डीएसपी जिया प्रकरण पर हायतोबा मचाने वाले राजनेताओं को गुप्ता हत्या प्रकरण पर क्यों सुंघा है सांप


डीएसपी जिया हत्या प्रकरण में न्याय के लिए नहीं वोट बैंक को मजबूत करने के लिए गिरेगी राजा भैया पर गाज 


 बीएसपी, कांग्रेस व सपा ने अल्पसंख्यकों का सबसे बडा हितैषी खुद को साबित करने की लगी  होड़ 



 इस देश में लोकशाही का किस प्रकार से ं जाति व धर्म के आधार पर गला घोटा जाता है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है उत्तर प्रदेश में इसी पखवाडे हुए दो हत्या काण्ड। पहला हत्याकाण्ड अम्बेडकर नगर के दुर्गा वाहिनी के अध्यक्ष राम बहादुर गुप्ता की सरेआम हत्या का मामला और दूसरा प्रतापगढ़ के काण्डा में अराजक भीड़ द्वारा डीएसपी जिया उल हक की निर्मम हत्या। पहली हत्या के पीडि़त परिवार से मिलने के लिए उसकी पार्टी के सांसद आदित्य योगी व पूर्व सांसद बेदांती को भी गाजियाबाद में ही जबरन पुलिस ने रेल गाडी से उतार कर पीडि़त परिवार के पास तक नहीं जाने दिया गया। इस प्रकरण पर प्रदेश सरकार में आसीन सपा, बसपा व कांग्रेस ही नहीं अपितु कुण्डा के डीएसपी प्रकरण पर न्याय की गुहार लगाने वाले अधिकांश सामाजिक संगठन व मीडिया ने भी शर्मनाक मौन साधा हुआ है।
जहां एक तरफ अम्बेडकर प्रकरण में हत्या का आरोपी को दण्डित करने या गिरफतार करने की मांग कोई न्याय के तथाकथित पुरोधा नहीं कर रहे है। क्योंकि इस प्रकरण में सपा का अल्पसंख्यक समाज से जुडे नेता का नाम होने से सबको मानों सांप ही सुंघ गया। वहीं दूसरी तरफ उप्र के प्रतापगढ़ जिले के कांडा में अराजक भीड़ की गयी डीएसपी जिया उल हक की निर्मम हत्या का मामले की जांच भले केन्द्रीय जांच ब्यूरों (सीबीआई) ने शुरू कर दी है। परन्तु प्रदेश में राजनैतिक पार्टियों की अंधी सत्ता लोलुपता के कारण यह प्रकरण में निष्पक्ष न्याय के बजाय अब सपा, बसपा व कांग्रेस के बीच सबसे अधिक अल्पसंख्यक समाज का हितैषी खुद को हितैषी साबित करने की अंधी होड़ का बन कर रह गया है।  इस काण्ड में जिस प्रकार से हत्यारों को नहीं अपितु  काण्डा में  उस स्थान में उस समय मौजूद न रहने वाले दंबग मंत्री राजा भैया को बलि का बकरा बना कर जेल में डलवाने की होड़ मची हुई है। इसमें मामला न्याय के बजाय धर्म का रंग देने का बना दिया गया। स्थिति की नजाकत को समझते हुए इस काण्ड में मृतका की पत्नी द्वारा नामजद करने के बाद प्रदेश के मंत्री पद से इस्तीफा देने बाद खुद को पाक साफ व इस प्रकरण की सीबीआई द्वारा जांच की मांग करने के बाबजूद जिस प्रकार से पूरे देश में उनको जेल में बंद करने की एक विशेष मांग की जा रही है उससे इस काण्ड में न्याय होने की आशा का ही गला घोंट दिया गया है।  अब किसी भी समय सीबीआई राजा भैया को जेल में बंद कर देगी इसका श्रेय कांग्रेस लेगी। कांग्रेस में एक मजबूत तबका हरहालत में राजा भैया को गिरफतार करके उप्र में अल्पसंख्यक समाज के बीच अपनी खोई हुई जमीन फिर हासिल करना चाहती है। वहीं बसपा पहले से ही इस प्रकरण में सपा से अधिक खुद को मुसलमानों का हितैषी साबित करने के लिए हर हाल में राजा भैया को जेल में बद करके सपा को कटघरे में खडा करना चाहती है। वहीं सपा इस मामले में अपनी पकड को मजबूत करने के लिए मृतक डीएसपी की पत्नी सहित उसके 5 परिजनों को सरकारी सेवा में योग्यतानुसार नियुक्ति देने को तैयार है। परन्तु मारे गये डीएसपी की पत्नी परवीन आजाद खुद को डीएसपी व परिवार के अन्य 7 लोगों को सरकारी सेवाओं में नियुक्ति देने की मांग कर रही है। परन्तु मृतक जिया उल हक के पिता शम्म्सुल हक ने अपनी बहु द्वारा सरकारी नियुक्ति के लिए दिये गये 7 नामों पर यह कह कर आपत्ति जताई की इसमें बहु के मायके वालों के नाम क्यों हैं? इस विवाद दो देखते हुए सरकार ने मृतक डीएसपी की पत्नी परवीन आजाद को पुलिस के कल्याण विभाग में प्रवक्ता यानी ओएसडी के पद पर व भाई को सोराब को सिपाई के पद पर नियुक्ति दे दी गयी है। यही नहीं प्रदेश सरकार ने 50 लाख रूपये की आर्थिक सहायता भी दे दी गयी। इस राशि में 25 लाख मृतक की पत्नी को व 25 लाख उसके पिता को दी गयी। परन्तु अम्बेडकर नगर में दुर्गा वाहिनी के अध्यक्ष राम बहादुर गुप्ता की निर्मम हत्या पर सरकार को सांप सुंघ गया है। कांग्रेस व बसपा की जुबान क्यों नहीं चल रही है। सपा सरकार उसके परिजनों की सुध व सहायता उसी प्रकार से क्यों नहीं कर रही है जिस प्रकार से काण्डा प्रकरण में कर रही है। क्यों इस प्रकरण का भी सीबीआई में दर्ज कराने की गुहार क्यों नहीं लगा रही है। डीएसपी प्रकरण पर न्याय की मांग करने वालों की जुबान क्यों अम्बेडकरनगर प्रकरण पर मूक हो गयी है। यहां पर राजनैतिक दलों की प्राथमिकता न्याय दिलाने की नहीं अपितु अपनी राजनैतिक हितों को साधने की ही है। राजा भैया अपराधी है तो उनको दण्ड मिलना चाहिए परन्तु केवल किसी वर्ग या धर्म विशेष का तुष्टिकरण के लिए मोहरा नहीं बनाना चाहिए।
काण्डा प्रकरण में सीबीआई ने राजा भैया के खिलाफ आपराधिक साजिश और हत्या का मामला दर्ज किया है।सीबीआई ने इस मामले में 4 अलग-अलग एफआईआर दर्ज की है। जिसमें से पहली एफआईआर डीएसपी जिया उल हक की हत्या के मामले में,  दूसरी एफआईआर मारे गए ग्राम प्रधान नन्हे यादव की हत्या के मामले में, तीसरी एफआईआर ग्राम प्रधान के भाई सुरेश यादव की हत्या से जुड़ी है। और चैथी एफआईआर कुंडा में उस बवाल से जुड़ी है जो उस दिन कुंडा में हुआ। इसके साथ ही राजा भैया की गिरफ्तारी जल्द हो सकती है। सीबीआई ने ये मामला डीएसपी की पत्नी परवीन आजाद की शिकायत के आधार पर दर्ज किया है। 10 सदस्यीय सीबीआई की टीम किसी भी समय राजा भैया को गिरफतार कर सकती है। सुत्रों के अनुसार इस प्रकरण में राजा भैया को गिरफतार करके कांग्रेस अल्पसंख्यकों के बीच खुद को सबसे बड़ी हमदर्द साबित करना चाहती है। वहीं कांग्रेस क्यों नहीं अम्बेडकरनगर में हुए हत्याकाण्ड की भी सीबीआई से जांच कराने की मांग क्यों नहीं कर रही है। क्यों अम्बेडकर नगर में मारे गये रामबाबू की पत्नी संजू ने जब अपनी पति की हत्या में सपा विधायक अजीमूल हक ने करने का आरोप लगाया तो क्यों प्रदेश पुलिस ने अभी तक सपा नेता को गिरफतार किया। जबकि डीसीपी की पत्नी परवीन आजाद की शिकायत पर राजा भैया को सीबीआई ने भी हत्या का आरोपी मान कर उस पर कत्ल का मामला दर्ज कर लिया है जबकि उप्र पुलिस पहले ही मामला दर्ज कर चूकी थी। एक ही प्रकार के मामले में क्यों दोहरा रूख अपना रही है उप्र की शासन प्रशासन व राजनैतिक दल। गुनाहगार कोई भी हो उसको दण्ड मिलना चाहिए। निर्दोष लोगों की हत्या किसी भी कीमत पर सहन नहीं होनी चाहिए। कानून सबके लिए एक जैसा होना चाहिए । परन्तु उप्र में लगता है कि कानून केवल राजनैतिक दल अपने दलीय हितों के अनुसार हांकना चाहते हैं। पीडि़त किसी जाति, धर्म या क्षेत्र का हो उसको न्याय मिलना चाहिए। अपराधी किसी भी जाति, धर्म व क्षेत्र का हो उसको दण्डत मिलना चाहिए।

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