भारतीय संस्कृति के गौरव रामसेतु को तबाह करने व देशद्रोहियों का स्मारक भारत में बनाने से बाज आये सरकार


दिल्ली में स्थापित की जा रही है भारत के लाखों शहीदों के हत्यारे व भारत को गुलाम बनाने के गुनाहगार ब्रिट्रेन के हुक्मरानों की मूर्तियों 

-गुनाहगार फिरंगी हुक्मरानों की मूर्तियों को फांसी की सजा दो 


एक तरफ भारतीय सरकार भारतीय संस्कृति व आस्था के प्रतीक भगवान राम द्वारा बनवाये गये रामसेतु को देश की करोडों जनता के पुरजोर विरोध के बाबजूद तोड़ कर तबाह करने को तुली है वहीं दूसरी तरफ भारत सरकार बहुत ही शर्मनाक ढ़ग से भारत के लाखों देश भक्तों के कातिल, व देश की सम्पति को लूटने एवं गुलाम बनाने वाले ब्रिट्रेन के गुनाहगार हुक्मरानों को गौरवान्वित करने के लिए भारत की राजधानी दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र में कारोनेशन पार्क बना कर ब्रिट्रेन की महाराजा व महारानी सहित तमाम गुनाहगारों की मूर्तियों को स्थापित करने की धृष्ठता करने जा रही है। गौरतलब है कि आजादी के तत्काल बाद देशभक्तों ने इंडिया गेट से लेकर तमाम महत्वपूर्ण स्थानों में लगी देश के स्वाभिमान को रौंद कर शताब्दियों तक गुलाम बनाने वाले ब्रिट्रैन की महारानी व महाराजा और उनके सिपाहेसलारों की इन मूर्तियों को फिर से भारतीय अस्मिता को कलंकित करते हुए भारत की राजधानी में ही स्थापित करने जा रही है। भारत को गुलाम बनाने वाली ईष्ट इंडिया कम्पनी से सत्ता हासिल करने के बाद ब्रिट्रेन के महाराजा जार्ज पंचम का दिल्ली में हुआ राज्याभिषेक समारोह भी दिल्ली के किग्जवे केप में हुआ था, उस समय जिस स्थान में केम्प लगा कर यानी टेण्ट लगा कर राज्याभिषेक समारोह किया गया उसी स्थान का नाम आज भी बेशर्मी से किंगवेकेम्प है। यानी राजा का केंप। यहां पर उस समय भारतीय गुलाम राजाओं की उपस्थिति में भारत को ब्रिट्रेन के तत्कालीन राजा जार्ज पंचम का राज्याभिषेक किया गया था। इन्हीं जार्ज पंचम के मुम्बई में पंहुचने पर गेट वे आफ इंिडया में उनके स्वागत में पहली बार रविन्द्र नाथ टेगोर द्वारा रचित जणमणगन गीत का गायन किया गया। आज देश का दुर्भाग्य है कि यही गीत देश का राष्ट्रीय गान बना हुआ है। आज जिस स्थान से जार्ज पंचम की मूर्ति को हटाया गया था वहां पर आजादी के 65 साल बाद भी महात्मा गांधी की मूर्ति को लगाने तक में भारतीय हुक्मरान असफल रहे। अब भारत सरकार देश के स्वाभिमान व सम्मान का ख्याल न रखते हुए इन भारत के गुनाहगारों को गौरवान्वित करने के लिए देश की राजधानी दिल्ली में ही शानदार पार्क बना कर उनको स्थापित करेगी। जिनको देश के नौनिहालों को गुनाहगार के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए था उनके लिए देश की जमीन पर देश के संसाधनों से महिमामण्डित कर शानदार पार्क में स्थापित किया जायेगा। इससे बड़ा अपमान देश व देशवासियों का दूसरा और क्या हो सकता। अगर देश के हुक्मरानों को इनकी मूर्तियों व उनकी दासता से इतना ही लगाव है तो इनको भारत की नागरिकता छोड कर ब्रिट्रेन में शरण लेनी चाहिए और वहीं इनके वंशजों की चाकरी करनी चाहिए। परन्तु भारत में इन गुनाहगारों के लिए अगर कहीं स्थान है तो भारत सरकार को चाहिए कि एक ऐसा स्थान बनाये जहां इन गुनाहगारों की जाहिली व अत्चाचारों का उल्लेख करते हुए इनको फांसी के तख्ते पर इनकी मूर्तियों को झूलते हुए लटकाते हुए प्रदर्शित होनी चाहिए। परन्तु देश के हुक्मरान ऐसा क्यों करेंगे। इन्होंने जिन अंग्रेजों के गुलाम रहे उनकी भाषा अंग्रेजी का ही देश गुलाम बना दिया। उन्हीं के द्वारा दिये गये नाम इण्डिया को आत्मसात करके प्राचीन गौरवशाली अपने असली नाम भारत को जमीदोज कर दिया। यही नहीं जिस कलंक के प्रतीक ब्रिट्रेन की दासता की बेडियों से भारत को मुक्त करने के लिए लाखों देश भक्तों ने अपनी प्राणों की शहादत दे कर शताब्दियों तक भारतीय आजादी के लिए संघर्ष किया आजादी हासिल होने के बाद भारतीय हुक्मरानों ने उन्हीं ब्रिट्रेन की महारानी की सरपरस्ती में काॅमनवेल्थ की सदस्यता देश पर थोप दी। देश की आजादी के 65 साल बाद भी कहने को देश आजाद है परन्तु देश की संस्कृति, देश के आराध्य देव, देश की भाषा व देश के इतिहास को रौद कर भारत को गुलाम से बदतर स्थिति में धकेल कर दयनीय बनाया जा रहा है।
देश की राजधानी दिल्ली में इन देश के गुनाहगारों को सम्मानित करने वाले पार्क का निर्माण की योजना लम्बे समय से सरकार चला रही है। कई बार हमारे यहां चर्चा का विषय भी रहा। 25 फरवरी को मै व मेरे आंदोलनकारी मित्र जगदीश भट्ट ने जब यह प्रसंग याद दिलाया तो उस समय में अनिल पंत व जगदीश भट्ट इण्डिया गेट के समीप हेदाराबाद हाउस के बाहर सडक पर पैदल ही चल रहे थे। तभी मेरे मन में रामसेतु पर भारत सरकार की हटधर्मिता वाला रूख भी क्रोंध गया। किस बेशर्मी से सरकार भारतीय सम्मान के प्रतीकों को एक एक करके नष्ट करने को तुली है। देश का दुर्भाग्य यह रहा कि आजादी के बाद किसी भी सरकार को न तो देश के सम्मान को रौंदने वाली इन कलंकों से मुक्ति दिलाने की सुध रही व नहीं इनकी इच्छा। अपितु आजादी के बाद जितनी भी सरकारें रही उनके शासनकाल में देश के सम्मान व आजादी को शर्मसार करने वाली फिरंगी भाषा की गुलामी व भारतीय सम्मान के प्रतीकों को रौंदने का ही काम किया गया। किसी भी सरकार ने देश की संस्कृति, इतिहास व वर्तमान को शर्मसार करने वाले कंलक के प्रतीकों को देश को मुक्त करने का प्रयास तक नहीं किया अपितु उस कलंक को और मजबूत करने का कृत्य किया। चाहे सरकार किसी भी दल की रही केवल एक ही काम हुआ भारत को कमजोर करने का। अंग्रेजों के बाद अमेरिका का शिकंजा इस देश में कसने का। रामसेतु परियोजना जो रामसेतु को तबाह करके रास्ता बनाने का। इस रास्ते की मांग भले ही द्रुमुक आला कमान करूणानिधी ने की हो परन्तु इसके पीछे असली भारतीय प्राकृतिक सम्पदा को हरने का अमेरिका का ही षडयंत्र है इसी कारण भारत की सरकारें इस परियोजना को अमलीजामा पहनाने के लिए उतावली है। जब रामसेतु को बचाते हुए इस का अनय पांच वैकल्पिक मार्ग भारतीय वैज्ञानिकों ने सुझाये हैं तो फिर सरकार क्यों देश की अस्मिता व सम्मान के प्रतीक को तोडने के लिए उतावली हो रही है। सेतु समुद्रम परियोजना के वैकल्पिक मार्ग भी उपलब्ध हैं, और जानकारों का कहना है कि रामेश्वरम और धनुकोष्टि के बीच फैले रेत के टीलों को हटाकर नया रास्ता बनाया जा सकता है। सेतु समुद्रम के वैकल्पिक मार्ग के रूप में वैज्ञानिकों ने पांच परियोजनाएं सुझाईं थी जिनमें रामसेतु पर कोई आंच न आती लेकिन सरकार यह छठा सुझाव लेकर रामसेतु तोड़ने की हठधर्मिता कर रही है। एक सवाल यह भी उठता है कि प्रधानमंत्री ने मार्च 2005 में तूती कोसिन बंदरगाह से 16 प्रश्नों का जवाब मांगा था लेकिन फिर ऐसा क्या हो गया कि जवाब देखने के पहले ही 2 जुलाई 2005 को परियोजना के उद्घाटन करने पहुंच गए। वहीं बताया तो यह भी जा रहा है कि इसके लिये पम्बन और धनुकोष्टि के बीच 15 किमी की मुख्य भूमि में खुदाई कर स्वेज और पनामा की तरह जलमार्ग बनाया जा सकता है वह भी बगैर किसी प्रागैतिहासिक धरोहर को नष्ट किये। यहां सवाल किस सरकार ने योजना बनाई और कौन आगे बढ़ा रही है का नहीं है बल्कि ऐतिहासिक धरोहर को बचाने का है। चाहे यह धरोहर प्रकृति निर्मित हो या फिर मानव निर्मित।
सरकार का रामसेतु को तोडने के लिए उतावला होना व दिल्ली में देश को गुलाम बनाने वाले गुनाहगारों की मूर्ति को लगाने के लिए बैताव होना ही भारतीय हुक्मरानों को पूरी तरह बेनकाब करता है। रामसेतु केवल हिन्दू धर्म के करोड़ों लोगों के आस्था का प्रतीक ही नहीं अपितु भारत की ऐतिहासिक धरोहर भी है। इसको तबाह करने व दिल्ली में देश के गुनाहगारों की मूर्तियों को लगाने की कलुषित मंशा को सरकार तत्काल त्याग दे । सरकार की इस प्रवृति को न तो भारत की वर्तमान स्वाभिमानी जनता सहन करेगी व नहीं भविष्य कभी इस गुनाह के लिए देश के हुक्मरानों को माफ करेगा। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।

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