ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलमार्ग का निर्माण युद्धस्तर पर न करा कर देश की सुरक्षा से खिलवाड न करे हुक्मरान!
-सीमा पर रेल व सडक मार्ग से सेना को सुसज्जित कर चूके चीन का मुकाबले के लिए क्यों रेल व मोटर मार्ग का जाल नहीं बना रहा है भारत
सीमान्त प्रदेश उत्तराखण्ड में रेलमार्ग नहीं हवाई घोषणाओं का जाल बना कर देश की सुरक्षा से खिलवाड़ कर रही है सरकार
नई दिल्ली (प्याउ)। आजादी के बाद चीन से लगे संवेदनशील सीमान्त उत्तराखण्ड में रेलमार्ग निर्माण के नाम पर केवल सर्वेक्षण व रेल लाइनों की मंजूर करने की घोषणायें करने के अलावा इन 65 सालों में आजाद भारत की सरकारें कुछ महत्वपूर्ण कार्य अभी तक नहीं कर पायी। विगत कुछ साल पहले सीमा पार चीन द्वारा रेल व सडक मार्ग बनाने के कारण जो पहल भारत सरकार ने देश की सुरक्षा के लिए युद्धस्तर पर करना था वह कार्य करने में अभी तक भारत सरकार व रेल मंत्रालय पूरी तरह से असफल रहे। देश की सुरक्षा के नाम पर चीन से लगी उत्तराखण्ड की सीमा पर रेल व मोटर मार्ग बनाने के सबसे सर्वोच्च दायित्व को पूरा करने में भारत के हुक्मरान कितने ईमानदार है यह देश विगत 65 सालों से देख रहा है परन्तु विगत पांच साल से देश के हुक्मरानों की लोगों के आंखों में धूल झोंकने के कृत्य से उपेक्षित उत्तराखण्डियों सहित पूरा देश भौचंक्का है। देशवासी ही नहीं विश्व के रक्षा विशेषज्ञ देश की सुरक्षा के प्रति इस प्रकार की आत्मघाती उपेक्षा को देख कर हैरान है कि भारत कैसे चीन का मुकाबला करेगा।
चीन से भारत के निरंतर तनाव व चीन द्वारा पूरी तरह भारत को आसपास से घेरने की विकट स्थिति को देखते हुए विगत 5 सालों में भारत सरकार ने युद्धस्तर पर उत्तराखण्ड के सीमान्त क्षेत्र को जोड़ने वाली ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलमार्ग पर बन जाना चाहिए था परन्तु इस पर केवल अभी तक सर्वे कराने तक भारतीय हुक्मरान अपनी पीठ थपथपा रही है। जबकि सच्चाई यह है कि यह सर्वे तो आजादी से पूर्व अंग्रेजों के शासनकाल में ही हो चूका था इन 65 सालों में इस सर्वे से आगे एक कदम न कर्ण प्रयाग तक जाने वाली रेल मार्ग पर बढ़े व नहीं कोरी घोषणाओं के अलावा बागेश्वर -टनकपुर रेलमार्ग पर हुआ।
इस बजट में इस राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण रेल निर्माण के बारे में कोई उल्लेख तक नहीं है। परन्तु इस पर देश की बागडोर संभालने के लिए बेताब हो रही मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने भी कभी इसे मुख्य मुद्दा बना कर सरकार को कटघरे में खड़ा करने की पहल तक नहीं की। इससे साफ हो गया है कि देश के हुक्मरानों को ही नहीं हुक्मरान बनने के लिए बेताब दलों को भी कहीं दूर दूर तक चिंता तक नहीं है। भाजपा कि देश की सरकार का इस बारे में कितनी ईमानदारी से कार्य कर रही है। यह केवल सतपाल महाराज या भगतसिंह कोश्यारी की मांग नहीं अपितु यह देश की सामरिक सुरक्षा की सबसे बड़ी मांग है। परन्तु उत्तराखण्ड में भाजपा व कांग्रेस सहित सभी नेताओं को एक स्वर में केन्द्रीय सरकार पर निरंतर दवाब बनाना चाहिए। इसके बारे में एक बात का उल्लेख करना भी जरूरी है कि यह रेल मार्ग निर्माण को केवल किसी नेता विशेष की प्रतिष्ठा, जीत या हार का प्रश्न न बना कर देश के सुरक्षा का गंभीर जरूरत मान कर इसको तत्काल युद्धस्तर पर निर्माण करना चाहिए। सप्रंग सरकार की प्रमुख सोनिया गांधी ने इस रेलमार्ग के उदघाटन समारोह में न जा कर साफ कर दिया कि उनको व उनके सलाहकारों में राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति न तो दूरदर्शिता व नहीं समझ। इससे एक बात साफ हो गयी कि कांग्रेसी नेतृत्व को इंदिरा गांधी की तरह देश, पार्टी व आम जनता के हितों के प्रति सटीक निर्णय लेने की कुब्बत नहीं है और नहीं उनके पदलोलुपु सलाहकार जो उनको आम जनता व पार्टी कार्यकत्र्ताओं से अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति के लिए षडयंत्र के तहत दूर रखे हुए है, में है।
इस साल 2013 के रेल बजट में ‘टनकपुर-बागेश्वर लाइन को मंजूरी की घोषणा की गई है। टनकपुर बागेश्वर रेलमार्ग को बनाने के लिए कई सालों से संघर्ष करने वाले बागेश्वर टनकपुर रेलमार्ग संघर्ष समिति के अध्यक्ष गुसाई सिंह दफोटी व उनके सभी आंदोलनकारी साथियों को इस रेल मार्ग की इसी रेल बजट में मंजूरी मिलने पर हार्दिक बधाई देता हॅू परन्तु देश के हुक्मरानों को एक बात याद रखनी चाहिए कि प्रदेश हो या देश में विकास की गंगा और सुरक्षा दोनों केवल हवाई घोषणाओं से नहीं अपितु जमीन में साकार करने से ही होगी।
इस बजट में केवल ऋषिकेश-देहरादून मार्ग पर हाथी कॉरिडोर इलाके में आये दिन रेल गाड़ी की चपेट में आ रहे हाथियों को बचाने के लिए इस इस क्षेत्र में रेल लाइन में बदलाव करने की बात कही। गौरतलब है कि पूर्व रेल मंत्री ममता बनर्जी ने कई साल पहले अपने कार्यकाल के दौरान ऋषिकेश-कर्णप्रयाग- चमोली लाइन की घोषणा की थी। उस घोषणा का उत्तराखण्ड में बड़ा स्वागत किया गया। परन्तु इस रेल निर्माण पर सरकार का सर्वेक्षण आदि से आगे आज तक एक कदम भी नहीं बढ़ पायी। जबकि इस घोषणा के बाद इस रेल मार्ग के निर्माण के लिए वर्षो से सकारात्मक प्रयास करने वाले कांग्रेसी दिग्गज नेता सतपाल महाराज को उनके समर्थक रेलपुरूष की उपाधि तक दे डाली परन्तु जब जनता इस रेल लाइन का धरती पर साकार न देख कर उनकी रेल पुरूष के रूप में पोस्टर इत्यादि देखते तो यह किसी उपहास से कम नजर नहीं आता। इस रेलमार्ग के लिए कई वर्षो से मजबूती से पहल करने वाले सतपाल महाराज को अपने समर्थकों को दो टूक शब्दों में अपने नाम के आगे या पीछे रेलपुरूष का सम्बोधन का उल्लेख न करने का निर्देश देना चाहिए।
रेल के इस बजट में अमृतसर से लालकुआं, बांद्रा से रामनगर के बीच नई एक्सप्रेस ट्रेन चलाने, देहरादून में एक कौशल विकास केंद्र खोलने की घोषणा करने का ही झुनझुना थमा कर अपना कर्तव्य इति समझ लिया। इसके साथ ही हरिद्वार-देहरादून के बीच रेल लाइन का दोहरीकरण होगा। मदुरै-देहरादून- चंडीगढ एक्सप्रेस का फेरा बढ़ाने का भी ऐलान किया गया। अगर सप्रंग सरकार को देश की सुरक्षा की चिंता रहती तो उनको सबसे पहले चीन द्वारा तिब्बत, पाकिस्तान व नेपाल सहित भारत के चारों तरफ के पडोसी देशों से घेरने के षडयंत्र को देखते हुए अपनी चीन से लगी सीमाओं पर रेल व सडक मार्ग के साथ वायु सैनिक अड्डों का प्रमुखता से विकास करने पर काम करना चाहिए था। इसके लिए चीन से लगी उत्तराखण्ड की सीमाओं पर हमारी तैयारी सबसे कमजोर है। चीन यहां रेल व सडक मार्ग का जाल बिछा चूका है और भारत अंग्रेजो द्वारा सर्वे की गयी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलमार्ग
पर युद्धस्तर पर बनाने की बजाय कछुअे की चाल से काम करके देश की सुरक्षा को खतरे में डाला जा रहा है। लगता है देश के हुक्मरानों को न चीन द्वारा किये गये सन् 1962 के आक्रमण की तरह न तो देश की चिंता है व नहीं देश के जांबाज सैनिकों की कुछ चिंता। हजारों जांबाज सैनिक हमने 1962 की लडाई में देश के तत्कालीन हुक्मरानों की लापरवाही के कारण मजबूरी में खोया । बिना तैयारी के सैनिकों को चीन के आगे झौंक दिया। अब भी इसी प्रकार के कृत्य किये जा रहे है। बिना सामरिक तैयारी के कैसे देश की सुरक्षा होगी। जबकि अमेरिका व चीन दोनों भारत को युद्ध की भट्टी में धकेलने के लिए पाक सहित सभी पडोसी देशों में अपने टिकाने बना खतरनाक षडयंत्र रच रहे हैं परन्तु भारत सरकार ठोस रणनीति बनानी तो रही दूर सामान्य ढ़ग से सीमान्त प्रदेश में बनने वाली रेल मार्ग को भी बनाने के लिए कछुवे की गति से चला कर देश को सामरिक ताकत को कुंद करने का काम कर रही है। अगर इनको रत्ती भर भी चिंता रहती तो यह रेल मार्ग अब तक कबका बन जाता। अब देश की प्रबुद्ध जनता को चाहिए कि वह अपने निहित स्वार्थो में डूबे हुक्मरानों सहित तमाम राजनेताओं को इस राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण व सीमान्त प्रदेश के चहुमुखी विकास के लिए जरूरी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलमार्ग का निर्माण । देश की हुक्मरानों को एक बात साफ याद रखनी चाहिए कि देश में हर चीज बडे नेताओं के चुनाव क्षेत्र में ही हो तो देश का विकास नहीं हो सकता। सभी जगह रायबरेली, इटवा व दिल्ली जैसा विकास होना चाहिए तभी देश का समग्र विकास होगा। परन्तु विकास से अधिक महत्वपूर्ण है देश की सुरक्षा, जिसकी उपेक्षा करने वाले हुक्मरान कभी देश के हितैषी तो हो नहीं सकते । इनकी यह उदासीनता देश को नहीं अपितु देश के दुश्मन को ही फायदा पंहुचाता है। शेष श्री कृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत। श्रीकृष्णाय् नमो।
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