एक साल 13 दिन बाद दिल्ली सरकार ने दिया नजफगढ़ की दामनी के परिजनों को 1 लाख रूपये की सहायता 



उत्तराखण्ड सरकार कुछ  तो शर्म करो

जलविहार की बहादूर गरीब दामिनी की सुध ले नहीं पायी अब तक दिल्ली की मुख्यमंत्री ?

गत वर्ष 9 फरवरी 2012 को नजफगढ़ दिल्ली में सामुहिक बलात्कार व हत्या की शिकार हुई उत्तराखण्ड मूल की दामिनी के परिजनों को कई बार गुहार लगाने के बाद दिल्ली सरकार ने आज एक साल 13 दिन बाद दामिनी के माता-पिता को एक लाख रूपये का चैक सौंपा। दिल्ली सचिवालय में इस अवसर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री के एडिशनल सचिव कुलानन्द जोशी के अलावा उत्तराखण्डी समाज से कांग्रेसी नेता दिवान सिंह नयाल, भाजपा नेता डा विनोद बछेती, उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष देवसिंह रावत, उत्तराखण्ड महासभा के अनिल पंत, पत्रकार सतेन्द्र रावत, संगीतकार राजेन्द्र चैहान सहित अनेक प्रतिष्ठित समाजसेवी उपस्थित थे।
  लोकशाही के सामान्य शिष्टाचार निभाते हुए प्रदेश की मुख्यमंत्री को या उनके अधिकारियों को 16 दिसम्बर की दामिनी की तर्ज पर ही पीडि़त के परिजनों के घर भी जा कर उनको ढाढश बंटाते हुए सहयोग देना चाहिए था। परन्तु दिल्ली की मुख्यमंत्री ने एक साल 13 दिन तक इस परिवार का दर्द सुनने के लिए उनके घर पर जा कर सुनने का धर्म न का भले ही भान न हो परन्तु उन्होंने उत्तराखण्ड के समाजसेवियों द्वारा मामला उठाने पर 22 फरवरी 2013 को एक लाख इस गरीब परिवार को देने का काम तो किया। परन्तु दिल्ली में उत्तराखण्ड के सात सांसदों व नहीं मजबूत संस्था ने हीे इस परिवार की सहायता दे कर उनका ढाढस बढाने का दायित्व तक नहीं निभाया। उस पीडि़त परिवार की स्थिति को देख कर मुख्यमंत्री दिल्ली द्वारा दिया गया एक लाख रूपये की सहायता देने के अवसर पर दिल्ली सचिवालय में मैं भी उपस्थित रहा।
  सबसे शर्मनाक बात यह है कि  उत्तराखण्ड सरकार ने आज तक इस पीडि़त परिवार की सहायता करनी तो रही दूर उसके दुख दर्द को पूछने का मानवीय धर्म तक नहीं निभाया।  9 फरवरी 2012 में दिल्ली के नजफगढ़ क्षेत्र में सामुहिक बलात्कार व हत्या की शिकार हुई उत्तराखण्ड मूल की दामिनी के परिजनों की सुध लेने का सामान्य मानवीय धर्म भी न तो उत्तराखण्ड की तत्कालीन भाजपा के मुख्यमंत्री भुवनचंद खण्डूडी की सरकार ने निभाया व नहीं वर्तमान की कांग्रेसी मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की सरकार ने ही निभाया। जबकि वर्तमान मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा आये दिन दिल्ली में ही डेरा डाले रहते हैं और प्रदेश के गठन ही नहीं इसके विकास में दिल्ली में रहने वाले 30 लाख से अधिक उत्तराखण्डियों की महत्वपूर्ण भागेदारी को बार बार खुले मंचों से भी सराहना कर चूके है। परन्तु जब इस विशाल उत्तराखण्डी समाज के एक परिवार पर इस प्रकार की आपदा आती है तो उस समय 16 दिसम्बर 2012 को उप्र मूल की दिल्लीवासी दामिनी के साथ ऐसे ही बर्बर बलात्कार पर तो 5 लाख तत्काल सहायता दे कर राष्ट्रीय मीडि़या के समक्ष दरियादिली दिखाने वाले उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को एक साल से इस पीडि़त परिवार की खोज खबर लेने की सुध तक नहीं रही।
गौरतलब है कि कुछ समय पहले दिल्ली सरकार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से उनके एडिशनल सचिव कुलानन्द जोशी, दिल्ली प्रदेश कांग्रेसी नेता दीवान सिंह नयाल व डा विनोद बछेती के नेतृत्व में उत्तराखण्डी समाजसेवियों ने मुख्यमंत्री शीला दीक्षित इस इस प्रकरण पर 16 दिसम्बर की दामिनी के प्रकरण की तरह त्वरित न्याय दिलाने की गुहार लगायी। इससे मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इस प्रकरण को फास्ट कोर्ट में न्याय दिलाने का वायदा किया। इसके साथ मुख्यमंत्री ने परिवार को सहयोग देने का आश्वासन दिया था।
ऐसा नहीं कि यह पहला मामला है जब उत्तराखण्ड की सरकार ने उत्तराखण्ड मूल के पीडि़त परिवार की उपेक्षा की। एक साल गुजरने के बाद भी नजफगढ़ प्रकरण के पीडि़ता के परिजनों की सुध तक उत्तराखण्ड की सरकार ने नहीं ली। वहीं दिल्ली की मुख्यमंत्री का दिल भी गत माह दिल्ली के लाजपत नगर के समीप जलविहार की दामिनी के साथ हुए ऐसे खौफनाक दरिदगी की बहादूर दामिनी व उसके गरीब परिजनों की दयनीय स्थिति जान कर भी नहीं पसीजा। इस बहादूर गरीब बेटी की बहादूरी को सलाम करने के लिए महिला होते हुए भी न तो शीला का हाथ क्यों कांप गये? क्यों उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा इस बहादूर बेटी जो गीता चैपडा राष्ट्रीय पुरस्कार की सच्ची हकदार है उसको केवल 2 लाख रूपये देने तक क्यों सीमित रहे? क्या यही है बहुगुणा सरकार को उत्तराखण्डी प्रेम? सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि जलविहार की दामिनी का पिता कुछ समय पहले स्वर्गवास हो गया,। यही नहीं कुछ साल पहले उसकी बड़ी बहन भी स्वर्गवास हो गयी। 11वीं में पढ़ रही बेटी दामिनी व एक बेटे को प्राइवेट में काम करके बड़ी मुश्किल से झुग्गी में रह कर जीवन यापन करने वाली विधवा महिला के दर्द को कौन सुनेगा? जलविहार की दामिनी पर इस क्षेत्र के दरिंदे ने जब उसके साथ दुराचार करना चाहा तो दामिनी ने प्रचण्ड विरोध किया, इससे बौखला कर उस दरिंदे ने पाइप ही दामिनी के मुह में डाल दिया, कई दिन तक वह अखिल भारतीय संस्थान में इलाज के लिए दाखिल रही।

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