राजनीति से भी सन्यास लें आडवाणाी!


भले ही संघ के हस्तक्षेप व अपनी वर्तमान दयनीय स्थिति को भांपते हुए लालकृष्ण आडवाणी ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया परन्तु उन्होंने अपने इस दाव से एक ही काम किया, वह है  मनमोहनी कुशासन को मजबूती । भले ही आडवाणी के मान जाने के बाद भाजपाई प्रसन्न होंगे परन्तु आडवाणी का यह कदम देश की लोकशाही के लिए कहीं दूर-दूर तक शुभ नहीं है।
लालकृष्ण आडवाणी के इस्तीफे से बैचेन भाजपा को एक बात समझ लेनी चाहिए कि कोई भी व्यक्ति देश व समाज से बढ़ कर नहीं होता है। वह भी लालकृष्ण आडवाणी जेसे वयोवृद्ध नेता जिनको पार्टी इस सबके बाबजूद पूरा आदर दिया व अब उनकी हटघर्मिता के आगे मनोगुहार करने में लगी है, को तो अविलम्ब इस्तीफा स्वीकार कर सलाह देनी चाहिए कि आप संसदीय दल से ही नहीं राजनीति से भी तत्काल इस्तीफा दे दें। देश को किसी व्यक्ति की अंध सत्तालोलुपता के लिए बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता है। संघ व भाजपा को आडवाणी को दो टूक शब्दों में संदेश दे देना चाहिए कि आप अब राजनीति से
सन्यास ले लें।
देश को मनमोहन सिंह के कुशासन से मुक्ति दिलाने की आशा की किरण बन कर उभरे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को भाजपा की कमान सोंपने से कुपित हो कर भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 10 जून को भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारणी की सदस्यता से, संसदीय बोर्ड आदि से इस्तीफा दे कर न केवल भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ अपनी भी किरकिरी करा दी है। लालकृष्ण आडवाणी के इस्तीफे से मंहगाई व भ्रष्टाचार रूपि कुशासन से त्रस्त पूरे देश की जनता को आगामी 2014 के लोकसभा चुनाव में मनमोहनी कुशासन से मुक्ति की आशाओं पर बज्रपात हुआ। देश की जनता ने लालकृष्ण आडवाणी को गत लोकसभा चुनाव में पूरी तरह ठुकरा दिया था।
-जिन शीर्ष नेताओं के सपनों की बात करके आडवाणी इस्तीफा दे रहे हैं उनके सपनों को स्वयं आडवाणी ने पाकिस्तान जा कर भारत विभाजन व दस लाख निर्दोष देशवासियों के कत्लेआम के दोषी जिन्ना की मजार पर नमन् करके बज्रपात किया था।
-सबसे हैरानी की बात है भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाले लालकृष्ण आडवाणी की उम्र चार दशक से उपर हो गयी है। परन्तु पदलोलुपता के कारण वे संगठन व राष्ट्र सबके हितों को दाव पर लगाने में लगे हुंए है। क्या उन्हें इस बात का भी भान नहीं है कि भारतीय संस्कृति में 75 वर्ष में प्रत्येक व्यक्ति को वानप्रस्थी जीवन जी कर नयी पीढ़ी को घर, समाज व राष्ट्र का नेतृत्व सोंपने की सीख देती है।
लालकृष्ण आाडवाणी को इस बात का भी भान होना चाहिए कि देश के अधिसंख्यक जनता आज मोदी को देश का प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते। यही भाजपा के अधिकांश कार्यकत्र्ता भी। फिर क्यों जनभावनाओं व कार्यकत्र्ताओं की भावना का सम्मान करने के बजाय अपनी सत्तालोलुपता के लिए इस्तीफा दे कर देश को मनमोहनी कुशासन को मजबूत करने का ही काम किया है। देश की जनता मनमोहनी कुशासन से खून के आंसू बहा रही है। चीन, पाक व अमेरिका भारत की एकता व अखण्डता को तबाह करने के लिए आतंकी व नक्सली हमले करा रहे है। वहीं उस देश की रक्षा के लिए मनमोहनी कुशासन को उखाड फेंकने के बजाय लालकृष्ण आडवाणी अपनी प्रधानमंत्री बनने की अंधी पदलोलुपता के लिए मजबूत कर रहे हैं तो ऐसे आडवाणी की भले ही भाजपा को जरूरत होग पर देश का एक पल के लिए नहीं। जब आडवाणी राम के नहीं हो पाये तो ओर दूसरे के क्या होगे? 

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