मसूरी काण्ड के शहीदों को शतः शतः नमन् और उत्तराखण्ड के 12 साल के सभी गद्दार  हुक्मरानों को धिक्कार

2 सितम्बर 1994 को मसूरी में उत्तराखण्ड राज्य गठन के जनांदोलन में शहीद हुए अमर शहीदों की पावन स्मृति को शतः शतः नमन्। 

 2 सितम्बर 1994 को मसूरी शहर के हजारों लोग ‘आज दो अभी दो, उत्तराखण्ड राज्य दो के गगनभेदी नारों के साथ शांतिपूर्ण ढ़ग से राज्य गठन जनांदोलन में उतरे। लंढौर और किताबघर गांधी चैक से होते हुए झूलाघर के पास दोनों तरफ से आये आंदोलनकारी मसूरी के धरनास्थल की तरफ बढ़े तो वहां पर कब्जा जमाये पुलिस ने अकारण ही लोगों पर लाठियों की बौछार करते हुए मानवता को शर्मसार करते हुए गौलियों की बौछार से मसूरी लहू लुहान कर दिया। शांतिपूर्ण आंदोलनकारियों को गोलियों से भूनने के बाद भी पुलिस प्रशासन की हैवानियत कम नहीं हुई। पूरे शहर को रौंदा गया।  मानवता व लोकशाही को शर्मसार करने वाले इस घटना में हंसा धनाई, बेलमति चैहान, मदन मोहन ममगाई, बलबीर नेगी, धनपत सिंह, राम सिंह बंगारी ही नहीं इन हैवान पुलिस वालों को रोक रहे  तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक उमा शंकर त्रिपाठी पुलिस की गोलियों से शहीद हो गये।  इस काण्ड में ‘6 आंदोलनकारी जहां शहीद होने से इसकी आग पूरे उत्तराखण्ड में ही नहीं देश की राजधानी दिल्ली सहित देश विदेश में सुनाई देने लगी। हजारों की संख्या में आंदोलनकारियों ने इसके  विरोध में सड़कों में उतर कर आंदोलन किया। संसद की चैखट जंतर मंतर पर निंरंतर चल रहे राज्य गठन के प्रमुख आंदोलन में हर दिन हजारों की संख्या में आंदोलनकारी संसद पर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। स्वतंत्र भारत के इतिहास में राज्य गठन के लिए किसी राज्य के लिए पहली बार देश की राजधानी सहित देश के तमाम बडे महानगर किसी राज्य विशेष के आंदोलन से आंदोलित रहे। मुलायम सिंह यादव व उसकी सरकार जहां इस आंदोलन को सवर्ण आंदोलन कह कर बदनाम कर रहा था वहीं उत्तराखण्डी अपने सम्मान व पहचान के प्रतीक राज्य गठन आंदोलन को हर हाल में राज्य गठन कराने के लिए अपने आप को समर्पित किये हुए थे।  इन्हीं समर्पित आंदोलनकारियों व शहीदों की शहादत के कारण देश के हुक्मरान 2000 को राज्य गठन करने के लिए मजबूर हुए। परन्तु दुर्भाग्य रहा कि यहां के हुक्मरानों व नेताओं में इतनी नैतिकता नहीं रही कि वे राज्य गठन की जनांकांक्षाओं व राज्य के स्वाभिमान को रौंदने वाले खटीमा, मसूरी, मुजफरनगर काण्ड सहित तमाम काण्डों के गुनाहगारों को सजा दिलाने का ईमानदारी से पहल तक करते। राज्य का दुर्भाग्य रहा कि यहां पर तिवारी, खण्डूडी, निशंक व बहुगुणा जैसे खुदगर्ज, निहित स्वार्थो में अंधे घोर पदलोलुपु बौनी मानसिकता के मुख्यमंत्री आसीन हुए, जिन्होंने प्रदेश की लोकशाही, यहां के संसाधनों को ही नहीं अपितु इस राज्य की जनांकांक्षाओं पर भी अपनी बौनी मानसिकता व अक्षमता का गहण ही लगा दिया।
 खटीमा काण्ड के विरोध में व उत्तराखण्ड राज्य गठन के समर्थन में मसूरी में आयोजित प्रदर्शन को गोली लाठी के पुलिसिया दमन से कूचलने का घृर्णित कृत्य कराने वाले उप्र के तत्कालीन अमानवीय मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के दिये  मसूरी काण्ड के जख्म 18 साल बाद भी राज्य गठन आंदोलनकारियों के दिलों में नासूर बने हुए हैं। सबसे शर्मनाक बात यह है कि जिस राज्य गठन के लिए खटीमा, मसूरी, मुजफरनगरकाण्ड, देहरादून, श्रीयंत सहित अन्य स्थानों में राज्य के महान सपूतों ने अपनी शहादत दी उसी राज्य की सत्ता में आसीन भाजपा कांग्रेस की तिवारी, खण्डूडी, निशंक व अब बहुगुणा की सरकारों ने न केवल शहीदों की शहादत की जनांकांक्षाओं की निर्मम हत्या की अपितु प्रदेश में इन काण्डों के आरोपियों व मुलायम के कुकर्मो के कहारों को अपने अपने दलों में सम्मलित कराया। यही नहीं मुजफरनगर काण्ड के आरोपियों को जहां प्रदेश सरकार की गद्दारी से उनको बचाने का कृत्य किया गया अपितु प्रदेश के स्वाभिमान व न्याय का गला घोंटने वाले गद्दारों को प्रदेश में संवैधानिक पदों पर आसीन किया गया। यह देख कर भी न तो शहीदों की शहादत पर घडियाली आंसू बहाने वाले राजनेताओं, सांसदों, विधायकों की आत्मा ही जागृत हुई न हीं इन नेताओं को विकासपुरूष, ईमानदार व उत्तराखण्ड के लिए जरूरी बताने वाले पत्रकारों व समाजसेवियों की स्वार्थो में दम तोड ़ चूकी आत्मा ही जाग पायी। भाजपा व कांग्रेस ने तो उत्तराखण्ड के साथ इस मुद्दे पर गद्दारी की वहीं उत्तराखण्ड क्रांतिदल ने सत्ता के मोह में इस मुद्दे को केवल रस्म अदायगी की तरह लिया। आज तिवारी के उत्तराखण्ड विरोधी कुशासन के कारण मोहन बाबा उत्तराखण्डी को गैरसैंण राजधानी बनाने के लिए शहादत देने के लिए मजबूर होना पडा। जो जानते हैं वे अपने निहित स्वार्थो के कारण प्रदेश के भविष्य को जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई परिसीमन से जमीदोज करने वाले तिवारी व खण्डूडी जैसों पर मूक है। निशंक व बहुगुणा से किसी प्रकार की आश करना भी एक अपराध है। इनके लिए तो लगता है पूरा देश ही कम पडेगा। प्रदेश मे अब तक के किसी मुख्यमंत्री,ंमंत्री, किसी सांसद, विधायक को यहां का वह दर्द व छटपटाहट नहीं रही, जो प्रदेश के स्वाभिमान व हक हकूकों को रौंद रहे कुशासकों के कृत्यों को देख कर होना चाहिए। बहुत ही बौने कद के व बहुत ही संकीर्ण मानसिकता के जनप्रतिनिधी है। इनको अपने स्वार्थ के अलावा कुछ दूसरा दिखाई नहीं देता। आज प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस ने लोकशाही को अपने निहित स्वार्थो के लिए जातिवाद व भ्रष्टाचार के गटर ही बना दिया। नौकरशाही चंगेजीवृति में लिप्त है। प्रदेश में सर्वभक्क्षी जंतु व प्रवृति शासन प्रशासन में काबिज हो गयी है।  परन्तु इन सत्ता के भैडियों को इस बात का अहसास होना चाहिए कि उत्तराखण्ड की देवभूमि इनके कुकर्मो का दण्ड खुद देने में सक्षम है। इनको बेनकाब करके इनकी कुटिल मंशा को महाकाल खुद रौंद रहा है। राज्य गठन के महान शहीदों को शतः शतः नमन् और उत्तराखण्ड के हुक्मरानों को धिक्कार ।

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