अफगानिस्तान में तालिबानी दलदल में आकंठ फंसा अमेरिका
काबुल (प्याउ)। भले ही अमेरिका ने हमला करके अफगानिस्तान की सत्ता से तालिबानी शासकों को उखाड फेंका हो परन्तु अपने हजारों सैनिकों व अरबों खरब डालर यहां से तालिबानों का खात्मा के लिए पानी की तरह बहाने के बाबजूद अमेरिका तालिबानों की रीढ़ नहीं तोड़ पाया। सोमवार 10 जून को जिस प्रकार तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर तडके मशीनगनों और बमों से हमला कर दिया। उससे तालिबानों की ताकत का एक परचम ही है। गौरतलब है कि हवाई अड्डे के समीप ही उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की अगुवाई वाली सेना का ठिकाना भी है। पुलिस का कहना है कि हमलावर पुलिस की वर्दी में थे और उनका निशाना हवाई अड्डे का वह हिस्सा था जिसका इस्तेमाल सैनिक उद्देश्यों के लिए होता है।इस प्रकार के हमलों के बाद अमेरिका चाह कर भी अफगानिस्तान से बाहर नहीं निकल पा रहा है। यही हालत नाटों की भी है। तालिबानी आतंक के आगे एक प्रकार अमेरिका ने हार सी मान ली है। वह अब अफगानिस्तान से किसी प्रकार से छुटकारा चाहता है। इसके लिए वह तालिबानों से भी समझोता करने के लिए तैयार है। तालिबानी दलदल में फंसा अमेरिका अब और ज्यादा समय अफगानिस्तान में नहीं रहना चाहता। जिस प्रकार सोवियत संघ के लिए अफगानिस्तान दलदल बन गया था उसी प्रकार आज अफगानिस्तान अमेरिका के लिए भी दलदल साबित हो चूका है। अमेरिका की सारी कोशिश किसी प्रकार से सम्मानजनक ढ़ग से अफगानिस्तान से पिंण्ड छूडाना है। हालांकि अमेरिका के लिए संतोष की बात यह है कि उसने बिन लादेन का खात्मा कर दिया परन्तु अभी भी मुल्ला व तालिबानी जमात अमेरिका से हर दिन लोहा ले रही है। जो अमेरिका के लिए किसी असहनीय पीड़ा से कम नहीं है।
काबुल (प्याउ)। भले ही अमेरिका ने हमला करके अफगानिस्तान की सत्ता से तालिबानी शासकों को उखाड फेंका हो परन्तु अपने हजारों सैनिकों व अरबों खरब डालर यहां से तालिबानों का खात्मा के लिए पानी की तरह बहाने के बाबजूद अमेरिका तालिबानों की रीढ़ नहीं तोड़ पाया। सोमवार 10 जून को जिस प्रकार तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर तडके मशीनगनों और बमों से हमला कर दिया। उससे तालिबानों की ताकत का एक परचम ही है। गौरतलब है कि हवाई अड्डे के समीप ही उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की अगुवाई वाली सेना का ठिकाना भी है। पुलिस का कहना है कि हमलावर पुलिस की वर्दी में थे और उनका निशाना हवाई अड्डे का वह हिस्सा था जिसका इस्तेमाल सैनिक उद्देश्यों के लिए होता है।इस प्रकार के हमलों के बाद अमेरिका चाह कर भी अफगानिस्तान से बाहर नहीं निकल पा रहा है। यही हालत नाटों की भी है। तालिबानी आतंक के आगे एक प्रकार अमेरिका ने हार सी मान ली है। वह अब अफगानिस्तान से किसी प्रकार से छुटकारा चाहता है। इसके लिए वह तालिबानों से भी समझोता करने के लिए तैयार है। तालिबानी दलदल में फंसा अमेरिका अब और ज्यादा समय अफगानिस्तान में नहीं रहना चाहता। जिस प्रकार सोवियत संघ के लिए अफगानिस्तान दलदल बन गया था उसी प्रकार आज अफगानिस्तान अमेरिका के लिए भी दलदल साबित हो चूका है। अमेरिका की सारी कोशिश किसी प्रकार से सम्मानजनक ढ़ग से अफगानिस्तान से पिंण्ड छूडाना है। हालांकि अमेरिका के लिए संतोष की बात यह है कि उसने बिन लादेन का खात्मा कर दिया परन्तु अभी भी मुल्ला व तालिबानी जमात अमेरिका से हर दिन लोहा ले रही है। जो अमेरिका के लिए किसी असहनीय पीड़ा से कम नहीं है।
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