आन,मान व शान व हक हकूकों को रौंदने वाले भैडियों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार व समाज दोनों को भी आगे आना होगा 


फेसबुक में पूर्व में भी बेटियों को शादी का झांसा दे कर शोषण होने वाली खबर प्रकाशित हुई थी तो तहलका के इसी लेख पर पहले भी मैने टिप्पणी की थी। मेरा मानना है कि इसके लिए समाज से अधिक यहां की व्यवस्था जिम्मेदार है। जो इस प्रकार के तत्वों पर अंकुश लगाने में असफल रही है। न तो यहां की राजनेताओं व नहीं नौकरशाहों को प्रदेश की आन मान शान व हक हकूकों के प्रति जरा सा भी भान है। पूरी व्यवस्था चंगैजीवृति में प्रदेश के वर्तमान संसाधनों को लुटने व लुटवाने में लगी है। इसके लिए महिला मंगलदल, युवाओं व पत्रकारों को आगे आना होगा। दुर्भाग्य यह है चंद लोगों को छोड़ कर यहां अपनी संकीर्ण मनोवृति में आकंठ धृतराष्ट बन कर प्रदेश को पतन के गर्त में धकेलने के लिए उतारू हैं। उत्तराखण्ड का नाम रौंदने की धृष्ठता की गयी थी उसको तो प्रदेश के जांबाज लोगों ने छह साल बाद हासिल कर लिया। प्रदेश के स्वााभिमान को मुजफरनगर काण्ड में रौंदा गया, उसके गुनाहगारों को सजा देने के बजाय, प्रदेश के लिए इससे शर्मनाक और दूसरी बात क्या हो सकती है कि इस काण्ड के गुनाहगारों को संरक्षण देने वालों को प्रदेश के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन किया गया है। यही नहीं प्रदेश के राजनैतिक भविष्य को जमीदोज करने के लिए जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई परिसीमन पर थोपा गया। प्रदेश गठन के 12 साल तक प्रदेश के हुक्मरान जनभावनाओं के अनरूप प्रदेश की राजधानी गैरसैंण में बनाना तो रहा दूर उसका नाम लेने का साहस तक नहीं जुटा पाये। उल्टा देहरादून में ही राजधानी थोपे रखने का निरंतर अलोकतांत्रिक षडयंत्र विधानसभा भवन गैरसेंण बनाने की वर्तमान सरकार की घोषणा के बाबजूद आज भी जारी हैं। प्रदेश में मूल निवास सहित तमाम महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकारें नपुंसकों की तरह आत्मघाती मौन रख कर प्रदेश की जनता के हितों को रौंद रहा है। हमारे समाज के प्रबुद्ध जनों को भ्रष्टाचार, क्षेत्रवाद व जातिवाद की संकीर्णता में धकेल रहे हुक्मरानों को पूरी तरह बेनकाब कर प्रदेश में हिमाचल की तरह का भू कानून बना कर माफियाओं के दंश से प्रदेश को बचाना होगा। वोट की अंधी लालशा से प्रदेश के तराई क्षेत्रों में ही नहीं पर्वतीय कस्बों में भी कितने घुसपेटियें षडयंत्र के तहत बसाये जा चूके हैं इसका अहसास प्रदेश की जनता को शायद असम के लोगों की तरह तब होगा जब पानी सर से उठ जायेगा। इस मुद्दे पर दो टूक नजरिया पहले भी रखा था कि सीमान्त जनपदों में किसी प्रकार के बाहरी फेरीवालों व घुसपेटियों को किसी भी हालत में घुसने न दिया जाय। सामाजिक संगठन व जनप्रतिनिधी जनता में इस मामले में जागरूक करके दूरस्थ क्षेत्रों में इस प्रकार के संदिग्ध लोगों की घुसपेट पर अंकुश लगाते हुए गरीब परिवार की बेटियों की शादी कराने में सामुहिक भागेदारी निभाने के लिए आगे आयें। क्योंकि गरीबी व अज्ञानता के कारण गरीब परिवार के लोग बेटी की शादी कैसे करें इससे बेहद परेशान,असहाय व अकेला अपने आप को पाता है, इसी का लाभ उठाते हुए स्थानीय असामाजिक तत्वों से सांठगांठ करके ये माफिया प्रदेश से बाहर अच्छी शादी करने के नाम पर अपना शिकार आसानी से बनाता है। जिसके बाद ऐसी बेटियों का जीवन नरक बन जाता है। वहीं जनता को प्रदेश के राजनैतिक नेतृत्व पर निंरतर यह जनदवाब बनाना होगा कि प्रदेश के संवैधानिक व भविष्य निर्माण करने वाले संस्थानों के महत्वपूर्ण पदों राजनैतिक आकाओं या अपने निहित स्वार्थी तत्वों को आसीन करने के बजाय वह प्रदेश की प्रतिभाओं को इन पदों पर आसीन करके प्रदेश के पूरे तंत्र को जनहितकारी बनायें। आज जरूरत है प्रदेश को जनांकांक्षाओं व भारतीय संस्कृति की पावन गंगोत्री को साकार करने की। जहां जातिवाद-क्षेत्रवाद व भाई भतीजावाद तथा माफियाओं के प्यादों का शासन नहीं अपितु जनांकांक्षाओं को साकार करने वाले जनसमर्पित राजनेताओं द्वारा भारतीयता को जीवंत करने वाला निष्पक्ष सुशासन चलाया जाय।
 

Comments

Popular posts from this blog

-देवभूमि की पावनता की रक्षा की फिर भगवान बदरीनाथ ने- निशंक के बाद मनंमोहन को भी जाना होगा

खच्चर चलाने के लिए मजबूर हैं राज्य आंदोलनकारी रणजीत पंवार