-अधिसूचना जारी होने से पहले टिहरी संसदीय उप चुनाव में कांग्रेस की हार निश्चित 
-साकेत को टिकट दे कर कांग्रेस आला कमान ने साबित कर दिया कि कांग्रेस में समर्पित व वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की कोई कीमत नहीं 
टिहरी लोकसभा उपचुनाव के लिए जैसे ह
ी कांग्रेस द्वारा तमाम वरिष्ठ समर्पित जमीनी दावेदारों को दरकिनारे करके मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा राजनीति में नौशिखिये बेटे साकेत बहुगुणा को अपना प्रत्याशी बनाने की घोषणा की उससे प्रदेश में समर्पित वरिष्ठ नेता ही नहीं आम समर्पित कार्यकत्र्ता भी अपना अपमान समझ कर आहत है। हालांकि इनमें से अधिकांश स्वयं कांग्रेस का वफादर अनुशासित सिपाई मान कर अधिकांश मूक हैं परन्तु अंदर से स्वयं को अपमानित महसूस कर रहे है। इसका सीधा असर कांग्रेस को 10 अक्टूबर को होने वाले मतदान में सामने आयेगा। हालांकि टिहरी संसदीय सीट में ही नहीं पूरे प्रदेश में कांग्रेस द्वारा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को दिये गये जनादेश के विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री के रूप में थोप कर अपमान किया तथा मुख्यमंत्री बनने के बाद विजय बहुगुणा अब तक के शासन से प्रदेश की जनता हर हाल में कांग्रेस को करारा सबक सिखाना चाहती है। टिहरी संसदीय सीट की स्वाभिमानी जनता उत्तराखण्ड के स्वाभिमानी जनता की भांति ही कभी अपने स्वाभिमान व भविष्य को रौंदने वालों को करारा सबक सिखाती है। जिस प्रकार से कांग्रेस के कुशासन, मंहगाई, भ्रष्टाचार व आतंकवाद से पूरे देश में त्राही-त्राही मचा हुआ है इसका करारा जवाब टिहरी संसदीय सीट की जनता 10 अक्टूबर को सत्तामद में लोकशाही को शर्मसार कर रही कांग्रेस को करारा सबक सिखायेगी।
हालांकि लम्बे समय से इस बात की काफी चर्चा थी कि प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की धर्मपत्नी सुधा बहुगुणा को कांग्रेसी प्रत्याशी बनाया जायेगा। परन्तु भाजपा द्वारा इस सीट पर टिहरी रियासत की महारानी को अपना प्रत्याशी बनाये जाने से लगता है कांग्रेस में हडकंप मच गया। क्योंकि टिहरी की महारानी जो इस संसदीय सीट के प्रमुख भाषा गढ़वाली व नेपाली बहुत ही प्रभावी ढ़ग से बोलती है जबकी विजय बहुगुणा की धर्मपत्नी के बारे में ही नहीं स्वयं विजय बहुगुणा के बारे में प्रदेश के तमाम प्रबुद्ध लोगों में यह धारणा है कि कोई उत्तराखण्ड की कोई बोली तक नहीं बोल सकते हैं। शायद इसी कमजोरी के कारण विजय बहुगुणा ने अपनी धर्मपत्नी के बजाय अपने बेटे साकेत बहुगुणा को चुनावी समर में उतारने का निर्णय लिया। परन्तु टिहरी रियासत के आगे चुनाव जीतना कितना विकट है इसको स्वयं प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा बखुबी से जानते हैं। इस पूरे क्षेत्र में टिहरी महाराज के प्रति लोगों में ‘बोलंदा बदरी’ रूपि सम्मान था। इसी कारण टिहरी से जब तक महाराजा मानवेन्द्र शाह जीवित रहे उनके सामने जब भी कांग्रेसी प्रत्याशी के रूप में विजय बहुगुणा सांसद के चुनाव में हमेशा ही पराजित होते रहे।
हालांकि टिकट के बारे में यही कहा जाता है कि प्रदेश कमेटी द्वारा दावेदारों के तीन-चार नाम केन्द्रीय आलाकमान के पास भेजा जाता है। केन्द्रीय आलाकमान उन प्रत्याशियों में से एक नाम पर अपनी मुहर लगाती है। परन्तु इस चुनाव से पहले ही यहां की आम जनता में यह धारणा थी कि टिकट उसी को मिलेगी जिस विजय बहुगुणा चाहेगा। क्योंकि कांग्रेस आला कमान का निर्णय तो केवल नाम मात्र का है यहां पर सारे फेसले आलाकमान के वे तथाकथित सलाहकार करते हैं जिनको अपने निहित स्वार्थो के अलावा न तो कांग्रेस का हित दिखाई देता है व नहीं दावेदारों का राजनैतिक जीवन का संघर्ष। इसी कारण कांग्रेस आलाकमान के इन सत्तांध सलाहकारों की सलाह पर ही प्रदेश के वरिष्ठ, अनुभवी, जनप्रिय नेताओं के बजाय विजय बहुगुणा जेसे नेता को मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस व प्रदेश के जनादेश की जो जगहंसाई करायी, उससे भी कांग्रेसी नेतृत्व अभी तक कोई सीख नहीं ले पाया। साकेत बहुगुणा को सांसद का प्रत्याशी बनाने से कांग्रेस नेतृत्व ने साफ कर दिया कि उनकी नजर में समर्पित व अनुभवी कांग्रेसी नेताओं का कोई महत्व नहीं है। वह केवल वही निर्णय लेती है जो उनके जनता व कांग्रेस से कटे हुए आत्मघाती सलाहकार निर्णय लेते है। वेसे यह देखा गया कि प्रदेश के अधिकांश बडे नेता यही चाहते थे कि इस सीट से विजय बहुगुणा के बेटे को कांग्रेस अपना प्रत्याशी बनाये। क्योंकि सभी कांग्रेसी नेता चाहते थे कि अगर विजय बहुगुणा के बेटे को इस चुनाव में कांग्रेसी टिकट मिल गया तो उनके बेटों के लिए भी आगामी विधानसभा या लोकसभा चुनाव में टिकट हासिल करने की राह आसान हो जायेगी। गौरतलब है कि इन विधानसभा चुनाव में यह आम चर्चा थी कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य से लेकर हरीश रावत, सतपाल महाराज आदि नेता अपने बेटों के लिए चुनावी समर में उतारने का मन बना चूके थे, परन्तु उस समय परिवार का विरोध जिस प्रकार से वर्तमान मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने खुल कर किया और जनता व दल के कार्यकत्र्ताओं में इस बात का गुस्सा था कि क्या दशकों से पार्टी को मजबूत बनाने व जनसेवा में समर्पित रहने वाले कार्यकत्र्ता केवल इन नेताओं के बेटे-बेटियों व पत्नी को ढोने के लिए रह गये।
अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा किस मुंह से जनता के समक्ष अपने बेटे को चुनाव में जनादेश हासिल करते हैं क्योंकि वे खुद विधानसभा चुनाव में परिवारवाद का घोर विरोध कर चूके थे। यही नहीं टिहरी संसदीय क्षेत्र की जनता सहित प्रदेश की आम जनता को इस बात से भी मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से आहत है कि उन्होंने सितारगंज विधानसभा चुनाव में जीतने के लिए उन्होंने दशकों से उत्तराखण्डी मूल का समझ कर स्नेह व समर्थन दे रही जनता पर अपने पूर्वजों को बंगाली मूल का बज्रपात किया। इलाहाबाद से चुनावी हार मिलने पर जब हेमवती नन्दन बहुगुणा को उत्तराखण्ड की जनता ने अपार स्नेह व सम्मान देकर इंदिरा गांधी के तमाम प्रलोभनों व तानाशाही का मुहतोड़ जवाब देते हुए गढ़वाल संसदीय उपचुनाव में विजय बनाया था। ऐसे विकट परिस्थितियों में उनके राजनैतिक जीवन की रक्षा करते हुए उनका पूरे देश की राजनीति में राष्ट्र का कद्दावर नेता के रूप में स्थापित किया उस बहादूर जनता को नमन् करने के बजाय उनके बेटे विजय बहुगुणा ने मात्र एक विधानसभा सीट के चुनाव के अवसर पर अपने पूर्वजों को बंगाली मूल कर बताना पूरे उत्तराखण्ड की जनता ने खुद को बेहद अपमानित महसूस किया। अब ऐसे माहोल में विजय बहुगुणा द्वारा अपने बेटे को टिहरी संसदीय सीट पर हो रहे उपचुनाव में उतारने का निर्णय अपने आप में राजनैतिक समीक्षकों की नजर में आत्मघाती कदम से कम नहीं है। इस उपचुनाव की अधिसूचना भले ही अभी जारी नहीं हुई परन्तु यहां पर जो राजनैतिक हवा कांग्रेस के खिलाफ बह रही है उसको देख कर आम जनता में भी यह धारणा प्रबल हो गयी कि यह सीट पर कांग्रेस की हार अवश्यमभावी है। देखना यह है 13 के अंक को अपने आप को भाग्यशाली मानने वाले विजय बहुगुणा को इसी 13 के प्रतीक 13 अक्टूबर को होने वाला मतगणना का परिणाम कहीं उनके मुख्यमंत्री पद पर ग्रहण लगाने का मूलकारण तो न बन जाय।
 

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