उत्तराखण्ड में रहते धोनी, परिमार्जन व राणा तो गुमनामी की गर्त में जमीदोज रहते

-उत्तराखण्ड में प्रतिभाओं का नहीं अपितु प्यादों का होता सम्मान/
- उत्तराखण्ड में रहते धोनी, परिमार्जन व राणा तो गुमनामी की गर्त में जमीदोज रहते/
-उत्तराखण्ड राज्य के सपने को साकार करने के लिए देश विदेश में प्रतिभा का परचम फेहराने वालों का मार्ग दर्शन ले सरकार/


भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेन्द्रसिंह धोनी, यिश्व प्रसिद्व निशानेबाज जसपाल राणा, विश्व प्रसिद्व शतरंज के खिलाड़ी परिमार्जन नेगी व अंडर 19 में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान उन्मुक्त चंद सहित उत्तराखण्ड मूल के प्रसिद्व खिलाड़ी जो आज विश्व में भारत की खेल प्रतिभा का परचम फहरा रहे हैं अगर उत्तराखण्ड की धरती पर ही ं रहते तो उनको गुमनामी के गर्त में ंजीने के लिए अभिशापित होना पड़ता। क्योंकि उत्तराखण्ड में खेल में ही नहीं शासन प्रशासन सहित तमाम क्षेत्र में प्रतिभाओं का सम्मान व महत्वपूर्ण स्थान देने के बजाय यहां भाई भतीजाबाद, जातिवाद-क्षेत्रवाद व भ्रष्टाचार का शर्मनाक सम्राज्य बन गया है। यहां राज्य गठन के ग्यारह सालों में यहां के हुक्मरानों ने यहां कीं प्रतिभाओं का शर्मनाक उपेक्षा कर यहा ंपर अपने आकाओं व अपने निहित स्वार्थ के प्यादों को ंशंासन प्रशासन के महत्वपूर्ण संस्थानों में ंथोप दिये हैं। इससे यहां की स्थापित प्रतिभाओं में भारी कुंठा व्याप्त है। राज्य गठन के बाद यहां प्रथम मुख्यमंत्री स्वामी से लेकर प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री तिवारी का खासमखास सर्वशक्तिमान सलाहकार, जो तिवारी के नाम परं ंएकक्षत्र सत्ता ंको संचालित कर रहे थे। ंईमानदारी का डंका बजवाने वाले ंमुख्यमंत्री खंडूडी को भी उत्तराखण्ड के प्रबुद्व जनों के बजाय ं ंउडिसा के सारंगी का अंध मोह प्रदेश पर किसी ग्रहण से कम नहीं लगा। इसके साथ ही प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे निशंक की बात ही क्या करें उन पर तो भाजपा, संघ व उसकी आनुवांसिक संगठनों का इतना दवाब था कि वो प्रदेश की सेवा करने की बजाय इनकी ही सेवा बजाते रहे।
उत्तराखण्ड राज्य गठन के ग्यारह साल होने पर भी प्रदेश की सत्ता में आसीन रहे किसी भी सरकार ने प्रदेश की दिशा व दशा के लिए वर्षों तक संघर्षरत प्रमुख राज्य गठन आंदोलनकारी संगठनों तक ंसे संवाद करने की सुध नहीं रही। जबकि राज्य गठन के बाद प्रदेश की सत्ता में आसीन प्रथम से लेकर हर सरकार का प्रथम दायित्व होता कि वह उन तमाम प्रमुख आंदोलनकारी संगठनों को प्रदेश की दिशा व दशा पर तथा राज्य के नव निर्माण पर उनके विचार, सुझाव व संकल्पनाओं ंको आमंत्रित करते, राज्य आंदोलनकारियों की एक पखवाडे की इस आशय की महत्वपूर्ण चिंतन शिविर का सरकार ने आयोजन करना चाहिए था। इस पर खुली बहस, चिंतन व मंथन के बाद प्रदेश की दिशा तय की जाती।
इसके साथ उत्तराखण्ड के विंकास में हिमाचल के अनुभव का ंलाभ उठाया जाता। प्रदेश के विधानसभा में हिमाचल के ंप्रथम मुख्यमंत्री ंव ंउसकी सुशासनयुक्त विकास की ठोस नींव रखने वाले यशवंत सिंह परमार के सपनों को धरती पर मजबूती से उतारने वाले हिमाचल के पूर्व मुंख्यमंत्री वीरभद्र को प्रदेश में सुशासन व ंविकास की ठोस नींव रखने के लिए एक सप्ताह का विशेष ंमार्गदर्शन सत्र का आयोजन किया जाना ंचाहिए। इसके साथ प्रदेश में हिमाचल की तरह की कृषि, बागवानी, फल उत्पादन ंआदि में ंजमीनी ंमार्गदर्शन के लिए हिमाचल में विशेष प्रशिक्षण लेने की आज भी जरूरत है ।
ंउत्तराखण्ड सरकार को चाहिए था कि वे ंसाठ लाख से अधिक देश विदेश में पलायन कर चूके प्रतिभावान उत्तराखण्डियों, खासकर जो विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का डंका बजा चूके हैं प्रदेश के नवनिर्माण के लिए उनकी ंसेवाओं का ंविशेष लाभ उठाया जा सकता था। प्रदेश में किस प्रकार से नौकरशाही पर लगाम कसनी हे उसके लिए दिल्ली नगर निगम के विख्यात ंकमीशनर रहे बहादूर राम टम्टा, जिनकी प्रतिभा से विश्व प्रसिद्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी कायल थी, का मार्ग दर्शन लिया जा सकता था। उंत्तराखण्ड राज्य गठन के बाबजूद यहां की पुलिस का ंचरित्र ंभी अपने पूर्ववर्ती राज्य उत्तरप्रदेश से भी बदतर हो गया। उत्तराखण्ड की पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार व दिशाहिनता पर अंकुश लगाने के लिए दिल्ली पुलिस के आर्थिक अपराध ंके आयुक्त रहे ंभारतीय पुलिस सेवा के ंवरिष्ठ अधिकारी ंदिनेश भट्ट की सेवाओं से लाभांन्वित होना चाहिए था। ंवहीं प्रदेश की पटरी से नीचे उतर चूकी न्याय व्यवस्था को ंप्रदेश हितों की रक्षा के लिएं स्थापित करने के लिए सर्वंोच्च न्यायालय के वरिष्ट अधिवक्ता अवतार सिंह रावत ंका मार्गदर्शन की नितांत ंजरूरत है। प्रदेश की ंसंवाद ंव्यवस्था को ंसही दिशा देने के लिए देश ंके सबसे ईमानदार व वरिष्ठ पत्रकारों में अग्रणीय डा गोविन्द सिंह की सेवाओं से लाभान्वित होना चहिए था। उत्तराखण्ड के उत्पादों का विदेश में व्यापार के द्वार खोलने के लिए भारतीय विदेश व्यापार सेवा के सबसे ईमानदार उच्चाधिकारी रंहे अतिरिंक्त महानिदेशक विदेश व्यापार महेश चन्द्रा की सेवाओं से लाभान्वित ंकिया जा सकता था। प्रदेश में पर्यावरण व ग्लोबल वार्मिग से बचाव के लिए एक गंगा यमुना ंजल-जंगल व पंर्यावरण की ठोस नीति बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की नोबेल सम्मान से सम्मानित समिति के वरिष्ठ वैज्ञानिक ंएच एंस कर्पवान ंकी प्रतिभा से लाभान्वित होना चाहिए था। ंप्रदेश में कला, संगीत को दिशा देने के लिए नरेन्द्रसिंह नेगी, हीरासिंह राणा व चन्द्रसिंह राही का मार्ग दर्शन ंलिया जाना चाहिए । प्रदेश में देव भाषा संस्कृत का विश्व में परचम फहराने के लिए विश्व के अग्रणी संस्कृति विद्वान व दिल्ली संस्कृत अकादमी के डेढ़ दशक तक संस्कृत का ंपरचम फेहराने वाले श्रीकृष्ण सेमवाल ंकी सेवायें ली जानी चांिहए थी। वहीं प्रदेश को ऊर्जा प्रदेश बनाने के लिए दशकों तक हाइथ्रो प्रोजेक्टों को ंदेश भर में ंबनाने का कीर्तिमान स्थापित करने वाले हाइथ्रो पावर ंकारपोरेशन ंके एमडी रहें ंगजेन्द्र रावत की सेवाओं से लाभान्वित किया जाना चाहिए। उत्तराखण्ड की शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए डा खडक सिंह बलदिया, प्रोफेसर पुष्पेश पंत, ंजवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय के ंपूर्व प्राफेसर डा विमल , भारतीय विद्याभवन के पूर्व प्रद्यानाचार्य जी एस नेगी ंका सांझा मार्ग दर्शन लिया जा सकता था। परन्तु प्रदेश के हितों की रक्षा का काम करने व प्रदेश की प्रतिभाओं को स्थान देने के बजाय ंदिल्ली के आकाओं के रिश्तेदारों, प्यादों व ंसंकीणर््ंा मानसिकता के लोगों को थोप कर प्रदेश के हितों के साथ घोर खिलवाड़ किया जा रहा है। बाहरी व निहित स्वार्थ में अंधे हुए लोग केवल उत्तराखण्ड को अपनी तिजोरी भरने के अलावा अगर कुछ करते हैं तो वह है प्रदेश की पूरी व्यवस्था पर ग्रहण लगाने का काम ही किया। स्वयं मेने दर्जनों पत्रकारों के बीच पूर्व मुख्यमंत्री ंनिशंक ने जब कहा कि ये तो प्रदेश के विकास पर चार चांद लगा रहे है। जब मेने तत्कालीन मुख्यमंत्री निशंक का ध्यान इस तरफ ंखिंचा तो वे बहुत ही कुर्सी की धनक से ंइस ंबात को नये सिरे से ही नकारने लगे। परन्तु ंहकीकत यह है उत्तराखण्ड गठन के बाद अगर किसी की सबसे अधिक शर्मनाक उपेक्षा हुई। यहां की उत्कृष्ठ प्रतिभाओं को नजरांदाज करके अपने नक्कारे प्यादों को आसीन किया । राज्य गठन के इन ग्यारह सालों में प्रदेश की सरकारों ने उत्तराखण्डी हितों परिसीमन, गेरसैंण राजधानी बनाने, मुजफरनगर काण्ड प्रकरण व भ्रष्टाचार आदि का कोई जनहितों के लिए ंकोई ईमानदारी से एक रत्ती भर का काम नहीं किया। अंत में मेरे मस्तिष्क में एक ही बात क्रोंध रही है कि उत्तराखण्ड में प्रतिभा की नहीं जातिवाद-क्षेत्रवाद , भाई भतीजाबाद व भ्रष्टाचार का ही बोलबाला हे। यहा ंपर प्रतिभायें दम तो़ड रंही है। जो प्रदेश से बाहर ंबस गये हैं उनंकी प्रतिभायें ही विश्व में भारत का नाम रोशन कर रही है। ंवह तो भगवान श्रीबदरीनाथ, नरसिंह, भैरव, ंजगदम्बे, हरि हर आदि ंदेवी देवताओं का अभिशाप ही राव, मुलायम, तिवारी, खण्डूडी व निशक जैसे सत्तालोलुपुओं की आशाओं पर बज्रपात ंकर दण्डित करते ंहै । एक सवाल मेरा आपसे भी है कि ंहम कब तक इन सत्तालोलुपुओं को उत्तराखण्ड रौंदने के लिए ंखुली छूट देंगे। राज्य गठन के लिए संसद पर निरंतर 6 साल तक धरना देने का ऐतिहासिक धरना प्रदशर््ंान ंकरने के बाद आज मैं इस मुकाम पर पंहुचा की ंउत्तराखण्डियों के हितों की यहां स्थापित भाजपा व कांग्रेस को कोई ंफ्रिक तक नहीं है । हमें अपने राज्य का निर्माण के ंिलए अब कांग्रेस व भाजपा की बैशाखियों की जरूरत नहीं अपितु अपनी माटी के दर्द वाला मशीहा अपने बीच में से ही तराशना होगा। तभी उत्तराखण्ड राज्यं गठन के शहीदों व आंदोलनकारियों के सपनों के आदर्श उत्तराखण्ड राज्य का गठन साकार होगा। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्री कृष्णाय् नमो।

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