आतंकी पाक से उपदेश सुनने के बजाय आतंकियों का अमेरिका की तरह सफाया करे भारत

आतंकी पाक से वार्ता करने के बजाय उसके आका अमेरिका से दो टूक बात करे भारत 

नापाक पाक से आतंकवाद पर वार्ता करना ही भारत की एकता-अखण्डता व स्वाभिमान से शर्मनाक खिलवाड है।  अमेरिका की शह पर भारत को आतंकी गतिविधियों से तबाह करने को तुले नापाक पाकिस्तान, भारत के खुदगर्ज हुक्मरानों की देश के हितों, अखण्डता व सम्मान के प्रति घोर उपेक्षा व नपुंसक सत्तालोलुपु प्रवृति को देखकर ,पाकिस्तान अपनी  आंतकी गतिविधियों को रोकने के बजाय शर्मनाक ढ़ग से भारत को उल्टा आतंकवाद पर उपदेश देने की धृष्ठता कर रहा है।
ना जाने भारतीय हुक्मरानों की इस बात की सुध कब आयेगी कि आतंकी पाकिस्तान से वार्ता करने से न तो उसका भारत विरोध आतंकी अभियान ही समाप्त होगा और नहीं भारत पाक के रिश्ते ही सामान्य हो पायेंगे। यह सर्वविदित तथ्य है कि पाकिस्तान की पूरी व्यवस्था की डोर ही नहीं सेना सहित आतंकी संगठनों की डोर भी अमेरिका के हाथों में है। भारत में पाक द्वारा आतंकी गतिविधियों को बढ़ा कर अमेरिका एक तो भारत की अखण्डता को सोवियत संघ की तरह तहस नहस करना चाहता है और  दूसरा वह इसकी  आर्थिक, राजनैतिक व सामरिक शक्ति को कुंद करना चाहता है। पाकिस्तान तो दशकों से अमेरिका के हाथों में एक कटपुतली से अधिक कूछ नहीं है। दुर्भाग्य यह है कि विगत 15 सालों से अमेरिका ने भारत को भी पाक की तरह अपने शिकंजे में जकड़ लिया है। इसलिए अमेरिका के इशारे पर भारत के शासक, बार बार नापाक पाक से वार्ता करते हैं और पाकिस्तान हमेशा कश्मीर प्रकरण को हवा देते हुए भारत द्वारा आतंकवाद को बढ़ावा देने के साक्ष्यपूर्ण आरोपों को भी सिरे से नकार कर उल्टा भारत को उपेदेश देता है। इन वार्ताओं के बाद पाकिस्तान की शह पर भारत में बड़ा आतंकी हमला किया जाता है। जो कई वर्षो से निरंतर जारी है। यह वाजपेयी की लाहौर यात्रा, मुशर्रफ से आगरा वार्ता व मनमोहन के शासन काल की तमाम वार्ताओं के परिणाम एक ही बात को उजागर करते हैं नापाक पाक हर वार्ता के बाद और खौपनाक ढ़ग से भारत में अपनी आतंकी गतिविधियों को बढावा देता रहा। जम्मू कश्मीर हो या मुम्बई या संसद हो या कारगिल सभी में पाक के नापाक संलिप्ता व उसको अमेरिका द्वारा मिला शर्मनाक संरक्षण इस बात को बेनकाब करता है कि भारत के खिलाफ नापाक पाक की आतंकी मुहिम का संचालन अमेरिका के द्वारा ही होता है। हाॅं अफगानिस्तान में अमेरिका के हमले के बाद अब पाक पर अमेरिका के साथ साथ चीन ने भी पाक को अपना प्यादा बना कर वहां के तंत्र पर अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। इस प्रकार अमेरिका व चीन दोनों ही पाक से भारत के खिलाफ पाक को कठपुतली की तरह प्रयोग करते है।  अमेरिका के खुफिया ऐजेन्सी सीआईए हो या एफबीआई या अन्य इनके ऐजेन्ट पाक की आईएस आई से मिल कर भारत में आतंकी गतिविधियों को कैसे संचालन कराती है यह अमेरिकी ऐजेन्ट हेडली व राणा आदि के अमेरिका में गिरफतार होने व उन ऐजेन्टों को भारत को न सांेपने के अमेरिकी हटधर्मिता से साफ हो गया कि भारत में सचालित अधिकांश आतंकी गतिविधियों का संचालन अमेरिका पाक के द्वारा कराता है। जब भी कारगिल से लेकर संसद हमले में पाक को भारत कडा सबक सिखाने के लिए दो कदम आगे बढ़ाने की कोशिश भी करता है तो अमेरिका पाक की रक्षा के लिए सीधे भारतीय हुक्मरानों को डपट कर उनको अपने कदम वापस लेने के लिए मजबूर कर देता है।
यही नहीं अमेरिका के भारत में वाजपेयी के बाद सबसे प्रिय प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह के शासनकाल में हुए मुम्बई में आतंकी हमले में पाक को इस घटना में पाक की संलिप्तता के सबूत देने के अलावा कोई कडा कदम उठाने तक की हिम्मत मनमोहन सरकार ने नहीं दिखाई। अमेरिका व पाक के हुकमरानों को इस बात का अहसास है कि अगर इस प्रकार के नापाक कृत्य इंदिरा गांधी के कार्यकाल में पाक के द्वारा किये जाने की हिम्मत की जाती तो दुनिया के नक्शे में पाक ढूढने से नहीं मिलता। इंदिरा गांधी ने अपने कार्यकाल में न केवल पाक के हुक्मरानों को अपने मांद में दुबकने के मजबूर कर दिया अपितु बंगलादेश को पाक से अलग करा कर उसको करारा सबक सिखाया। नहीं नहीं अगर इंदिरा गांधी को एक अन्य कार्यकाल मिलता तो सिंध व बलूचिस्तान जैसे पाकिस्तानी हुक्मरानों द्वारा शोषित प्रांत भी आज बंगलादेश की तरह अगल देश बन कर नापाक पाक को भारत से शत्रुता रखने का दंश से मर्माहित करते रखता। परन्तु दुर्भाग्य रहा कि भारत में राजग कार्यकाल में वाजपेयी सरकार में अमेरिका ने भारत में अपने पांव जमाने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल करके अपनी सबसे खतरनाक खुफिया ऐजेन्सी एफबीआई को भारत में कार्य करने की अनुमति पहली बार वाजपेयी के कार्यकाल में हासिल की। यही नहीं अमेरिका ने भारतीय रक्षामंत्री जार्ज को अपने देश में सुरक्षा जांच के नाम पर कपडे उतार कर अपमानित किया परन्तु क्या मजाल भारतीय संस्कृति की हुंकार भरने वाली भाजपा व संघ के शीर्ष आदर्श नेता व तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी ने उफ तक किया। यही नहीं कारगिल, कंधार व संसद हमला करा कर अमेरिका ने भारत के सम्मान को बहुत ही बेरहमी से पाक द्वारा रौंदवाया ही नहीं अपितु भारतीय हुक्मरानों को पाक को दण्डित करने की मंशा को अपनी फटकार से ही कुंद किया। इस प्रकार भाजपा हो कांग्रेस दोनों की सरकारों के दौरान इन 15 सालों में अमेरिका ने अपने प्यादा पाक द्वारा भारत के सम्मान, एकता व अखण्डता पर इतने शर्मनाक हमले कराये परन्तु क्या मजाल की भारत के हुक्मरान पाक को कडा सबक सिखाने की हिम्मत तक नहीं कर पाये। केवल अमेरिका के इशारे पर पाक से वार्ता की नपुंसकता लौहोर से आगरा व अन्य स्थानों में निर्लज्जता से किया जाता रहा और अब पाक में इसी पर विदेश मंत्रियों का वार्ता का नाटक किया जा रहा है। इस वार्ता के प्रति पाक का नजरिया कितना मैत्रीपूर्ण व यथार्थवादी धरातल पर टिका है इसका एहसास पाक की  विदेशमंत्री हिना रब्बानी खार के इस नजरिये साफ हो जाता है जिसके तहत उन्होंने भारत पर कूटनीतिज्ञ हमला करते हुए कहा कि वह मुंबई हमलों की सुनवाई को ‘यर्थाथवादी’ नजरिए से देंखे। इस मामले में ‘भावुक’ होने की जरूरत नहीं है। ‘आतंकवाद अतीत का मंत्र था, यह भविष्य का मंत्र नहीं है।’ ‘एक ही बात को बार-बार दोहराने से मामला सुलझेगा नहीं। अब ऐसी नापाक मंशा व अपने पापों के प्रति प्रायश्चित का यथार्थ नजरिये से दूर हो कर धूर्तता व छल कपट पूर्ण नजरिये वाले पाक से वार्ता अमेरिका के दवाब में हासिल करके अमेरिका के प्रिय मनमोहन सिंह व उनकी सरकार को और कितना शर्मसार कराना चाहती है? कश्मीर विवाद को पाक अमेरिका के इशारे पर हमेशा आतंकी हवा पानी देता रहा। इसको जानने के बाबजूद भारतीय प्रधानमंत्री की पहल पर बनायी गयी कश्मीर वार्ताकारों की रिपोर्ट का एक एक शब्द वही है जो अमेरिकी कश्मीर रणनीति का हिस्सा रहा है। ऐसी सरकार जो भारतीय अखण्डता व सम्मान से खिलवाड करने वालों द्वारा नापाक इरादों को कुचले बिना उनकी नापाक चालों को ही स्वीकार करने की रिपोर्ट बनाती हो तो उसे दुर्भाग्य नहीं कहा जायेगा तो क्या कहा जाय।
भारत हुक्मरानों की भारतीय हितों व सम्मान के प्रति उदासीनता देख कर देश भक्त संगठनों, बुद्धिजीवियांे, पत्रकार व देशभक्त जनमानस का पहला कत्र्तव्य है कि वह सरकार से दो टूक शब्दों में जनदवाब से समझाये कि आतंकी हमलों को रोके बिना पाक से वार्ता करने से देश के हितों का ही गला घोंटेगा। सरकार को चाहिए कि आतंकी पाक से वार्ता करने के बजाय उसके आका अमेरिका से ही दो टूक वार्ता करके अमेरिका से अपने नापाक इरादों पर अंकुश लगाने की मांग करनी चाहिए। अगर अमेरिका नहीं मानता है तो खुद भारतीय हुक्मरानों को इंदिरा गांधी की तरह पाक को कड़ा सबक सिखाना चाहिए और आतंकियों के शिविरों पर हमला करना चाहिए।  ऐसी वार्ता का क्या फायदा जिसके वार्ता से पहले पाक शासक 26 नवम्बर को मुम्बई आतंकी हमलों के वांछित सरगना को लाहौर में आतंकियों की भारत विरोधी रैली करवा कर भारत की भावनाओं को पैरों तले कुचलने का काम करते हों। इस मनोवृति को देख कर इस प्रकार की सभी वार्ता तत्काल बद कर पाकिस्तान से सभी सम्बंध तोड़ देने चाहिए और अमेरिका से भी दो टूक शब्दों में अपने नापाक इरादों पर अंकुश लगाने की फटकार लगानी चाहिए। आज के दिन जितनी जरूरत भारत को अमेरिका की है उससे अधिक जरूरत अमेरिका को भारत की है। इसलिए भारतीय हुक्मरानों को अमेरिका के मोहपाश में बंध कर भारत एक एकता, अखण्डता व सम्मान से खिलवाड़ करके पाक से वार्ता करने तथा कश्मीर के अलगाववादी प्रवृति को रौंदने के लिए ठोस रणनीति पर अमल करना चाहिए। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्री कृष्णाय् नमो।

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