राज्य गठन आंदोलनकारी केशर सिंह पटवाल नहीं रहे
उत्तराखण्ड राज्य गठन के लिए संसद की चैखट जंतर मंतर पर 16 अगस्त 1994 से 16 अगस्त 2000, राज्य गठन तक ऐतिहासिक धरना प्रदर्शन करने वाले उत्तराखण्ड जनांदोलन के प्रमुख संगठन ‘उत्तराखण्ड जनता संघर्षमोर्चा के समर्पित आंदोलनकारी व समाजसेवी 68 वर्षीय केशर सिंह पटवाल का 29 मार्च की रात 11.30 बजे आकस्मिक निधन हो गया। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के प्रताप नगर (गाजियबाद) में अपने छोटे बेटे के साथ सेवा निवृत के बाद रह रहे केशरसिंह पटवाल का अंतिम संस्कार गाजियाबाद के हिन्डन घाट पर किया गया। समाजसेवी केशरसिंह पटवाल के निधन की सूचना प्यारा उत्तराखण्ड के सम्पादक व उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष देवसिंह रावत को उनके बडे बेटे विनोदसिंह पटवाल ने मोबाइल नम्बर 9717650084 से अभी कुछ देर पहले दी।
दिवंगत समाजसेवी व राज्य गठन आंदोलनकारी केशरसिंह पटवाल के निधन पर उत्तराखण्ड राज्य गठन के प्रमुख संगठन ‘उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा ने गहरा शोक प्रकट करते हुए शोकाकुल परिवार को अपनी संवेदना प्रकट की। मोर्चा के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने बताया कि उत्तराखण्ड राज्य गठन आंदोलन में दिवंगत पटवाल अपनी नोकरी के साथ साथ राज्य गठन आंदोलन में सदैव समर्पित रहे। पौड़ी जनपद के नैनीडाण्डा विकासखण्ड के कोच्चियार गांव के निवासी दिवंगत पटवाल सेवाकाल में विनोद नगर दिल्ली में अपने दोनों बेटे विनोद सिंह पटवाल व अनूप सिंह पटवाल के साथ रहते थे। शोकाकुल परिवार में उनकी धर्मपत्नी जानकी देवी पटवाल व उनके दोनों बेटे है। अपने क्षेत्र व उत्तराखण्ड के लिए सदैव समर्पित रहने वाले केशरसिंह पटवाल अनैक सामाजिक संगठन से भी जुडे हुए थे। उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने कहा दिवंगत पटवाल राज्य गठन के समर्पित संगठनों, आंदोलनकारियों व राज्य गठन की जनांकांक्षाओं की प्रदेश की अब तक की सरकारों ने जो घोर उपेक्षा की उससे वे बेहद आहत रहते थे। श्री पटवाल को इस बात से भी आहत थे कि राज्य गठन आंदोलनकारी व समाज के लिए रचनात्मक कार्य करने वाले समर्पित समाजसेवियों के बजाय आज के राजनैतिक दल व जनप्रतिनिधी निहित स्वार्थी जनविरोधी तत्वों को ही प्राथमिकता देते है। उनका एक ही सपना था कि प्रदेश का गठन जिन जनांकांक्षाओं के लिए किया गया उसको प्रदेश की सरकारें साकार करें। जिससे उत्तराखण्ड के लोग उनकी तरह ताउम्र पलायन की त्रासदी का दंश झेलने के लिए अभिशापित न होना पडे।
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