लोकशाही का सबक आस्टेªलिया के प्रधानमंत्रियों से सीखें मनमोहन सहित भारतीय नेता


एक तरफ आस्टेªलिया में आयी विनाशकारी बाढ़ आने पर वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री केविन रूड्ड ने भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन व अन्य भारतीय नेताओं की तरह मात्र हवाई सर्वेक्षण रूपि सैर सपाटा करने का काम नहीं किया अपितु आस्टेªलिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री केविन रूड्ड ने राहत कामों में हाथ बटाते हुए एक बाढ़ पीड़ित का भारी बक्सा अपने सर पर रख कर उनको सुरक्षित स्थान पर पंहुचाने का काम किया। यह होता है लोकशाही में जनप्रतिनिधी का दायित्व जो खुद को जनता का सेवक समझे न की भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित तमाम नेताओं की तरह खुद को जनता का सेवक नहीं अपितु जनता को अपना गुलाम समझते है। देखों उत्तराखण्ड के केदारनाथ सहित अनैक स्थानों में इसी सप्ताह आयी विनाशकारी त्रासदी को जमीन पर उतर कर लोगों का दुख दर्द बांटने के बजाय हवाई सर्वेक्षण करके अपने दायित्व का इति समझा। प्रधानमंत्री तो रहे दूर अभी तक केदारनाथ धाम में प्रदेश के आपदा मंत्री व मुख्यमंत्री भी नहीं गये।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को 22 जून को केदारनाथ जाने की मंशा की भनक लगते ही खुद केदारनाथ न जाने के कारण अपनी नजरों में अपराधबोध से ग्रसित उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा व उनकी सरकार ने तुगलकी फरमान जारी किया कि नरेन्द्र मोदी भी प्रधानमंत्री की तरह ही हवाई सर्वेक्षण करे, केदारनाथ में उतरे नहीं। शायद विजय बहुगुणा व उनके कांग्रेस के दिल्ली आसीन नेताओं को भय है कि अगर नरेन्द्र मोदी केदारनाथ में उतर गया तो देश की जनता में देश के प्रधानमंत्री व उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री क्या मुख दिखायेंगे। इस आपदा के समय भी इस प्रकार की राजनैतिक संकीर्णता का दाव चल कर कांग्रेसी मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा पूरी तरह से बेनकाब हो चूके है। इस विपदा में गुजरात के भी हजारों श्रद्धालु फंसे हुए है। वेसे भी केदारनाथ पूरे विश्व के जगदीश्वर हैं, आराध्य है। फिर क्यों भगवान शंकर की चरणों में नमन् करने से किसी भक्त को रोकना वेसे भी घोर अपराध है। जब हरक सिंह आदि के केदारनाथ में उतरने से व्यवधान नहीं हुआ तो मोदी उतर जाता तो क्या आसमान फट जाता। इस आपदा में प्रदेश सरकार को राजनीति की संकीर्ण रोटियां नही सेकनी चाहिए और आस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री से लोकशाही का सबक सिखना चाहिए।

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