हरक सिंह रावत का  विकल्प मानकर  कांग्रेस में कण्डारी को लाये क्या बहुगुणा?

डा हरक सिंह रावत के मजबूत प्रभाव से विरोधी थाम रहे हैं भाजपा का दामन

रूद्रप्रयाग जनपद में एक ही महीने में पूरा राजनैतिक नक्शा ही बदल गया है। यहां पर दो दशक से लम्बे समय तक भाजपा का झण्डा उठाने वाले पूर्व कबीना मंत्री रहे मातवर सिंह कण्डारी आजकल कांग्रेसी बन कर सोनिया व बहुगुणा की जय जय कार करते नजर आ रहे हैं। वहीं एक दशक तक पूरे कांग्रेस संगठन को चलाने वाले, कांग्रेस के वरिष्ठ दिग्गज नेता आर के धवन, चैधरी बीरेन्द्रसिंह व हरीश रावत के कभी करीबी रहे दिग्गज कांग्रेसी नेता बीरेन्द्र बिष्ट इन दिनों भाजपाई हो कर कांग्रेस की जड़ो में मट्ठा डाल रहे है। यह राजनैतिक रंग बदलने का तूफान लगता है यहीं पर थम नहीं रहा है। अभी यहां के आम लोगों व भाजपा के दिग्गज भी इसी बात से परेशान है कि भाजपा में दो दशक से अधिक समय तक रहे कद्दावर नेता मातवर सिंह कण्डारी यकायक बिना किसी बडे प्रकरण के कांग्रेस में क्यों सम्मलित हो गये। उनका भाजपा में सम्मलित क्या टिहरी उपचुनाव में कांग्रेसी प्रत्याशी साकेत की चुनावी नैया को पार लगाने के लिए बडी पतवार समझ कर किया गया या प्रदेश में आसीन बहुगुणा सरकार को कांग्रेस के अंदर से मिलने वाली संभावित चुनौती की धार को पहले से कुंद करने रूप में लिया गया। यह जगजाहिर है कि बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनने पर हरीश रावत से भी अधिक मुखर हो कर किसी ने विरोध किया तो वह मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार डा हरक सिंह रावत ने । भले ही तत्कालीन राजनैतिक मजबूरियों या कांग्रेसी आला नेतृत्व के कडे रूख के कारण यह विद्रोह भले ही थम गया हो परन्तु भविष्य में इसी प्रकार की आशंका से बहुगुणा व उनके सिपाहेसलार हर समय आशंकित है। इसी आशंका को निर्मूल बनाने के लिए रूद्रप्रयाग से डा हरकसिंह को प्रबल टक्कर दे सकने वाले भाजपा क्षत्रप को कांग्रेस में सम्मलित किया गया। यह धारणा कहां तक सही है यह तो स्वयं बहुगुणा, मातवर सिंह कण्डारी या डा हरक सिंह जानते होंगे परन्तु राजनीति में हर कदम से भावी राजनीति की तस्वीर समझने वाले इसको सामान्य घटना या मात्र साकेत की नौका को चुनावी भंवर से पार लगाने वाली घटना मानने के लिए तैयार नहीं।
इन दिनों वहां खुली चर्चा है कि रूद्रप्रयाग में कांग्रेसी क्षत्रप सतपाल महाराज के हनुमान समझे जाने वाले मजबूत कांग्रेसी नेता भरत चैधरी का भी अब कांग्रेस से मोह भंग हो गया है। उनकी भी भाजपा में सम्मलित होने की खुली चर्चायें हैं। इन दोनों कांग्रेसी नेताओं ने हालांकि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस में विधानसभा का टिकट न मिलने पर विद्रोही प्रत्याशी के रूप में चुनाव लडा था। अब भरत चैधरी के भी भाजपा में सम्मलित होने पर बीरेन्द्र सिंह बिष्ट भी खुद को सहज महसूस नहीं कर पा रहे होंगे क्योंकि रूद्रप्रयाग से मिले मतों की दृष्टि से बीरेन्द्र सिंह बिष्ट पर भरत चैधरी भारी पड़ सकते हैं क्योंकि निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में ं भरत सिंह चैधरी को 7988 मत व वीरेंद्र सिंह बिष्ट ने 3754 मत हासिल हुए थे। हालांकि रूद्रप्रयाग की विधानसभा सीट इस समय कांग्रेस के पास हैं, परन्तु कांग्रेस के दिग्गज प्रांतीय नेता डा हरक सिंह रावत के यहां से विधायक होने से इस सीट पर कांग्रेसी टिकट की आश लगाने वाले अन्य कांग्रेसी नेताओं को इस बात का विश्वास हो गया कि  अब अगले विधानसभा चुनाव में इस सीट से उनको टिकट मिलना नामुंकिन है। इन्हें आशंका है कि इस सीट से उसी को टिकट मिलेगी जिसको डा हरक सिंह रावत चाहेंगे। नेताओं को इस बात का भी विश्वास है कि भले ही डा हरकसिंह रावत रूद्रप्रयाग से लेन्सीडान की तरह ही फिर चुनाव न लड कर डोईवाला या किसी अन्य सीट से चुनावी दंगल में उतर सकते है। परन्तु इस सीट पर लैन्सीडान सीट की तरह टिकट वितरण में उनकी ही चलेगी। भले ही सतपाल महाराज के संसदीय क्षेत्र में आने वाली यह विधानसभा सीट हो परन्तु लैन्सीडान की तरह यह यहां पर सतपाल महाराज के बजाय डा हरक सिंह रावत के निर्णायक रहने की आशंका है। गौरतलब है कि जिस प्रकार से रूद्रप्रयाग विधानसभा सीट से डा हरक सिंह रावत के करीबी कांग्रेसी नेत्री लक्ष्मी राणा को भी इस सीट का सबसे मजबूत प्रत्याशी माना जा रहा था । अगर उस सीट से डा हरक सिंह रावत को कहीं अन्य सीट से प्रत्याशी बनाया जाता तो इस सीट से लक्ष्मी राणा को टिकट मिलना तय माना जा रहा था। ऐसी स्थिति में कांग्रेसी प्रत्याशियों को कांग्रेसी टिकट वितरण प्रणाली व अपने आकाओं की कमजोर स्थिति को देख कर उन्होंने भाजपा में सम्मलित होना ही श्रेयकर समझा। परन्तु भाजपा से कांग्रेस में सम्मलित हुए पूर्व कबिना मंत्री मातवरसिंह कण्डारी के कांग्रेस में सम्मलित होने से स्थिति और जटिल हो गयी है। अब यहां से टिकट की दावेदारी में मातवरसिंह कण्डारी व डा हरकसिंह रावत के बीच में होगी। हालांकि डा हरक सिंह यहां से भले ही चुनाव न लडें फिर भी मातवरसिंह कण्डारी उनके रिश्ते में बडा साढू भाई होने के बाबजूद दोनों में टकराव होना निश्चित माना जा रहा है। क्योंकि डा हरक सिंह रावत पर अपने करीबी समर्थक को टिकट दिलाने का भारी दवाब होगा। देखना है अगले चुनाव तक कांग्रेस की राजनीति में ऊंट किस करवट बदलता है। वहीं प्रदेश की राजनीति के जानकार मातवरसिंह कण्डारी को  कांग्रेस में लाने की घटना को सरकार के खिलाफ भविष्य में होने वाले किसी विद्रोह का पहले से जवाब देने का बहुगुणा सरकार के प्रबंधकों का दाव भी मान रहे है। यह अप्रत्यक्ष रूप से हरकसिंह रावत पर दवाब बनाने की रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है।

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