जंतर मंतर पर भारत को तोडने को उतारू हुर्रियत व अफजल समर्थकों को भारत के आत्मसम्मान को रौदने की इजाजत क्यों दी सरकार ने


राष्ट्रीय हितों पर हो रहे कुठाराघात पर क्यों नपुंसक बन गयी है सरकार व जनता

दुनिया का एकमात्र ऐसा देश भारत जहां देश द्रोहियों को सुरक्षा व राष्ट्रभक्तों को किया जाता है दण्डित


दुनिया में एक ही ऐसा अभागा देश भारत है जहां देश के हितों पर कुठाराघात करने वालों को सुरक्षा, सम्मान व संरक्षण दिया जाता है और देश के सम्मान व हितों के लिए ऐसे तत्वों का विरोध करने वालों को दण्डित किया जाता है। यह दो टूक विचार मेरे जेहन में 4 मार्च को संसद की चैखट राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की सर्वोच्च संस्था संसद पर हुए आतंकी हमले के दोषी ‘अफजल गुरू को फांसी की सजा के विरोध में आयोजित धरने में भारत के आत्मसम्मान को रौंद रहे तथाकथित मानवाधिकारवादी तत्वों के दुसाहस पर मूक पुलिस प्रशासन ही नहीं नपुंसकों की तरह मूक तमाशा देख रही सैकडों की भीड़ पर लानत भरी टिप्पणी से उमड़ कर आया। मुझे समझ में नहीं आया कि यह कैसा देश है जहां संसद हमले प्रकरण में फांसी पर लटाये गये अफजल को जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री साहब कह कर सम्मान विधानसभा में देता हो, हुर्रियत नेता कश्मीर में ही नहीं संसद की चैखट जंतर मंतर पर कश्मीर की आजादी की हुंकार सार्वजनिक मंच से भरने का दुशाहस करते हो और गृहमंत्रालय का एक अधिकारी पाक के लिए जासूसी करता पकडा जाता है। यह सब घटित हुआ 4 मार्च ।
4 मार्च को जंतर मंतर राष्ट्रीय धरना स्थल पर दिल्ली के तथाकथित मानवाधिकार समर्थकों जिसमें जवाहर लाल नेहरू सहित कई विश्वविद्यालय से जुडे छात्र और संसद हमला काण्ड में आरोपी रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एसआर गिलानी, हुर्रियत कांफ्रेस के सेयद अली गिलानी सहित सैकडों लोगों ने भाग लिया। अलगाववादी नेता सेयद अली गिलानी सहित तमाम वक्ता संसद हमले के दोषी अफजल गुरू को फांसी देने को भारतीय लोकतंत्र की हत्या बता कर इसकी निंदा करते रहे। वहीं हुर्रियत नेता संसद की चैखट पर ही भारत से कश्मीर की मुक्ति की हुंकार भरने की दुशाहस करते रहे। इस आयोजन में एक बात साफ हो गयी कि प्रोफेसर गिलानी सहित उपस्थित किसी ने भी इस मंच से भारत विरोधी भाषण देने वालों की हुंकार को न रोकने की कोशिश की एक प्रकार से तमाम उपस्थित जनसमुदाय ने यहां पर कश्मीर की आजादी से सम्बंधित नारे लगा रहे लोगों को न तो रोका अपितु इसमें ताली भी बजाते रहे।
इसे देख कर कई राष्ट्रवादियों ने हल्की प्रतिक्रिया भी की परन्तु पुलिस ने देशद्रोही हुंकार भरने वालों को रोकने के बजाय उन राष्ट्रभक्तों को ही उठा कर दूर ले गये। हाॅं राष्ट्रवादी नेता मुकेश जैन ने भी उपस्थित हो कर अपना विरोध प्रकट किया पुलिस उनको व उनके कुछ साथियों को पकड़ कर ले गयी। जब इस आयोजन के समापन के समय वहां पर पंहुचे बजरंग दल के दो नेता जो कोटला से पाक क्रिकेट टीम के विरोध से लेकर पाक दूतावास व हुर्रियत नेताओं व प्रोफेसर गिलानी आदि का कई बार विरोध करने के कारण कई बार तिहाड़ जैल की सजा काट चूके व दर्जनों मुकदमों को झेल रहे है, ने दो टूक शब्दों में टिप्पणी की कि इतने लोगों के बीच में भारत के मान सम्मान को एक देशद्रोही व उनके समर्थक रौंदते रहे और पुलिस व आप सभी लोग मूक देखते रहे इससे शर्मनाक बात इस देश के लिए क्या हो सकती है। उन्होंने कहा कि भारत में देशहितों की आवाज उठाने वालों को जहां एक तरफ शासन प्रशासन की जेल की सलाखों का ईनाम ही नहीं दर्जनों फर्जी मुकदमों में फंसा कर दण्डित किया जाता है वहीं
जनता भी ऐसे राष्ट्रभक्तों का साथ एक पल के लिए भी नहीं देती। उन्होंने भारतीय जनमानस को धिक्कारते हुए साफ कहा कि पाकिस्तान सहित पूरे संसार में राष्ट्रवादियों का सम्मान होता है। पाकिस्तान में तो ओसमा ही नहीं दाउद व तमाम भारत विरोधी आतंकवादियों को अमेरिका के भारी विरोध के बाबजूद वहां की सरकार संरक्षण देती है और जनता सम्मान दिया जाता रहा। वहीं भारत में राष्ट्रविरोधी हुर्रियत ही नहीं तथाकथित मानवाधिकार वाले तत्वों को संरक्षण दिया जाता है। इस अवसर पर एक बात साफ दिखी की जो लोग दामिनी व महिला आदि मामलों में अपराधियों को फांसी की सजा देने के लिए सडकों में नारे लगाते नजर आते हैं वे भी देश की संसद पर हमला करने के गुनाह में फांसी पर लटका दिये गये अफजल गुरू को फांसी देने व फांसी की सजा को देश से हटाने के लिए प्रदर्शन में चढ़ बड कर भागेदारी निभाते नजर आये। आखिर आस्तीन के सांपों को पाल कर व देश रक्षकों को दण्डित करके हम देश की एकता व अखण्डता की रक्षा कैसे कर पायेंगे। भारत की आम जनता के असहयोग व पुलिस प्रशासन के राष्ट्र हितों पर कुठाराघात करने वाली प्रवृति को देख कर ही कोई आम आदमी राष्ट्रविरोधियों का विरोध करने के लिए आगे तक नहीं आता है। देश के हुक्मरानों की इस नपुंसकता से न केवल देशभक्त जनता अपितु सुरक्षा में लगे पुलिस व सेना के राष्ट्रभक्त जवानों का सर शर्म से झुक जाता है। भारत सरकार एक तरफ देशहित में राष्ट्र विरोधियों का विरोध करने वालों को दण्डित करती है और राष्ट्र विरोधियों की नापाक हरकतों पर मूक रह कर उनको नपुंसकों की तरह भारत की छाती पर देशद्रोह करने की इजाजत देती है। इससे बड़ा दुर्भाग्य इस देश का दूसरा और क्या होगा? परन्तु आम भारतीय जनमानस कब तक देश को इस तरह से तबाह होते देख कर मूक रहेगा? ये मानवाधिकार वालों को इन आतंकियों द्वारा इस देश में आये दिन बम धमाकों व दंगे इत्यादि कराने से मारे जा रहे निर्दोष लोगों की चित्कार क्यों नहीं सुनाई देती? क्या इनको केवल अमेरिका व पाक समर्थक भारत विरोधियों पर हो रही कार्यवाही ही सुनाई देती? सरकार को चाहिए कि इन देश को तोड़ने में पाक के प्यादे बने लोगों को भारत में नहीं पाक को सौंपने का काम करे। रही बात कश्मीर की आजादी की। पहले वे पाक से कश्मीर की आजादी की बात करें तो उनको पता चल जायेगा कि वे कहां खडे है। कोई भी देश अपनी एकता व अखण्डता को तबाह करने वालों को ऐसी आजादी नहीं देता जैसी भारत की नपुंसक सरकारें देती है? मानवाधिकार संगठनो के इन लोगों को एक बात साफ समझ लेनी चाहिए कि देश में इस प्रकार की आजादी की मांग करने वालों ने कितने हजारों निर्दोष लोगों का कत्ल किया है। कितने लोग इनके इस अलगाववादी कृत्यों से अपना घरबार गंवा चूके है। कश्मीर से पलायन को मजबूर लाखों कश्मीरियों व 1947 से पाक से कश्मीर आये शराणार्थिैयों का मानवाधिकार इन मानवाधिकार के झण्डेबरदारों को क्यों नहीं दिखाइ्र देता। क्यों ये मानवाधिकार संगठन के लोग अमेरिका या पाक में जा कर पाक से ऐसी मांग कर सकते है कि वहां से किसी प्रांत को अलग करने की मांग? नहीं क्योंकि ऐसा करने पर उनको पाक व अमेरिका में कबका सुली पर या तो चढज्ञ दिया जायेगा या आतंकी बता कर लादेन की तरह दण्डित कर दिया जाता ।

Comments

Popular posts from this blog

-देवभूमि की पावनता की रक्षा की फिर भगवान बदरीनाथ ने- निशंक के बाद मनंमोहन को भी जाना होगा

खच्चर चलाने के लिए मजबूर हैं राज्य आंदोलनकारी रणजीत पंवार