उत्तराखण्ड की वर्तमान दुर्दशा पर दिल्ली में बहाये खण्डूडी व हरीश रावत ने घडियाली आंसू 


कोई तो बता दो खण्डूडी जी को कि उत्तराखण्ड का क्यों नहीं हुआ 12 सालों में विकास ?

‘आज हमारे सामने सबसे बडा गंभीर प्रश्न है कि हम क्यों उत्तराखण्ड राज्य गठन के 12 साल बाद भी उत्तराखण्ड राज्य को उसकी वर्तमान अपार क्षमताओं के बाबजूद देश का अग्रणी राज्य नहीं बना पाये ? यह यक्ष प्रश्न न उत्तराखण्ड की वर्तमान दुर्दशा से व्यथित किसी उत्तराखण्ड राज्य गठन के लिए समर्पित आंदोलनकारी या विकास से वंचित सीमान्त दूरस्थ क्षेत्र के शोषित आम उत्तराखण्डी जनता या देश -विदेश के प्रबुद्ध राजनैतिक विशेषज्ञों का नहीं अपितु यह प्रश्न बहुत ही मासुमियत से उठाया उत्तराखण्ड राज्य गठन के इन 12 सालों में एक बार नहीं दो बार मुख्यमंत्री के पद पर आसीन रह कर उत्तराखण्ड के भाग्य विधाता बने भाजपा के आला नेता पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद खण्डूडी ने पहली मार्च को दिल्ली के एक समारोह में उठाया।
उत्तराखण्ड की जनांकांक्षाओं के सपनों को साकार करने का दायित्व जिन तिवारी, खण्डूडी, निशंक व विजय बहुगुणा जैसे हुक्मरानों के हाथों में रहा, उन सबसे जो प्रश्न आज उत्तराखण्ड का आम जनमानस कर रहा है, उल्टा उसी प्रश्न को खुद प्रदेश की वर्तमान दुर्दशा के लिए जिम्मेदार रहे तिवारी व खण्डूडी जैसे हुक्मरान (जिन पर लोगों को सबसे अधिक आशा रही) ही करने लगे तो आम जनता अपना माथा नहीं पीटेगी तो क्या करेगी? अब कोन इनको समझाये कि का बरसा जब कृषि सुखाने। यह सच्चे दिल से प्रायश्चित से कही गयी बात होती तो जनता स्वीकार करती परन्तु यह अपने गुनाहों को ढकने के लिए जनता की आंखों में धूल झौंकने के लिए झूठा हमदर्द दिखा कर फिर सत्ता में काबिज होने के शब्द जाल मात्र है। जनता इनकी पदलोलुपता से मिले जख्मों से आज भी आहत है। अपनी पदलोलुपता के लिए जो विश्वासघात प्रदेश की जनांकांक्षाओं का गला घोंटने का काम प्रदेश के हुक्मरानों ने इन 12 सालों में किया उससे उत्तराखण्ड के लिए समर्पित आम उत्तराखण्डी इनके झांसे में नहीं आने वाला।
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रहे सेवा निवृत मेजर जनरल भुवनचंद खण्डूडी ने बडे मंझे हुए नेता की तरह यह सवाल दिल्ली में 1 मार्च की सांय को संसद के समीप कांस्टीटयूशन हाल में आयोजित ‘हिलमेल‘ वेबसाइट की शुभारंभ समारोह में, देश विदेश में अपनी प्रतिभाओं से उत्तराखण्ड का नाम रोशन कर रहे अग्रणी उत्तराखण्डियों को संबोधित करते हुए उठाया। हिलमेल बेबसाइट का उदघाटन भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल डी के जोशी ने भारत के केन्द्रीय मंत्री हरीश रावत, उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद खण्डूडी, तटरक्षक बल के अतिरिक्त महानिदेशक राजेन्द्र सिंह सहित अनैक अग्रणी समाजसेवियों की उपस्थिति में किया।
इसी क्रम को जारी रखते हुए उत्तराखण्ड कांग्रेस के दिग्गज नेता व वर्तमान केन्द्रीय मंत्री हरीश रावत ने इन 12 सालों में उत्तराखण्ड की हो रही दुर्दशा पर अपने विचार रखे। उन्होने दुख प्रकट किया कि जो भूमि की अंधी खरीद फरोख्त खण्डूडी जी के राज्य में अंकुश लगा हुआ था वह आज प्रदेश में कहीं नहीं दिखाई दे रहा है। हरीश रावत ने ही नहीं अपितु पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद खण्डूडी ने प्रदेश की वर्तमान हालत के लिए अपने आप को भी दोषी माना। परन्तु दोनों भूल गये कि उत्तराखण्ड की अधिकांश जनता को इन्हीं दोनों नेताओं से थी कि ये दोनों ही उत्तराखण्ड की जनभावनाओं के अनुरूप प्रदेश को विकास के पथ पर अग्रसर करेंगे। भले ही हरीश रावत व उनके समर्थक तर्क दे सकते हैं कि हरीश रावत को प्रदेश का मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया वे कहां से प्रदेश का विकास अपनी सोच के अनुसार कर पाते। वहीं खण्डूडी के समर्थक यह तर्क दे सकते हैं कि खण्डूडी के पास पर्याप्त समय नहीं रहा और उनकी सरकार को अस्थिर कर दिया। परन्तु हकीकत यह है कि सरकार चाहे तिवारी रहे हो या खण्डूडी ,निशंक व विजय बहुगुणा रहे हो तथा चाहे हरीश रावत, सतपाल महाराज, भगतसिंह कोश्यारी हो या अन्य कोई दिग्गज नेता जो भी सत्ता से बाहर रहे हो दोनों प्रकार के नेताओं में भी प्रदेश के मूल जनांकांक्षाओं की उपेक्षा करने में कोई विशेष अंतर नहीं है। वहीं प्रदेश के सम्मान को मुजफरनगर काण्ड सहित अन्य राज्य गठन जनांदोलन को रौंदने वाले कातिलों व उनके प्यादों को सजा देने के लिए न तो इन्होंने एक पल के लिए ईमानदारी से मांग की व नहीं इन्होने प्रदेश गठन के बाद कभी इसके लिए जनभावनाओं के अनुरूप ही इन गुनाहगारों को दण्डित कराने के लिए काम किया। उल्टा इन्होंने इस काण्ड के खलनायक मुलायम व राव तथा सीबीआई द्वारा दोषी ठहराये गये गुनाहगारों को को कटघरे में खडा कराने में पूरी तरह असफल रहे। यही नहीं ये अधिकांश प्रदेश के सत्तासीनों द्वारा मुजफरनगर काण्ड के गुनाहगारों को संरक्षण देने वाले दलालों व उनके प्यादों को प्रदेश के महत्वपूर्ण पदों में आसीन होते देख कर भी मूक रहने वाले राज्य के कहां से हितैषी व स्वाभिमानी हुए।
यही नहीं प्रदेश की जनांकांक्षाओं की राजधानी गैरसैंण बनाने में ये 2012 तक बेशर्मो की तरह मूक रहे। प्रदेश के राजनैतिक भविष्य को जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई परिसीमन थोप की गला घोंटा गया परन्तु क्या मजाल है कि ये नपुंसकों की तरह मूक रहे। जबकि प्रदेश का गठन ही भौगोलिक विषमता के कारण हुआ तथा उस समय झारखण्ड सहित पूर्वोत्तर के राज्यों को इस परिसीमन से छूट दी गयी परन्तु इस विधानसभाई परिसीमन के समय उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रहे तिवारी व खण्डूडी ने जुबान तक खोलने की जरूरत नहीं समझी। जिसका दण्ड उत्तराखण्ड की वर्तमान संतति को ही नहीं भविष्य को भी भुगतना पडेगा। यही नहीं प्रदेश गठन से पूर्व यहां पर जमीनों व यहां की शांति पर ग्रहण लगाने के लिए यहां पर हिमाचल की तरह ही भू कानून बनाने की पुरजोर मांग की गयी थी। इसे न केवल सत्तासीन हुक्मरानों ने अपितु विपक्ष ने भी नकारा।
इसके साथ इस सीमान्त प्रदेश में किसी प्रकार की घुसपेट को रौेकने व यहां पर संदिग्ध लोगों को बसने से रोकने के लिए यहां पर देश के सीमान्त सहित अन्य राज्यों में लागू मूल निवास पर गैर जिम्मेदारना रवैया अपनाना प्रदेश के साथ किसी विश्वासघात से कम नहीं है। जिस प्रकार से असम, बंगाल से लेकर उप्र, दिल्ली सहित देश के विभिन्न प्रदेशों में करोड़ों बंगलादेशी घुसपेटिये भारत में काबिज होने के उदेश्य से घुसपेट कर इन प्रदेशों की सत्ता को पूरी तरह अपने शिकंजे में जकड़ चूके है। यही नहीं असम से लेकर बंगाल में ये न केवल निर्णायक बन गये हैं अपितु यह यहां के मूल निवासियों के हक हकूकों का गला घोंट कर उनको अपनी जन्म भूमि से विस्थापित करने का काम कर रहे हैं। इन 12 सालों में नक्कारे हुक्मरानों के कारण उत्तराखण्ड की स्थिति ठीक असम की तरह ही होने जा रही है।
इसके साथ प्रदेश में हिमाचल की तर्ज पर विकास व सुशासन की नींव रखने के बजाय उत्तराखण्ड के दिशाहीन व घोर सत्तालोलुपु खुदगर्ज नेताओं के कारण उत्तराखण्ड में शासन प्रशासन में घोर भ्रष्टाचार ही नहीं जातिवाद, क्षेत्रवाद की चपेट में यह प्रदेश बुरी तरह पतन के गर्त में आकंण्ठ घंस चूका है। परन्तु प्रदेश को सही दिशा देने व यहां के हक हकूकों की रक्षा करने का जब निर्णायक समय इन 12 सालों के बीच में इन दोनों प्रमुख नेताओं सेहित अन्य सभी के सम्मुख आया तो इन्होंने ईमानदारी से प्रदेश को सही दिशा में संचालित करने के बजाय अपने निहित स्वार्थ के लिए निशंक व विजय बहुगुणा जैसे नेताओं को प्रदेश का भाग्य विधाता बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका किसी और ने नहीं अपितु इन्हीं नेताओं के मूंहॅ से एक शब्द भी विरोध में नहीं निकल पाया। जब देख लिया कि अब प्रदेश की जनता का मोह उनसे दूर हो गया है या जनता उनके झांसे में नहीं आने वाली तो बहुत ही मासूम व सच्चे उत्तराखण्डी बन कर घडियाली आंसू बहाने लगे। जिस मासुमियत से खण्डूडी व हरीश रावत जैसे नेता भी घडियाली आंसू बहा कर जनता को गुमराह करते है। अगर इनमें आज भी जरा सी भी लेश मात्र भी उत्तराखण्ड के प्रति लगाव रहता तो वे तत्काल दलगत स्वार्थो से उपर उठ कर प्रदेश के हक हकूकों की रक्षा के लिए व जनांकांक्षाओं को साकार करने के लिए आगे आते। इन दोनों की बड़ी मासुमियत बयानबाजी पर हंसते हुए एक राजनैतिक दल के नेता ने कहा भाई इन लोगों को तब उत्तराखण्ड या समाज की बातें याद क्यों नहीं आती जब ये सत्तारूढ़ होते हैं।
इस मौके पर नौसेना प्रमुख एडमिरल डी के जोशी ने भी पहाड़ के प्रति अपने लगाव को व्यक्त किया और कहा कि हम सब लोगों को समय निकालकर अपनी जन्मभूमि के लिए जरूर कुछ न कुछ योगदान देना चाहिए। इंडियन आॅयल काॅर्पोरेशन के चेयरमैन आर एस बुटोला ने भी हिलमेल के मंच पर पहाड़ से बिछुड़ने का अपना दर्द बयां किया। उन्होंने कहा कि कार्य की व्यस्तता के कारण वे अपने गांव और लोगों को याद तो करते हैं लेकिन वहां के लिए कोई खास योगदान नहीं कर पाते हैं।
टीम हिलमेल के संरक्षक एस एस कोटियाल, पूर्व आईजी बीएसएफ और विशेष सलाहकार एस के नेगी, विशेष कार्याधिकारी, कोयला मंत्री, भारत सरकार ने कार्यक्रम में मौजूद सभी मेहमानों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन हिलमेल के मानद सलाहकार एनडीटीवी के वरिष्ठ समाचार संपादक सुशील बहुगुणा, इंडिया टीवी के विशेष संवाददाता मनजीत नेगी, पी-7 के समाचार संपादक अनुराग पुनेठा और हिलमेल के संपादक वाई एस बिष्ट ने संयुक्तरूप से किया। इस समारोह में उपस्थित गणमान्य लोगों में न्यायाधीश अमिताभ रावत, डी आईजी राणा, पत्रकार मदन जैड़ा, सुबोध घिल्डियाल, उत्तराखण्ड सरकार में आयुक्त रहे श्री मंमगांई, समाजसेवी रणजीत झा, उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष देवसिंह रावत, समाजसेवी सुनील नेगी, उत्तराखण्ड पत्रकार परिषद के अध्यक्ष देवेन्द्र उपाध्याय व महासचिव अवतार नेगी, कांग्रेसी नेता हरिपाल रावत, नन्दन सिंह रावत व बृजमोहन उप्रेती, भाजपा नेता विनोद बछेती, दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर राजेन्द्र सिंह,उद्यमी बी एस नेगी, डी एस भण्डारी, शंकर पाण्डे, द्वारिका प्रसाद भट्ट सहित अनैक प्रतिठित समाजसेवी उपस्थित थे। इस बयानबाजी से एक ही बात याद आती है कि काश उत्तराखण्ड के नेताओं को हिमाचल के नेताओं की तरह अपने धरती व अपने लोगों से लगाव होता और इसके विकास व स्वाभिमान के लिए समर्पित होने का जज्वा रहता तो उत्तराखण्ड की स्थिति इतनी शर्मनाक नहीं होती। ये नेता अपने दायित्वों को पूरा करने के बजाय जनता से यह प्रश्न पूछे कि प्रदेश का विकास 12 सालों में क्यों आशा के अनरूप नहीं हुआ तो यह सबसे बडा मजाक ही होगा। प्रदेश के वर्तमान पतन के गुनहागार और कोई नहीं अपितु ये तमाम नेता है जो राज्य गठन के बाद प्रदेश के हुक्मरान रहे। हिल मेल वेबसाइट के लोकार्पण करने पर हिल मेल बेबसाइट के प्रमुख पत्रकार मंजीत नेगी व उनकी पूरी टीम को मेरी व प्यारा उत्तराखण्ड साप्ताहिक समाचार पत्र परिवार की तरफ से हार्दिक बधाई आशा है यह वेबसाइट उत्तराखण्ड जनभावनाओं का सम्मान करने में अपने दायित्व का भी निर्वहन बखूबी से करेगी। शेष श्रीकृण्ण कृपा। हरि औम तत्सत। श्रीकृष्णाय् नमो।

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