मुख्यमंत्री बहुगुणा के बेटे या पत्नी के कांग्रेसी प्रत्याशी होने पर चुनावी दंगल में नहीं उतरेंगे खण्डूडी

टिहरी लोकसभा के लिए 10 अक्टूबर को होगा चुनाव,13 अक्टूबर को होगी मतगणना

देहरादून।(प्याउ)। टिहरी उत्तरकाशी लोकसभा के उपचुनाव के लिए चुन
ाव आयोग ने रणभेरी बजा दी हैं। इसके तहत 10 अक्टूबर को मतदान और 13 अक्टूबर को मतगणना होगी। इस चुनाव घोषणा के साथ ही इस पूरे संसदीय क्षेत्र में चुनाव आचार संहिता लागू हो गयी है। इसकी विद्यिवत अधिसूचना 15 सितम्बर को जारी होगी। 22 सितम्बर तक नामांकन की अंतिम तिथि होगी, 24 को नामंकन की जांच व 26 को नाम वापसी की अंतिम दिन होगा। इस लोकसभा में लम्बे समय तक टिहरी के पूर्व महाराजा मानवेन्द्र शाह सांसद रहे। अपनी ईमानदारी व निष्पक्षता के कारण वे टिहरी राजशाही के दागदार कुशासन के बाबजूद जनता ने अन्य प्रत्याशियों के बजाय उनको लगातार अपना सांसद चुनती रही। बोल्दां बदरी के नाम से जनता में विख्यात महाराजा मानवेन्द्र शाह केे जीवित रहते रहते इस सीट पर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा जिनके इस्तीफे देने से यह संसदीय सीट पर उप चुनाव हो रहे है, तमाम कोशिश करने के बाबजूद विजय के दर्शन तक नहीं कर पाये। उनके निधन के बाद
दस अक्टूबर को होगा टिहरी लोससभा चुनाव में विजय बहुगुणा चुनाव में विजय हासिल कर सके। इस जीत पर भी भाजपा के प्रत्याशी जसपाल राणा ने भाजपा में भीतरीघात होने की शिकायत भाजपा नेतृत्व से की थी। एक चुनाव जिसमें विजय बहुगुणा विजय रहे उसमें वहां पर यह यह चर्चा आम थी कि अगर भाजपा के अग्रणी नेता खण्डूडी के करीबी मित्र डीआईजी राणा चुनाव की रणभेरी के समय भाजपा से इस्तीफा दे कर उक्रांद के प्रत्याशी बन कर चुनावी दंगल में नहीं उतरते तो इस चुनाव में शायद ही विजय बहुगुणा को विजय के दर्शन तक हो पाते। इस चुनाव में जहां भाजपा का प्रत्याशी को इसी कारण हार का सामना करना पडा, अब उस समय भाजपा से विद्रोह करके उक्रांद के प्रत्याशी बने राणा का नाम आज फिर प्रदेश भाजपा द्वारा इस सीट के दस प्रत्याशियों के पैनल में केन्द्रीय नेतृत्व के पास भेजा गया है। गौरतलब है कि इन्हीं डीआईजी राणा को खण्डूडी जी टिहरी में विधानसभा चुनाव के प्रत्याशी बनाने का हर समय प्रयास करते रहते परन्तु महाराजा टिहरी के प्रखर विरोध के कारण खण्डूडी जी अपने इस मित्र को चुनाव की टिकट नहीं दिला पाये। इस लिस्ट में सबसे पहला नाम भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री व पौडी जनपद के मूल निवासी खण्डूडी जी का है। दूसरा नम्बर महारानी टिहरी का है। इस लिस्ट में हालांकि मातवरसिंह कण्डारी का पांचवां नाम है परन्तु वे इससे खपा है कि 10 संभावित दावेदारों की इतनी लम्बी लिस्ट क्यों प्रदेश कमेटी ने केन्द्रीय नेतृत्व को भेजी है। वहीं टिहरी के जमीनी नेता मुन्नासिंह चैहान के भाजपा में सम्मलित होने के बाद भले ही उनके नाम को पेनल में नहीं भेजा गया है, इस सीट पर भाजपा की स्थिति और मजबूत हो जायेगी। वेसे सुत्रों का कहना है कि भाजपा टिहरी की महारानी को इस सीट से चुनावी दंगल में उतारने का मन बना लिया। क्योंकि भाजपा नेतृत्व को इस बात की आशंका है कि अगर टिहरी लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस मुख्यमंत्री के बेटे या पत्नी को चुनावी दंगल में उतारती है तो इस चुनाव में भाजपा की तरफ से भुवनचंद खण्डूडी का चुनावी दंगल में उतरने की संभावना बहुत कम है। लोगों में यह आम धारणा है कि विजय बहुगुणा भी अपने ममरे भाई खण्डूडी से सीधे चुनावी दंगल के टकराव से बचने के लिए ही अपने पैतृक जनपद पौडी संसदीय सीट को छोड कर टिहरी लोकसभाई सीट पर चुनावी समर में उतरे है। कांग्रेस से तिवारी कांग्रेस के प्रत्याशी होते समय पौडी संसदीय सीट से चुनावी समर में उतरे सतपाल महाराज ने भी उस समय कांग्रेस से विजय बहुगुणा को पौडी संसदीय सीट से उतारने की खुली चुनौती दी थी। हालांकि वर्तमान में सतपाल महाराज व विजय बहुगुणा दोनों कांग्रेसी सत्तासंघर्ष में एक ही सिक्के के दो पहलू बने हुए है।
इस तरह अधिकांश लोगों को इस बात का पूरा विश्वास है कि कांग्रेस के दिल्ली में बैठे आला नेतृत्व को गुमराह करके अपने निहित स्वार्थ पूर्ति करने वाले जनता व कांग्रेसी कार्यकत्र्ताओं से कटे मठाधीश इस उपचुनाव में भी विजय बहुगुणा के परिजनों यानी बेटे या पत्नी को कांग्रेस की तरफ से इस लोकसभा उपचुनाव में प्रत्याशी बना कर उतारेगे। क्योंकि जिस प्रकार विजय बहुगुणा को पर्याप्त विधायकों का समर्थन न होने के बाबजूद कांग्रेसी आलाकमान ने मुख्यमंत्री के रूप में थोप कर पूरे देश में कांग्रेस की जहां किरकिरी करायी वहीं अण्णा, बाबा रामदेव व भाजपा को ठुकरा कर विधानसभाई चुनाव में कांग्रेस का समर्थन करने वाले उत्तराखण्ड की जनता के जनादेश का अपमान भी किया। कांग्रेसी नेतृत्व के इसी निर्णय से उत्तराखण्ड की जनता ठगी महसूस कर रही है। आज पूरे प्रदेश में भले ही कांग्रेस की सरकार चल रही है परन्तु कांग्रेसी मुख्यमंत्री को हर दिन अपने विधायकों व सांसदों का जिस प्रकार से भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है तथा विजय बहुगुणा द्वारा अपने आप को उत्तराखण्ड के बजाय बंगाली मूल का बताने से जनता में गहरा आक्रोश है। इसके साथ टिहरी की जनता में यहां से खण्डूडी को पहला प्रत्याशी बनाये जाने के कारण बाहरी लोगों को ही टिहरी में थोपे जाने के जख्मों हवा दे दी। इस संसदीय क्षेत्र की जनता चाहती है कि इस संसदीय क्षेत्र का निवासी ही यहां पर प्रत्याशी हो बाहर से यहां किसी भी हाल में प्रत्याशी नहीं थोपे जायें। हालांकि कांग्रेस में भाजपा से कांग्रेस में आये ख्यातिप्राप्त जसपाल राणा, टिहरी उत्तरकाशी से साफ छवि के नेता केदारसिंह रावत, हीरासिंह बिष्ट, शूरवीरसिंह सजवाण व किशोर उपाध्याय के अलावा पूर्व राज्यपाल रहे ले. जनरल मदनमोहन लखेड़ा भी प्रमुख दावेदारों में से है। परन्तु मुख्यमंत्री की प्रवृति व उनकी कांग्रेसी मठाधीशों से अति निकटता को देखते हुए अधिकांश लोगों को विश्वास है टिहरी संसदीय सीट पर विजय बहुगुणा अपने परिवार से बहार के प्रत्याशी उतारने की सोच भी नहीं सकते है। सुत्रों के अनुसार उनकी रणनीति के अनुसार चंद दिनों में इस संसदीय सीट से सभी विकासखण्ड के कांग्रेस कमेटी द्वारा विजय बहुगुणा परिजन के पक्ष में अपने समर्थन पत्र मिल जायेंगे। हालांकि विधानसभा चुनाव के समय खुद मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा बहुत जोरशोर से प्रदेश कांग्रेस में कांग्रेसी नेताओं के तथाकथित परिवारवाद पर प्रहार करते हुए दो टूक शब्दों में परिवारवाद नहीं चलेगा की हुंकार भर रहे थे। अब देखना यह है समय की कसोटी में विजय बहुगुणा को अपनी वह हुंकार सुनाई भी देती है या नहीं?

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