-गैरसेंण में 2 अक्टूबर को हो रही केबिनेट बैठक से राजधानी गैरसेंण बनाने की मांग को मिलेगा बल




-जनता व आंदोलनकारी इसका स्वागत करके राजधानी गैरसेंण बनाने को मजबूर करें सरकार को 

जब घनधोर अंधेरी रात हो तो जुगुनुओं की झिलमिलाहट भी राह चलते हुए
राही के लिए किसी बरदान से कम नहीं होती। ऐसा ही उत्तराखण्ड के साथ है। यहां पर उत्तराखण्ड की जनांकांक्षाओं को राज्य गठन से पहले व बाद ं के मुख्यमंत्रियों ने बहुत ही निर्ममता से गला घोंटा। यहां पर विकास के नाम पर जातिवाद, क्षेत्रवाद, भ्रष्टाचार का कुशासन देने के अलावा यहां की अब तक की निर्वाचित सरकारों ने एक ही काम किया कि प्रदेश की उन जनांकांक्षाओं की निर्ममता से हत्या की। यहां के संसाधनों को अपने प्यादों को लुटवाये। प्रदेश के भविष्य को जनसंख्या पर आधारित परिसीमन थोप कर रौंदा गया। प्रदेश के स्वाभिमान को रौंदने वाले मुजफरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को यहां की सरकारों ने शर्मनाक संरक्षण दिया। गैरसेंण को स्थाई राजधानी बनाने से रोकने के लिए गैर उत्तराखण्डी व्यक्ति को प्रदेश के भविष्य रोंदने के लिए दस सालों तक राजधानी चयन आयोग का अध्यक्ष बनाने की धृष्ठता की गयी। हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे यहां हिमाचल की तरह समर्पित परमार जैसे कुशल मुख्यमंत्री मिलने के बजाय तिवारी, खण्डूडी, निशंक व बहुगुणा जेसे उत्तराखण्ड के हक हकूकों व भविष्य को अपने निहित स्वार्थ के लिए रौंदने वाले मुख्यमंत्री मिले। यहां पर अधिकांश सांसद भी इसी प्रवृति के पोषक रहे। सांसद व विधायक भी प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की तरह प्रदेश के हितों को अपने निहित स्वार्थ के लिए रौदते हुए देखते रहे। किसी को तेलांगना के सांसद व मंत्रियों की तरह अपने पदों से इस्तीफा देने की हिम्मत तक नहीं है।
ऐसे समय में जब जनहितों व जनमुद्दों की को सुनने वाला कोई नहीं है। प्रदेश के हितों के प्रति नेताओं की तरह आम जनता भी उदासीन है। समाजसेवी व पत्रकार जनहितों के लिए समर्पित लोगों की उपेक्षा व अपमान करने को अपनी महानता समझते हैं। ऐसे समय अगर कोई गैरसेंण मुद्दे को हवा देता हो तो उस अवसर को हमको और हवा दे कर उसका लाभ उठाना चाहिए। राजनीति में हम आज के दिन आशा करें की लोग निस्वार्थ हो कर बिना लोकेषणा के कार्य करेगे तो यह एक प्रकार की भूल होगी। आज जहां गैरसैंण मुद्दे को इसी बहाने जनता व जनप्रतिनिधियों का ध्यान जा रहा है तो वह हम जेसे आंदोलनकारियों को किसी ऊर्जा से कम नहीं है। मैने करीब से देखा 12 सालों में राज्य गठन के किसी सरकार में गैरसेंण का नाम लेने की हिम्मत तक नहीं रही। गैरसैंण केवल स्थान नहीं अपितु आज प्रदेश में लोकशाही व उत्तराखण्ड राज्य गठन की जनांकांक्षाओं का प्रतीक बन गया है। आज जमीनी हकीकत यह है कि हमारे राजनैतिक दलों व सामाजिक संगठनों में इतना नैतिक बल नहीं रहा कि इस पर व्यापक जनांदोलन तैयार किया जाय। अधिकांश लोग अपने पैतृक गांव छोड़ कर कस्बा नुमा शहरों में बस चूके है। ऐसे समय जब हमारे अधिकांश विधायक व सांसद गैरसेंण के मुद्दे को उठाना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं तो ऐसे में सतपाल महाराज के प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा द्वारा यहां पर मंत्रीमण्डल की बैठक करना भी प्रत्यक्ष रूप से आंदोलनकारियों व शहीदों की यहां पर राजधानी बनाने की मांग की जीत ही है। प्रदेश में देर सबेर गैरसेंण में राजधानी हर हाल में बनानी पडेगी। उत्तराखण्ड की देवभूमि में यह ताकत है कि वह इन सत्तामद में चूर सरकारों, उदासीन जनता व भ्रष्ट जनप्रतिनिधियों की इच्दा के बाबजूद यह कार्य पूरा करने के लिए इनको मजबूर करेगी।
होना तो चाहिए था कि जिस दिन राज्य बना उसी दिन प्रदेश की स्थाई राजधानी गैरसेंण घोषित कर दी जानी चाहिए। राजधानी चयन आयोग को बनाने के बजाय तुरंत राजधानी बनाने का दल गठन करना चाहिए। परन्तु तिवारी जैसे पथभ्रष्ट उत्तराखण्ड विरोधी मुख्यमंत्रियों के रहते यह आशा करना नासमझी ही होगा। आज हमारे पास केवल दो ही सांसद सतपाल महाराज व प्रदीप टम्टा ऐसे हैं जो गैरसैंण मुद्दे पर पक्षधर हैं या नामलेवा है। चाहे आधे अधूरे या राजनीति स्वार्थ के लिए ही सही। ऐसे में हम आंदोलनकारी संगठनों व समाजसेवियों का प्रथम दायित्व बनाता है कि इस दिशा में उठने वाले समर्थन रूपि हाथों का साथ दें और उनको अपने कौशल से राजधानी गैरसेंण बनाने के लिए मजबूर करें। जिस प्रकार नाम बदलने के लिए कांग्रेस का सहयोग लिया गया था। राजनेता कोई कार्य बिना राजनैतिक स्वार्थ के नहीं करता। इसलिए जो लोग प्रदेश के लिए गैरसेंण मुद्दे को मजबूती देने वाला छोटा, अधूरा, कमजोर ही कार्य क्यों न करें उसका स्वागत करते हुए उनको इस कार्य से राजधानी गैरसेंण बनाने तक मजबूर करें। अगर जो लोग इस दिशा में थोडा बहुत भी काम कर रहे हैं हम उनकी टांग खिंचाई करते रहें तो वो भी इस मुद्दे से अपना पल्ला झाड देंगे। केशव केशव कूकिये मत कूकिये अषाड........., । अगर केबिनेट की बैठक होती है वे कुछ करें या न करें इस कार्य से गैरसेंण की तरफ पूरे प्रदेश की जनता, शासन प्रशासन व सभी जनप्रतिनिधियों का ध्यान जरूर जायेगा। इस पर चर्चा होगी। चर्चा ही लोकमत निर्माण की प्राणवायु होती है। मेरा बहुगुणा व सतपाल महाराज सहित प्रदेश के अधिकांश नेताओं से प्रायः प्रदेश के हितों की उपेक्षा के कारण गहरे मतभेद हैं। मेरा स्पष्ट विरोध है। जनहित के कार्यो में चाहे व्यक्तिगत विरोध वाला व्यक्ति भी करे तो उसका भी मैं समर्थन करता हॅू। इसलिए आप भी तमाम विरोध को त्याग करके इस कार्य का समर्थन करते हुए मांग करें कि प्रदेश की राजधानी गैरसेंण बनायी ही जानी चाहिए। हमें इस अवसर की हवा को अपने जनहित की मांग की तरफ मोडनी चाहिए।
 

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