सैन्य ताकत से नहीं धूस की ताकत से भारत को मात देने की चीनी रणनीति 

सैन्य वायु सेना के पायलटों को नकद भैंट देने के बाद वायु सेना बैंड को भी नकद भेंट देना चाहते थे चीनी रक्षा मंत्री

नई दिल्ली (प्याउ)। लगता है चीन ने अपनी सामरिक नीति में आमू
ल बदलाव करते हुए भारत को गोली बारूद युक्त सैन्य ताकत के दम पर मात देने के बजाय अब भ्रष्टाचार के रिश्वत हथियार से मात देने का मन बना लिया है। अभी इस पखवाडे भारत के दोरे पर आये चीन के रक्षा मंत्री जनरल लियांग गुआंगली द्वारा भारतीय वायुसेना के दो पायलटों को एक लाख रुपए की असामान्य सौगात देने के बाद चीन के रक्षा मंत्री जनरल लियांग गुआंगली ने रक्षा मंत्री एके एंटनी द्वारा दी गई दावत पर वायुसेना के बैंड को ऐसी ही भेंट देने की असफल कोशिश को देश के जानकार इसी दिशा में ले रहे है। गौरतलब है कि मुंबई से दिल्ली आते हुए चीनी रक्षा मंत्री ने वायुसेना के दो पायलटों को दो लिफाफे दिए थे जिसमें 50-50 हजार रुपए थे। लिफाफों में असामान्य नकद भेंट पाकर दोनों पायलटों ने अपने वरिष्ठोें को इसकी सूचना दी और यह धनराशि कोषागार में जमा कर दी। इसके अलावा एक अन्य घटना में 4 सितम्बर की शाम को जनरल लियांग रक्षा मंत्री एके एंटनी द्वारा दी गई दावत पर इंडिया गेट के समीप वायुसेना के आकाश ऑफिसर मेस में थे। उस दौरान वायुसेना का बैंड हिंदी और चीनी गाने बजा रहा थे जो चीनी पक्ष को खूब भाया। जब दावत पूरी हो गई तब बैंड के प्रभारी को तैयार रहने को कहा गया क्योंकि चीन के रक्षा मंत्री उसे सराहना के तौर पर कुछ भेंट देना चाहते थे। भारतीय पक्ष को भान हो गया कि यह भेंट ही नकद होगी और उसने यह कहते हुए चीनी पक्ष को ऐसा नहीं करने के लिए मना लिया कि ऐसी कोई परिपाटी नहीं है। इन दोनों छोटी सी घटनाओं का गहरायी से समीक्षा की जाय तो साफ हो गया कि चीन को इस बात का अहसास हो गया कि भारत भ्रष्टाचार से पूरी तरह से जरजर हो गया है। यहां के हर संस्थान भ्रष्टाचार में लिप्त है। इसलिए भारत को मात देने के लिए सामरिक ताकत का प्रयोग करने के बजाय रिश्वत रूपि महाविनाशक अस्त्र का प्रयोग किया जाय।
1962 में अपनी विशाल सैन्य ताकत के बल पर भारत के हजारों वर्ग किमी भू भाग पर कब्जा जमाने वाला चीन भारत को अपने अस्तित्व के लिए अमेरिका के बाद सबसे बडा खतरा मानता है। अफगानिस्तान, इराक व लीबिया प्रकरण के बाद जिस प्रकार से पाकिस्तान को अमेरिका किसी आस्तीन के साफ से कम नहीं मान रहा है और उस पर भी नकेल कसने के लिए निरंतर अपना शिंकजा कसते जा रहा है। अमेरिका इस विश्व में आतंकवाद के बाद आये परिवर्तन में पाकिस्तान के बजाय अब तक अपना विरोधी रहा भारत को अपना सबसे मजबूत सामरिक सहयोगी की तौर पर अजमाने का मन बना चूका है। अमेरिका की सामरिक रणनीति में विश्व स्तर पर आये इस बदलाव में अमेरिका को जहां सबसे बड़ा खतरा इस्लामिक आतंकवाद नजर आ रहा है वहीं दूसरी तरफ चीन की बढ़ती हुई ताकत ने न केवल अमेरिका की आर्थिक ताकत पर ग्रहण लगा दिया अपितु चीन ने अमेरिका की सामरिक ताकत को भी एक प्रकार से खुली चुनौती दे दी है। इसी को भांपते हुए अमेरिका ने चीन के नम्बर वन दूश्मन रहे भारत को अपने पाले में रखने की रणनीति पर युद्धस्तर पर कार्य किया जा रहा है। इसके तहत पाकिस्तान की तर्ज पर अमेरिका ने भारत की राजनैतिक से लेकर आर्थिक सहित पूरी व्यवस्था पर अपना कब्जा धीरे धीरे बना दिया है। अमेरिकी रणनीति के जानकारों के अनुसार विगत 15 सालों से अमेरिका ने अपना शिकंजा भारत में पूरी तरह से कस लिया है। आज स्थिति यह है कि वह भारत की तमाम संस्थानों को अपने हितों के अनुसार प्रभावित करने की स्थिति में है। सरकारें भाजपा की हो या कांग्रेस की या अन्य दल की यहां पर विगत 15 सालों से वही हो रहा है जो अमेरिका चाहता है। भारतीय हुकमरानों की स्थिति इतनी शर्मनाक हो गयी कि वे देश की सर्वोच्च संस्था संसद , मुम्बई, कारगिल, गंधार व कश्मीर आदि पर अमेरिका के शह पर हमला करने वाले पाक को सबक सिखाने की हिम्मत तक नहीं कर पाते है। यही नहीं अमेरिका बार बार भारतीयों को अपने यहां कपडे उतार कर भी अपमानित करता है परन्तु क्या मजाल की अमेरिका के मोहपाश में देश के हितों को दाव पर लगाने वाले भारतीय हुक्मरानों का जमीदोज हुआ जमीर जाग भी जाय। यहां स्थिति बद से बदतर है । अमेरिका अपने हितो ं की पूर्ति के लिए भारत की सरकार से जहां परमाणु समझोता कराता है तो अधिकांश दल अपने आपसी विरोध को भूल कर इस के पक्ष में खडे होते है। कश्मीर से लेकर अधिकांश प्रकरणों पर यह सरकार भारत का पक्ष नहीं अमेरिका के हितो ं की पोषक अधिक नजर आती है। सबसे हैरानी की बात यह है कि जहां अमेरिकी हुक्मरान अपने देश की आर्थिक स्थिति को उबारने के लिए स्वदेशी वस्तुओं व उत्पादों को वरियता दे रही है और विदेशों में काम कराने वाले संस्थानों पर नकेल कस रही है। वही भारत की मनमोहनी सरकार अमेरिका के हितों के लिए अमेरिकी कम्पनियों का जाल भारत में फेलाने में भारतीयों के हितों का गला घोंटने से भी बाज नहीं आ रही है। यहां पर भ्रष्टाचार से देश की पूरी व्यवस्था जरजर हो गयी है। इसी को भांप कर शायद चीन ने भारत को सामरिक ताकत के बल पर नहीं अपितु रिश्वत रूपि भ्रष्टाचार के महास्त्र से मात देने का मन बना लिया

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