सूर्य नमस्कार का विरोध नहीं यह भारतीय संस्कृति को रोंदेने का खतरनाक षडयंत्र है
देश भर में आज 2 करोड़ से अधिक विद्यार्थी सूर्य नमस्कार करके विश्व में एक कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैे। कुछ तथाकथित लोग इसका विरोध कर रहे हैं। इनका विरोध केवल यह है कि यह भारतीय संस्कृति का अंग है जिसमें मातृ देव भव, पितृ देव भव, अपने से बडों बुजुर्गो को नमन् करना और इस सृष्टि के मूलाधार सूर्य, वायु, जल, पृथ्वी, गाय सहित सम्पूर्ण जड़ चेतन को परमात्मा का स्वरूप मान कर उनको नमन् करना और सम्मान करना सिखाया जाता है। सूर्य नमस्कार का विरोध करने वालों की मानसिकता तब कहां गयी जब वे स्कूल कालेजों में टाई व स्कर्ट पहनने व न्यायालयों में काला कोट गर्मी में भी पहनने में मूक रहते हे। क्या भारतीय संस्कृति का अनादर करना ही लोकतंत्र व सच्चा धर्मनिरपेक्ष है तो ऐसा धर्म निरपेक्षता को हजार बार हम लानत देते है। इसकी अब इस देश में कोई जरूरत नहीं हे। हमने विश्व की सबसे वैज्ञानिक भाषा संस्कृत को इन्हीं अंधों के विरोध के कारण जमीदोज कर दिया और हमने भारतीय प्राचीन सनातनी ज्ञान विज्ञान को पौंगा पंथी मान कर दफन कर दिया। आज पूरा पश्चिमी जगत उसको अंगीकार कर रहा है तो हम उसे योग, वेद विज्ञान को योगा के नाम पर विदेशियों की तर्ज पर अब अपना रहे है। सूर्य को सनातन संस्कृति में अनादिकाल से इस संसार के जीवों का जीवनदाता माना है उसको नमन करने की भारतीय संस्कृति का विरोध किसके हित में है। इस तथाकथित धर्मनिरपेक्षों के कारण आजादी के 65 साल बाद भी भारत अपने देश के नाम, अपनी संस्कृति, अपने इतिहास व अपने आराध्य महापुरूषों से ही नहीं सुभाष, भगतसिंह व आजाद जैसे महान सपूतों की महानगाथा से वंचित है। हमारे देश में बलात अंग्रेजी की गुलामी से देश के स्वाभिमान को ही नहीं देश की लोकशाही को रौंदा जा रहा है। क्या यह देशभक्ति है या देश की आत्मा की निर्मम हत्या। जब प्राचीन भारतीय संस्कृति को आज संसार का सबसे बडा इस्लामिक देश इंडोनेशिया आत्मसात कर रहा है, जब भारतीय संस्कृति के दिव्य ज्ञान विज्ञान के प्रतीक वेद ग्रंथों पर जर्मन से लेकर अमेरिका में गहन आत्मसात किया जा रहा है तो भारतीय संस्कृति को भारत में क्यों तबाह करने का षडयंत्र करने की इजाजत दी जा रही है।
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