दिल्ली की शीला सरकार की शह पर दिल्ली मे बिजली की खुली लूटः केजरीवाल

केजरीवाल द्वारा एफडीआई के विरोध में एक शब्द न बोलने पर लोग भोंचंक्के

पैसे ही नहीं वोट भी पैड़ में नहीं उगते हैं प्रधानमंत्री जी

प्रधानमंत्री देश को गुमराह कर रहे हैं

बिजली बिलों में खुली लूट के विरोध में बिजली के बिल न जमा करें दिल्लीवासी

दिल्ली में बिजली कम्पनियों द्वारा सरकार की सह पर खुली लूट पर भाजपा भी मूक

कुछ माह बाद ही अण्णा फिर हमारे साथ होेगे

देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ अण्णा हजारे की अगुवाई में कुछ माह पहले देशव्यापी आंदोलन कर रहे अरविन्द केजरीवाल ने राजनैतिक विकल्प देने के ऐलान के बाद  अण्णा हजारे द्वारा उनसे जुदा होने के बाद अपने पहले  प्रदर्शन में जंतर मंतर पर 23 सितम्बर को अपनी उपस्थिति दर्ज करायी। इंडिया अगेंस्ट करप्शन के बैनरतले आयोजित इस प्रदर्शन में दिल्ली में बिजली की  हो रही खुली लूट के लिए बिजली कंपनियों के साथ दिल्ली प्रदेश की मुख्यमंत्री को सीधे रूप से जिम्मेदार ठहराया। इसके साथ भाजपा को भी इस पर शर्मनाक मौन रखने के लिए कटघरे पर खडा किया। वहीं इस प्रदर्शन में अरविन्द व उनके किसी साथी द्वारा मंच पर देश में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा किये जा रहे अमेरिकी की खुदरा व्यापार में कदम रखने वाली वालमार्ट जैसी कम्पनियों की राह खोलने के लिए ‘एफडीआई’ पर मूक रहने  से जहां अचंभित हुए , कई लोग अरविन्द एवं साथियों के एनजीओ को विदेशी सहायता व संरक्षण मिलने के कारण इस मुद्दे पर मूक रहने के कायश लगा रहे थे।
इस प्रदर्शन से साफ हो गया कि केजरीवाल के साथ कौन कौन हैं और अण्णा हजारे के साथ कौन है। इस प्रदर्शन में अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, प्रशांत भूषण, गोपाल राय व कुमार विश्वास के अलावा संजय सिंह ने भी इस रेली में अपने उदघोष में जहां शीला की सह पर बिजली कंपनियों की दिल्ली में खुली लूट पर गर्जना की वहीं राजनैतिक विकल्प बनाने के अरविन्द केजरीवाल के संकल्प पर अपनी उपस्थिति से मुहर लगा दी। वहीं इस प्रदर्शन के समय जंतर मंतर पर उपस्थित अपने वरिष्ठ साथी व जनांदोलनों के पुरोधा अरविन्द गौड़ द्वारा उनके मंच पर उपस्थित होने यानी साथ देने के निवेदन को अण्णा हजारे की तरह राजनैतिक दल से दूर रहने की दो टूक शब्दों  में ठुकराने से निराश हुए।
वहीं अरविन्द केजरीवाल ने अण्णा को अपना आदर्श मानते हुए आशा प्रकट की कि कुछ ही माह बाद अन्ना हजारे उनके साथ होंगे। इस अवसर पर अरविन्द ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को देश को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए दो टूक शब्दों में कहा कि पैसे ही नहीं वोट भी पेड़ पर नहीं लगते है।
इस प्रदर्शन मेंश्री केजरीवाल ने सीधे दो टूक सवाल किया कि दिल्ली में जब वितरण निजी कंपनियों को सौंपा गया तब बिजली विभाग की करीब 2000 करोड़ रूपये की सरकारी संपति टाटा और रिलायंस को मात्र 1 रूपया प्रति महीना किराये पर क्यों दी गई। उन्होंने बिजली वितरक कंपनियों पर धोखाधडी कर कंपनियों को हो रहे नुकसान की भरपायी के लिए बिजली दरों में 50-70 प्रतिशत तक बढाने की मांग कर दी थी।
जिस पर दिल्ली बिजली नियामक आयोग(डीईआरसी) के तत्कालीन अध्यक्ष  बरजिंदर सिंह ने, वितरण कंपनियों के अकाउन्ट्स की जांच कराई और उसमें कई धांधलियां पकड़ी। उन्होंने बिजली के दाम बढ़ाने की मांगों को खारिज करते हुए दिल्ली बिजली नियामक आयोग(डीईआरसी) के तत्कालीन अध्यक्ष  बरजिंदर सिंह ने, उल्टा इन कंपनियों को बिजली के दाम 23 प्रतिशत घटाने के आदेश तैयार किया । उन्होने  बिजली कंपनियों द्वारा पिछले 5 साल से बिजली के दाम गलत बढाये। दिल्ली बिजली नियामक आयोग(डीईआरसी) के तत्कालीन अध्यक्ष  बरजिंदर सिंह को उन पर गाज गिराते देख कर दोनों बिजली कंपनियां मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से गुहार लगायी। जनहितों की रक्षा करने के अपने दायित्व को पूरा करने के बजाय दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने बिजली कंपनियों का पक्ष लेते हुए दिल्ली बिजली नियामक आयोग(डीईआरसी) के तत्कालीन अध्यक्ष  बरजिंदर सिंह को उक्त आदेश को पारित करने से रोक दिया। यह मामला जब दिल्ली हाई कोर्ट में पंहुचा तो न्यायालय ने दिल्ली सरकार और बिजली कंपनियों को इस कृत्य के लिए लताड़ लगायी। उच्च न्यायालय ने डीईआरसी को एक नया आदेश तैयार करने को कहा। दुर्भाग्यवश तब तक डीईआरसी के अध्यक्ष बरजिंदर सिंह सेवानिवृत हो गये। दिल्ली बिजली नियामक आयोग(डीईआरसी) के नये अध्यक्ष पी सुधाकर ने एक नया आदेश तैयार किया और 2011-12 के लिए बिजली के दाम में 200 प्रतिशत तक बढ़ाने की मंजूरी दे दी। जबकि पूर्व अध्यक्ष बरजिंदर के हिसाब से दिल्ली में बिजली के दाम 23 प्रतिशत  कम होने चाहिए थे। आज सबसे बडा सवाल यही है कि सुधाकर ने ऐसा क्यों किया?
इसका खुलाशा करते हुए प्रदर्शन में बंटे इंडिया अगेंस्ट करपशन के ‘शीला दीक्षित और बिजली कंपनियों की लूट’ के पर्चे के साथ  अरविन्द केजरीवाल ने खुद जंतर मंतर पर उपस्थित जनसमुदाय व मीडिया के समक्ष आरोप लगाया कि बिजली कंपनियां जनहित को रौंदकर अपने हितों की रक्षा करने वाले अधिकारियों को सेवानिवृत के बाद अपने संस्थान में बडे पदों पर आसीन करते है।  दिल्ली बिजली नियामक आयोग(डीईआरसी) के अध्यक्ष रहे वरजिंदर सिंह ने बिजली कंपनियों के लूट के खेल पर चोट करने व अधिकारियों को उनके झांसे में फंसने से बचाने के लिए दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से उनके संस्थान का कोई भी चियरमेन या सदस्य सेवानिवृत के बाद प्राइवेट कम्पनी में नौकरी करने से रोकने के लिए कानून बनाने की मांग की थी। परन्तु शीला दीक्षित ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा सकने वाला यह कानून बनाने से साफ मना कर दिया। केजरीवाल ने दो टूक शब्दों में कहा कि इससे साफ प्रतीत होता है कि सुधाकर जैसे अधिकारियों को ऐसी कंपनियों में सेवानिवृत के बाद कपंनी के हितों की रक्षा का ईनाम कंपनी में बडे पद पर आसीन करके दिया जायेगा। इसके साथ इन कंपनियों के खातों की हर हाल कैग से जांच कराने की मांग की जिसको सरकार ने ही नजरांदाज कर दिया।
अरविन्द केजरीवाल ने इस बिजली के बिल के नाम पर हो रही खुली लूट के भुक्त भोगी कई उपभोगताओं को जनसमुदाय व मीडिया के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए इस लूट का पूरी तरह से पर्दाफाश किया। इसके तहत जिन मध्यवर्गीय परिवारों का पहले महीने में 210 यूनिट बिजली का बिल 474 रूपये आता था उनको अब 1089 रूपये देने पड़  रहे है। 300 यूनिट उपभोग करने वाले परिवार को अब 1555 रूपये का भुगतान करना पड़ रहा है। श्री केजरीवाल ने इस अवसर पर मंच पर इन बिजली कंपनियों के एक कर्मचारी को मंच पर आमंत्रित किया, जिसने खुद इस बिजली के अनापशनाप बिल में हो रही धांधली केे गौरख धंधे का खुलाशा किया। केजरीवाल ने अपने संबोधन में इस लूट में भाजपा की मिली भगत का अरोप लगाते हुए प्रश्न उठाया कि बरजिंदरसिंह मामले में भाजपा की जानबुझ कर रखी शर्मनाक चुप्पी ही इस बात का सबसे बडा सबूत है।
इस अवसर पर अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली के नई दिल्ली महानगर पालिका क्षेत्र में 25 प्रतिशत सस्ती बिजली देने पर भी प्रश्न उठाते हुए कहा कि इस एनडीएमसी क्षेत्र में देश के बडे उद्योगपति, नेता और अधिकारी रहते हैं उन अमीरों को सस्ती बिजली देने व दिल्ली के अन्य क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों को मंहगी दरों पर बिजली देने के लिए सरकारों को कड़ी फटकार लगायी।
इस अवसर पर अरविन्द केजरीवाल ने उपस्थित जनसमुदाय से बिजली के दरों में खुली लूट के खिलाफ बिजली के बिल जमा न करने के आवाहान के साथ इन दोषी कम्पनियों के खिलाफ आंदोलन के शुभारंभ का ऐलान किया। इस के बाद सेकडों आंदोलनकारी गुपचुप तरीके से दिल्ली के मुख्यमंत्री शीला दीक्षित व सोनिया गांधी के अवास पर धरना देने पंहुचे।

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