आखिर कब तक थोपी जायेगी देश में अंग्रेजी की गुलामी
देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति के लिए निर्णायक संघर्ष मे सम्मलित हो राष्ट्रभक्त
देश के स्वाभिमान व लोकशाही की रक्षा के लिए देश का पूरा शासन प्रशासन देश की भाषा में राजकाज हो न की अंग्रेजी भाषा में। देश को भले ही अंग्रेजो ंसे मुक्ति 15 अगस्त 1947 को मिल गयी हो परन्तु हो परन्तु आज 65 साल बाद भी देश के हुक्मरानों ने देश को अंग्रेजी भाषा का गुलाम बना रखा है। देश की लोकशाही को कार्यपालिका, न्यायपालिका व विधायिका में अंग्रेजी की गुलामी थोपे रख कर न केवल आजादी के महान शहीदों व स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों का घोर अपमान किया जा रहा है अपितु देश की आजादी को बंधक बना दिया गया है।
उसको देश के अग्रेजी मानसिकता के स्वयंभू गुलाम हुक्मरानों की नालायकी के कारण संसार की प्राचीन, समृद्ध, सर्वश्रेष्ठ व सबसे ज्यादा बोली जाने वाली संस्कृत, हिन्दी, तमिल आदि भाषाओं के बाबजूद उन्हीं अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी की गुलामी शर्मनाक ढ़ग से देश पर थोप कर देश के स्वाभिमान व लोकशाही को रौंदने का राष्ट्रद्रोही कृत्य किया जा रहा है।
1947 से आज तक देश की आजादी को अंग्रेजी गुलामी से मुक्त कराने के लिए निरंतर समय समय पर देशभक्तों ने जो संघर्ष का अलख जगाया उसके बाबजूद देश के हुक्मरानों की अंग्रेजी की खुमारी अभी तक नहीं टूट रही है। इसके बाबजूद 1947 से लेकर आज तक हजारों देशभक्त देश से अंग्रेजी से मुक्त करने व भारतीय भाषाओं में शासन प्रशासन चलाने के लिए संघर्ष रत है। इसी दिशा में गांधी जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, पुरूषोत्तम दास टन्डन, लोहिया जी के नेतृत्व में देश ने समय समय पर इस दिशा में देश को अंग्रेजी गुलामी से मुक्त करने के लिए ‘अंग्रेजी में काम न होगा, फिर से देश गुलाम न होगा’ के नारों से देश में व्याप्त अंग्रेजी गुलामी से मुक्त कराने का ऐतिहासिक प्रयास किया।
इसी दिशा में सैकडों सपूतों ने अलग अलग क्षेत्रों में अंग्रेजी की गुलामी के वर्चस्व को चुनौती देने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
1988 में संघ लोकसेवा आयोग में भारतीय कार्यपालिका की प्राणवायु देने वाली संघ लोकसेवा आयोग के समक्ष अंग्रेजी भाषा की गुलामी से मुक्त करने के लिए भाषा आंदोलन के पुरोधा पुष्पेन्द्र चैहान व स्व. राजकरण सिंह के नेतृत्व में सकडों साथियों ने ऐतिहासिक डेढ़ दशक का आंदोलन किया।
इसी दिशा में दिल्ली आई आईटी में शोध हिन्दी में लिखने के लिए डा श्याम रूद्र पाठक ने, आयुर्विज्ञान संस्थान में मेडिकल की प्रारभ्मिक परीक्षाओं को हिन्दी में कराने के लिए ओम प्रकाश हाथ पसारिया, रूड़की इंजीनियरिग में मुकेश जैन एवं इंजीनियरिंग में विनोद गौतम सहित अनैक देशभक्त महान साथियों ने अंग्रेजी के वर्चस्व को चुनोती दे कर भारतीय भाषाओं की राह प्रशस्त किया।
आज दिल्ली में भी जहां 4 दिसम्बर 2012 से सोनिया गांधी के आवास पर सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय में भारतीय भाषाओं में न्याय दिलाने के लिए डा श्याम रूद्र पाठक व गीता मिश्रा जी निरंतर धरना दे रहे है। परन्तु न तो कांग्रेस आला कमान के कान में जूं रेंगी व नहीं मनमोहन सरकार के।
यह शर्मनाक स्थिति को देख कर और देश में व्याप्त अंग्रेजी की गुलामी के मोहपाश मं बंधी देश के हुक्मरानों व जनता को जगाने के लिए मजबूर हो कर 1988 से 14 साल तक संघ लोकसेवा आयोग पर ऐतिहासिक संघर्ष चलाने वाले भारतीय भाषा आंदोलन ने भाषा आंदोलन के पुरोधा पुष्पेन्द्र चैहान व महासचिव देवसिंह रावत 21 अप्रेल 2013 को संसद की चैखट, राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर अखण्ड धरना शुरू कर दिया है। इस धरने में महात्मा गांधी जी के साथ कई वर्षो तक रहने वाले एकमात्र पोते कानू गांधी, जय प्रकाश नारायण सहित भाषा आंदोलन के अग्रणी पुरोधा देश के अग्रणी पत्रकार हबीब अख्तर, अध्यक्ष डा बलदेव बंशी, उप्र के पूर्व दर्जाधारी मंत्री व रंगकर्मी यशवंत निकोसे, यूनीवार्ता के पूर्व समाचार सम्पादक बनारसीसिंह,भाषा वरिष्ठ आंदोलनकारी विनोद गौतम व ओमप्रकाश, श्याम जी भट्ट, सतीश मुखिया, बी एस चोहान, डीएस राठौर, नवीन सिसोदिया , सरदार महेन्द्रसिंह,,चन्द्रवीर सिंह, अखिलेश गौड़, बीडी दिवाकर, जगदीश भट्ट, रामहित नन्दन, हरिराम तिवारी, हरपाल जी, विजय गौतम, मुरार कण्डारी, हुकम सिंह कण्डारी व श्रीमती झूनझूनवाला सहित सैकडों देशभक्त इस आंदोलन में भाग ले रहे है। आज भारत माता आपकी राह देख रही है कि कब मेरे सपूत मुझे इस अंग्रेजी की बेडियों से मुक्त कराते हैं।
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