भारत रत्न से सम्मानित करें स्वेत क्रांति के महानायक को सरकार 

-दुग्ध क्रांति के महानायक डा वर्गीज कुरियन का निधन

भारत में दुग्ध क्रांति करके विश्व में भारत का परचम फेहराने वाले  महानायक डा वर्गीज कुरियन का 90 साल की उम्र में नाडियाल अस्पताल में निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार 9 सितम्बर को  4 बजे आणंद गुजरात में होगा। देश विदेश में उनके इस महान कार्य के लिए सम्मानित किया गया। उनके सामुदायिक नेतृत्व में महान योगदान के लिए 1963 में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सम्मान - रेमन मगसे अवार्ड से सम्मानित किया गया। 1965 में पद्मश्री, 1966 पद्म भूषण, 1986 में कृर्षि रत्न पुरस्कार, 1986 में वाटलर शांति पुरस्कार, 1993 मे अमेरिका में डेयरी एक्सप्रो में अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व का पुरस्कार, 1999 में पद्म विभूषण का सम्मान, 2003 में गाॅडफ्र फिलिप्स बहादूरी का सम्मान, 2007 में कर्मवीर पुरस्कार सहित अनैक प्रतिष्ठित पुरस्कारो ंसे सम्मानित किये गये। परन्तु देश का दुर्भाग्य यह रहा कि देश के लाखों लोगों को ससम्मान आत्म निर्भर बनाने वाले व दुग्ध क्रांति के महानायक को भारत के हुक्मरानों ने जीते जी भारत रत्न से सम्मानित नहीं किया। ‘श्री कृष्ण विश्व कल्याण भारती, भारतीय मुक्ति सेना, उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा  व ‘प्यारा उत्तराखण्ड परिवार इस महान कर्मयोगी के युगान्तकारी जीवन को शतः शतः नमन् करते हुए भारत सरकार से पुरजोर निवेदन किया कि  डा कुरियन को जीते जी भारत रत्न के सम्मान से सम्मानित न करने की सरकारी भूल में अविलम्ब सुधार करते हुए जमीनी धरातल में अपने महान कार्यो से देश के लाखों लोगों के जीवन में खुशहाली लाने वाले व पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन कराने वाले महा कर्मयोगी डा. वर्गीज कुरियन को भारत रत्न से सम्मानित करे।  इन संस्थाओं ने भारत सरकार सहित समाज से अपील की है कि भगवान श्रीकृष्ण के सर्वभूतहिते रता व प्राणी जड़ चेतन के कल्याण करने के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित हैं वालों से पूरा विश्व समुदाय प्रेरणा लें और उनके विचारों व कर्मो को अपने जीवन में आत्मसात करके इस विश्व को खुशहाल बनायें।
डा. कुरियन जेसे महान सपूतों ने अपने सतकर्मो से पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन किया वहीं लाखों लोगों को ससम्मान जीवन जीने की आत्मनिर्भरी राह दिखाई। आज उनके योगदान को स्वेत क्रांति के नाम से देश विदेश में सम्मान के साथ स्वीकारा जाता है । उन्होंने गुजरात के क्ेरा जनपद में दुग्ध की छोटी सी कोपरेटिव सोसायटी केडीसीएमपीयूल के चियरमेन होने के बाद प्रारम्भ अपने इस महान सफर में आज 9 लाख लोगों का एक मजबूत संगठन अमूल के नाम से विश्व विख्यात है।  26 नवम्बर को केरल के कोझीकोडे में जन्में डा वर्गीज कुरियन ने 1940 में मद्रास विश्व विद्यालय के लोयोला कालेज से भौतिक विज्ञान से स्नातक किया। उन्होंने 1944 में इसी विश्वविद्यालय से मेकनिकल में बीई । उसके बाद इंजीनियरिग उन्होंने टाटा इस्पात कम्पनी इंस्टीटयूट जशमेदपुर से पूरी की। उन्होंने राष्ट्रीय डेयरी रिसर्च इंस्टीटयूट बंगलोर से 9 माह की विशेष दक्षता अर्जित की। उन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर सरकारी छात्रवृति अर्जित करने के साथ साथ अमेरिका के मिचिगन स्टेट विश्वविद्यालय से 1948 में विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाद्यि ग्रहण की।  इसके बाद अमेरिका से भारत वापस आने के बाद उन्होंने भारत सरकार के डेयरी विभाग में डेयरी इंजीनियर के पद पर गुजारात के आनन्द में 1949 आसीन हुए। 7 माह के सरकारी सेवा के बाद उनका मन वहां नहीं रमा। उनके दिलो दिमाग में कुछ विशेष करने की लहरे रह रह कर उनको सरकारी बंधन से मुक्त होने के लिए उद्देल्लित कर रही थी। इसके बाद वे केडीसीएमपीयूल के मनेजर बन गये जो आज अमूल के नाम से विश्व विख्यात है। उनके असाधारण योगदान को देख कर तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादूर शास्त्री ने उनके नेतृत्व में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड 1965 में बनवाया। इसी दोरान उनके नेतृत्व में चल रही आंनन्द दुग्ध उत्पादक यूनियन का अमूल नाम का दुग्ध पूरे देश में विख्यात हो गया। इसका सही विपणन करने के लिए कुरियन ने गुजरात कोपरेटीव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन के नाम से अमूल के उत्पादन की विक्री के लिए एक संगठन 1973 में बनाया और 2006 तक उससे जुडे रहे।  वे विकसित भारत फाउंडेशन के प्रमुख रहे।  उन्होने असंगठित ग्रामीण भारत के दुग्ध उत्पादकों को जहां आर्थिक मजबूती दिला कर सम्मान दिलाया वहीं पूरे विश्व को एक दिशा दिखाई। आज भले ही डा कुरियन सदेह हमारे बीच में न रहे हो परन्तु उनके कार्य आज लाखों लोगों के जीवन को जहां रोशन किया हुआ है वहीं दशकों से करोडों लोगों के प्रेरणा के पूंज बने हुए है। उनकी पावन स्मृति को शतः शतः नमन्।
   

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