्यक्ति से आम भारतीय जनमानस इतनी तो उम्मीद करता रहा कि वे अपने कृत्यों का बहुत ही निष्पक्ष व राग द्वेष से मुक्त हो कर चिंतन करके अपने भावी जीवन में उपवास के बाद नये ढंग से निष्पक्ष व देश हित में समर्पित करे।
हालांकि अहमदाबाद में अपनी छवि में बदलाव का प्रयास करते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए तीन दिन से रखे गए उपवास का 19 सितम्बर सोमवार को समापन किया। उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार ने अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदाय के बीच कोई भेद नहीं किया। हालांकि, भाजपा की ओर से खुद के प्रधानमंत्री पद की दौड़ में होने के मुद्दे को वह टाल गए। मोदी ने वोट बैंक की राजनीति खत्म करने का संकल्प जताते हुए कहा कि इस सद्भावना मिशन के पीछे प्रेरणा राष्ट्रनीति है, न कि राजनीति। इससे पहले, मोदी ने शाम करीब सवा छह बजे अपना उपवास तोड़ दिया। वहीं इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां अपने तीन दिनी सद्भावना उपवास के दौरान पिराना गांव में एक छोटी दरगाह के मौलाना सैयद इमाम शाही सैयद ने कल यहां मोदी के उपवास स्थल पर मंच पर जाकर उनसे मुलाकात की थी। मौलाना ने मोदी को टोपी पहनने की पेशकश की पर मुख्यमंत्री ने विनम्रता से उसे पहनने से मना कर दिया और उसके बजाय शॉल ओढ़ाने को कहा। इमाम ने मोदी को शॉल ओढ़ाया जिसे उन्होंने मंजूर कर लिया। सैयद ने आज कहा, ‘ मोदी का टोपी पहनने से इनकार करना मेरा नहीं बल्कि इस्लाम का अपमान है।’ उन्होंने कहा,‘ मैं सद्भावना मिशन के बारे में सुनकर आया था और जब मैंने उन्हें टोपी की पेशकश की तो उन्होंने कहा कि वह इसे नहीं पहनेंगे। मोदी को टोपी पहनी चाहिए या नहीं। परन्तु जब वे शाॅल ओढ़ सकते हैं तो उनको टोपी भी एक पल के लिए पहन लेनी चाहिए थी। इससे आहत व्यक्ति व विरोधियों को यह प्रचारित करने का मोका नहीं मिलता की मोदी मुसलमानों से नफरत करते है। वेसे राजनीति में टोपी पहनने से कोई आदमी पाक नहीं होता। परन्तु जब समाज में व्यक्ति के खिलाफ दुराग्रह हो तो उन दुराग्रहों को दूर करने का फर्ज हर समाज के उस व्यक्ति का होता है जो समाज, प्रदेश या देश की रहुनुमाई करता है। मोदी को दंगों में निर्दोष मारे गये लोगों को भी श्रद्वाजलि देनी चाहिए थी। आहत समाज से माफी भी मांगनी चाहिए थी। वहीं उन्होंने साफ शब्दों में ऐलान भी करना भी चाहिए था कि देश में किसी भी व्यक्ति को देश की अस्मिता से खिलवाड करने की छूट नहीं दी जा सकती है चाहे वह अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक । देश की अखण्डता से खिलवाड करने वालो के साथ केवल देशद्रोहियों का सा सलूक किया जाना चाहिए। कुल मिला कर मोदी ने उपवास के पावन अवसर पर आहत समाज के जख्मों पर मरहम लगाने का अवसर अपनी अहं के कारण गंवा दिया। मोदी को साफ समझ लेना चाहिए कि हिन्दू धर्म कभी द्वेष, नफरत की इजाजत नहीं देता। उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति व ईमानदारी तथा सही दिशा में राज चला कर उन्होंने आम भारतीयों के दिलों में जगह बना ली है। परन्तु उनको साफ समझ लेना चाहिए कि उनको प्रधानमंत्री बनने की राह में मुसलमान या विरोधी दल नहीं अपितु भाजपाई व उनके राजग गठबंधन ही सबसे बड़े अवरोधक है। उनके प्रधानमंत्री बनने के मार्ग में आज भाजपा के बंद कमरों में बेठ कर गोटियां फिट करने वाले नेत्री व नेता अभी से ऐसा ताना बाना बना चूकी है कि मोदी की राह में ऐसे अवरोध खडे हो जाय। जबकि मोदी को चाहिए था कि उपवास को सादगी, निष्पक्ष व रागद्वेष से मुक्त हो कर करते। गांधी के उपवास ने आम भारतीयों को उनसे अपने आप को इसी लिए जोड़ा की उनके उपवास में पावनता, सादगी व नैतिकता होती थी। जो न तो मोदी के उपवास में दिखाई दी, न रामदेव व नहीं शंकरसिंह बघेला के उपवासों में दिखाई दी। आज के नेता पंचतारा संस्कृति व रागद्वेष मानसिकता के हो गये है। रागद्वेष से युक्त हो कर उपवास करना एक प्रकार उपवास का उपहास उडाना ही है।
-मोदी के उपवास ने बेनकाब किया भारतीय राजनेताओं का धृर्णित चेहरा
इस सप्ताह गुजरात में मोदी के उपवास ने भारतीय राजनीति के मुखोटे को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया। भले ही कांग्रेसी व भाजपाई इस उपवास को अपने अपने राजनैतिक नजरिये से समर्थन व विरोध करने में तुले हों परन्तु हकीकत यह है मोदी के उपवास ने भारतीय राजनेताओं के चेहरे पर लगे लोकशाही के नकाब को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया।
उपवास भारतीय संस्कृति का आत्म चिंतन व मंथन के साथ साथ सांस्कृतिक व धार्मिक परंपरा का अभिन्न अंग रहा है। परन्तु जब से देश में छद्म लोकशाही का पदार्पण हुआ तब से देश में उपवास का अर्थ ही बदल गया। गुजरात में जन्मे विश्व मानवता के अटल धु्रव बन कर दमकने वाले महात्मा गांधी ने उपवास को अपना महत्वपूर्ण अस्त्र बना कर देश की शताब्दियों से मृतप्रायः आत्मा को जागृत करने का ऐतिहासिक कार्य किया था। वे चिंतन व प्रायश्चित के लिए भी इस प्रकार का उपवास करते थें परन्तु आज आजादी
के 64वें साल में ही देश की राजनीति इतनी दुषित हो गयी कि उपवास का अर्थ ही आत्म चिंतन व पावनता से बदल कर उपहास व रागद्वेष बदलने वाला बन गया। उपवास वास्तव में एक आध्यात्मिक परंपरा है। इसका सदप्रयोग प्रायः व्यक्ति अपने मन को राग, द्वेष इत्यादि से दूर होने व मन को निर्मल करने के लिए किया जाता है। इससे विश्व कल्याण के साथ परमात्मा से आत्मा के मिलन व चिंतन के लिए किया जाता है। परन्तु आज गांधी से मोदी तक उपवास के 64 साल के इस सफर में उपहास तक बदल जाना एक छोटी घटना ना हो कर वास्तव में भारतीय राजनीति व आम जनमानस का असली चेहरे को बेनकाब करने की शर्मसार करने वाली घटना है। मोदी के उपवास ने साबित कर दिया कि आज भारत में राजनेताओं में इतनी सी भी नैतिकता नहीं रह गयी कि वे अपनी अहं से उपर उठ कर आम जनमानस के लिए समर्पित होने के लिए आत्म चिंतन भी कर पाये।
सवाल गांधी या मोदी का नहीं अपितु यहां सवाल है कि भारतीय संस्कृति का। भारतीय संस्कृति के विराट दामन में अनादि काल से कितने गांधी व मोदी पैदा हो कर काल कल्वित हो गये। शायद इसका सहज ज्ञान भी भारतीयों को नहीं है। मोदी को भी देश के आम आदमियों की तरह लोकतंात्रिक अधिकार है कि वे उपवास करे परन्तु उपवास करने वाले व्यक्ति से आम भारतीय जनमानस इतनी तो उम्मीद करता रहा कि वे अपने कृत्यों का बहुत ही निष्पक्ष व राग द्वेष से मुक्त हो कर चिंतन करके अपने भावी जीवन में उपवास के बाद नये ढंग से निष्पक्ष व देश हित में समर्पित करे।
हालांकि अहमदाबाद में अपनी छवि में बदलाव का प्रयास करते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए तीन दिन से रखे गए उपवास का 19 सितम्बर सोमवार को समापन किया। उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार ने अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदाय के बीच कोई भेद नहीं किया। हालांकि, भाजपा की ओर से खुद के प्रधानमंत्री पद की दौड़ में होने के मुद्दे को वह टाल गए। मोदी ने वोट बैंक की राजनीति खत्म करने का संकल्प जताते हुए कहा कि इस सद्भावना मिशन के पीछे प्रेरणा राष्ट्रनीति है, न कि राजनीति। इससे पहले, मोदी ने शाम करीब सवा छह बजे अपना उपवास तोड़ दिया। वहीं इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां अपने तीन दिनी सद्भावना उपवास के दौरान पिराना गांव में एक छोटी दरगाह के मौलाना सैयद इमाम शाही सैयद ने कल यहां मोदी के उपवास स्थल पर मंच पर जाकर उनसे मुलाकात की थी। मौलाना ने मोदी को टोपी पहनने की पेशकश की पर मुख्यमंत्री ने विनम्रता से उसे पहनने से मना कर दिया और उसके बजाय शॉल ओढ़ाने को कहा। इमाम ने मोदी को शॉल ओढ़ाया जिसे उन्होंने मंजूर कर लिया। सैयद ने आज कहा, ‘ मोदी का टोपी पहनने से इनकार करना मेरा नहीं बल्कि इस्लाम का अपमान है।’ उन्होंने कहा,‘ मैं सद्भावना मिशन के बारे में सुनकर आया था और जब मैंने उन्हें टोपी की पेशकश की तो उन्होंने कहा कि वह इसे नहीं पहनेंगे। मोदी को टोपी पहनी चाहिए या नहीं। परन्तु जब वे शाॅल ओढ़ सकते हैं तो उनको टोपी भी एक पल के लिए पहन लेनी चाहिए थी। इससे आहत व्यक्ति व विरोधियों को यह प्रचारित करने का मोका नहीं मिलता की मोदी मुसलमानों से नफरत करते है। वेसे राजनीति में टोपी पहनने से कोई आदमी पाक नहीं होता। परन्तु जब समाज में व्यक्ति के खिलाफ दुराग्रह हो तो उन दुराग्रहों को दूर करने का फर्ज हर समाज के उस व्यक्ति का होता है जो समाज, प्रदेश या देश की रहुनुमाई करता है। मोदी को दंगों में निर्दोष मारे गये लोगों को भी श्रद्वाजलि देनी चाहिए थी। आहत समाज से माफी भी मांगनी चाहिए थी। वहीं उन्होंने साफ शब्दों में ऐलान भी करना भी चाहिए था कि देश में किसी भी व्यक्ति को देश की अस्मिता से खिलवाड करने की छूट नहीं दी जा सकती है चाहे वह अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक । देश की अखण्डता से खिलवाड करने वालो के साथ केवल देशद्रोहियों का सा सलूक किया जाना चाहिए। कुल मिला कर मोदी ने उपवास के पावन अवसर पर आहत समाज के जख्मों पर मरहम लगाने का अवसर अपनी अहं के कारण गंवा दिया। मोदी को साफ समझ लेना चाहिए कि हिन्दू धर्म कभी द्वेष, नफरत की इजाजत नहीं देता। उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति व ईमानदारी तथा सही दिशा में राज चला कर उन्होंने आम भारतीयों के दिलों में जगह बना ली है। परन्तु उनको साफ समझ लेना चाहिए कि उनको प्रधानमंत्री बनने की राह में मुसलमान या विरोधी दल नहीं अपितु भाजपाई व उनके राजग गठबंधन ही सबसे बड़े अवरोधक है। उनके प्रधानमंत्री बनने के मार्ग में आज भाजपा के बंद कमरों में बेठ कर गोटियां फिट करने वाले नेत्री व नेता अभी से ऐसा ताना बाना बना चूकी है कि मोदी की राह में ऐसे अवरोध खडे हो जाय। जबकि मोदी को चाहिए था कि उपवास को सादगी, निष्पक्ष व रागद्वेष से मुक्त हो कर करते। गांधी के उपवास ने आम भारतीयों को उनसे अपने आप को इसी लिए जोड़ा की उनके उपवास में पावनता, सादगी व नैतिकता होती थी। जो न तो मोदी के उपवास में दिखाई दी, न रामदेव व नहीं शंकरसिंह बघेला के उपवासों में दिखाई दी। आज के नेता पंचतारा संस्कृति व रागद्वेष मानसिकता के हो गये है। रागद्वेष से युक्त हो कर उपवास करना एक प्रकार उपवास का उपहास उडाना ही है।
इस सप्ताह गुजरात में मोदी के उपवास ने भारतीय राजनीति के मुखोटे को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया। भले ही कांग्रेसी व भाजपाई इस उपवास को अपने अपने राजनैतिक नजरिये से समर्थन व विरोध करने में तुले हों परन्तु हकीकत यह है मोदी के उपवास ने भारतीय राजनेताओं के चेहरे पर लगे लोकशाही के नकाब को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया।
उपवास भारतीय संस्कृति का आत्म चिंतन व मंथन के साथ साथ सांस्कृतिक व धार्मिक परंपरा का अभिन्न अंग रहा है। परन्तु जब से देश में छद्म लोकशाही का पदार्पण हुआ तब से देश में उपवास का अर्थ ही बदल गया। गुजरात में जन्मे विश्व मानवता के अटल धु्रव बन कर दमकने वाले महात्मा गांधी ने उपवास को अपना महत्वपूर्ण अस्त्र बना कर देश की शताब्दियों से मृतप्रायः आत्मा को जागृत करने का ऐतिहासिक कार्य किया था। वे चिंतन व प्रायश्चित के लिए भी इस प्रकार का उपवास करते थें परन्तु आज आजादी
के 64वें साल में ही देश की राजनीति इतनी दुषित हो गयी कि उपवास का अर्थ ही आत्म चिंतन व पावनता से बदल कर उपहास व रागद्वेष बदलने वाला बन गया। उपवास वास्तव में एक आध्यात्मिक परंपरा है। इसका सदप्रयोग प्रायः व्यक्ति अपने मन को राग, द्वेष इत्यादि से दूर होने व मन को निर्मल करने के लिए किया जाता है। इससे विश्व कल्याण के साथ परमात्मा से आत्मा के मिलन व चिंतन के लिए किया जाता है। परन्तु आज गांधी से मोदी तक उपवास के 64 साल के इस सफर में उपहास तक बदल जाना एक छोटी घटना ना हो कर वास्तव में भारतीय राजनीति व आम जनमानस का असली चेहरे को बेनकाब करने की शर्मसार करने वाली घटना है। मोदी के उपवास ने साबित कर दिया कि आज भारत में राजनेताओं में इतनी सी भी नैतिकता नहीं रह गयी कि वे अपनी अहं से उपर उठ कर आम जनमानस के लिए समर्पित होने के लिए आत्म चिंतन भी कर पाये।
सवाल गांधी या मोदी का नहीं अपितु यहां सवाल है कि भारतीय संस्कृति का। भारतीय संस्कृति के विराट दामन में अनादि काल से कितने गांधी व मोदी पैदा हो कर काल कल्वित हो गये। शायद इसका सहज ज्ञान भी भारतीयों को नहीं है। मोदी को भी देश के आम आदमियों की तरह लोकतंात्रिक अधिकार है कि वे उपवास करे परन्तु उपवास करने वाले व्यक्ति से आम भारतीय जनमानस इतनी तो उम्मीद करता रहा कि वे अपने कृत्यों का बहुत ही निष्पक्ष व राग द्वेष से मुक्त हो कर चिंतन करके अपने भावी जीवन में उपवास के बाद नये ढंग से निष्पक्ष व देश हित में समर्पित करे।
हालांकि अहमदाबाद में अपनी छवि में बदलाव का प्रयास करते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए तीन दिन से रखे गए उपवास का 19 सितम्बर सोमवार को समापन किया। उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार ने अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदाय के बीच कोई भेद नहीं किया। हालांकि, भाजपा की ओर से खुद के प्रधानमंत्री पद की दौड़ में होने के मुद्दे को वह टाल गए। मोदी ने वोट बैंक की राजनीति खत्म करने का संकल्प जताते हुए कहा कि इस सद्भावना मिशन के पीछे प्रेरणा राष्ट्रनीति है, न कि राजनीति। इससे पहले, मोदी ने शाम करीब सवा छह बजे अपना उपवास तोड़ दिया। वहीं इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां अपने तीन दिनी सद्भावना उपवास के दौरान पिराना गांव में एक छोटी दरगाह के मौलाना सैयद इमाम शाही सैयद ने कल यहां मोदी के उपवास स्थल पर मंच पर जाकर उनसे मुलाकात की थी। मौलाना ने मोदी को टोपी पहनने की पेशकश की पर मुख्यमंत्री ने विनम्रता से उसे पहनने से मना कर दिया और उसके बजाय शॉल ओढ़ाने को कहा। इमाम ने मोदी को शॉल ओढ़ाया जिसे उन्होंने मंजूर कर लिया। सैयद ने आज कहा, ‘ मोदी का टोपी पहनने से इनकार करना मेरा नहीं बल्कि इस्लाम का अपमान है।’ उन्होंने कहा,‘ मैं सद्भावना मिशन के बारे में सुनकर आया था और जब मैंने उन्हें टोपी की पेशकश की तो उन्होंने कहा कि वह इसे नहीं पहनेंगे। मोदी को टोपी पहनी चाहिए या नहीं। परन्तु जब वे शाॅल ओढ़ सकते हैं तो उनको टोपी भी एक पल के लिए पहन लेनी चाहिए थी। इससे आहत व्यक्ति व विरोधियों को यह प्रचारित करने का मोका नहीं मिलता की मोदी मुसलमानों से नफरत करते है। वेसे राजनीति में टोपी पहनने से कोई आदमी पाक नहीं होता। परन्तु जब समाज में व्यक्ति के खिलाफ दुराग्रह हो तो उन दुराग्रहों को दूर करने का फर्ज हर समाज के उस व्यक्ति का होता है जो समाज, प्रदेश या देश की रहुनुमाई करता है। मोदी को दंगों में निर्दोष मारे गये लोगों को भी श्रद्वाजलि देनी चाहिए थी। आहत समाज से माफी भी मांगनी चाहिए थी। वहीं उन्होंने साफ शब्दों में ऐलान भी करना भी चाहिए था कि देश में किसी भी व्यक्ति को देश की अस्मिता से खिलवाड करने की छूट नहीं दी जा सकती है चाहे वह अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक । देश की अखण्डता से खिलवाड करने वालो के साथ केवल देशद्रोहियों का सा सलूक किया जाना चाहिए। कुल मिला कर मोदी ने उपवास के पावन अवसर पर आहत समाज के जख्मों पर मरहम लगाने का अवसर अपनी अहं के कारण गंवा दिया। मोदी को साफ समझ लेना चाहिए कि हिन्दू धर्म कभी द्वेष, नफरत की इजाजत नहीं देता। उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति व ईमानदारी तथा सही दिशा में राज चला कर उन्होंने आम भारतीयों के दिलों में जगह बना ली है। परन्तु उनको साफ समझ लेना चाहिए कि उनको प्रधानमंत्री बनने की राह में मुसलमान या विरोधी दल नहीं अपितु भाजपाई व उनके राजग गठबंधन ही सबसे बड़े अवरोधक है। उनके प्रधानमंत्री बनने के मार्ग में आज भाजपा के बंद कमरों में बेठ कर गोटियां फिट करने वाले नेत्री व नेता अभी से ऐसा ताना बाना बना चूकी है कि मोदी की राह में ऐसे अवरोध खडे हो जाय। जबकि मोदी को चाहिए था कि उपवास को सादगी, निष्पक्ष व रागद्वेष से मुक्त हो कर करते। गांधी के उपवास ने आम भारतीयों को उनसे अपने आप को इसी लिए जोड़ा की उनके उपवास में पावनता, सादगी व नैतिकता होती थी। जो न तो मोदी के उपवास में दिखाई दी, न रामदेव व नहीं शंकरसिंह बघेला के उपवासों में दिखाई दी। आज के नेता पंचतारा संस्कृति व रागद्वेष मानसिकता के हो गये है। रागद्वेष से युक्त हो कर उपवास करना एक प्रकार उपवास का उपहास उडाना ही है।
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